हर तरफ गहमा-गहमी है ! जिसे देखो वही आलोचनाओं में व्यस्त है ! एक छोटे से सम्मलेन ने ब्लॉगर्स के दिमाग को आच्छादित कर विचार-शून्य बना दिया है ! ऐसा प्रतीत होता है मानो दुनिया के सारे व्यापार ही ठप हो गए हों ! कबसे इंतज़ार में हूँ की ये आलोचनाओं का दौर ख़त्म हो जाए और कुछ पढने-गुनने लायक बाज़ार में आ जाए ! लेकिन नहीं, निंदा का ये तूफ़ान तो उफान पर है ! रिक्टर पैमाने पर इसकी तीव्रता ९.७ के आस पास आंकी जा रही है ! कुछ छोटे-मोटे समारोह और सम्मलेन जिसका अस्तित्व न ही व्यक्तिगत जीवन में है , न ही देश के विकास से सरोकार रखता है , उसे कहीं महिमामंडित करते हैं तो कहीं आलोचनाओं के साथ जबरदस्ती परोसते हैं ! टाइम, एनर्जी और स्पेस की बर्बादी इससे ज्यादा और क्या होगी ! इससे बेहतर है कुछ सम-सामयिक विषयों की चर्चा ही की जाए !
Zeal
10 comments:
आपकी हिन्दी काफी परिमार्जित होती जा रही है... वह नये शीर्ष छू रही है... लेकिन एकाद जगह पर वह अपूर्णता लिये रह जाती है. मुझे विश्वास है कि वह कमी भी दूर होगी और आप अपने बलबूते ब्लॉग जगत के नामी हस्ताक्षर होकर उभरेंगे. हम ये भी जानते हैं कि आपकी भाषा बातचीत शैली की है और आप उसके द्वारा ही व्यंग्य और कोमलतम भावों को अच्छे से पिरो लेते हैं.... ये सबके बूते की बात नहीं.
उतार-चढ़ाव सभी के लेखन में आते हैं.... लेकिन आपने उसे स्थिर रखकर लम्बी दौड़ की क्षमता दिखा दी है.
आलोचना का वास्तविक अर्थ मेरी दृष्टि में तो यही है कि "विशेष दृष्टि से वह देखा जाये जो सामने होते हुए भी नहीं देखा जा रहा."
चाहे कोई 'ब्लोगर सम्मान सम्मेलन' आयोजित होवे ...चाहे उसकी परख से कितने ही वंचित रह जावें ... चाहे उसकी समीक्षा-आलोचना में कोई कितने ही दिन-रात बितावे....
यह उनकी समझ और सोच के दायरे हैं.....पाठक अपनी सरसरी दृष्टि से देखने पर सभी की अपने-अपने ब्लॉग पर की जाने वाली उछलकूद को यथोचित महत्व देते हैं.
आलोचनाओं का जवाब आलोचना नहीं हो सकता है !!
परेशान व्यक्ति हर दिशा में भागता है.
कुछ न कुछ तो होते रहना चाहिए ... अत्यधिक एनर्जी निकालनी चाहिए बस ...
आलोचना स्वस्थ हो तो बेहतर वरना किसी के कुछ कहने से क्या फर्क पड़ता है..आप कुछ लिख रहो हो इससे लोग आंदोलित होते हैं तभी तो आलोचना भी होती है ..बेहतर है होने दीजिए।
प्रतुल जी ने काफी अच्छे बिंदु कह दिए हैं. उक्त सम्मेलन के बारे में अधिक नहीं मालूम लेकिन चलो किसी ने कोई कार्य तो किया है. आज ऐसा किया है, कल बेहतर करेंगे.
सही कह रही हैं आप... आलोचनाओं-प्रत्यालोचनाओं का दौर खत्म होने का नाम नहीं ले रहा और ब्लॉग जगत का माहौल दूषित हो रहा है। खेद की बात यह है कि स्थापित लोग अशोभनीय भाषा का प्रयोग कर रहे हैं.. दुख होता है देखकर।
यही तो कहते कहते हम भी थक गए... दिमाग का दही हो गया इस जूतम पैजार से..
ब्लॉग परिवार की नींव ही ऐसे संबंधों पर राखी गयी है कि एक दूसरे से लोग अच्छी पोस्ट की वजह से नहीं जुड़ते बल्कि आप हमारे यहाँ आये तो हम आपके यहाँ आ जायेंगे और व्यवहार में वाही सास बहू सीरियल्स की राजनीती शुरू हो गयी है ...दुखद है
hamari वाणी की maarifat aaya .
bahut badhiya .
sab kuchh badhiya hi badhiya.
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