Friday, April 20, 2012

भाषा के दलाल

भाषा के दलाल स्वयं तो कुछ करते नहीं लेकिन कर्मठ लोगों की मेहनत को नकारते हुए उनकी भाषा का ही विरोध करने में ही अपनी ऊर्जा नष्ट करते हैं।

ऐसे लोगों द्वारा की गयी निंदा से अविचलित रहते हुए अपने कर्तव्य में सतत लगे रहना है।

आरम्भ है प्रचंड बोल मस्तकों के झुण्ड,
आज जंग की घडी की तुम गुहार दो,
आन बान शान या की जान का हो दान
आज इक धनुष के बाण पे उतार दो
,मन करे सो प्राण दे,
जो मन करे सो प्राण ले,
वही तो एक सर्वशक्तिमान है ,
विश्व की पुकार है यह भागवत का सार है
की युद्ध ही तो वीर का प्रमाण है
कौरवो की भीड़ हो या, पांडवो का नीड़ हो ,
जो लड़ सका है वोही तो महान है
जीत की हवस नहीं, किसी पे कोई वश नहीं,
क्या ज़िन्दगी है ठोकरों पे मार दो
मौत अंत है नहीं तो मौत से भी क्यूँ डरे,
जा के आसमान में दहाड़ दो ,
आज जंग की घडी की तुम गुहार दो ,
आन बान शान या की जान का हो दान
आज इक धनुष के बाण पे उतार दो,
वो दया का भाव या की शौर्य का चुनाव
या की हार का वो घांव तुम यह सोच लो,
या की पुरे भाल पर जला रहे विजय का लाल,
लाल यह गुलाल तुम सोच लो,
रंग केसरी हो या मृदंग
केसरी हो या की केसरी हो ताल तुम यह सोच
लो ,
जिस कवी की कल्पना में जिंदगी हो प्रेम गीत
उस कवी को आज तुम नकार दो ,
भिगती नसों में आज, फूलती रगों में आज जो आग
की लपट का तुम बखार दो,
आरम्भ है प्रचंड बोल मस्तकों के झुण्ड आज जंग
की घडी की तुम गुहार दो,
आन बान शान या की जान का हो दान आज इक
धनुष के बाण पे उतार दो , उतार दो,उतार दो,

Zeal

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