जो आज है वो कल नहीं रहेगा ! अच्छा या बुरा, बदल जाएगा सब कुछ! चेहरा भी ,
विचार भी , मान्यताएं भी ! क्योंकि समय बदल रहा है , उसके साथ हमारा बदल
जाना भी स्वाभाविक है ! यदि हम बदलेंगे नहीं और समय के साथ खुद को
अनुकूलित नहीं करेंगे तो प्रकृति द्वारा असमय ही विनाश होना तय है ! लेकिन
विकट और विरोधी परिस्थितियों में अपनी सुरक्षा का इंतज़ाम स्वयं ही करना
होता है ! संगदिल ज़माने से अपेक्षा करना की वो आपकी सच्चाई को समझेगा , ये
आपकी मूर्खता ही होगी !
अकेले ही आगमन होता है इस पृथ्वी रुपी रंगमंच पर और अकेले ही प्रयाण करना पड़ता है ! न कोई साथ आता है न कोई साथ जाता है !
इसलिए एकला चलो रे ....
दुःख कम होगा !
18 comments:
अब कुछ भी मेरे पास नहीं
न कोई मन को भाता है
आए 'अकेला' जाये 'अकेला'
बाकि सब यहीं रह जाता है ......
यह सब परिवर्तन तो चलता रहेगा। जीवन नाम ही इसी का है। जब कुछ पुराना मिटेगा तब कुछ नया लिखा जाएगा। परन्तु उस नए के चक्कर में पुराने को तो खुद को मिटाना ही पड़ता है। उस बेचारे का क्या दोष था?
यह सच है कि संसार में व्यक्ति आया अकेला था। उसे किसी का आभास नहीं था, किसी का मोह नहीं था, किसी की कोई चिंता नहीं थी, किसी से कोई बैर नहीं था। , किन्तु जाते-समय क्या ये सब था?
जीवन अकेले चलने का नाम है और शायद इस एकांत राह में कोई न भी मिले, शायद कोई मिल भी जाए।
तनहा राही अपनी राह चलता जाएगा
अब तो जो भी होगा देखा जाएगा।
Agree.
Thanks.
एकला चलो का नियम
मुझे बहुत भाता है
कविगुरु का गीत
‘जोदि तोर डाक शुने केऊ ना आशे’
बहुत सुहाता है!
सहमत हूं
मै अकेला ही चला था, जानिबे मंजिल मगर
लोग मिलते गए और कारवा बनता गया..
सच है अपनी सुरक्षा स्वयं करनी पड़्ती है..कोई साथ नही चलता...."एकला चालो रे.."
मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदा:
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व
विषयों से संयोग,वियोग,सर्दी गर्मी .सुख दुःख:आदि सब आने जाने वाले हैं.इन्हें अकेले ही सहन करना चाहिये.
परन्तु, इस पृथ्वी रुपी रंगमंच के रंग निराले है.
बहका रहता है मन और प्रयाण करना
पड़ जाता है एक दिन .
सब कुछ छोड़ कर,अकेले ही.
अन्ततः मुख्य निर्णय अकेले ही लेने होते हैं।
Veetraag ko apni Jijeevisha par chhane mat deejiye, achchha likha hai.
बिलकुल सही....
अकेले लाख परशानियां हों...मगर बिछड़ने का गम नहीं !!!!
अनु
सही है...
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल २५/९/१२ मंगलवार को चर्चाकारा राजेश कुमारी के द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां स्वागत है
एक श्रेष्ठ जीवन सूत्र है यह।
हाँ ये दौर बड़ा क्रूर है अकेले हालातों से दो चार होने की ,चलनेफिरने की कला जिसने सीख ली वह तर गया .
सत्य वचन
कहीं न कहीं तो अकेले ही चलना है - हर जगह साथ किसे मिला आज तक !
सच में लगता है अब
बदल जाना चाहिये
अधिकतर जो कर
रहे हैं वो तो
समझ में आना चाहिये
आदमी का चोला
उतार कर
फिर से बंदर
हो जाना चाहिये !
sabke sath hote hue bhi man ki yatra to akele hi hoti hai...bheed me bhi tanha...
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