स्त्रियों की गरिमा का ध्यान नहीं रखा जाता । ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं दिशा मैदान के लिए खुले में जाती हैं। क्या शर्म , संकोच और हया नहीं आती होगी ? चेहरा रहता है दो गज घूंघट में और टायलेट के लिए खुला मैदान ? कितनी ही स्त्रियाँ , बच्चियां तो इसी दौरान बलात्कार का भी शिकार हो जाती हैं। शहरी क्षेत्रों में भी स्त्री यदि बाज़ार हाट जाए , तो कहीं भी टायलेट की सुविधा नहीं है। महीने के पांच दिनों की परेशानी , डायबिटीज़ के मरीजों को बार-बार मूत्र त्याग के लिए परेशानी , और किसी भी आपात स्थिति में कोई सुविधा नहीं है। मूत्र विसर्जन जैसी आपात स्थिति से बचने के लिए स्त्रियाँ पानी कम पियें ? अनेक व्याधियों को दावत दें ? ६५ वर्षों में स्त्री ( सुनीता विलियम्स) अपनी विद्वता से चाँद पर तो पहुँच गयी है , लेकिन भारतवर्ष में स्त्रियों की गरिमा और सुविधा को ध्यान में रखकर 'टायलेट्स' नहीं उपलब्ध हैं। गावों में प्रत्येक घर में , और शहरों में पब्लिक टायलेट्स की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।