आमतौर पर कोई भी घटना हो, समाज दो धड़ों में बंटा दिखता है ! एक सरकार विरोधी हिस्सा तत्काल ही जातिवाद का कार्ड खेलकर, घटना का राजनितिक लाभ लेने लगता है , दूसरा हिस्सा सरकार की अंधाधुंध पैरवी करने लगता है मानो रामराज हो और गलतियों की कोई गुंजाइश ही न हो ! एक निष्पक्ष बुद्धिजीवी समाज कहाँ है जो पूरी घटना पर का निष्पक्ष अवलोकन कर बीमारी की जड़ को पकड़ सके ?
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कोई भी घटना , क्रमबद्ध कई चरणों में सामने आती है ! अतः किसी निष्कर्ष पर पहुँचने तक बहुत धैर्य भी रखना होता है, अन्यथा आपकी उग्रता और रोहित वेमूला की उग्रता में कोई अंतर नहीं रह जाता ! समाज में कितने याकूब मेनन बनेंगे वो पता नहीं लेकिन इस समाज में रोहित वेमूला असंख्य हैं , ये बात अब तक साबित हो चुकी है ! समझदार सरकार और समझदार जनता से ये अपेक्षा की जाती है की वे इस तरह की घटनाओं से संज्ञान में लें और सचेत रहें ! इनकी पुनरावृत्ति न हो इस बात की कोशिश की जाए !
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अब बात आती है की रोहित किस तरह का लड़का था ! जहां तक मुझे समझ आता है, वो एक दिग्भ्रमित , पूर्ण रूप से भटका हुआ लड़का था जो अपनी अज्ञानतावश अपने धर्म , अपने महापुरुषों और संस्कृति के साथ खिड़वाड़ कर रहा था ! उम्र में बच्चा था, कान का कच्चा था जो दूसरों के बहकावे में आसानी से आ जाता था ! देश समाज और परिवार के प्रति दायित्वों को कतई नहीं समझता था ! व्यवस्था से तंग आकर और संभवतः अपनी गलतियों का एहसास करके उसने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली ! कोई लाभ नहीं हुआ किसी का ! न देश का , न परिवार का , न ही समाज का ! केवल गिद्धों के झुण्ड की दावत हो गयी !
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अब इस घटना पर गिद्धों के झुण्ड ने अपनी राजनितिक रोटियां भी सेंकनी शुरू कर दीं! कुछ गैरजिम्मेदार प्रोफेसरों ने इस्तीफा देने की धमकी शुरू कर दी ! कुछ संतई करने वाले नेताओं ने विश्वविद्यालय की यात्रा करने की घोषणा कर दी , मानो उनके चरणकमल वहां पड़ने से कोई चमत्कार हो जाएगा ! .
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अरे गलती इन्हीं प्रोफेसरों की है , जो अपने छात्रों को दिग्भ्रमित होने से रोक नहीं पाये और इनके छात्र उग्रवादी निकल रहे हैं ! और सबसे बड़ी गलती, पिछले सत्तर सालों से देश में, वोटों की राजनीति करने वाली कांग्रेस , भाजपा , समाजवादी, बसपा , आआप और अन्य सभी क्षेत्रीय पार्टियों की है जो आरक्षण देकर काबिलों का हक़ छीनती है और ऐसे लोगों को मुफ्तखोरी की आदत डालकर पहले उनका स्वाभिमान छीनती है , फिर अनावश्यक अनुपात में उन्हें महत्वाकांक्षी बना देती है ! वे बेचारे नट-नटी के इस खेल में संतुलन बनाये नहीं रख पाते और असंतुलित मस्तिष्क के साथ अपने दुखदायी-अंजाम को प्राप्त हो जाते हैं !
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कोई भी घटना , क्रमबद्ध कई चरणों में सामने आती है ! अतः किसी निष्कर्ष पर पहुँचने तक बहुत धैर्य भी रखना होता है, अन्यथा आपकी उग्रता और रोहित वेमूला की उग्रता में कोई अंतर नहीं रह जाता ! समाज में कितने याकूब मेनन बनेंगे वो पता नहीं लेकिन इस समाज में रोहित वेमूला असंख्य हैं , ये बात अब तक साबित हो चुकी है ! समझदार सरकार और समझदार जनता से ये अपेक्षा की जाती है की वे इस तरह की घटनाओं से संज्ञान में लें और सचेत रहें ! इनकी पुनरावृत्ति न हो इस बात की कोशिश की जाए !
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अब बात आती है की रोहित किस तरह का लड़का था ! जहां तक मुझे समझ आता है, वो एक दिग्भ्रमित , पूर्ण रूप से भटका हुआ लड़का था जो अपनी अज्ञानतावश अपने धर्म , अपने महापुरुषों और संस्कृति के साथ खिड़वाड़ कर रहा था ! उम्र में बच्चा था, कान का कच्चा था जो दूसरों के बहकावे में आसानी से आ जाता था ! देश समाज और परिवार के प्रति दायित्वों को कतई नहीं समझता था ! व्यवस्था से तंग आकर और संभवतः अपनी गलतियों का एहसास करके उसने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली ! कोई लाभ नहीं हुआ किसी का ! न देश का , न परिवार का , न ही समाज का ! केवल गिद्धों के झुण्ड की दावत हो गयी !
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अब इस घटना पर गिद्धों के झुण्ड ने अपनी राजनितिक रोटियां भी सेंकनी शुरू कर दीं! कुछ गैरजिम्मेदार प्रोफेसरों ने इस्तीफा देने की धमकी शुरू कर दी ! कुछ संतई करने वाले नेताओं ने विश्वविद्यालय की यात्रा करने की घोषणा कर दी , मानो उनके चरणकमल वहां पड़ने से कोई चमत्कार हो जाएगा ! .
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अरे गलती इन्हीं प्रोफेसरों की है , जो अपने छात्रों को दिग्भ्रमित होने से रोक नहीं पाये और इनके छात्र उग्रवादी निकल रहे हैं ! और सबसे बड़ी गलती, पिछले सत्तर सालों से देश में, वोटों की राजनीति करने वाली कांग्रेस , भाजपा , समाजवादी, बसपा , आआप और अन्य सभी क्षेत्रीय पार्टियों की है जो आरक्षण देकर काबिलों का हक़ छीनती है और ऐसे लोगों को मुफ्तखोरी की आदत डालकर पहले उनका स्वाभिमान छीनती है , फिर अनावश्यक अनुपात में उन्हें महत्वाकांक्षी बना देती है ! वे बेचारे नट-नटी के इस खेल में संतुलन बनाये नहीं रख पाते और असंतुलित मस्तिष्क के साथ अपने दुखदायी-अंजाम को प्राप्त हो जाते हैं !