पाकिस्तानी प्राधानमंत्री का कहना है की २१वि शताब्दी में युद्ध कोई विकल्प नहीं है, अतः वे काश्मीर मुद्दे का हल बात-चीत तथा बुद्धिमानी से निकालेंगे। समस्त देशभक्त-भारतीयों की तरफ से मेरा यह कहना है की काश्मीर कोई मुद्दा ही नहीं जिसका वे हल तलाश रहे हैं। काश्मीर हमारा था, हमारा है , हमारा ही रहेगा। विदेशी कृपया दूर रहे हमारे काश्मीर से। उस पर अपनी गिद्ध दृष्टि न रखें।
7 comments:
हम लोग तो जीती जमीन छोड़ देते हैं और फिर वापस लेने की बात करते है.
na dwand se milega na bheekh me milega bharat ke dil ki dhadkan hai
uske dil me hi milega.
कश्मीर एक जटिल सवाल बन गया है. हम इसे नकार तो नहीं सकते. इसका एकहिस्सा पाकिस्तान के पास है और इसकी कोई पहल या संभावना नहीं दीखती की यह वापस हिदुस्तान का हिस्सा बनाने वाला है. कश्मीर भारत का हिस्सा रहे इसके लिए सैन्य तयारी के साथ साथ भारत के अन्दर एक एस माहौल बनाना होगा जिसमे यहाँ रहने वाले मुस्लिम अपने आप को सुरक्षित, सम्मानित और विकास के दौड़ में शामिल पायें. फिर वो ही ऊँची जबान में हिंदुस्तान की वकालत करेंगे और उसके सामने पाकिस्तान का तर्क बेहत फीका लगेगा.
आपके लेख के लिए साधुवाद.
what mr Gilani has said should be welcome. we also can not ignore this issue.we have to face it with responsibility and humanity
सौ फीसदी सही कहा आपने।
हमारी सरकारें भी मुर्खता करती हैं। जो आज पाकिस्तानी कह रहे हैं, आज तक यही राग हमारे कांग्रेसी प्रधान मंत्रियों ने अलापा है। कश्मीर को मुद्दा भी इन्ही बागड़ बिल्लों ने बनाया है।
बिलकुल सही कहा आपने.
असली मुद्दा पीओके है. संभवतः उसी पर बात करना चाहते होंगे :))
पीओके की वर्तमान आर्थिक परिस्थितियाँ संकेत देती हैं कि पाकिस्तान ने पीओके की ज़मीन चीन को देने का मन बना लिया है. चीन वहाँ निर्माण कार्य कर रहा है. पाक की आर्थिक दुरवस्था से लगता है कि आगे चल कर पीओके की ज़मीन पर चीन का कब्ज़ा होगा और वहाँ की औरतों का क्या होगा पता नहीं. वहाँ के हालात मानवीय त्रासदियों की दिशा में जाते दिख रहे हैं.
बहुत ही चिंताजनक विषय है. पाकिस्तान तो कुछ भी कर सकता है और भारत कुछ करेगा नहीं जैसे POK के मामले में आज तक कुछ नहीं किया है. हमारे देश का इतहास हमारी जनता को कुछ बताता नहीं है. एक स्नातकोत्तर को भी पता नहीं होता है की POK है क्या, इसका इतिहास क्या है और तो और वर्तमान में क्या परिस्थिति है.
१९६२ की शर्मनाक हार से भी हमने सबक नहीं लिया है. सेना को मजबूत करने के कोई जरुरत ही नहीं है, वोह तो तैयार है, जरुरत है तो राजनैतिक इक्षाशक्ति की. और सबसे बड़ी बात भारतीय जन मानस को शारीरिक और मानसिक रूप से चीन और पाकिस्तान के विरुद्ध तैयार रहने की, न जाने किस वक्त जरुरत पड़ जाय. JAI HIND. http://pok-occupied-kashmir.blogspot.in/
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