ढोल, गंवार, शूद्र, अरु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी...
पता नहीं तुलसीदास जी ने ये लिखा या फिर कोई सिरफिरा टिप्पणीकार इन पंक्तियों को जोड़ गया रामायण में, लेकिन जो भी हो बहुत ही मूर्खता पूर्ण वचन हैं ये और स्त्री अस्मिता के खिलाफ हैं। हमारे शास्त्रों और ग्रंथों में जहाँ स्त्री को बहुत सम्मान का दर्जा दिया गया वहां 'नारी' को ताड़ना देने जैसी अविवेकपूर्ण बात अत्यंत अनुचित है। इस प्रकार की बातें हमारे ग्यानी ध्यानी ऋषि मनीषी कर ही नहीं सकते। अतः रामायण में ये लिखा तो अवश्य है , लेकिन इसे वाल्मीकि अथवा तुलसी ने नहीं लिखा है। इसे रामायण के किसी टिप्पणीकार ने अपनी अल्प बुद्धि से प्रेरित होकर लिखा है।
यदि सपूत और कपूत दोनों होते हैं, तो कुछ स्त्रियाँ भी सन्मार्ग और कुमार्ग पर होती हैं । जो दोषी है, गलत है वही ताड़ना का अधिकारी है । इसमें समस्त नारी जाती को ताड़ना का अधिकारी कहकर 'लिंग-भेद' क्यों किया गया है।
हिंदी कवि द्वारा --"हाय अबला तेरी यही कहानी---" । इस पंक्ति में स्त्री के ऊपर "अबला' का टैग लगा दिया है, जो सर्वथा अनुचित है। बहुत से पुरुष भी अबला और लाचार हैं। पुरुष हो अथवा स्त्री , अपनी मेहनत और काबिलियत से ही सबल और लायक बनता है अन्यथा 'लाचार' ही रहता है। अतः एक समुदाय विशेष को 'अबला' कहकर सदियों तक के लिए टैग कर देना लिंग-भेद दर्शाता है और सर्वथा अनुचित है।
मुझे कवियों की उपरोक्त दोनों उक्तियों पर घोर आपत्ति है।
पता नहीं तुलसीदास जी ने ये लिखा या फिर कोई सिरफिरा टिप्पणीकार इन पंक्तियों को जोड़ गया रामायण में, लेकिन जो भी हो बहुत ही मूर्खता पूर्ण वचन हैं ये और स्त्री अस्मिता के खिलाफ हैं। हमारे शास्त्रों और ग्रंथों में जहाँ स्त्री को बहुत सम्मान का दर्जा दिया गया वहां 'नारी' को ताड़ना देने जैसी अविवेकपूर्ण बात अत्यंत अनुचित है। इस प्रकार की बातें हमारे ग्यानी ध्यानी ऋषि मनीषी कर ही नहीं सकते। अतः रामायण में ये लिखा तो अवश्य है , लेकिन इसे वाल्मीकि अथवा तुलसी ने नहीं लिखा है। इसे रामायण के किसी टिप्पणीकार ने अपनी अल्प बुद्धि से प्रेरित होकर लिखा है।
यदि सपूत और कपूत दोनों होते हैं, तो कुछ स्त्रियाँ भी सन्मार्ग और कुमार्ग पर होती हैं । जो दोषी है, गलत है वही ताड़ना का अधिकारी है । इसमें समस्त नारी जाती को ताड़ना का अधिकारी कहकर 'लिंग-भेद' क्यों किया गया है।
हिंदी कवि द्वारा --"हाय अबला तेरी यही कहानी---" । इस पंक्ति में स्त्री के ऊपर "अबला' का टैग लगा दिया है, जो सर्वथा अनुचित है। बहुत से पुरुष भी अबला और लाचार हैं। पुरुष हो अथवा स्त्री , अपनी मेहनत और काबिलियत से ही सबल और लायक बनता है अन्यथा 'लाचार' ही रहता है। अतः एक समुदाय विशेष को 'अबला' कहकर सदियों तक के लिए टैग कर देना लिंग-भेद दर्शाता है और सर्वथा अनुचित है।
मुझे कवियों की उपरोक्त दोनों उक्तियों पर घोर आपत्ति है।