मंदिर का पुजारी प्रातः की पूजा अर्चना की तैयारी में व्यस्त था। तभी ताजे गेंदे के फूलों से मंदिर महकने लगा। पुजारी ने समझ लिया की उनकी 'तिया' बिटिया आ गयी है। चहकती हुयी नन्ही 'तिया' पुजारी बाबा की गोद में आकर बैठ गयी। पूजा के फूल और माला बाबा को थमा दिए। बिना उन फूलों के मंदिर की पूजा अधूरी सी लगती थी बाबा को।
आठ साल की अनाथ 'तिया' के पास पुजारी बाबा के सिवा कोई न था। वही उसके माता पिता और वही उसके भगवान् थे। नियम से वह मंदिर की पूजा के लिए फूल चुनती , मंदिर की सफाई करती और पुजारी बाबा का ख़याल रखती। बस इतनी सी ही थी तिया की दुनिया। बेहद खुश थी वह अपने इस छोटे से संसार में।
अपनी गरीबी और फटी फ्राक का गम नहीं था उसे। एक मटमैली गुडिया , मंदिर और बाबा , बस इसी में खुश रहती थी वो। गाँव में उस गरीब की कोई पूछ परख नहीं थी लेकिन फिर भी उसका संसार सुखी था क्यूंकि बाबा उसे प्यार करते थे। भगवान् को अर्पित कर उसके लाये फूलों का मान रखते थे। और क्या चाहिए था भला ? सब कुछ तो था।
उस दिन दोपहर के भोजन के बाद पुजारी बाबा विश्राम कर रहे थे। अचानक तिया दौड़ती हुयी आई और बाबा से फ़रियाद करने लगी की वे उसकी 'गुडिया' बचा लें। गाँव के चंद बदमाश लड़कों ने उसका एकमात्र खिलौना छीन लिया था। वो जानती थी कि कोई भी बाबा की बात नहीं टालेगा और उसे उसकी गुडिया वापस मिल जायेगी। बाबा ने लड़कों से गुडिया वापस देने को कहा तो उन्होंने कहा ये उनकी गुडिया है इसलिए वापस नहीं देंगे। बाबा ने गुस्से से 'तिया' को डांट दिया -- "ये उनकी गुडिया है, तुम्हें इनसे माफ़ी मांगनी चाहिए"।
तिया स्तब्ध थी। बाबा ने ऐसा क्यूँ किया। बाबा तो रोज़ मेरे पास इस गुडिया को देखते थे , फिर क्यूँ उन्होंने उन लड़कों कि बात पर यकीन कर उलटे उसका ही अपमान कर दिया। तिया समझ नहीं पायी। अपमान और निराशा के आँसू उसके कंठ में आकर घुटने लगे। किसी और ने ऐसा किया होता तो उसे कोई दुःख नहीं होता । लेकिन पुजारी बाबा ऐसा करेंगे उसे विश्वास नहीं हो रहा था। उसकी एक मात्र पूँजी छिन चुकी थी।
दिन गुजरने लगे । तिया अब भी फूल चुनकर लाती थी , लेकिन कब वो मंदिर में रखकर चली जाती थी , बाबा को पता ही नहीं चलता था। मंदिर में पूजा-अर्चना में अब बाबा का मन नहीं लगता था। तिया कि मासूम खिलखिलाहट से मंदिर का प्रांगण अब नहीं गूंजता था।
कुछ महीने और गुज़र गए। ताज़े गेंदे कि खुशबू अब नहीं आती थी। बाबा बहुत व्यथित थे। ढूँढने निकले 'तिया' को । पास के गाँव में खबर मिली कि एक छोटी लड़की कुछ समय से यहाँ रहने आई है। बहुत ढूँढा पर तिया नहीं मिली। बाबा निराश हो लौटने लगे तभी उनकी निगाह सड़क पार पेड़ के नीचे बैठी 'तिया' पर पड़ी। बहुत बीमार लग रही थी। आँखों के नीचे स्याह काले धब्बे आ गए थे। ऐसा लग रहा था अब कुछ ही दिन कि मेहमान है वो। बाबा ने उससे वापस मंदिर चलने को कहा। तिया चुप रही। बाबा ने कहा अब तक नाराज़ है मेरी बिटिया । माफ़ नहीं करेगी अपने बाबा को?
तिया ने मन में सोचा -- "मेरा मंदिर तो आप थे बाबा । मेरे ईश्वर भी । मेरी गुडिया आप दिला सकते थे । मुझे 'चोर' कहलाने से भी आप बचा सकते थे । आप मेरी मदद कर सकते थे। मेरी उम्मीद टूटने से पहले आप मेरे स्वाभिमान कि रक्षा कर सकते थे। लेकिन मैं तो गरीब और अनाथ हूँ न बाबा , इसलिए इन बातों कि एहमियत ही कहाँ थी किसी के लिए और आपके लिए भी बाबा "
तिया को चुप देखकर बाबा ने उसे गोद में उठा लिया । सीने से लगा जोर से भींच लिया और कहा - "चल मंदिर चल , तेरा बाबा तुझे नयी गुडिया दिलाएगा" ....
लेकिन यह क्या ! तिया तो बाबा कि गोद में ढेर हो चुकी थी। उसकी निस्तेज और निष्प्राण आँखें अपने बाबा कि आँखों में एकटक देख रही थीं।
Zeal
आठ साल की अनाथ 'तिया' के पास पुजारी बाबा के सिवा कोई न था। वही उसके माता पिता और वही उसके भगवान् थे। नियम से वह मंदिर की पूजा के लिए फूल चुनती , मंदिर की सफाई करती और पुजारी बाबा का ख़याल रखती। बस इतनी सी ही थी तिया की दुनिया। बेहद खुश थी वह अपने इस छोटे से संसार में।
अपनी गरीबी और फटी फ्राक का गम नहीं था उसे। एक मटमैली गुडिया , मंदिर और बाबा , बस इसी में खुश रहती थी वो। गाँव में उस गरीब की कोई पूछ परख नहीं थी लेकिन फिर भी उसका संसार सुखी था क्यूंकि बाबा उसे प्यार करते थे। भगवान् को अर्पित कर उसके लाये फूलों का मान रखते थे। और क्या चाहिए था भला ? सब कुछ तो था।
उस दिन दोपहर के भोजन के बाद पुजारी बाबा विश्राम कर रहे थे। अचानक तिया दौड़ती हुयी आई और बाबा से फ़रियाद करने लगी की वे उसकी 'गुडिया' बचा लें। गाँव के चंद बदमाश लड़कों ने उसका एकमात्र खिलौना छीन लिया था। वो जानती थी कि कोई भी बाबा की बात नहीं टालेगा और उसे उसकी गुडिया वापस मिल जायेगी। बाबा ने लड़कों से गुडिया वापस देने को कहा तो उन्होंने कहा ये उनकी गुडिया है इसलिए वापस नहीं देंगे। बाबा ने गुस्से से 'तिया' को डांट दिया -- "ये उनकी गुडिया है, तुम्हें इनसे माफ़ी मांगनी चाहिए"।
तिया स्तब्ध थी। बाबा ने ऐसा क्यूँ किया। बाबा तो रोज़ मेरे पास इस गुडिया को देखते थे , फिर क्यूँ उन्होंने उन लड़कों कि बात पर यकीन कर उलटे उसका ही अपमान कर दिया। तिया समझ नहीं पायी। अपमान और निराशा के आँसू उसके कंठ में आकर घुटने लगे। किसी और ने ऐसा किया होता तो उसे कोई दुःख नहीं होता । लेकिन पुजारी बाबा ऐसा करेंगे उसे विश्वास नहीं हो रहा था। उसकी एक मात्र पूँजी छिन चुकी थी।
दिन गुजरने लगे । तिया अब भी फूल चुनकर लाती थी , लेकिन कब वो मंदिर में रखकर चली जाती थी , बाबा को पता ही नहीं चलता था। मंदिर में पूजा-अर्चना में अब बाबा का मन नहीं लगता था। तिया कि मासूम खिलखिलाहट से मंदिर का प्रांगण अब नहीं गूंजता था।
कुछ महीने और गुज़र गए। ताज़े गेंदे कि खुशबू अब नहीं आती थी। बाबा बहुत व्यथित थे। ढूँढने निकले 'तिया' को । पास के गाँव में खबर मिली कि एक छोटी लड़की कुछ समय से यहाँ रहने आई है। बहुत ढूँढा पर तिया नहीं मिली। बाबा निराश हो लौटने लगे तभी उनकी निगाह सड़क पार पेड़ के नीचे बैठी 'तिया' पर पड़ी। बहुत बीमार लग रही थी। आँखों के नीचे स्याह काले धब्बे आ गए थे। ऐसा लग रहा था अब कुछ ही दिन कि मेहमान है वो। बाबा ने उससे वापस मंदिर चलने को कहा। तिया चुप रही। बाबा ने कहा अब तक नाराज़ है मेरी बिटिया । माफ़ नहीं करेगी अपने बाबा को?
तिया ने मन में सोचा -- "मेरा मंदिर तो आप थे बाबा । मेरे ईश्वर भी । मेरी गुडिया आप दिला सकते थे । मुझे 'चोर' कहलाने से भी आप बचा सकते थे । आप मेरी मदद कर सकते थे। मेरी उम्मीद टूटने से पहले आप मेरे स्वाभिमान कि रक्षा कर सकते थे। लेकिन मैं तो गरीब और अनाथ हूँ न बाबा , इसलिए इन बातों कि एहमियत ही कहाँ थी किसी के लिए और आपके लिए भी बाबा "
तिया को चुप देखकर बाबा ने उसे गोद में उठा लिया । सीने से लगा जोर से भींच लिया और कहा - "चल मंदिर चल , तेरा बाबा तुझे नयी गुडिया दिलाएगा" ....
लेकिन यह क्या ! तिया तो बाबा कि गोद में ढेर हो चुकी थी। उसकी निस्तेज और निष्प्राण आँखें अपने बाबा कि आँखों में एकटक देख रही थीं।
Zeal