व्यक्ति जैसे जैसे ऊंचाई की तरफ अग्रसर होता है , वैसे वैसे संतुलन बिगड़ने लगता है , इसलिए बहुत आवश्यक है की इस संतुलन को बनाए रखें ।
अन्ना हजारे , बाबा रामदेव , किरण बेदी आदि जिस ऊँचाई पर पहुँच चुके हैं , वहां पर करोड़ों जोड़ी आखें उनकी तरफ उम्मीद के साथ देख रही हैं। इस स्थिति में उनके मुख से निकलने वाले एक-एक शब्द को बहुत नपा तुला होना चाहिए। न ही मर्यादा के खिलाफ हो , न ही किसी को ठेस पहुँचाने वाला हो , न ही आपसी वैमनस्य को दर्शाए और अहंकार तो गलती से छू भी न जाए।
इस आन्दोलन में उतरे देश के अनमोल रत्नों ने ये साबित कर दिया की एकता में ही बल है । फिर भी व्यक्ति तो भिन्न ही हैं इसलिए थोड़ी बहुत वैचारिक भिन्नता होना स्वाभाविक ही है। यदि अन्ना जी को भूषण-द्वय ज्यादा उपयुक्त लगे और रामदेव जी को किरण जी का होना ज्यादा उपयुक्त लगा तो इसमें बुराई नहीं है कोई । तीनों ही व्यक्तित्व अपने आपमें किसी कोहिनूर हीरे से कम नहीं हैं । किरण जी रहें या फिर भूषण जी , दोनों ही इमानदारी की मिसाल हैं और देशभक्ति से ओत-प्रोत , इसलिए दोनों ही परिस्थियों में देश का भला ही होगा।
जहाँ तक भूषण-द्वय का सवाल है , बहुत इमानदार व्यक्तित्व हैं और इस पद के लिए पूरी तरह से उपयुक्त भी हैं , सराहना पड़ेगा अन्ना जी के निर्णय को । लेकिन यदि केवल पिता अथवा बेटे में से किसी एक को लिया जाता तो बेहतर होता क्यूंकि एक अन्य व्यक्ति के समावेश से उस गठन को विस्तार मिलता । और परिवार के एक व्यक्ति को दुसरे का समर्थन और सहयोग तो वैसे भी मिलता ही है।
रामदेव जी का भाई-भतीजावाद का आरोप सही नहीं है , लेकिन इसे पूरी तरह से नकारा भी नहीं जा सकता। एक परिवार में यदि दोनों ही काबिल हैं तो एक को लेने के साथ, एक किसी अन्य योग्य व्यक्तित्व को शामिल किया जा सकता था। लेकिन कोशिश यही होनी चाहिए की भीतर की बात बाहर न आने पाये और निर्णय सर्वसम्मति से लिए जाएँ । क्यूंकि भ्रष्ट तंत्र तो मौके की तलाश में 'Divide and rule" वाली निति लिए तैयार खड़ा है।
किरण बेदी जी तो इस पद के लिए पहले ही मना कर चुकी थीं , क्यूंकि जिनता मैं उन्हें जानती हूँ , वे इस पद के बहुत ऊपर उठ चुकी हैं । वे नेतृत्व बेहतर कर सकती हैं । आज देश को पद धारकों से ज्यादा सही दिशा देने वालों की और सही नेतृत्व करने वालों की आवश्यकता है।
देश के इस आन्दोलन में शामिल हस्तियों को देखकर लगा मानों स्वतंत्रता के समय के लाल, बाल , पाल , बोस और भगत सिंह , डॉ राजेन्द्र प्रसाद, और जय प्रकाश जैसे व्यक्तित्व पुनर्जीवित होकर इन हस्तियों के रूप में भारत को स्वाभिमान दिलाने पुनः हमारे बीच आ गए हों।
हमारा भी दायित्व है की हम इनकी अनावश्यक निंदा न करें । मानवीय भूलों के प्रति उदार रहें तथा उनके ऊपर समय तथा तंत्र के दबाव को भी समझें। आखिर वे हमारे और देश के लिए ही इतने कष्ट सह रहे हैं।
आभार
अन्ना हजारे , बाबा रामदेव , किरण बेदी आदि जिस ऊँचाई पर पहुँच चुके हैं , वहां पर करोड़ों जोड़ी आखें उनकी तरफ उम्मीद के साथ देख रही हैं। इस स्थिति में उनके मुख से निकलने वाले एक-एक शब्द को बहुत नपा तुला होना चाहिए। न ही मर्यादा के खिलाफ हो , न ही किसी को ठेस पहुँचाने वाला हो , न ही आपसी वैमनस्य को दर्शाए और अहंकार तो गलती से छू भी न जाए।
इस आन्दोलन में उतरे देश के अनमोल रत्नों ने ये साबित कर दिया की एकता में ही बल है । फिर भी व्यक्ति तो भिन्न ही हैं इसलिए थोड़ी बहुत वैचारिक भिन्नता होना स्वाभाविक ही है। यदि अन्ना जी को भूषण-द्वय ज्यादा उपयुक्त लगे और रामदेव जी को किरण जी का होना ज्यादा उपयुक्त लगा तो इसमें बुराई नहीं है कोई । तीनों ही व्यक्तित्व अपने आपमें किसी कोहिनूर हीरे से कम नहीं हैं । किरण जी रहें या फिर भूषण जी , दोनों ही इमानदारी की मिसाल हैं और देशभक्ति से ओत-प्रोत , इसलिए दोनों ही परिस्थियों में देश का भला ही होगा।
जहाँ तक भूषण-द्वय का सवाल है , बहुत इमानदार व्यक्तित्व हैं और इस पद के लिए पूरी तरह से उपयुक्त भी हैं , सराहना पड़ेगा अन्ना जी के निर्णय को । लेकिन यदि केवल पिता अथवा बेटे में से किसी एक को लिया जाता तो बेहतर होता क्यूंकि एक अन्य व्यक्ति के समावेश से उस गठन को विस्तार मिलता । और परिवार के एक व्यक्ति को दुसरे का समर्थन और सहयोग तो वैसे भी मिलता ही है।
रामदेव जी का भाई-भतीजावाद का आरोप सही नहीं है , लेकिन इसे पूरी तरह से नकारा भी नहीं जा सकता। एक परिवार में यदि दोनों ही काबिल हैं तो एक को लेने के साथ, एक किसी अन्य योग्य व्यक्तित्व को शामिल किया जा सकता था। लेकिन कोशिश यही होनी चाहिए की भीतर की बात बाहर न आने पाये और निर्णय सर्वसम्मति से लिए जाएँ । क्यूंकि भ्रष्ट तंत्र तो मौके की तलाश में 'Divide and rule" वाली निति लिए तैयार खड़ा है।
किरण बेदी जी तो इस पद के लिए पहले ही मना कर चुकी थीं , क्यूंकि जिनता मैं उन्हें जानती हूँ , वे इस पद के बहुत ऊपर उठ चुकी हैं । वे नेतृत्व बेहतर कर सकती हैं । आज देश को पद धारकों से ज्यादा सही दिशा देने वालों की और सही नेतृत्व करने वालों की आवश्यकता है।
देश के इस आन्दोलन में शामिल हस्तियों को देखकर लगा मानों स्वतंत्रता के समय के लाल, बाल , पाल , बोस और भगत सिंह , डॉ राजेन्द्र प्रसाद, और जय प्रकाश जैसे व्यक्तित्व पुनर्जीवित होकर इन हस्तियों के रूप में भारत को स्वाभिमान दिलाने पुनः हमारे बीच आ गए हों।
हमारा भी दायित्व है की हम इनकी अनावश्यक निंदा न करें । मानवीय भूलों के प्रति उदार रहें तथा उनके ऊपर समय तथा तंत्र के दबाव को भी समझें। आखिर वे हमारे और देश के लिए ही इतने कष्ट सह रहे हैं।
आभार
56 comments:
भूषण-द्वय - पिता पुत्र में से किसी एक को लिया जाना दिखने में भी न्याय संगत होता। खसकर जब लडाई भ्रष्टाचार के विरुद्ध हो, सब कुछ स्वच्छ होना और स्वच्छ दिखना ही चाहिये। खैर, कुछ न होने से कुछ भी होना बेहतर है।
विचारों में भिन्नता होने बाद भी उद्देश्य एक ही है |इस तरह की बातों को मुद्दा नहीं बनने देना |यही हम सब की कोशिश रहनी चाहिए |
Sahmat hun aapse....Bhushan dway me ek ko lena adhik sahee hota....par aisee galtiyan shayad hotee rahengi! Poora desh bhavishy kee or aas lagaye baitha hai!
बहुत ही सही बात कही है आपने. पूरी तरह से सहमत हूँ!
kaun ? kahan se hai ? kya hai ? per vichar se jyada mahtvaprn hai SADHYA KYA HAI ? SADHAN KYA HAI? SADHAK KYA HAI ? .nistha se hi Karvan apni manjil par pahunch sakta hai . sadhuvad
इसमें कोई बुरे नहीं बाप बेटे को लिया गया,,
जब हम सब ये लोकपाल के बारे में सोच भी नहीं रहे थे वो दोनों इस पर कार्य कर रहे थे..
बाबा रामदेव का विरोध निरर्थक है..हलाकि में बाबा का कट्टर समर्थक हूँ..
.................
क्या वर्ण व्योस्था प्रासंगिक है ?? क्या हम आज भी उसे अनुसरित कर रहें हैं??
बाप बेटे को लेना कुछ खटकता तो जरुर है पर कुछ न करने से कुछ करना ही भला है| धन्यवाद|
well...this time i totally agree with you.... its very balanced n well penned write up....
specially i like this statement..."फिर भी व्यक्ति तो भिन्न ही हैं इसलिए थोड़ी बहुत वैचारिक भिन्नता होना स्वाभाविक ही है".... bcoz i see this वैचारिक भिन्नता in the comment section at your each n every post.... and its good as long as its healthy n with in the subject.
BTW sorry i am out of the subject this time.
Regards,
irfan.
बहुत दमदार विश्लेषण किया है आपने डॉ० दिव्या जी बधाई आलेख की गुणवत्ता के लिए |
यदि बाप-बेटे मिलकर इस काम की कल्पना किये, उसे मूर्त रूप दिया, उसके लिये अन्ना और केजरीवाल आदि को जोड़ा - तो धर्म यही कहता है कि दोनो को रखा जाय। देश में सवा सौ करोड़ लोग हैं किन्तु कितने लोगों ने इस विषय में सोचा और उसे मूर्त रूप देने की सोची।
बात भी महान कार्य कर रहे हैं, यह भी महान काम है। सब लोग इसका मार्ग निष्कंटक बनाने में लग जांय। अभी भी लड़ाई लड़नी पड़ेगी। दुश्मन बहुत शातिर है।
...आप के विचारों से पूर्णतया सहमत हूं!...आपने सच्चाई सामने रखी है!
बहुत बढिया दिव्या जी आपने बखूबी लिखा । मुझे तो अब ये संदेह हो रहा है कि ये सरकार द्वारा आयोजित प्रायोजित सोची समझी साजिश है कि वे जानबूझ कर बार बार कुछ न कुछ ऐसा कर या करवा रही है कि आंदोलन मूल उद्देश्य से भटका हुआ लगा या जनता के मन में और भी कई तरह की आशंकाएं पनपें और देखिए न कि वे किस तरह से सफ़ल होते से दिख भी रहे हैं । अब थोडे दिनों के लिए सबको इस मुद्दे को छोड देना चाहिए और सब्र से इसके भविष्य की प्रतीक्षा करनी चाहिए
आरोपों प्रत्यारोपो के चक्कर में मूल मुद्दे से भटक जाने का पूरा भय है .
this is nothing but system's inertia,once things start moving,we(common citizens)will hit the target.
ashish ji se sahmat.
बिल्कुल सही लिखा है. खाली बैठे रहने से काम नहीं चलता, अब थोड़ा बहुत तो मत-वैभिन्न्य होगा ही. लेकिन लक्ष्य बड़ा है और दूर भी, इसलिये साधनों की तरफ अधिक न देखते हुये निशाने को फतह करना अधिक बड़ा काम है. अन्ना जी का रास्ता अलग है और रामदेव जी का अलग, लेकिन उद्देश्य एक है. उद्देश्य की प्राप्ति होना चाहिये..
achchhe pryas ka vivadon men uljhna dukhdayi hai
poora tantr bhrsht hai ,isilie ykin hone men der lgna swabhavik hai ,ungliyan bhi utengi
jroort hai to himmat ki ,agr yhan tak phuchen hain to masha allah mnjil tak bhi pahunchenge
सामयिक सार्थक लेख ....
हम सब अपनी जिम्मेदारी निभाएं इस परिवर्तन की बेला में |
बहुत बढ़िया शिक्षा!
कल बुधवार के चर्चा मंच पर आपकी विशेष चर्चा लगायी है!
ये दूसरी आज़ादी का बिगुल है इसमें अभी बहुत से रोड़े आएंगे, और सबसे ज्यादा रोड़े राजनीतिज्ञ उठाएंगे , सुरुआत कपिल सिब्ब्बल और अडवानी जैसे बुजुर्ग और खूंखार राजनीतिज्ञों ने कर ही दी है, लडाई लम्बी है उसी तरह जैसे पहली आजादी के लिए लड़ी गयी थी.. धैर्य रखना होगा और दूसरो के आशय को समझना होगा जनमानस को, तभी अन्ना लड़ पायेगे वरना ये तथाकथित समाज को ६० सालो से चलाने वाले इस आजादी को नाकारा कर देंगे , अंग्रेजो के हथकंडो की तरह. जय हिंद, वन्दे मातरम
शुरुआत अच्छी रही । अब संगठन को मज़बूत बनाते हुए , काम पर लगना चाहिए ।
दिल्ली अभी बहुत दूर है ।
बिल्कुल सही लिखा है आपने
मै आपसे पूरी तरह सहमत हूँ.
जहाँ तक हो सके हमें अनावश्यक विवादों से बचना चाहिए
तथा अपना पूरा ध्यान कार्य को अंजाम तक पहुचाने की
ओर लगाना चाहिए !
Dearest ZEAL:
Totally disagree with the utility of any such so-called 'public movement'.
Corruption can't be eradicated in India. Period.
This is just a 'road-side troupe dancer's performance' [there is a proper Hindi word for it, actually] by Anna Hazare and opportunists have jumped in, proverbially, to make hay while the sun is shining. I can see many societal / professional misfits queuing up in the melee.
Hilarious. Pathetic, too.
Funny, how quick and smartly the government acts when their bread-butter [read, corruption] is threatened by a maverick villager and his cronies.
Honestly, I admire the way the entire political fraternity has resolutely diffused a potential nuisance had Anna popped in the fast. They have cajoled him in a fantastic manner and got out of an impasse.
Making him break the fast was smart work. Damn cool.
As such, he is nearer to death than life, given his age and the CSO Average Life Expectancy of an Indian. Guess, he is past the average, in fact. [Source - Census Data]
Having expressed what I have, I would have loved to quote a couplet by Ahmed Faraz here but I can only do it with Roman transliteration so I guess I will skip it.
That reminds me of a Hindi proverb which roughly transalates to - It is like earning lakhs if life is spared.
A billion Anna Hazare can't make even a dent in the fortified ramparts of corruption. The political machinery sneers rightly - Take That!!
Hope I am entitled to an opinion as all of you mighty, educated, learned, aware people are, despite my limitations in those spheres. “Time will tell”, I chuckle to my own self as I sign-off.
Semper Fidelis
Arth Desai
0909
.
यह सब तो ठीक है, बहुत कुछ पहले से पढ़ा सुना है ....
बकिया बाबा रामदेव को हम आज तक नहीं समझ पाये ।
नाम कोई परिचय नहीं होता, सो प्रार्थी को बाबा रामदेव का परिचय दिया जाये, वह क्या हैं ?
१. साइकिल पर दवाओं की परचूनी लगाने से लेकर पदोन्नत देसी दवाओं के कारोबारी ( इसमें बिना लागत के 80 रूपये लीटर बेचा जाने वाला गो-मूत्र शामिल नहीं है )
२. मोटा प्रवेश शुल्क लेकर शिविरों में योगाभ्यास सिखाने वाले शिक्षक
३. अनायास काला धन देश में लाने की अलख जगाने वाले समाजसेवी
३. मल्टीनेशनल कम्पनियों के विरुद्ध रणभेरी फूँकने वाले युगदृष्टा
४. राजनीति में प्रवेश करने को कुलबुलाते महत्वाकाँक्षी व्यक्ति
५. गेरुआ वस्त्रधारी बहुरुपिया ( क्योंकि किसी के कलापों का साइनबोर्ड वस्त्र नहीं होता.. बिना किसी कद के खादी, गेरुआ इत्यादि का धारण ढोंग और कुटिलता के पर्याय बन चुके हैं, यह स्वयँ रामदेव जी भी जानते होंगे )
६. यह भी बिडँबना ही है कि, यदि वह बिलासी नहीं हैं.. तो त्यागी-सँन्यासी भी नहीं हैं
७. उनका बयान भूषण-द्वय के चयन के बाद ही आया, क्योंकि उन्हें लगा कि ड्राफ़्ट कमेटी में किसी एक के न होने से स्वामी की सँभावित सीट का कयास सच हो सकता था, उन्होंनें किरन बेदी या अन्य की तरह कमेटी से सम्मिलित होने से अपनी असमर्थता कभी ज़ाहिर न की !
मेरा उद्देश्य किसी का अपमान करना नहीं है, यह जिज्ञासा बार बार मन में उठती रही जो कि उनके हाल के क्रिया-कलापों के बाद और भी बढ़ गयी, अतएव पूछ लिया किंवा कोई विज्ञ पैरोकार इस पर प्रकाश डाल सके !
बाक़ी सब तो ठीक पर बाबा रामदेव को अभी बहुत finesse चाहिये
निंदक नियरे राखिये....:)
हम सभी को मिल कर प्रयत्न करने चाहिए....सार्थक सन्देश देती शशक्त आलेख हेतु आभार.
आपको रामनवमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं
फिलहाल तो भूषण द्वय यथा नाम तथा गुण दिख रहे हैं ।
बाकि आगे-आगे देखिये । हमारा जीवन्त समर्थन तो साथ है ।
विविधता में भी एकता बनी रहे,यही कामना है.सब देश के लिए मिल कर एकजुट हो काम करें यही समय की मांग है.
अन्ना हजारे कांग्रेस व बामपंथियो की चाल में फस गए है ,बाबा रामदेव व अन्य भ्रष्टाचार के बिरुद्ध लडाई को कुंद करने वाला प्रायोजित जैसा ही है. जिसमे स्वामी अग्निवेश, मेधा पाटेकर और ngo के लोग हो तो वह विस्वसनीय नहीं हो सकती.
देश सर्वोपरि है।
@देश के इस आन्दोलन में शामिल हस्तियों को देखकर लगा मानों स्वतंत्रता के समय के लाल, बाल , पाल , बोस और भगत सिंह , डॉ राजेन्द्र प्रसाद और जय प्रकाश जैसे व्यक्तित्व पुनर्जीवित होकर इन हस्तियों के रूप में भारत को स्वाभिमान दिलाने पुनः हमारे बीच आ गए हों।
मैं भी ऐसा ही सोचता हूं और कामना करता हूं कि इनका उद्देश्य सफल हो, इन्हें लक्ष्य की प्राप्ति हो, पूरे देश का समर्थन इन्हें प्राप्त है।
सार्थक आलेख.
ninda wahi karte hain jo swayan nirarthak hote hain toh unke dwara ninda karna koi badi baat nahin....
lekin jo vyakti deshbhakt hain wo kabhi alochna nahi karte kintu us vyakti vishesh ki acchaiyon ko swayam mein dharan kar lete hain jo ki jyada jaruri hai
आपको रामनवमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं
हमारा भी दायित्व है की हम इनकी अनावश्यक निंदा न करें । मानवीय भूलों के प्रति उदार रहें तथा उनके ऊपर समय तथा तंत्र के दबाव को भी समझें। आखिर वे हमारे और देश के लिए ही इतने कष्ट सह रहे हैं।
aap ekdam sahi kah rahi hai apne kartvya par adhik jor de dhyaan de yahi uchit hai .
जिस तरह जनता ने एक जुटता दिखाई है आगे भी आपस में न लड़ कर मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करें ...यही कामना है ..सार्थक लेख
.
@ Dr Amar-
Baba Ramdev has the caliber and potential to unite people. He has the power to raise voice against the people in power fearlessly. He has the guts to speak his mind if he is not satisfied with the decisions. He is the one who brought REVOLUTION . Rest are just following him. He is the trend setter .
Being clad in a dhoti is his simplicity . He is an spiritual person with good amount of rationality in his thoughts.
He is an icon . Why can't me and you can become like him ?
Because He is not just a thundering cloud . He is a DOER. HE is not a mere preacher. He doesn't waste his time in condemning people. He loves to utilize his time in doing something constructive and concrete.
Ramdev's excellent grasp on the contribution that Yogasanas can make towards the health of a common citizen irrespective of his or her age, combined with the impact of television, had made him a rare phenomenon.
In these last six decades there have been many other masters of the science of yoga – some of them perhaps equipped with even greater expertise THAN Baba Ramdev, but if none could achieve the status of an icon as Ramdev has achieved, it is only because he has oriental wisdom being blended with western technology that has worked wonders.
He is giving health . He is making us aware . He is a man of action. His thoughts are pious . His intentions are good . His motive is praiseworthy .
Apart from this he is a lesser mortal like we all are. He is a human being being, not a saint.
I don't see any point in criticizing anyone unnecessarily.
I believe in being a part of the solution , not being a part of the problem.
I admire Ramdev for his skills to unite people and bring revolution.
I have tremendous faith in his capacities.
.
सुलझी हुई सोंच,सुलझा हुआ आलेख.ऐसे साफ़-सुथरे आलेख मुझे पसंद आते हैं.
@"बाबा रामदेव को हम आज तक नहीं समझ पाये"
डा० अमर कुमार जी,
॰ कैसे समझ पाएंगे?
हमारे पास मूल्याकंन के साधन ही दोषपूर्ण है। गेरूए वस्त्रों में नैतिक बातें करने वाले से हम मात्र दो ही अभिप्राय निकालते है। या तो वह पाखण्डी ढोंगी बाबा हो या फिर संसार विरक्त त्यागी-सँन्यासी। गेरूए धारण करनेवाले को हमारे संसारी कार्याक्लापों में उपदेश न देना चाहिए। वह सब हम स्वार्थी ही करेंगे जो करना है।
या फिर गेरूआ धारण करके यह ढोंग क्यों नहीं रचता? आखिर गेरूआ पाखण्ड का प्रयाय जो बन चुका है???
या तो पूरा अच्छा या पूरा बुरा देखने का हमारा माप-तोल दूषित है यह समयक दृष्टि से सही मूल्यांकन नहीं है। पारिक्षण के साधन गलत तो परिणाम भी गलत।
आपके प्रस्तुत सातों बिंदु विरोधाभास नहीं है। सभी नैतिकताएं ही तो है।
मैं बाबा का समर्थक नहीं हूँ। किन्तु रामदेव जी के कार्यों से लोगों में जीवन-मूल्यों के प्रति जाग्रति आती है तो मात्र यही योगदान सराहनीय है।
अगर बाबा रामदेव की कोई अयोग्य आन्तरिक महत्वाकांशा हुई तब तो अब परिणाम उल्टे आयेंगे,तब तक तो उन्होने इतनी जनजाग्रति फैला दी होगी कि लोग उनकी गलत मंशाओ को सफल न होने देंगे।
आज राजस्थान पत्रिका में हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश श्री शिवकुमार जी का आलेख प्रकाशित हुआ है। उन्होंने अपने आलेख के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया है कि शान्तिभूषण जी को लेने का अर्थ और डर यह है कि लोकपाल विधेयक के अन्तर्गत न्यायाधीश भी इसके दायरे में आ सकते हैं। जो लोग न्याय पालना के लिए हैं वे स्वयं न्याय से दूर रहना चाहते हैं। इसी प्रकार प्रधानमंत्री और अन्य मंत्री जो देश का संचालन करते हैं वे भी कानून के दायरे में नहीं आना चाहते है, इसलिए इतना विवाद पैदा किया जा रहा है। अभी तो देखिए आगे आगे होता है क्या, बहुत टेड़ी डगर है। क्योंकि जो राजनेता और नौकरशाह आजादी के बाद से ही कानून के दायरे में सीधे नहीं आ रहे थे उन पर कानून लागू करना कठिन कार्य तो है ही।
अटल जी के शब्द-
हे प्रभु, मुझे इतनी ऊंचाई कभी मत देना,
के गैरों को गले लगा न सकूं...
जय हिंद...
sundar post........samyik post........
pranam.
बेईमानों का अधिकांश स्थलों पर एक संगठित गुट है जो मुट्ठी भर ईमानदारों पर लगातार आक्रमण करते रहता है। इस क्रम में अपने विचारों, सिद्धांतों और आदर्शों को बनाए रखना एक कठिन चुनौती है। भारत बदल रहा है किन्तु इस परिवर्तन में नित नवीन बाधाएं भी आ रही हैं जिन्हें हटाने के लिए अन्ना हजारे जैसे व्यक्तित्व जन आंदोलन खड़ा कर रहे हैं। जो जनता के हृदय में बसे हैं उन्हें जाने-अनजाने में हुई चूक पर पकड़ने के लिए लोग तैयार हैं और उतने ही सतर्क यह लोग हैं।
संतुलित दृष्टिकोण लिए हुए बेहतरीन आलेख. आपके संशय निराधार नहीं हैं .
बधाई , दिव्या जी !
बिल्कुल सही कहा है आपने ... बेहतरीन प्रस्तुति ।
बढिया विवेचनात्मक पोस्ट.
अन्ना की टीम का सम्बल देश की जनता है |
जिनके ताज उछलने हैं और जिनके तख्त गिरने हैं वह इस आदोलन को कमजोर करने के लिये आगे आ चुकें हैं। मीडिया की मड़ी का भी एक हिस्सा सक्रिय हो गया है आगे बहुत बड़ी लडाई है।
एक दावँ अन्ना पर खेलना बनता है।
दूसरा उपाय यही है कि ईमानदार प्रधानमंत्री के साथ जीडीपी जीडीपी का कीर्तन करों और मरों।
इनलोगों के कार्यकलापों पर छिद्रान्वेषी सोच से उपर उठ कर उन्हें कुछ समय प्रदान करना चाहिए... उसके बाद, उनके कार्य का आकलन करें तो बेहतर होगा.
ज़ील् बेटा ! धन्यवाद !
क्षमा करना हमने बिना आपकी स्वीक्रति के आपको बेटा
कह् कर संबोधित किया ! आपके जितने लेख पढे सभी बडे ज्ञान वर्धक लगे !
बहुत प्रयत्न करके भी उन पर अपने comments आप तक नही भेज पा रहे हैं !
आज फ़िर् त्राई कर रहे हैं !
भोला अन्कल् -- कृष्णा आन्टी
दिव्या जी, आपका विचार ठीक है..
पर इस सन्दर्भ में आगे बढ़ते हुए मन में एक प्रश्न उठता है
के जिस लोक-पाल कानून के लिए ये संघर्ष हो रहा है, क्या उसके आ जाने पर भ्रस्टाचार दूर होगा ?
आशा है मेरा प्रश्न आपको विषयेतर नहीं लगा होगा..
हो सके तो इसपर कुछ विचार लिखे ..
धन्यवाद ||
.
मनीष जी ,
ऐसे संशय मन में आना बहुत ही स्वाभाविक है। गहरी जडें जमाये भ्रष्टाचार से निपटना इतना सरल भी नहीं है लेकिन कहा गया है न - " जहाँ चाह वहाँ राह "।
इस शुभ अभियान में बहुत सी बाधाएं आयेंगी । अनेकों stalkers active हो जायेंगे , असंख्य निंदक भी सक्रीय होंगे। मनोबल तोड़ने वाले आयेंगे, leg-pulling वाले भी सक्रीय होंगे। ये सब इसलिए होगा क्यूंकि भ्रष्टाचारियों का सिंहासन डोलने लगा है।
असुरक्षा की भावना उनसे गलत करवाएगी और वो असुरों की भाँती विघ्न उत्पन्न करके तपस्या भंग करने का अथक प्रयत्न करेंगे।
लेकिन 'विवेक' जो हमारा सारथि है यदि उसकी सुनी जाए तो विजय अवश्यम्भावी है।
.
.
आदरणीय भोला जी , कृष्ण जी ,
ये मेरा परम सौभाग्य है की आपने मुझे 'बेटा' कहकर मुझे अपना आशीर्वाद दिया। इस स्नेह के लिए अथाह कृतज्ञता है मन में ।
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बिल्कुल सही लिखा है आपने
आपके लेख सार्थक है मैं आपके विचारों से सहमत हूँ और दुआ करता हूँ की आपकी कलम यूँ ही रोशनी बिखेरती रहे ....आपकी गोडसे वाली पोस्ट के साडी टिप्पणियां भी पढ़ी और आपने जिस तार्किकता और बेबाकी से लोगों की प्रितिक्रिया का मुकाबला किया यक़ीनन काबिल - ए- दाद है .
अच्छे लेखन के लिए बंधी स्वीकारें
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