गुजरात के सूरत शहर के तुषार वरीया नामक शिक्षक ने आठवी और नवी कक्षा के तकरीबन १५ छात्रों के बाल ट्रिम कर दिए। माता-पिता नाराज़ हैं । शिक्षक को विद्यार्थियों की फंकी-स्टाइल पसंद नहीं थी । बार-बार मना करने पर भी जब विद्यार्थियों ने उनकी बात नहीं सुनी तो मजबूरन उन्हें ऐसा करना पड़ा। मेरे विचार से शिक्षक ने ठीक किया । रंग बिरंगे बाल और 'जेल' लगाकर कोई विद्यालय जाता है क्या भला? लातों के भूतों का यही उचित इलाज है। शिक्षकों को इतना अधिकार तो होना ही चाहिए की विद्याथियों को अनुशासित कैसे किया जाए।
12 comments:
सही किया शिक्षक महोदय ने...
आपसे सहमत शत प्रतिशत .......
बहुत अच्छी प्रस्तुति,शिक्षक ने सही किया,..
शिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!
MY NEW POST ...सम्बोधन...
सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2007 से विद्यार्थियों के शारीरिक दण्ड पर प्रतिबंध लगा दिया है। अनेक राज्यों ने मानसिक प्रताड़ना को भी अपराध माना है। इस कानून के संदर्भ में शिक्षक तुषार द्वारा किया गया कार्य अपराध की श्रेणी में आएगा।
महेंद्र जी , सही कहा आपने। बेचारा शिक्षक गुनाह न करते हुए भी गुनाहगार साबित हो जाएगा। इसीलिए आजकल शिक्षक कुछ बोलते तक नहीं हैं। डरते हैं क्षात्रों से । उनका उजड्डपन देखते हैं लेकिन कहते कुछ नहीं हैं क्योंकि उनको भी अपने घर-परिवार को संभालना होता है। बेकार में "आ बैल मुझे मार" क्यों करें। इसीलिए आजकल क्षात्र संस्कारविहीन, जिद्दी और आक्रामक हो रहे हैं। माता-पिता, गुरु और बड़ों का सम्मान नहीं करते। शिक्षक डरा सहमा ही रहता है क्योंकि छात्रों को अनुशासित करने के गुनाह में दंड उन्हें ही भुगतना पड़ता है।
भय बिन होय न प्रीति
ऐसे जिद्दी और गुरु की आज्ञा का तिरस्कार करने वाले अपने माता-पिता की भी नहीं सुनते हैं। ये आजकल कहीं आमिर खान कहीं शाहरूक के उजड़े हुए बालों को देखकर अपने बाल भी 'जेल' लगाकर सुवर के बालों की तरह खड़े रखते हैं। विद्यालय विद्या का स्थान है , फैशन परेड का स्थल नहीं। गुरु का ही निरादर करेंगे तो संस्कार किससे सीखेंगे ? जो क्षात्र पढने लिखने में रूचि रखते हैं , वे इस तरह से फंकी स्टाइल में विद्यालय नहीं जाते। क्षातों की बढती बेशर्मी देखकर भी जो शिक्षक चुप रहे वह अति खेदजनक है। दुर्भाग्य है ये हमारे देश का जहाँ शिक्षकों को उचित सम्मान अब नहीं मिलता और गुंडा बन रहे क्षात्रों के आगे वे चुप रहने को मजबूर हो रहे हैं।
TEACHER STUDENT AND GUARDIAN THESE
THREE ARE PILLAR OF DICIPLINE SO THEY MUST BEHAVE ACCORDING TO THEIR DIGNITY.
बच्चो के साथ बहुत संयम की जरुरत होती है। आजकल माता पिता अपनी छोटी-छोटी बच्चियों को फिल्मो के गानो पर रिकार्ड डांस करते देख खुश होते हो वहां नेतिकता के मापदण्ड क्या हो कौन तय कर सकता है? देखा जाये तो प्राइमरी के शिक्षक की ही समाज को सही दिशा में ले जाने की ज्यादा जिम्मेदारी है। पर हमारे यहाँ उसकी ज्यादा वकत नही है। और राज्य शासन पैसे बचाने के लिए संविदा और शिक्षाकर्मी जैसे विशेषण लगाकर 10-12 वी पास बच्चो को शिक्षक के दायित्व निभाने की अपेक्षा करता है जिनके खुद के भी दूध के दांत नही टूटे है तो "हर शाख पर उल्लू बैठा है अजांमे गुलिस्तां क्या होगा"
माता-पिता का दोष है। उन्हें बच्चों पर लगाम लगानी चाहिए। शिक्षक बेचारे की तो मुसीबत हैं। डांटे तो कानूनन जुर्म और नहीं डांटे तो अपनी स्थिति के साथ न्याय नहीं कर पाता। क्योंकि कई बच्चें बिना डांटे समझते भी नहीं। वैसे ये तो बाल ही रंग-बिरंगे कर के आ रहे थे। दिल्ली यूनिवर्सिटी सहित महानगरों के अन्य नामी विश्वविद्यालयों में तो हॉफपेन्ट में ही छात्र और छात्राएं पढऩे के लिए आ जाते हैं। अब इनका क्या किया जाये...???
दिव्या जी, मैं आप की अच्छी सोच और अच्छे विचारों की दिल से कद्र करता हूँ ....!!!
खुश और स्वस्थ रहें !
शुभकामनाएँ!
बिलकुल सही किया। विद्या अध्ययन एक तपस्या है। तपस्या के लिए जोगी होना पड़ता है। क्लास रूम्स कोई डिस्को बार नहीं हैं जो यहाँ लाल-पीले बालों के साथ प्रवेश किया जाए।
विद्यार्थी जीवन ब्रह्मचर्य काल होता है। इस समय इस भोग विलासिता में पड़ने वाला छात्र केवल शिक्षा खरीदने वाला ग्राहक ही रहेगा कभी विद्यार्थी नहीं बन पाएगा।
शिक्षकों को अधिकार है कि कैसे अनुशासन बनाया जाए। उनके सर पर तलवार न लटकाई जाए। कभी कोई उन पर मार-पीट को लेकर केस ठोक देता है तो अब ये बाल काटने पर। क्या शिक्षक को भी मनमोहन सिंह बनाना चाहते हो?
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