साहस का खामियाजा.
६१ वर्षीय त्रिवेदी ,
राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ वर्षों से लड़ रहे हैं।
जिस वोहरा कमिटी की वजह से "
सूचना का अधिकार"
क़ानून बन सका,
वह त्रिवेदी की कोर्ट में दायर याचिका के कारण ही संभव हो सका था।
लेकिन ममता बनर्जी के अभिमान और जिद के कारण उन्हें प्रस्तुत बजट पर चर्चा के बाद जवाब दिए बगैर ही इस्तीफ़ा देना पड़ा।
साहसिक फैसले का भी खामियाजा भुगतना पड़ता है।
7 comments:
साहस से सही काम करने का खामियाजा वाकई उठाना पड़ गया.
यह तो लोकतंत्रिक देश का सबसे बड़ा अलोकतंत्रिक कदम है। मैं इसकी निंदा करता हंू। पर इससे एक सच भी सामने आया कि राजनीति को हम चाहे जितना गरिया लें अच्छे लोग अब भी है...
bilkul sahi baat hai...
jiddi mamta to wahi karti hai jo wah chahti hai....
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pranam.
शुक्र है कि आपने टिप्पणी का विकल्प खोला है...उफ़!!!
त्रिवेदी जी की पीड़ा दिख रही थी जिसे वे छिपा रहे थे.
देश के बजट को राजनीतिज्ञ कितनी गंभीरता से लेते हैं यह उसकी एक झलक मात्र थी.
हैरानगी नहीं होगी यदि गुंडों के लिए भी इसी बजट में प्रावधान किए जाते हों.
दुर्भाग्य है..... क्या कहा जाये. चंद लाईनों में बहुत कुछ कह दिया आपने
यही विंडबना है कि जो जननेता बन जाते हैं वो अनजाने में अपने राजनीतिक सोच को दायरों में समेटने की कोशिश करने लगते हैं....लेफ्ट की करारी हार ममता के सतत संर्धष का नतीजा था....अगर ममता चाहें तो राज्य औऱ राष्ट्र की राजनीति को एक साथ साध सकती हैं..पर अपने पार्टी के नेताओं की इस तरह से सार्वजनिक बेइज्जती का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ सकता है.
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