फेसबुक बंद होने में मात्र १५ दिन शेष हैं। आग लगा दो । सबको जगा दो। पछताने के लिए ये शेष न रह जाए की काश लिख दिया होता। हम डरते क्यों रहे। इन १५ दिनों में बहुत कुछ हो सकता है। इतना लिखो कि वतन का सौदा करने वाले देशद्रोहियों और अभिव्यक्ति कि स्वतंत्र छीनने वालों का रक्तचाप आसमान छूने लगे और फेसबुक बंद होने से पहले ही वे अपने नापाक मंसूबों में विफल हो जायें। 'वीर हनुमान' कि तरह समय रहते ही लंका में आग लगाकर अपनी ताकत बता दो। सत्ता में बैठे रावणों का विनाश तो तय है। डरना मना है ! --"सरफरोशी कि तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना , बाजुए कातिल में है। "--जय हो राम प्रसाद बिस्मिल!, जय हनुमान !, जय भारत ! वन्दे मातरम् !
11 comments:
हम भी साथ हैं
आह्वान !!!!
sahi kaha aapane
hamne iske khilaaf jung ched di hain
meri ye post dekhiye
http://drivingwithpen.blogspot.in/2012/02/blog-post.html
kya vaakai me Facebook band ho raha hai... kuch samjh nahi aaya ki sacchai se darne vale kaise apni manmaani kar paate hain..
don't bother Deevya jee, yeh public hai yeh sab jaanti hai. face book band ho jaayega to koi dusara book aa jaayega.
सही कह रही है आप...ऐसा ही करना चाहिए!
Don't worry,.It can't be closed.There is only a hidden agenda that no one should comment on GANDHI FAMILY or Congress leaders.
कहाँ लगा दें आग...
वो हो चुके हैं नश्वर
न उन्हें आग जला सकती है
न पानी गला सकता है
नारों की आवाज़ मक्खी सा उड़ा देना
चौराहों की भीड़ पर डंडे चढ़ा देना
उनका शगल है अब
लोकतन्त्र
उनके लिए गली की कुतिया है
जब तक उनकी अंटी मे दाम रहेगा
आम आदमी
आम रहेगा
क्योंकि ऐन वक्त पर
सो जाने वाले ज़मीर
या नपुंसक हो जाने वाले खून के
खौलने की भ्रांति कैसी
एक झिल्ली दारू पर
वोट बेचने वालों की
क्रान्ति कैसी
फेसबुक पर आपत्तिजनक सामग्री है इसमें संदेह नहीं. लेकिन इसके कारण सभी भारतीयों को इस सुविधा वंचित किया जाए इसकी कोई तुक नहीं है. इसे हटाने को लेकर विरोध दर्ज करना ही चाहिए. हम साथ देंगे.
दिव्या जी ,
फ़ेसबुक , ब्लॉगर या अन्य ऐसे ही प्लेटफ़ार्मों पर सरकारी शिकंज़ा कसेगा जरूर देर सवेर किंतु न तो इन्हें पूरी तरह प्रतिबंधित किया जा सकेगा और न ही आम आदमी को अपनी बात कहने से रोका जा सकेगा । बेशक इन प्लेटफ़ार्मों पर आ रही और लाई जा रही आपत्तिजनक सामग्री से परहेज़ ही एक बेहतर उपाय है ।
६२ साल की छद्म आजादी या अप्रत्यक्ष गुलामी के बाद पिछले मात्र कुछ सालो से सोसल नेटवर्किंग में हिंदी और छेत्रिय भाषाओ के कारण का कारण लोगो को देश इतिहास का पता चलने लगा था. सरकार का चिंतिंत होना ही था. सो सरकार ने नियम बना दिया. १८७५ के बाद की यह सबसे बड़ी क्रांति हो सकती है जिसे धधकने से पहले ही बुझा दिया जा रहा है..................
Post a Comment