मादा स्तनपाईयों (बन्दर बिल्ली गाय मनुष्य) में एक निश्चित समय के बाद अंडोत्सर्जन एक चक्र के रूप में होता है उदारहरणतः मनुष्यों में यह महीने में एक बार,.. चार दिन तक होता है जिसे माहवारी या मासिक धर्म कहते है ..उन दिनों में स्त्रियों को पूजा पाठ चूल्हा रसोईघर आदि से दूर रखा जाता है ..यहाँ तक की स्नान से पहले किसी को छूना भी वर्जित है कई परिवारों में ...शास्त्रों में भी इन नियमों का वर्णन है
इसकी पुष्टि के लिए एक छोटा सा प्रयोग करिये ॥एक गमले में फूल या कोई भी पौधा है तो उस पर रजस्वला स्त्री से दो चार दिन तक पानी से सिंचाई कराइये ..वह पौधा सूख जाएगा ,
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उपरोक्त कथन एक पुरुष ब्लॉगर के ब्लौग पर पढने को मिला। जाने क्यों लोग इस तरह की भ्रान्ति फैलाते हैं । ऐसा किसी शास्त्र में नहीं लिखा है। लेकिन हाँ कुछ स्थानों पर बहुत से लोग अज्ञानतावश इस प्रकार से रजस्वला स्त्री का, अछूत की तरह पांच दिन तक बहिष्कार करते हैं। रजस्वला स्त्री के छूने से पेड़-पौधा सूख जाएगा आदि वाहियात भ्रांतियों और अज्ञानता को बढ़ावा नहीं देना चाहिए।
रजस्वला हो अथवा अन्य सामान्य दिन हों। पुरुष हो अथवा स्त्री , हाईजीन (स्वछता) का ध्यान तो सभी को रखना चाहिए अन्यथा भाँती-भाँती की बीमारियाँ स्वागत हेतु तैयार ही रहती हैं।
शरीर में प्राकृतिक रूप से होने वाली अनेक प्रक्रियाओं की तरह मासिक स्राव का होना भी एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। स्वच्छता के नियमों के तहत इसमें भी 'हाईजीन' का ध्यान रखना चाहिए। लेकिन स्त्री को अछूत की तरह जमीन पर शयन और एक अलग कमरे में कारावास की तरह रखना अत्यंत अज्ञानता भरी सोच है।
पुरुष समाज सदियों से स्त्री को भाँती-भाँती से दबाकर रखता आया है। इस प्रकार की भ्रांतियों को फैलाकर वह स्त्रियों पर अपना अंकुश बनाकर रखता रहा है। शिक्षित और जागरूक नारियों को मूर्ख बनाना अब संभव नहीं है। रजस्वला स्त्री के छूने से न ही पेड़ सूखता है , न ही उनका पति।
इन पुरुषों से कोई पूछे , जब इनकी पत्नी रजस्वला होती है तो इनकी रसोई में जाकर खाना कौन बनाता है ? क्या होटल ताज से 'शेफ' बुलवाए जाते हैं।
धन्य हैं समाज के ठेकेदार । २१वि शताब्दी में इतने दकियानूसी विचार।