यदि कोई आयोजन हो , अथवा प्रतियोगिता , बिना किसी निर्णायक मंडल के पूरा नहीं होता !
लेकिन
सबसे दुरूह कार्य है , निर्णायकों का चयन ! क्योंकि जो गुण एक निर्णायक
में होने चाहिए वे आसान नहीं है किसी में मिलना ! लोग अपने पूर्वाग्रहों से
मुक्त नहीं होते ! जिसे पसंद नहीं करते उसके प्रति निष्पक्ष नहीं रह पाते !
ब्लॉगजगत में भी अपनी-अपनी रूचि, मित्रता, सहयोग , वैचारिक समानता ,
ईर्ष्या, कटुता, विवाद और विरोधों के आधार पर अनेक छोटे-छोटे समूह बने हुए
हैं ! लोग अपनी पसंद के लेखन पर कम जाते हैं बल्कि अपनी पसंद के लोगों को
अधिक पढ़ते हैं ! जो उनके मन की कमजोरी को दर्शाता है ! और ऐसे लोग बहुत
शान से कहते भी फिरते हैं की मैं फलां को ज्यादा नहीं पढता अथवा पढ़ती ,
उसके ब्लौग पर ज्यादा नहीं जाता अथवा जाती ! .. आखिर क्यों नहीं पढ़ते आप
?...क्योंकि आप उसके लेखन से भी ज्यादा उस व्यक्ति को नापसंद करने लगते हैं
! इससे आपके मन के पूर्वाग्रह उभर कर सामने आ जाते हैं !
अक्सर लोग
अपनी व्यक्तिगत राय के अनुसार दूसरों के लेखन के अर्थ का अनर्थ भी कर देते
हैं ! बिना सोचे-समझे घोर आपत्ति भी कर देते हैं , जो उनके दिमागी जिद्द
को दर्शाता है ! ऐसे निर्णायक से निष्पक्षता की उम्मीद नहीं की जा सकती !
वे आपके विचारों का सम्मान कभी नहीं कर सकेंगे और गलत ही निर्णय लेंगे !
कभी
-कभी आपसे व्यक्तिगत द्वेष रखने वाले भी निर्णायक के पद पर आसीन होतेहैं ,
जो मौक़ा मिलते ही अपनी भड़ास ज़रूर निकालेंगे, ये मानवीय स्वभाव है ! ऐसी
परिस्थिति में निष्पक्षता और न्याय की उम्मीद करना ही व्यर्थ होगा !
निर्णायक होने के लिए ऐसा कुछ होना चाहिए --
- उसे पूर्वाग्रह से रहित होना चाहिए
- प्रतिभागियों के प्रति उसके मन में कोई ईर्ष्या, द्वेष अथवा अनावश्यक धारणा नहीं होनी चाहिए !
- निर्णायक का मन निर्मल होना चाहिए
- निर्णायक को स्थापित रूप से प्रतिभागियों से श्रेष्ठ होना चाहिए जो सही मूल्यांकन करने की क्षमता रखता हो
- निष्पक्ष और न्यायप्रिय होना चाहिए
- जाने अनजाने किसी खेमे से उसका ताल्लुक नहीं होना चाहिए
- निर्णायकों का , प्रतिभागियों के साथ कभी पूर्व में व्यक्तिगत विवाद नहीं हुआ होना चाहिए !
- जहाँ तक संभव हो निर्णायक और प्रतिभागी पूर्व परिचित न हों (External होना चाहिए )
26 comments:
बहुत बढ़िया बेहतरीन.
Agree.
और ऐसा कभी नही हो सकता इस साल के सम्मेलन का ही हाल देखिये । ये तभी सम्भव है जब इसे ब्लागर लोग आयोजित ना करें
bahut sahi kaha aapne ........par log apne man ki sunnte kahan hai .
बहुत बढ़िया प्रस्तुति |
बधाई स्वीकारें ||
दिव्या जी आज ऐसे पंच नही मिला करते सभी किसी ना किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित ही मिलेंगे। वैसे आपने बात सही कही है।
Sahi Nirnaayak vivadon ko jad se khatm kar dete hain. Kash ve hote !
विचारणीय !
हर एक बिंदु से सहमत... निर्णायक होना बहुत जिम्मेदारी का काम है और यदि किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त हों तो भी प्रेमचंद के 'पंच परमेश्वर' को याद कर लेना चाहिए।
सही और सार्थक पोस्ट
आपकी बात बिलकुल सही है लेकिन ऐसा होना नामुमकिन न सही लेकिन मुश्किल जरुर है !!
Its pretty cool what blogging can perform. Connect you with all others.
उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवार के चर्चा मंच पर ।।
आपके द्वारा सुझाए निर्देश बेशक बहुत सुंदर है पर इंसान का पुर्वाग्रह से रहित हो निष्पक्ष निर्णय देना बहुत मुश्किल काम है। सुंदर प्रस्तुति...
दिव्या ऐसा नहीं है, मैं किसी और की बात नहीं करती हूँ लेकिन अपने स्तर पर जो अनुभव कर रही हूँ उसके अनुसार कहती हूँ कि अगर इंसान अपने कार्यों के प्रति इमानदार है तो वह निर्णायक के पद पर भी निष्पक्ष ही रहता है. अगर उसमें अपनी प्रवृत्तियों और भावों पर नियंत्रण नहीं है तो फिर वह इस काबिल नहीं है. वैसे कई निर्णायक होने पर सभी तो पूर्वाग्रह से ग्रस्त नहीं होंगे . वैसे निर्णायक की भूमिका इन सब से परे होती है. विश्वास रखो . विषय के अनुसार निर्णय होगा तो निर्णय आने पर सभी उस बात को लेख के अनुसार स्वीकार करेंगे .
विक्रमादित्य का सिंहासन है निर्णायक का पद..
सौ प्रतिशत
वरना आजकल तो आयोजन ऐसे होते हैं खेलो भी खुद और जीतो भी खुद, क्योंकि निर्णायक जो स्वयं हैं। ऐसे आयोजनों का हाल कांग्रेस पार्टी की तरह है जहां इन्टरनल डेमोक्रेसी जैसी कोई चीज़ ही नहीं।पार्टी प्रेसिडेंट अपनी वर्किंग कमिटी बनता है और वर्किंग कमिटी बाद में अपना पार्टी प्रेसिडेंट।
मज़ाक है क्या?
आपसे मैं सौ प्रतिशत सहमत हूँ।
किसी को ना पढ़ने या किसी के ब्लॉग पर ना जाने का मतलब ये बिलकुल नहीं होता है कि उक्त व्यक्ति उसे नापसंद करता है. जब समय की कमी होती है, तो व्यक्ति अपनी पसंद के अनुसार ब्लॉग चुन लेता है और वहीं जाता है. क्योंकि सभी लोग सभी पोस्टें नहीं पढ़ सकते हैं...
रही बात निर्णायक की तो ये तो है ही कि उसमें कुछ गुण होने आवश्यक हैं. मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि निर्णायक को पूर्वाग्रहों से मुक्त और निष्पक्ष होना चाहिए. यदि किसी रचना को चुनना हो तो ये बिलकुल नहीं देखना चाहिए कि वो किसके द्वारा लिखी गयी है, बल्कि 'कंटेंट' को ध्यान में रखना चाहिए.
विचारणीय !
.
मुक्ति जी , समय की कमी सबके पास होती है, चाहे वह विद्यार्थी हो , गृहणी हो अथवा नौकरी-पेशा वाला हो ! तो प्रश्न यह है कि अनेक ब्लॉग में आखिर जाया किस पर जाए और पढ़ा किसे जाए ! उसका चुनाव लोग उसी प्रकार करते हैं , जैसा कि मैंने ऊपर अपनी पोस्ट में लिखा है !
आपने पिछले २४ घंटों में अनेक ब्लॉग (प्रवीण और रचना के ब्लॉग) पर मेरा नाम लेकर यह लिखा कि आप दिव्या(ज़ील) के ब्लॉग पर नहीं जाती न ही उसे पढ़ती हैं ! यह लिखने कि आवश्यकता क्या थी ? क्या रचना और प्रवीण कि पोस्ट का विषय यह था कि आप अमुक ब्लॉग पर जाती हैं अथवा नहीं ? क्या आपके उक्त बयान में आपके मन में मेरे प्रति छुपा हुआ मन का मैल नहीं परिलक्षित हो रहा ?
और आपका यह कहना कि आप समय कि कमी के चलते किसी ब्लॉग विशेष पर नहीं जाती तो यह झूठ है ! इसका असली कारण यही है कि आप अमुक व्यक्ति को नापसंद करती हैं , इसलिए नहीं जाती ! और किसी के प्रति नापसंदगी उस व्यक्ति के "पूर्वाग्रह" को बखूबी दर्शाती है !
आपके पास प्रवीण और अरविन्द मिश्रा , संतोष त्रिवेदी के ब्लॉग पर जाने का पर्याप्त समय है जो स्थापित रूप से स्त्रियों के लिए अपमान जनक , अश्लील और अभद्र भाषा का निसंकोच प्रयोग करते हैं !
यदि आपके पास समय कम है , और स्त्रियों के सम्मान कि परवाह करती हैं तो आपको सबसे पहले ऐसे पुरुषों के लेखन का त्याग करके अपना समय बचाना चाहिए ! लेकिन नहीं ये आपकी अपनी स्वतंत्रता है कि अपना बहुमूल्य समय किसके लेखन पर देती हैं !
जाती तो मैं भी नहीं हूँ आपके ब्लॉग पर , लेकिन इसका अर्थ नहीं कि यत्र-तत्र ये लिखती फिरूं कि मैं मुक्ति के ब्लॉग पर नहीं जाती !
आपने आज मेरे आलेख पर अपना कीमती समय दिया इसके लिए आपका आभार ! मुझे बहुत अच्छा लगा !
.
ज़ील, मैंने वो बात सिर्फ उक्त प्रसंग में कही थी जहाँ ये कहना था कि आपने सोनिया जी के ऊपर कोई पोस्ट लिखी थी. मैंने वो पोस्ट नहीं पढ़ी थी, इसलिए ऐसा लिखा था. और मैंने ये लिखा था कि "प्रायः नहीं जाती हूँ" "बिलकुल नहीं जाती हूँ" ऐसा नहीं.
और जो कहा भी था इसका मतलब ये नहीं है कि मेरे मन में आपको लेकर कोई पूर्वाग्रह है. अगर आपको ऐसा लगा हो तो क्षमा चाहती हूँ. मेरा मतलब आपको 'हर्ट' करना बिलकुल नहीं था.
रही बात अरविन्द जी के ब्लॉग पर जाने की तो वहाँ मैं आज से नहीं तबसे जाती हूँ, जब मैंने ब्लॉगिंग शुरू नहीं की थी. तभी से मैं 'प्राइमरी का मास्टर' और 'साईब्लॉग' की नियमित पाठिका रही और बाद में उनका दूसरा ब्लॉग भी पढ़ने लगी.
और अगर आप मेरी टिप्पणी पढ़ती होंगी, तो अच्छी तरह जान जायेंगी कि मैं हर खराब लगने वाली बात का विरोध करती हूँ. सिर्फ जी हुजूरी करने किसी के भी ब्लॉग पर नहीं जाती.
कबीरा निर्णायक बन जाना ,तजकर मान गुमान ,
कबीरा कुछ न बन जाना ,तज कर मान गुमान ,
सुंदर रचना मूर्ति-सम,मानों तो भगवान
पूर्वाग्रह मन में रहा , तो लगती पाषाण
तो लगती पाषाण , हृदय निष्पक्ष राखिये
मन को दे आनंद , प्रेम से सदा बाँचिये
सत-साहित है ज्ञान,भाव का एक समुंदर
मानों तो भगवान ,मूर्ति-सम रचना सुंदर ||
मुक्ति जी , केवल विरोध करने से कुछ नहीं होता ! त्याग करना चाहिए जो अभद्र हो , अश्लील हो और अशिष्ट हो ! जो स्त्रियों को कटही कुतिया और सूपनखा कहता हो और सूपनखा कहकर उसका नग्न चित्र लगता हो अपने ब्लॉग पर ! ऐसे पुरुषों को बर्दाश्त कैसे किया जा सकता है ? और बर्दाश्त किये जाने के पीछे वजह क्या है ? मन में उस व्यक्ति के प्रति अत्यधिक सम्मान या फिर अत्यधिक मोह ? या फिर उस व्यक्ति द्वारा किसी प्रकार से ब्लैकमेल किया जाना ? क्यों नहीं लोभ संवरण कर पाती हैं स्त्रियाँ ऐसे पुरुषों से दूर रहने का ? वे महिला-ब्लॉगर्स के साथ तो दूरी बना लेंगीं लेकिन महिलाओं का अपमान करने वाले पुरुषों से दूरी नहीं बनाना चाहती ! वहां नियमित ही रहती हैं !
जो त्याज्य है , उसका परित्याग करना चाहिए ! बस थोड़ी सी हिम्मत चाहिए !
ठन्डे दिमाग से सोचियेगा ! निवेदन है दो चार बार मेरी इस टिपण्णी को पढियेगा ! एक छोटी सी उम्मीद है की आप जैसे परिपक्व विचार रखने वाली स्त्री मेरी बातों में निहित सच्चाई को अवश्य समझेगी !
@मुक्ति,
आपको जवाब दिव्या दीदी द्वारा मिल चूका है। उन्होंने बिलकुल सटीक लिखा है कि जो पुरुष स्त्रियों को गन्दी-गन्दी गालियाँ देता हो, उनके नाम पर नग्न चित्र लगाता हो, उनका त्याग करना चाहिए। कम से कम आपको तो करना ही चाहिए।
सच में क्या वजह है? मोह, सम्मान या ब्लैकमेलिंग?
और उन पुरुषों का विरोध तो आप शायद काफी वर्षों से कर रही हंगी, परन्तु अफ़सोस एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकीं। यदि आप जैसे लोग उन जाहिलों को त्याग दें तो उनकी अक्ल स्वत: ही ठिकाने आ जाएगी। स्त्रियों द्वारा उन्ही के ब्लॉग पर उनका विरोध तो उनका सबसे बड़ा टाइम पास होता है। इससे तो आप उनका ही काम आसान कर रही हैं क्योंकि आपके इस मामूली विरोध से ही उन्हें और अधिक गंदगी उगलने की opportunity मिलती है।
दूसरी बात यह कि आप द्वारा दुनिया भर में यह गाना कि मैं दिव्या के ब्लॉग पर नहीं जाती, और यहाँ यह कहना कि आप जब से ब्लॉगिंग से जुडी हैं तभी से आज तक अरविन्द मिश्र के ब्लॉग पर जा रही हैं, परस्पर दो विरोधाभासों को जन्म दे रहा है। क्योंकि पहले तो आप जील ब्लॉग पर भी आया करती थीं किन्तु अब दिव्या का त्याग तो आप कर सकती हैं किन्तु उन जाहिल पुरुषों का नहीं। ऐसा कर आपने कौनसा नारीवाद अलापा, यह मुझे तो समझ नहीं आया।
मुक्ति, यहाँ saaf है कि आप स्वयं पूर्वाग्रहों से ग्रसित हैं।
आदरणीया मै आपके बात से सहमत हूँ
निर्णायक के सम्बन्ध में आपके द्वारा
प्रस्तुत समस्त युक्तियाँ सार्थक है
सुन्दर लेख के लिए हार्दिक बधाई
बड़ी सब्जेक्टिव बातें हैं
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