अच्छी भली पोस्ट लिखने का इरादा था लेकिन विघ्न डाल दिया उसी बोरिंग प्रश्न से - " दाढ़ी बनाने लायक हो गयी क्या ?"
अरे भाई मुझे क्या पता खर-पतवार को काटने का मानक क्या है। दर्पण देखिये और निर्णय लीजिये । प्रतिदिन एक-आध मिलीमीटर तो बढ़ ही जाती होगी। रोज बनाने में हर्ज ही क्या है। अब पत्नियाँ ये निर्णय करेंगी की दाढ़ी बनायीं जाए अथवा नहीं? सीधी सी बात है , आलस आता होगा , कामचोरी सूझती होगी तो सुनना चाहते होंगे की श्रीमती कह दे- " रहने दीजिये , आज काम चल जाएगा" । आलसीपने का इल्जाम भी नहीं आएगा और मेहनत से भी बच जायेंगे। दफ्तर में किसी ने टोक भी दिया तो पत्नी का नाम लगाकर बच भी जायेंगे की उसी ने रोक दिया , मैं तो तत्पर था दाढ़ी बनाने को, दो मिनट ही तो लगता है। वे न रोकतीं तो मैं तो रोज ही बनाता हूँ।
पिछले कई वर्षों से सुबह-सुबह यही प्रश्न झेलती थी। पत्नी धर्म निभाने के लिए रोज ही magnifying glass लेकर देखना पड़ता था कितना नैनो मीटर की पैदावार हुयी है। फिर बहुत जिम्मेदारी के साथ बताना पड़ता था, बनाइये अथवा काम चला लीजिये। अनायास का टेंशन, कहीं गलत निर्णय न दे दूँ।
खैर अब विकल्प ढूंढ लिया है , जो सभी पत्नियों के लिए उपयोगी साबित होगा । अब जब मुझसे यह बोरिंग प्रश्न पूछा जाता है तो मैं अपने लैपटॉप से बिना निगाह हटाये ही उत्तर देती हूँ- " बहुत बढ़ गयी है दाढ़ी , काम नहीं चलेगा , तुरंत बनाइये, लोग क्या कहेंगे की आप आलसी हैं और अनुशासित नहीं हैं। दातून करने के समान यह भी प्रतिदिन होना चाहिए" । यह विकल्प कारगर साबित हो रहा है। अब मुझे magnifying glasses की ज़रुरत नहीं पड़ती , निर्णय लेने का श्रम नहीं करना पड़ता । गलत निर्णय लेने के अनायास बोझ तले दबना नहीं पड़ता। लैपटॉप पर कार्य भी निर्विघ्न चलता रहता है। श्रीमान जी भी अनुशासित बालक की तरह दैनिक गृहकार्य की तरह इसे निष्ठां के साथ निभाने लगे हैं। आखिर हर समस्या का कोई न कोई विकल्प तो होता ही है। ज़रूरी तो नहीं हर प्रश्न का उत्तर संजीदगी से दिया जाए ....Smiles !!!!!
यह आलेख पत्नियों के लिए जन-हितार्थ लिखा गया है। संभवतः आप भी इस nagging प्रश्न से पीड़ित होंगीं। आजमाइए यही नुस्खा ।
और हर पत्नी के पतियों को यही समझाइश है की शराफत से अपनी दाढ़ी रोज़ बनाएं। आलस्य न करें , अनुशासित रहे । फिर देखें घर और बाहर, बस आप ही आप होंगे।
यदि आप लोग नहीं सुधरे तो एक अंतिम विकल्प भी है-- एक और पोस्ट लिखी जायेगी।
Wink ! wink ! Wink !
Zeal
अरे भाई मुझे क्या पता खर-पतवार को काटने का मानक क्या है। दर्पण देखिये और निर्णय लीजिये । प्रतिदिन एक-आध मिलीमीटर तो बढ़ ही जाती होगी। रोज बनाने में हर्ज ही क्या है। अब पत्नियाँ ये निर्णय करेंगी की दाढ़ी बनायीं जाए अथवा नहीं? सीधी सी बात है , आलस आता होगा , कामचोरी सूझती होगी तो सुनना चाहते होंगे की श्रीमती कह दे- " रहने दीजिये , आज काम चल जाएगा" । आलसीपने का इल्जाम भी नहीं आएगा और मेहनत से भी बच जायेंगे। दफ्तर में किसी ने टोक भी दिया तो पत्नी का नाम लगाकर बच भी जायेंगे की उसी ने रोक दिया , मैं तो तत्पर था दाढ़ी बनाने को, दो मिनट ही तो लगता है। वे न रोकतीं तो मैं तो रोज ही बनाता हूँ।
पिछले कई वर्षों से सुबह-सुबह यही प्रश्न झेलती थी। पत्नी धर्म निभाने के लिए रोज ही magnifying glass लेकर देखना पड़ता था कितना नैनो मीटर की पैदावार हुयी है। फिर बहुत जिम्मेदारी के साथ बताना पड़ता था, बनाइये अथवा काम चला लीजिये। अनायास का टेंशन, कहीं गलत निर्णय न दे दूँ।
खैर अब विकल्प ढूंढ लिया है , जो सभी पत्नियों के लिए उपयोगी साबित होगा । अब जब मुझसे यह बोरिंग प्रश्न पूछा जाता है तो मैं अपने लैपटॉप से बिना निगाह हटाये ही उत्तर देती हूँ- " बहुत बढ़ गयी है दाढ़ी , काम नहीं चलेगा , तुरंत बनाइये, लोग क्या कहेंगे की आप आलसी हैं और अनुशासित नहीं हैं। दातून करने के समान यह भी प्रतिदिन होना चाहिए" । यह विकल्प कारगर साबित हो रहा है। अब मुझे magnifying glasses की ज़रुरत नहीं पड़ती , निर्णय लेने का श्रम नहीं करना पड़ता । गलत निर्णय लेने के अनायास बोझ तले दबना नहीं पड़ता। लैपटॉप पर कार्य भी निर्विघ्न चलता रहता है। श्रीमान जी भी अनुशासित बालक की तरह दैनिक गृहकार्य की तरह इसे निष्ठां के साथ निभाने लगे हैं। आखिर हर समस्या का कोई न कोई विकल्प तो होता ही है। ज़रूरी तो नहीं हर प्रश्न का उत्तर संजीदगी से दिया जाए ....Smiles !!!!!
यह आलेख पत्नियों के लिए जन-हितार्थ लिखा गया है। संभवतः आप भी इस nagging प्रश्न से पीड़ित होंगीं। आजमाइए यही नुस्खा ।
और हर पत्नी के पतियों को यही समझाइश है की शराफत से अपनी दाढ़ी रोज़ बनाएं। आलस्य न करें , अनुशासित रहे । फिर देखें घर और बाहर, बस आप ही आप होंगे।
यदि आप लोग नहीं सुधरे तो एक अंतिम विकल्प भी है-- एक और पोस्ट लिखी जायेगी।
Wink ! wink ! Wink !
Zeal
59 comments:
very funny......achcha laga.
वाह ... यहां भी आपकी लेखनी गजब कर गई ... आभार ।
बढिया है।
दढ़ियल लोगों के लिए चेतावनी भी है ;) बढि़या आलेख.
:)... बढ़िया है अच्छा सुझाव दिया है आपने
बहुत खूब बहुत ही अच्छी बात बताई है आपने ....
मै तो हर रोज बनाता हूँ ....
too gud
हा हा...
दिव्या दीदी, आपके लिए तो यह सवाल मुसीबत है, किन्तु हमारे लिए तो यह काम ही मुसीबत से भरा है|
किन्तु यह सवाल रोज़ सुबह मैं खुद से ही पूछता हूँ, फिर जवाब भी खुद ही दे देता हूँ कि आज रहने दे, चल जाएगी इतनी तो| ऐसे करते करते करीब दस दिन निकल जाते हैं और फिर कोई न कोई टोक देता है कि अरे भाई शेव क्यों नही करते?
मेरा सीधा सा जवाब होता है कि प्रकृति का संतुलन बिगड़ने से बचा रहा हूँ| भगवान् ने कुछ सोच समझ कर ही मेरे चेहरे पर ये झाड़ियाँ उगाई हैं, इन्हें काट कर मैं प्रकृति का संतुलन कैसे बिगाड़ सकता हूँ?
कई बार तो मैं पूरा महिना ऐसे ही निकाल देता हूँ|
आप क्या जानों हमारी तकलीफ दिव्या दीदी? गाल छील छील कर कैसी हालत हो गयी है हमारी?
कितने tact से हेंडल करती हैं आप अपने 'उन ' को , दिव्या जी !
बधाई ! पर कुछ तो होंगी जिन्हें उनके पति दाढ़ी के साथ ही अच्छे लगते हैं !
:) अच्छा सुझाव है.
हम तो रोज बना लेते हैं, कोई क्यों पोस्ट लिखे इस पर।
Ganimat hai Aur Paschayavlokan mein atyant harsh au ullas ki baat hai ki yeh nahin kaha gaya ki dhadhi ya ayal jante ho kinko aata hai ... ?
मेरी एक कविता है "दाढ़ी बनाते हुए घायल होना " (http://aruncroy.blogspot.com/2010/11/blog-post_08.html) देखिएगा ...
जब जवान थे तो रोज बनाते थे!
अब तीसरे दिन बनाते हैं!
अब तो रोज ही निस्तारण करने में भलाई है . रोचक.
Ha,ha,ha!
बहुत खूब .....मेरे पति छुट्टी के दिन तो बिलकुल ही नहीं बनाना चाहते ....अगर संयोग से दो या तीन दिन की छुट्टी हो जाय तो भी बढ़ी हुई दाढ़ी लेकर घूमना चाहते हैं ,जब तक मैं बार -बार नहीं टोकूं
he he he Ok looking forward to the next post too ..
but roz roz Dhadhi banane se Rash ho jaata hai :) kta karen ...
and waise bhi I heard that Girls like a bit of stuble Ha ha ha ha ahaha
Bikram's
वह - क्या बात है !!
हमारे सामने यह समस्या कभी नहीं आयी, पूछो क्यों। इसलिए कि वे खुद इस बात के लिए मुस्तैद है कि दाढ़ी रोज ही बननी चाहिएं।
मुझे अपनी पत्नी को झुंझलाते हुए देखना अच्छा
लगता है ,इसलिए रोज पूंछता हूँ
वाह भाई वाह क्या खूब कहा आपने !!!
..आदमी कि मूंछ कि बातें तो सुनी मगर दाड़ी भी एक पोस्ट के लायक यह आज मालूम पड़ा :)
बहुत रोचक और कमाल का आलेख...
waah, badiya lekh..... lagta hai hame bhi daadi katvaani padegi.
kripya mere blog par bhi aayen..
aabhar.
http://umeashgera.blogspot.com/
पत्नी से पूछने का अभिप्राय तो मात्र इतना होता है कि कहीं दाढ़ी तो नहीं चुभ रही है :)
पति द्वारा पूछे जाने वाली यही एक बात तो नहीं है.आप निजता का उल्लंघन कर रही हैं ! ऐसे हर सवाल पर नई पोस्ट का मसाला लगातार मिल सकता है !
रोज शिकायत रहती है कि हमें कोई पूछता ही नहीं। और लो अब तो पति का दाढ़ी पर सलाह मशवरा करना भी दुशवार है। :) बताईए भला यह सलाह लेने कहाँ जाय पति? :(
यह अर्धान्गनी अर्धान्गनी कहा जाता है, आधी दाढ़ी तो वैसे भी उनके हिस्से की है। मिल-बांट कर ही तो समाधान निकाला जाता है।
बात आलस्य की नहीं है। रोज शस्त्र उठाना शोभा नहीं देता। :)
हंसता मुस्कराता पोस्ट :)
अपन तो ब्रुश करने के तुरंत बाद दाढ़ी बना लेते हैं.चार मिनट का तो काम है.ओल्ड स्पाइस की खुशबु भी मिल जाती है .मुझे तो लगता है की पत्नी रोक न दे बनाने से .
अपनी तो दाढ़ी रोज ही बनती है। नहीं तो ऐसा लगता है जैसे नहाए ही नहीं हैं।
पर पति महाशय इस लिए थोड़े ही पूछते हैं कि वे पत्नी का जजमेंट चाहते हैं। वे तो इसलिए पूछते हैं कि उन्हें रोज दो बार इस बात का उत्तर देना होता है कि सब्जी काहे की बनेगी। हालांकि बनती वही है जो श्रीमती जी को बनानी होती है या जिसे बनाना तय कर चुकी होती हैं। अब श्रीमान जी दो बार की सब्जी का बदला एक बार की दाढ़ी के प्रश्न से लें तो बुराई क्या है?
दाढ़ी बनाने के लिए भी पत्नी से परामर्श ! यह तो पत्नी भक्ति की अति हो गई ।
वैसे दाढ़ी तो रोज ही बनानी होती है । कोई शक ?
हम जैसों के लिये क्या?:)
रामराम
पूरी तरह असहमत. हमें हमारे मौलिक अधिकारों से वंचित करने का षड्यंत्र किया जा रहा है. सभी पति वर्ग के प्राणियों से अनुरोध है कि दिव्या की बातों/ धमकियों में आये बिना अपने मौलिक अधिकारों का प्रयोग करते रहना. दिव्या को सिर्फ इस बात के लिए धन्यवाद कि उन्होंने अपनी पोल-पट्टी खुद खोल दी. बंधुओ ! अब पत्नियों के stereotyped उत्तर का एनालिसिस करके ही उत्तर की ग्राह्यता-अग्राह्यता का निर्णय करना पडेगा. वरना हर बार दाढी छीलने के चक्कर में कुछ नैनोग्राम खून का खून होता रहेगा. आवश्यकता पड़ने पर हम दिव्या के खिलाफ एक मंच खडा करने पर भी विचार कर सकते हैं .इसलिए कोई पति घबडाना मत. लिखने दो कितनी पोस्ट लिखती हैं.
यह लेख पुरुषों के प्रति ज्यादती तो नहीं है दिव्या जी ? वैसे मै समझता हूँ कि हो सकता है पति अपनी पत्नी से बतियाने के लिए कुछ बहाने ढूंढता हो या वह उससे हमेशा निकटता चाहता हो. जैसे कि कुछ पत्नियाँ अपने पति से यह अवश्य पूछती है कि " सुनते हो, आज सब्जी में क्या बनायें ?" हालांकि अंतिम निर्णय पत्नी का ही होता है फिर भी....!
अच्छे आलेख के लिए आभार !!
बहुत सुंदर आलेख....पर मैं तो इस मामले में बहुत आलसी हूँ।
एक सरदारजी न्यू योर्क पहुँच पहली पहली बार डांस बार में पहुँच गए...
किन्तु कोई लड़की उनके साथ नाचने के लिए तैयार ही नहीं हुई :(
कुर्सी में निराश बैठे थे :(
एक शेव किया हुआ आदमी उन्हें दो डांस के बीच उस के पास आ बोला कि पास ही एक नाई है, उसके पास मैं भी कल गया था...जाओ और शेव करालो, वो दस डॉलर लेगा...तभी कोई लड़की तैयार होगी!
सरदारजी गए और उसको बोला शेव करने को, तो उसने कहा बीस डॉलर लेगा!
वो बोले कि कल तो दस लिए थे!
नाई ने कहा इस रफ़्तार से दाढ़ी बढाओगे तो कल तीस लगेंगे :)
दिव्या जी, कोलेज के दिनों में जिसने मुझे यह चुटकुला सुनाया था, मेरे एक सरदार मित्र का एक मित्र अमेरिका गया तो जो पहला काम उसने किया, वो था अपनी कई फोटो विभिन्न पोशाक में खिंचवाने का... और शेव करा हर माह एक फोटो घर भेज देता था... किन्तु पकड़ा गया जब कोई बुजुर्ग उस बीच वहाँ पहुँच उससे मिले तो सत्य का पता लग गया, और उन्हें वापिस भारत आना पड़ा :(
दिव्या जी कई कारण हो सकते हैं दाढ़ी रोज रोज न बनाने के... एक मित्र का तौलिया खो गया तो उसने पैसे बचाने के लिए शेव करना छोड़ दिया... फिर एक दिन एक बाबा को देख बोला "लगता है आपका कम्बल खो गया"!
दिव्या जी विघ्न डालने के बाद भी पोस्ट का विषय अच्छा मिला आपको , ये पोस्ट भी हिट. भले ही वो पुरुष की दाढी पर ही क्यों न हो ?...
भई ,हमारे सामने तो ये समस्या कभी आई ही नहीं !क्योकि इस मामले में साहब बहुत ही नियमित है और एक बात सर पर गिने चुने बाल थेतो पुरे सपाट कर लिए और रोज ही उन्हें सपाट करना होता है तो आलस्य का तो कोई प्रश्न ही नहीं |हा हः हा
मजेदार लेख....!!
Nice .
आपने हर विषय पर लिखा है परंतु हमारे ब्लॉग पर आप नहीं आईं ?
पत्नी बोल बोलकर थक गई... अब चार साल की बेटी बोलती है, पापा दाढी बनाओ..... गड रही है....
असल में,पूछते इसलिये हैं कि ,देखो तुम्हारे कहने से शेव कर ली है,अब देख भी लो एक नज़र । नही तो इतना उपक्रम भी करो और कोई देखे भी नही....ये मुआ सौतन लैपटाप..टी.वी.और उनके कमरे का आईना...
यह दाढ़ी के मायने ....!
वाह, मज़ा आ गया !
अच्छा विचार-विमर्ष है दिव्या जी .
Charming post!
हमारे यहाँ दाढी रखने की अनुमति नहीं है पर बडी मुश्किल से मूँछें रखने की अनुमति मिल गई। बशरते मूँछें हमेशा नीचे झुकती हों।"
जब कभी पत्नि से पूछता हूँ "क्या आज दाढी बनाना वाकई जरूरी है?" तो उत्तर मिलता है "क्या आज नाश्ता तैयार करना वाकई जरूरी है?"
यह "दाढी या breakfast" का choice सालों से मुझे सताती आई है।
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
आपकी पोस्ट पढ़कर काका का लिखा हुआ एक दोहा याद आ गया.आप भी देखिये:-
काका दाढ़ी राखिये,बिन दाढ़ी सब सून.
ज्यों मंसूरी के बिना,व्यर्थ है देहरादून.
हा...हा...हा.......बहुत खूब.........भाई हम से तो रोज़ नहीं बनती.........थोड़ी बहुत तो चलती है ...........फैशन में शुमार हो जाता है.......वैसे तो अभी हमे ये प्रश्न पूछने के लिए पत्नी नामक प्राणी उपलब्ध नहीं है.........पर आपकी बातों से लगता है इतना फैसला तो हमे खुद ही करना चाहिए.........पर पत्नी नामक प्राणी बड़ा खतरनाक जीव है..............अगर आप उनसे बिना पूछे रोज़ शेव करेंगे तो कहेंगे की क्या बात है रोज़ इतना संवर कर दफ्तर क्यूँ जाते हो..........और न करो तो ये की क्या देवदास बने घूमते हो कोई देखे तो क्या कहे.......साफ़ सुथरे रहो.............इश्वर ही 'पति' नमक प्राणी की रक्षा कर सकता है :-)
.
मैं समझती थी यह प्रश्न सिर्फ आलसीपने की निशानी है , लेकिन चटोरी टिप्पणियां पढ़कर लगा अन्य बहुत से कारण भी हो सकते हैं । यथा-
कोई पत्नी को झुंझलाता देख आनंद लेता है।
कोई नाश्ते के साथ समझौता करने से डरता है।
कोई इतने उपक्रम के बाद पत्नी की एक नज़र को तरसता है।
कोई डर रहा है पत्नी कहीं पूछ न ले -"आजकल बहुत सज संवर रहे हो , क्या बात है "
कुछ के पास पत्नी ही नहीं है तो जनाब एक महीने तक काम चला रहे हैं , कोई टोकने वाला ही नहीं।
वाह जनाब वाह !
.
किंतु मन में एक चिंता है - यही सभी पुरुष अनुशासित होकर प्रतिदिन दाढ़ी बनायेंगे तो इतनी मंहगी शेविंग क्रीम का मासिक खर्चा बहुत आएगा । कहीं हमारे देश की अर्थ व्यवस्था न चरमरा जाए।
काश मैं भी ऐसा कर पाता ! मैं तो अपनी दाढ़ी को अपनी व्यक्तिगत पहचान से जोड़ बैठा |
hahahhahaha maza aaya padhkar.
bahut hi badiyaa lekh dadhi per.per aaj kal ke hero dadhi badhakar logon ko bigaad rahe hain.dadhi nahi banaate hain aalas ke kaaran aur toko to kahenge bhi hero log daadhi nahi banaate hain .persanaalty alag dikhti hai.saamnewaalaa iske rob main aakar adab se baat karataa hai.
per aapki bhi daad deni padegi,ki daadhi per bhi aapne itanaa achcha aur majedaar lekh likh diya.badhaai aapko.
बहुत बढ़िया व्यंग है. यथार्थ को संबोधित करता हुआ.
पर फ्रेंच कट वालों के लिए निराशा ही होगी.
वैसे मुझे दाढ़ी रखना बहुत पसंद है. रेट्रो लुक .
आपका ये लेख पढ़ के अब सोच रहा हूँ , की अब उस बेचारी का क्या होगा जो मेरे पल्ले पड़ेगी. :D :D
दिव्याजी,
लगता है पतिदेव की अच्छी खिंचाई की है आपने.
उनको भी मौका जरूर मिलता होगा जब
कहीं सज संवर कर जाते हुए आप पूंछती होंगीं
'मैं कैसी लग रहीं हूँ ,जी'
hahaha divyaji,dadhi ke bahane pati sach me patni ki ek nazar inayat chahte hai...badiya post.
Normally I do not learn article on blogs, however I wish
to say that this write-up very forced me to check out and
do it! Your writing style has been amazed me. Thank you, quite nice article.
My web blog: get rid of hiccups
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