मनमोहन सिंह को अब ये पता चल गया है की उनकी विदाई निश्चित है, इसलिए उन्होंने देश के साथ भरपूर दुश्मनी निकालने की ठान ली है ! अब विदेशी कंपनियों को दी घुसपैठ की इज़ाज़त ! FDI को मंज़ूरी ! गरीबों के पेट पर लात और देश पर कब्जा करने वाली अमीर कंपनियों को हरी झंडी !
कुछ दिन पूर्व अमेरिकी समाचार पत्रों में मनमोहन सिंह की इतनी छीछालेदर हुयी की उससे तिलमिलाए हुए हमारे प्रधान मंत्री ने पूरे भारत को ही FDI के माध्यम से दांव पर लगा दिया ! बदले में इन्हीं अमरीकी अखबारों ने जम कर सराहना की है मनमोहन की ! विदेशी अखबारों में झूठी प्रशंसा के लिए ईमान बेचते हमारे मुखिया!
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Foreign direct investment : investment --FDI
आखिर FDI है क्या बला ?
विद्वान् पाठकों को FDI के बारे में अवश्य ही पता होगा फिर भी सामान्य पाठकों की जानकारी के लिए सरल शब्दों में -- FDI अर्थात किसी देश का अन्य देश में निवेश करना। यह निवेश किसी भी क्षेत्र में हो सकता है , लेकिन आजकल जो मुद्दा सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है , वह है FDI-Retail का। उदाहरण के लिए 'वालमार्ट' ।
विदेशी कंपनी ५१ प्रतिशत की भागीदारी के साथ हमारे देश में 'वालमार्ट' आदि के द्वारा निवेश करना चाहती है, जिसकी अनुमति श्री सिंह ने दी है।
कुछ दिन पूर्व अमेरिकी समाचार पत्रों में मनमोहन सिंह की इतनी छीछालेदर हुयी की उससे तिलमिलाए हुए हमारे प्रधान मंत्री ने पूरे भारत को ही FDI के माध्यम से दांव पर लगा दिया ! बदले में इन्हीं अमरीकी अखबारों ने जम कर सराहना की है मनमोहन की ! विदेशी अखबारों में झूठी प्रशंसा के लिए ईमान बेचते हमारे मुखिया!
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Foreign direct investment : investment --FDI
आखिर FDI है क्या बला ?
विद्वान् पाठकों को FDI के बारे में अवश्य ही पता होगा फिर भी सामान्य पाठकों की जानकारी के लिए सरल शब्दों में -- FDI अर्थात किसी देश का अन्य देश में निवेश करना। यह निवेश किसी भी क्षेत्र में हो सकता है , लेकिन आजकल जो मुद्दा सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है , वह है FDI-Retail का। उदाहरण के लिए 'वालमार्ट' ।
विदेशी कंपनी ५१ प्रतिशत की भागीदारी के साथ हमारे देश में 'वालमार्ट' आदि के द्वारा निवेश करना चाहती है, जिसकी अनुमति श्री सिंह ने दी है।
क्यों करना चाहती है निवेश ? विदेशी कंपनी को क्या लाभ होगा ?
- जाहिर सी बात है , पैसा कमाने के लिए।
- निस्वार्थ तो करेगी नहीं
- दान देने की प्रथा केवल भारत में है , विदेशों में नहीं।
- भारत का हित तो चाहेंगे नहीं, अपना हित देखकर ही निवेश कर रहे हैं।
- इससे इन्हें एक बड़ी मार्केट मिलेगी , इनका नाम , प्रचार और टर्न -ओवर बढ़ जाएगा।
- मालामाल पहले से थीं , अब और हो जायेंगी।
- सीधा लाभ निवेश करने वाले देश को होगा। उसकी आर्थिक स्थिति और सुदृढ़ होगी।
FDI -Retail से भारत को क्या लाभ होगा ?
इस निवेश से संभावित नुक्सान--
इस तरह से तो हमारा देश तरक्की नहीं करेगा बल्कि हम अपने देश की गरीब जनता, छोटे मोटे व्यापारी , उधोगपति, किसानों आदि के पेट पर लात मारेंगे।
श्री सिंह तो देशवासियों के दर्द को समझ नहीं रहे , लेकिन हम और आप इस निवेश के खिलाफ एकजुट होकर इसका बहिष्कार कर सकते हैं। हमने स्वदेशी के इस्तेमाल द्वारा आजादी पायी थी और विदेशी सामानों का बहिष्कार किया था। आज एक बार फिर उसी जागरूकता की ज़रुरत है वरना देश पुनः इन विदेशियों के चंगुल में चला जाएगा।
बेरोजगारी से पीड़ित हो हज़ारों लोग भूखे मरेंगे , रोयेंगे और कलपेंगे, आत्महत्या करेंगे, वहीँ हमारी आने वाली पीढियां हो सकता है गुलाम भारत में ही जन्म लें। अतः सचेत रहने की अति-आवश्यकता है। ये विदेशी कम्पनियाँ हम पर राज करेंगी और हमें कई दशक पीछे धकेल देंगीं ।
कब्र में पाँव लटकाए लोग तो चल बसेंगे, लेकिन ज्यादा ज़रुरत है नौजवानों के खून में उबाल आने की और सचेत रहने की। बहिष्कार करो अन्यथा आप और आपकी आने वाली संतानें की भुक्तभोगी होंगी इस विदेश निवेश की। ये ईसाईयों की पार्टी (सरकार) , जो भगवा को आतंकवाद करार देती है और आतंकियों को शाही दामाद की तरह रखती है, वह अब विदेशियों को घुसपैठ करने की अनुमति देकर हमारी आधी जनता के मुंह का निवाला छीन रही है।
इन वाल मार्ट्स द्वारा कनाडा आदि कई देश अपने लोकल निवेशकों और व्यापारियों को पूरी तरह खो चुके हैं । यही हश्र भारत का भी होगा। शुरू-शुरू में ये कम्पनियाँ लुभावेंगी , लेकिन एक बार जडें मज़बूत होने के बाद ये हमारे किसानों और उत्पादकों को दूध से मक्खी की तरह निकाल फेकेंगी . बाद में ये हमारे किसानों द्वारा उत्पादित फसलों की क्वालिटी पर ऊँगली उठा, उन्हें भी नकार देंगीं। हम मुंह ताकते रह जायेंगे।
यह निवेश भारत देश की आने वाली आबादी के लिए गुलामी और गरीब आबादी के लिए मौत का फरमान होगी। श्री सिंह को इटली से आदेश मिलते ही हैं, चीन भी बताता है की कौन सी कान्फरेन्स अटेंड करनी है दलाई लामा की और अब अमेरिका बताएगा की देश कैसे चलाया जाए और देश का विकास कैसे हो।
जब देश आतंकवाद और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों से जूझता है तो श्री सिंह भोली-गाय बन जाते हैं लेकिन क्या चक्कर है जब विदेशी निवेश की बात होती है तो वे 'शेर' बन जाते हैं ? स्वयं तो कुछ वर्षो के ही मेहमान होंगें लेकिन आने वाली पीढ़ियों को गुलाम कर जायेंगे ये।
अपने देश को सुरक्षित रखने के लिए सचेत रहना होगा। ये विदेशी कम्पनियाँ हमारी सगी कभी नहीं हो सकतीं। इनका स्वार्थ इन्हें भारत की तरफ गिद्ध-दृष्टि करवाता है। और श्री सिंह की असंवेदनशीलता ही छोटे व्यापारियों और कुटीर उद्योगपतियों के पेट पर लात मारती है और बेरोजगारी को बढाती है। जब तक बेरोजगार होने वालों की पुनर्स्थापना का कोई बेहतर विकल्प न ढूंढ लिया जाए , तब तक ऐसे निवेश के बारे में सोचने का कोई अधिकार नहीं है सरकार को।
अपने देशवासियों की आहों पर तरक्की नहीं चाहिए हमें। हमारे देश के पास संसाधन भी है, विद्वता भी। हम अपने प्रयासों से और स्वदेशी के उपयोग से अपने देश का विकास करने में सक्षम हैं और इस निवेश का पूर्णतया बहिष्कार करते हैं।
केवल 'भारत-बंद' से काम नहीं चलेगा। इस सरकार का तख्ता उलटना भी बहुत ज़रूरी है क्योंकि यह देश और देशवासियों के विकास के उल्टा ही सोचती है।
ईश्वर भारतवासियों को सद्बुद्धि और जागरूकता दे। सचेत रखे।
भारत-माता की जय।
वन्देमातरम !
Zeal
- एक अच्छी और निरंतर सप्लाई मिलेगी खाद्य और अन्य वस्तुओं की --लेकिन यह आपूर्ति हम अपने स्वदेशी संसाधनों द्वारा बखूबी कर सकते हैं।
- अपने गोदामों में सड़ते अनाज का इस्तेमाल करके भी कर सकते हैं।
- एक लाभ है क्वालिटी और variety मिलेगी (क्या अपने देश में क्वालिटी नहीं है ? यदि नहीं है तो उस दिशा में प्रयास किये जाएँ)
- देश को एक अच्छा इन्फ्रा-स्ट्रक्चर मिलेगा-( क्या इस उपलब्धि के लिए विदेशियों को घुसपैठ करने दी जाए ? यह काम करने में तो हमारा देश स्वयं ही सक्षम है । कब तक दया पर जीवित रहेंगे परजीवियों की तरह ?)
इस निवेश से संभावित नुक्सान--
- छोटे तथा घरेलू उद्योग समाप्त हो जायेंगे।
- छोटे व्यापारी उजड़ जायेंगे।
- किसान बर्बाद हो जायेंगे।
- गरीबों की आजीविका छीन जायेगी।
- वालमार्ट अपना पाँव पसारेगा तो धीरे धीरे हमारी ज़मीनें भी महंगे दामों में खरीद कर अपनी जडें मजबूत करेगा और रियल स्टेट के दाम बढेंगे।
- पूर्व में गुलामी भी इसी तरह विदेशी कंपनियों की घुसपैठ से ही मिली थी।
- हज़ारों लोग बेरोजगार हो जायेंगे।
- दूसरा कोई विकल्प न होने के कारण ये आत्महत्या करने पर मजबूर हो जायेंगे।
- अपने देशवासियों के साथ घात करके विदेश को संपन्न करना कहाँ की अकलमंदी है?
इस तरह से तो हमारा देश तरक्की नहीं करेगा बल्कि हम अपने देश की गरीब जनता, छोटे मोटे व्यापारी , उधोगपति, किसानों आदि के पेट पर लात मारेंगे।
श्री सिंह तो देशवासियों के दर्द को समझ नहीं रहे , लेकिन हम और आप इस निवेश के खिलाफ एकजुट होकर इसका बहिष्कार कर सकते हैं। हमने स्वदेशी के इस्तेमाल द्वारा आजादी पायी थी और विदेशी सामानों का बहिष्कार किया था। आज एक बार फिर उसी जागरूकता की ज़रुरत है वरना देश पुनः इन विदेशियों के चंगुल में चला जाएगा।
बेरोजगारी से पीड़ित हो हज़ारों लोग भूखे मरेंगे , रोयेंगे और कलपेंगे, आत्महत्या करेंगे, वहीँ हमारी आने वाली पीढियां हो सकता है गुलाम भारत में ही जन्म लें। अतः सचेत रहने की अति-आवश्यकता है। ये विदेशी कम्पनियाँ हम पर राज करेंगी और हमें कई दशक पीछे धकेल देंगीं ।
कब्र में पाँव लटकाए लोग तो चल बसेंगे, लेकिन ज्यादा ज़रुरत है नौजवानों के खून में उबाल आने की और सचेत रहने की। बहिष्कार करो अन्यथा आप और आपकी आने वाली संतानें की भुक्तभोगी होंगी इस विदेश निवेश की। ये ईसाईयों की पार्टी (सरकार) , जो भगवा को आतंकवाद करार देती है और आतंकियों को शाही दामाद की तरह रखती है, वह अब विदेशियों को घुसपैठ करने की अनुमति देकर हमारी आधी जनता के मुंह का निवाला छीन रही है।
इन वाल मार्ट्स द्वारा कनाडा आदि कई देश अपने लोकल निवेशकों और व्यापारियों को पूरी तरह खो चुके हैं । यही हश्र भारत का भी होगा। शुरू-शुरू में ये कम्पनियाँ लुभावेंगी , लेकिन एक बार जडें मज़बूत होने के बाद ये हमारे किसानों और उत्पादकों को दूध से मक्खी की तरह निकाल फेकेंगी . बाद में ये हमारे किसानों द्वारा उत्पादित फसलों की क्वालिटी पर ऊँगली उठा, उन्हें भी नकार देंगीं। हम मुंह ताकते रह जायेंगे।
यह निवेश भारत देश की आने वाली आबादी के लिए गुलामी और गरीब आबादी के लिए मौत का फरमान होगी। श्री सिंह को इटली से आदेश मिलते ही हैं, चीन भी बताता है की कौन सी कान्फरेन्स अटेंड करनी है दलाई लामा की और अब अमेरिका बताएगा की देश कैसे चलाया जाए और देश का विकास कैसे हो।
जब देश आतंकवाद और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों से जूझता है तो श्री सिंह भोली-गाय बन जाते हैं लेकिन क्या चक्कर है जब विदेशी निवेश की बात होती है तो वे 'शेर' बन जाते हैं ? स्वयं तो कुछ वर्षो के ही मेहमान होंगें लेकिन आने वाली पीढ़ियों को गुलाम कर जायेंगे ये।
अपने देश को सुरक्षित रखने के लिए सचेत रहना होगा। ये विदेशी कम्पनियाँ हमारी सगी कभी नहीं हो सकतीं। इनका स्वार्थ इन्हें भारत की तरफ गिद्ध-दृष्टि करवाता है। और श्री सिंह की असंवेदनशीलता ही छोटे व्यापारियों और कुटीर उद्योगपतियों के पेट पर लात मारती है और बेरोजगारी को बढाती है। जब तक बेरोजगार होने वालों की पुनर्स्थापना का कोई बेहतर विकल्प न ढूंढ लिया जाए , तब तक ऐसे निवेश के बारे में सोचने का कोई अधिकार नहीं है सरकार को।
अपने देशवासियों की आहों पर तरक्की नहीं चाहिए हमें। हमारे देश के पास संसाधन भी है, विद्वता भी। हम अपने प्रयासों से और स्वदेशी के उपयोग से अपने देश का विकास करने में सक्षम हैं और इस निवेश का पूर्णतया बहिष्कार करते हैं।
केवल 'भारत-बंद' से काम नहीं चलेगा। इस सरकार का तख्ता उलटना भी बहुत ज़रूरी है क्योंकि यह देश और देशवासियों के विकास के उल्टा ही सोचती है।
ईश्वर भारतवासियों को सद्बुद्धि और जागरूकता दे। सचेत रखे।
भारत-माता की जय।
वन्देमातरम !
Zeal
17 comments:
koyee kharid dar hai aap ki nazar mai muflishi ke din hai eeman bechana hai yahi haal hai hamare pm ka desh becha kar eeman chhoda kar videshi jhooti pratishath ke pichhe deshh ke sath dhokha hai ye
अच्छी जानकारी दिव्या जी....
सार्थक पोस्ट.
अब तो गालियाँ दे दे कर थक गए है सो जय जयकार ही सही..
भारत माता की जय.
अनु
दिव्या जी, पूँजी स्वदेशी ही है ,काली होकर बाहर गई थी अब गोरी होकर लौटेगी ! हाँ, निवेशकर्ता हाथ विदेशी हैं ! इसे कहते है कुटिलों की कूटनीति !.
Achchhi jaankari!
जानकारी के साथ एक सार्थक पोस्ट |
आभार |
अच्छी जानकारी दिव्या जी.... FDI के बारे में कुछ पता था कुछ नहीं,विस्तृत जान कारी देने के लिए आभार...
विदेशी निवेश से किसी भी देश का भला नहीं हो सकता है तो फिर भारत का कैसे हो सकता है !!
अमेरिकी दबाव में विदेशी पूंजी निवेश
एक बार एक ब्यक्ति ने मुझसे पूछा की आप क्या करते है मैंने कहा की मुर्दों का सगठन करता हु ,आज भारत दुनिया की दृष्टि में लाफिंग स्टेट हो गया है जो चाहता है घुस आता है जोचाहता करता है हम निरीह बने देखते रहते है इस्लाम और चर्च अनुयायी भारत को निगलने में लगे है और सोनिया प्रेरित सर्कार भारत से दुश्मनी नहीं सधेगी तो और क्या करेगी ---चेतना तो हमें आणि चाहिए----.
मुंह पर विष्टा थूक है, है खखार ना नाक |
नाक कटी कब की पड़ी, चेहरा कोला-ब्लाक |
चेहरा कोला-ब्लाक, विदेशी डाक्टर बोला |
होगे मिस्टर क्लीन, राज सदियों का खोला |
हड्डी करके चूर, खून से चूरन खाना|
भरे ढेर मजबूर, प्यार से उन्हें मिटाना ||
इसे कहतें हैं सीधी सच्ची बात ,दो टूक बे -लाग .वाल मार्ट का तो यहाँ अमरीका में भी विरोध हो रहा है .बहतरीन आलेख आपने मुहैया करवाया है शरम इन चर्च के एजेंटो को बिलकुल नहीं आती .शर्म को भी बेच खाया है इन लोगों ने .कहाँ अब वह कलावती की थाली उड़ाने वाले मंद मति राजकुमार ?
ram ram bhai
रविवार, 16 सितम्बर 2012
कानों में होने वाले रोग संक्रमण का समाधान भी है काइरोप्रेक्टिक में
कानों में होने वाले रोग संक्रमण का समाधान भी है काइरोप्रेक्टिक में
Acute Otitis Media (Middle Ear Infection
http://veerubhai1947.blogspot.com/
वाह!
आपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को आज दिनांक 17-09-2012 को ट्रैफिक सिग्नल सी ज़िन्दगी : सोमवारीय चर्चामंच-1005 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ
कॉम्पीटीशन बढेगा तो अन्य दूकानदार भी वाजिब भाव पर चीजें उपल्ब्ध करायेंगे वरना तो जो वे बोले वो भाव ।
और छोटी दुकाने बंद नही होती । हर किसी के बस का नही हर रोज वॉलमार्ट या बिगबजार जाना । हमें तो अपने पास की दूकान से ही सुविधा लगती है ।
इससे कंज्यूमर को फायदा ही होगा ।
इसके दूरगामी परिणाम होगे, बहुत अच्छी जानकारी आपने दी है. धन्यवाद.
divya ji ...main to sirf ye soch rahi hoon ki walmart udhar mein kuchh dega ki nahin?????
देश के भावी प्रधानमंत्री 'नरेन्द्र मोदी जी' के जन्मदिवस पर आपकी 'जागृत' करती इस पोस्ट को सर्वश्रेष्ठ 'भेंट' मानता हूँ.
"धूर्तों के छिपे सभी मंसूबे ध्वस्त हों" .... इस कामना से मैं सभी राष्ट्रवादी सोच के व्यक्तियों को एकजुट होते देखना चाहता हूँ.
क्योंकि जब सभी 'अपराधी' एक हों जाएँ तो एक सोच के अच्छे लोगों को भी एकजुट होना चाहिए.
अबकी बार कोई चूक न होने पाये... इसलिये माहौल बना रहे... आपकी हर पोस्ट और प्रत्येक सूचना इस दिशा में मतलब 'राष्ट्रीय यज्ञ' में एक आहुति बनकर पड़ रही है.
बहुत मोटी चमड़डी के हैं ये इतनी जल्दी विदाई होना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी लग रहा है!
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