Sunday, February 5, 2012

गूंगे भारतीय

अमर्त्य सेन ने किताब लिखी " Argumentative Indians" , लेकिन देश प्रमुख , श्री मनमोहन सिंह की 'चुप्पी' देखकर,अनेक देश हैरत में हैं और भारतीयों को 'गूंगा' समझ रहे हैं

8 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

जाकी रही भावना जैसी वाली कहावत है,सोच के मुताबिक़ ही न लिखेगा भारतीयों को जबाब देना भी आता है,..
NEW POST....
...काव्यान्जलि ...: बोतल का दूध...
...फुहार....: कितने हसीन है आप.....

Bikram said...

well do you blame them if they think that way ... not just the pm but every other citizen tooo ...


Bikram's

Ramakant Singh said...

सहनशीलता सहिष्णुता धर्मपरायनता भारतीय संसकृति
की शोंधि महक है हमारी कायरता नहीं .
सरफरोशी की ***************

Rohit Singh said...

दिव्या जी दिनकर जी कि एक कविता है...जो तटस्थ रहेगा, समय लिखेगा उसका भी इतिहास....यहां थोड़ा परिवर्तन करना पड़ेगा....जो मौन रहेगा, समय लिखेगा उसका भी इतिहास..हालांकि ईमानदार प्रधानमंत्री जी के कारण काफी कुछ रुका भी होगा ये पूरा विश्वास है मुझे....पर राजा जैसों पर अपना वीटो न देकर उन्होंने अपनी छवि पर ही चोट पहुंचाई थी....जैसा रुख उन्होंने परमाणु अप्रसार संधि के समय संसद में दिखाई थी अगर वैसी आधे मामलों में भी दिखा देते तो काफी बेहतर काम हो जाते।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

बोल पाते तो ऐसे न होते..

Gyan Darpan said...

पवित्र परिवार का नौकर है बोल भी कैसे सकता है ??

Bharat Bhushan said...

मनमोहन चाहे तर्क न करते हों लेकिन अमर्त्यसेन की पुस्तक को एक अर्थशास्त्री की दूसरे अर्थशास्त्री की छवि बचाने की कोशिश समज लेना चाहिए :))

दिवस said...

एक मनमोहन ने कितनी छवि खराब कर दी। क्या विदेशियों ने दिग्गी को नहीं सुना, यदि सुन लेते तो क्या राय बनाते?