Thursday, September 13, 2012

गलती किसकी ?

कभी-कभी माता-पिता भी अपने बच्चों के दुश्मन हो जाते हैं , बच्चा आपसे कभी कुछ नहीं माँगता , सिर्फ अपने प्रेम-विवाह के समय होने वाले सामाजिक विरोध के समय अथवा अविवाहित रहने के निर्णय के विरोध में खड़े लोगों से त्रस्त होकर वह संतान आपकी तरफ बहुत अपेक्षाओं के साथ देखती है की आप तो समझेंगे कम से कम !--- लेकिन ऐसे में अक्सर माता-पिता भी समाज के ठेकेदार की भूमिका निभाते हैं ! संतान का साथ न देकर उसकी ऑनर- किलिंग करते हैं ! उसे अपना मन-मारने को बाध्य करते हैं !

12 comments:

Ayaz ahmad said...

आपकी बात में सार है.
यह दिल को छू गयी है.

kunwarji's said...

असल में माँ-बाप ऐसी परिस्थिति में बच्चे के दुश्मन नहीं होते,मुझे लगता है वो उनके ख्यालो के दुश्मन हो जाते है!कही न कही जाकर बच्चो की ऐसी बाते ठीक हो सकती है पर कोई भी माँ-बाप ऐसा नहीं चाहेगा कि उनकी संतान निसंतान रहे अथवा परिवार की परम्पराओ के बहार जाए!

कुँवर जी,

रविकर said...

सही विषय उठाया है आपने -
एक बार फिर से ||

Rajesh Kumari said...

yeमातापिता को हमेशा अपने बच्चों को विश्वास में लेना चाहिए ताकि वो अपने मन की बातें आपको बता सके इससे समय रहते आप उसको सही गलत भी बता सकते हैं यदि बच्चे का विवाह ना करने का कोई जायज कारण है तो आप उसका साथ दीजिये ना की उसे बाध्य करें विवाह के लिए ये एक विचारणीय मुद्दा है

महेन्‍द्र वर्मा said...

संस्कार और परंपरागत विचारधाराएं आसानी से परिवर्तित नहीं होतीं। धीरे-धीरे बदलाव आ रहा है।
माता-पिता को इस संबंध में उदार होना चाहिए।

travel ufo said...

एक पोस्ट इस पर भी लिखें कि यदि आपका बच्चा प्रेम विवाह करना चाहे तो आपको क्या क्या करना चाहिये । और समाज और जाति में अपना मान सम्मान कैसे बरकरार रखते हुए उसके विवाह को मान्यता दें

और इस विषय को उठाया है तो ये भी बतायें कि क्या आप अपने बच्चो के लिये भी प्रेम विवाह सही मानेंगे और वो ​भी बिना शर्त के या फिर कुछ शर्तो से और कौन कौन सी

ghughutibasuti said...

अपने जीवन के निर्णय लेने का पूरा अधिकार सन्तान को है. माता पिता को उनके निर्णय का सम्मान करना चाहिए.
घुघूती बासूती

ZEAL said...

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मनु जी , आपने जिस विषय पर आलेख लिखने का अनुरोध किया है , उस पर पहले लिख चुकी हूँ, लिंक नीचे दे रही हूँ !

http://zealzen.blogspot.in/2010/12/love-marriage.html

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आपके दुसरे प्रश्न के उत्तर में ---

यदि मेरे बच्चे प्रेम-विवाह करना चाहेंगे , तो ये एक सौभाग्य होगा , क्योंकि दो दिलों का मिलन ही सच्चे अर्थों में विवाह है ! अभी तो वे बहुत छोटे हैं फिर भी मुझसे कहीं ज्यादा बुद्धिमान हैं, तो निश्चय ही वे जब विवाह योग्य होंगे और जिसे भी पसंद करेंगे वह निश्चय ही मेरी पसंद से बेहतर होगा ! सहर्ष उनका निर्णय मुझे स्वीकार्य होगा , बिना किसी शर्त के ! बच्चों की ख़ुशी में ही मेरी और मेरे पति की ख़ुशी होगी !

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Anonymous said...

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amit kumar srivastava said...

बात तो गंभीर है और सच भी |

Maheshwari kaneri said...

सही कहा दिव्या जी आप ने आज कल यही होरहा है..हिन्दीदिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!

Pallavi saxena said...

सटीक बात कहती पोस्ट पूर्णतः सहमत हूँ आपसे ...