अच्छा भला बहस किया करता था वो
बेधड़क अपने वक्तव्य दिया करता था वो,
अब वो संत बन गया है ,
बेवजह प्रवचन दिया करता है
मौत हो गयी उसकी बेबाकी की,
शब्दों में ढलने वाली उसकी इमानदारी की
वाक्यों में घुली उसकी शोखी की,
और उसके अन्दर की कसमसाहट की,
कैसी मौत मिली है उसको ,
अच्छा भला लेखक था,
संत बन गया है वो ...
Zeal
17 comments:
bahut achcha likhi hain......
वाह.....
बहुत बढ़िया दिव्या जी.
अनु
इतना कसके न मारो मेरे दीवाने को .....व्यंजना में आपका भी सानी नहीं कोई ...अच्छा भला लेखक था ,संत बन गया ...भगवान उसकी आत्मा को शान्ति पहुंचाए ....हो सके तो अगले जन्म में पुन : मिलवाये .....पुनि पुनि वह लेखक बन आये ....
ram ram bhai
रविवार, 2 सितम्बर 2012
सादा भोजन ऊंचा लक्ष्य
सादा भोजन ऊंचा लक्ष्य
स्टोक एक्सचेंज का सट्टा भूल ,ग्लाईकेमिक इंडेक्स की सुध ले ,सेहत सुधार .
यही करते हो शेयर बाज़ार में आके कम दाम पे शेयर खरीदते हो ,दाम चढने पे उन्हें पुन : बेच देते हो .रुझान पढ़ते हो इस सट्टा बाज़ार के .जरा सेहत का भी सोचो .ग्लाईकेमिक इंडेक्स की जानकारी सेहत का उम्र भर का बीमा है .
भले आप जीवन शैली रोग मधुमेह बोले तो सेकेंडरी (एडल्ट आन सेट डायबीटीज ) के साथ जीवन यापन न कर रहें हों ,प्रीडायबेटिक आप हो न हों ये जानकारी आपके काम बहुत आयेगी .स्वास्थ्यकर थाली आप सजा सकतें हैं रोज़ मर्रा की ग्लाईकेमिक इंडेक्स की जानकारी की मार्फ़त .फिर देर कैसी ?और क्यों देर करनी है ?
हारवर्ड स्कूल आफ पब्लिक हेल्थ के शोध कर्ताओं ने पता लगाया है ,लो ग्लाईकेमिक इंडेक्स खाद्य बहुल खुराक आपकी जीवन शैली रोगों यथा मधुमेह और हृदरोगों से हिफाज़त कर सकती है .बचाए रह सकती है आपको तमाम किस्म के जीवन शैली रोगों से जिनकी नींव गलत सलत खानपान से ही पड़ती है .
आज कुछ समझ में नहीं आया !!
खंडेलवाल जी , आज ब्लौग भ्रमण के दौरान एक ब्लौगर की पोस्ट पढ़ी जिसने अपनी पोस्ट पर अच्छे, बुरे , नित्थल्ले सभी को अच्छा बनने का प्रवचन दिया हुआ था ! उसके द्वारा पूर्व में लिखे गए बेबाक व्यंग याद आ गए , जिसमें सच्चाई बहुत बेबाकी से लिखी हुयी होती थी ! पर आज उसके ब्लौग को पढ़कर लगा मानो नौ सौ चूहे खाके बिल्ली हज को चली ! बस उसी को पढ़कर लिखा था ये ! शायद इसीलिए आपको सन्दर्भ समझने में मुश्किल हुयी होगी !
बहुत ख़ूब!
आपकी यह सुन्दर प्रविष्टि कल दिनांक 03-09-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-991 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
मतलब मार लगाने में कसर नहीं छोड़ी। पर एक बात समझ में नहीं आई..। आपने कहा है कि बेबाक सच्चाई लिखा करता था लेखक, अब वो प्रवचन दे रहा है। इसमें नौ सो चूहे खाने वाली बात समझ में नहीं आई दिव्या जी। क्या पहले बेबाक सच्चाई लिखता था लेखक या सच्चाई के बहाने मन की भड़ास. जिस कारण उसकी ताजा पोस्ट से आप को नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली वाली कहावत देनी पड़ी।
बहुत बढ़िया :)
रोहित जी , मुझे बेबाक लेखन बहुत पसंद जो सत्य को परत-दर-परत खोल कर रख दे ! बा-मुश्किल दो-चार ही तो ब्लॉग हैं जहाँ बेबाकी देखने को मिलती है , वर्ना तो सफेदपोशों की संख्या हर जगह ही ज्यादा है !
इसलिए जब किसी बेबाक लेखक को संन्यास लेते देखती हूँ तो दुःख होता है !
सटीक व्यंग है दिव्या जी लेकिन आजकल तो संत भी सभी मुखर हो गये हैं और हर क्षेत्र में हर विषय पर धड़ल्ले से बोलते हैं चाहे धर्म और आध्यात्म के विषय हों या राजनीति के और चाहे उनके वक्तव्य सार्थक हों या निरर्थक ! बढ़िया !
संतई कोई बहुत अच्छा विकल्प नहीं है /:-)
शादी होने के बाद भी कुछ
ऎसा ही हो जाता है
अच्छा भला आदमी होता है
संत बन जाता है !
कौन बेचारा संत बन गया? ;)
समझ नहीं आया...
दिव्या जी बात तो समझ आ रही है पर किसकी तरफ इशारा है पता नहीं चला !!
जीवन के विभिन्न पड़ावों पर, नए अनुभवों के कारण विचारों में परिवर्तन आना स्वाभाविक है.
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