Wednesday, August 31, 2011

ब्लॉगजगत में लेखन की चोरी अफसोसजनक है

एक वरिष्ट ब्लॉगर शुभचिंतक का मेल मिला जिसमें उन्होंने सूचित किया की मेरे आलेख चोरी करके कोई अपने ब्लॉग पर लगा रहा है उस ब्लॉगर का ही कोई नाम है , ही कोई प्रोफाइल है। उसने अब तक मेरे ८०-९० आलेख चोरी करके अपने ब्लौग पर लगा रखे हैं। मेरा आलेख प्रकाशित होने के थोड़ी देर बाद ही वह आलेख उसके ब्लौग पर लग जाता है। उसके ब्लौग पर टिप्पणी का भी कोई आप्शन नहीं है। उस ब्लॉग पर लेखों की तीन श्रेणियां बना रखी हैं। ( adult, General और uncategorised) पहली श्रेणी में अत्यंत गन्दी सामग्री का संकलन है। मेरे सारे आलेख 'General' श्रेणी के अंतर्गत संकलित हैं मेरे अतिरिक्त अन्य बहुत से ब्लॉगर्स के आलेख चोरी करके वहाँ पर लगे हुए हैं। हिंदी और अंग्रेजी के अतिरिक्त कुछ अन्य भाषा के आलेख भी चोरी से वहां प्रकाशित किये गए हैं।

उन आलेखों पर विज्ञापन लगाकर वह धन कमाने के लिए साहित्यिक चोरी कर रहा है

उस ब्लॉग का लिंक है--http://hindistories.x10.mx/?p=471




1-http://hindistories.x10.mx/?p=471

2-ब्लॉगजगत में लेखन की चोरी अफसोसजनक है
http://hindistories.x10.mx/?s=zeal&submit=Search

3-शहीद अरुण दास को विनम्र श्रद्धांजलि
http://hindistories.x10.mx/?s=zeal&submit=Search&paged=2

4-महाप्रयाण
http://hindistories.x10.mx/?s=zeal&submit=Search&paged=3

5-हमारी सबसे बड़ी दौलत , हमारे बुज़ुर्ग
http://hindistories.x10.mx/?s=zeal&submit=Search&paged=4

6-एक श्रेष्ठ ब्लॉगर और व्यक्तित्व ,डॉ अमर कुमार का निधनविनम्र श्रद्धांजलि.
http://hindistories.x10.mx/?s=zeal&submit=Search&paged=5

7-व्यक्ति बड़ा है या मुद्दा ?
http://hindistories.x10.mx/?s=zeal&submit=Search&paged=6

7-नेह निमंत्रण इकलौता
http://hindistories.x10.mx/?s=zeal&submit=Search&paged=7

8-७३ साल के सत्याग्रही से डरी सरकार

9"मन का मीत" — Soulmate
http://hindistories.x10.mx/?p=213

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उन्मुक्त जी का आलेख --

10-फैंटम, टार्ज़नयह कौन हैंसाउथ अफ्रीकन सफारी
http://hindistories.x10.mx/?p=386

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क्या इस समस्या का कोई निदान है ?

चोरी करने से तो बेहतर है ब्लौगिंग की जाए। चोरी का लेखन प्रकाशित करके वह ब्लॉगर स्वयं को कलंकित कर रहा है और साथी ब्लॉगर्स के साथ अन्याय।

Zeal

Tuesday, August 30, 2011

शहीद अरुण दास को विनम्र श्रद्धांजलि

भ्रष्टाचार के खिलाफ आजादी की इस लड़ाई में शहीद होने वाले , भारत माता के वीर सुपुत्र श्री अरुण दास जी को विनम्र श्रद्धांजली। सेनापति की सफलता पर बधाई लेकिन सेना के शहीदों को भुलाया नहीं जा सकता। कोई भी आजादी बिना बलिदान लिए नहीं मिलती। इतना व्यस्त भी क्या होना की जाने वाले के लिए दो पल न निकाले जा सकें उनको श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए। जिनकी आज हर तरफ जय जयकार हो रही है , उनका भी नैतिक दायित्व है की अपने साथ अनशन पर बैठे लोगों को और शहीद हो जाने वालों को बीच-बीच में याद कर लें।

एक अफ़सोस है की हमारे देश में मीडिया सिर्फ आसमान में चमकने वालों पर ज्यादा केन्द्रित रहता है। आम-जन जिस जज्बे को लेकर क्रान्ति की आंच को बढ़ता है , उसकी कोई गणना नहीं। स्वामी निगमानंद शहीद हो गए , अरुण दास शहीद हो गए , न मीडिया ने इसको दिखाना जरूरी समझ , न ही सरकार इन बलिदानों के प्रति स्वयं को जिम्मेदार समझती है।

कहाँ मिलेंगे ऐसे अनमोल हीरे हमारे भारत को ? अत्यंत दुःख के साथ भारत के अनमोल रत्नों को विनम्र श्रद्धांजलि।

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हम भी आराम उठा सकते थे घर पर रह कर,
हमको भी पाला था माँ-बाप ने दुःख सह-सह कर ,
वक्ते-रुख्सत उन्हें इतना भी न आये कह कर,
गोद में अश्क जो टपकें कभी रुख से बह कर ,
तिफ्ल उनको ही समझ लेना जी बहलाने को !

अपनी किस्मत में अजल ही से सितम रक्खा था,
रंज रक्खा था मेहन रक्खी थी गम रक्खा था ,
किसको परवाह थी और किसमें ये दम रक्खा था,
हमने जब वादी-ए-ग़ुरबत में क़दम रक्खा था ,
दूर तक याद-ए-वतन आई थी समझाने को !

अपना कुछ गम नहीं लेकिन ए ख़याल आता है,
मादरे-हिन्द पे कब तक ये जवाल आता है ,
कौमी-आज़ादी का कब हिन्द पे साल आता है,
कौम अपनी पे तो रह-रह के मलाल आता है ,
मुन्तजिर रहते हैं हम खाक में मिल जाने को !

नौजवानों! जो तबीयत में तुम्हारी खटके,
याद कर लेना कभी हमको भी भूले भटके ,
आपके अज्वे-वदन होवें जुदा कट-कट के,
और सद-चाक हो माता का कलेजा फटके ,
पर न माथे पे शिकन आये कसम खाने को !

एक परवाने का बहता है लहू नस-नस में,
अब तो खा बैठे हैं चित्तौड़ के गढ़ की कसमें ,
सरफ़रोशी की अदा होती हैं यूँ ही रस्में,
भाई खंजर से गले मिलते हैं सब आपस में ,
बहने तैयार चिताओं से लिपट जाने को !

सर फ़िदा करते हैं कुरबान जिगर करते हैं,
पास जो कुछ है वो माता की नजर करते हैं ,
खाना वीरान कहाँ देखिये घर करते हैं!
खुश रहो अहले-वतन! हम तो सफ़र करते हैं ,
जा के आबाद करेंगे किसी वीराने को !

नौजवानो ! यही मौका है उठो खुल खेलो,
खिदमते-कौम में जो आये वला सब झेलो ,
देश के वास्ते सब अपनी जबानी दे दो ,
फिर मिलेंगी न ये माता की दुआएँ ले लो ,
देखें कौन आता है ये फ़र्ज़ बजा लाने को ?

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चर्चा अपने क़त्ल का अब दुश्मनों के दिल में है,
देखना है ये तमाशा कौन सी मंजिल में है ?

कौम पर कुर्बान होना सीख लो ऐ हिन्दियो !
ज़िन्दगी का राज़े-मुज्मिर खंजरे-क़ातिल में है !

साहिले-मक़सूद पर ले चल खुदारा नाखुदा !
आज हिन्दुस्तान की कश्ती बड़ी मुश्किल में है !

दूर हो अब हिन्द से तारीकि-ए-बुग्जो-हसद ,
अब यही हसरत यही अरमाँ हमारे दिल में है !

बामे-रफअत पर चढ़ा दो देश पर होकर फना ,
'बिस्मिल' अब इतनी हविश बाकी हमारे दिल में है !-

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मिट गया जब मिटने वाला फिर सलाम आया तो क्या !
दिल की बर्वादी के बाद उनका पयाम आया तो क्या !

मिट गईं जब सब उम्मीदें मिट गए जब सब ख़याल ,
उस घड़ी गर नामावर लेकर पयाम आया तो क्या !

ऐ दिले-नादान मिट जा तू भी कू-ए-यार में ,
फिर मेरी नाकामियों के बाद काम आया तो क्या !

काश! अपनी जिंदगी में हम वो मंजर देखते ,
यूँ सरे-तुर्बत कोई महशर-खिराम आया तो क्या !

आख़िरी शब दीद के काबिल थी 'बिस्मिल' की तड़प ,
सुब्ह-दम कोई अगर बाला-ए-बाम आया तो क्या !

उपरोक्त ओजस्वी कवितायें , अमर शहीद 'राम प्रसाद बिस्मिल' की लिखी हुयी है। इन को हम तक पहुंचाने के लिए डॉ क्रांत वर्मा का हार्दिक आभार।

Zeal

Saturday, August 27, 2011

महाप्रयाण

कर्म के बंधनों से बंधा मनुष्य , दुःख सुख को भोगकर मृत्यु के पश्चात एक अनंत यात्रा पर निकल पड़ता है। प्रश्न यह है कि क्या वह आपसी मोह-बंधनों से मुक्त हो जाता है। किसी के परलोक गमन से पृथ्वी पर पीछे छूट गए परिजन और स्नेही जन उसके वियोग में छटपटाते हैं तो क्या जाने वाली आत्मा भी वियोग का अनुभव करती है? अवश्य ही उस अनंत यात्रा पर निकली आत्मा में स्मृतियाँ तो शेष होती ही होंगी

सुना है जो हमारे पूर्व जन्म के परिचित होते हैं , वे ही इस जन्म में हमसे किसी किसी रूप में आकर मिलते हैं और जुड़ते हैं। इसे ही शायद जन्म-जन्मान्तर का नाता कहते हैं।

जाने वाला अपना कुछ अंश हर दिल में छोड़ जाता है और लाखों दिलों से कुछ अंश अपने साथ भी ले जाता है आत्माएं इसी अंश को अपनी स्मृति में रखती हैं , और अनेकानेक जन्मों में विभिन्न रूपों में मिलन होता है उनका।

जाने चले जाते हैं कहाँ , दुनिया से जाने वाले.....
कैसे ढूंढें कोई उनको , नहीं क़दमों के भी निशाँ.......

Zeal

Thursday, August 25, 2011

हमारी सबसे बड़ी दौलत , हमारे बुज़ुर्ग

कहते हैं मित्र में ही सारे रिश्ते नज़र आते हैं मेरे सारे मित्र अत्यंत बुज़ुर्ग हैं। और उन्हीं में मुझे माता-पिता नज़र आते हैं। और माता-पिता के समान दूजा कोई मित्र नहीं होता।

बचपन से बुजुर्गों के साथ देर तक बैठना और उनकी बातें सुनना , फिर प्रश्न करना और फिर अकेले में उनकी बातों पर मनन करना और गूढार्थ समझ ज्ञान लाभ करना अच्छा लगता है । जिसने इतनी लम्बी जिंदगी के अनेक उतार चढ़ाव देखे हों औए बचपन से बुढापे तक सारे पड़ाव भी देख लिए हों , उनका जीवन तो स्वयं एक दर्शन बन जाता है। शिक्षा से परे , हज़ारों अनुभवों से उनके ज्ञान का जो विस्तार होता है , उसे हम उनके सानिध्य में रहकर आसानी से प्राप्त कर लेते हैं

अक्सर देखा है की जो हमारे बुज़ुर्ग हैं , वे हमारी ज्यादा चिंता करते हैं , जबकि इस उम्र में उन्हें पूरी देख-भाल, प्यार-दुलार और अपनेपन की ज़रुरत होती है। वे हमारे बारे में ज्यादा चिंतित रहते हैं , जबकि हम अपनी व्यस्तताओं के मध्य अपने बुजुर्गों को समुचित समय नहीं दे पाते हैं, जिसका मन में खेद रहता है।

अपने पिताजी के साथ अक्सर देर तक बातें करती हूँ। अनके अर्जित ज्ञान का शतांश लाभ भी मिल जाए तो जीवन सफल हो जाए। पिछले हफ्ते वे तीर्थ यात्रा पर थे। तीन दिन की यात्रा में tourism वालों ने आठ-आठ लोगों का ग्रुप बना दिया था। पिताजी का नियम से फोन आता था अपने चारों बच्चों को यात्रा का अपडेट देते रहते थे। हम लोग भी निश्चिन्त होकर उनकी ख़ुशी में शामिल थे वे फोन पर अपने साथियों को बताते थे , बिटिया से बात कर रहे हैं-- मैं कहती थी सभी से मेरा नमस्ते कहियेगा। फिर फोन पर आठों लोगों की समवेत स्वर में आशीर्वाद देने की आवाजें आती थीं। कानों में वह अमृत-ध्वनि हमेशा गूंजती रहती है।

ब्लौग पर अनेक बुज़ुर्ग अपनी यथाशक्ति , निस्वार्थ रूप से उत्कृष्ट योगदान कर रहे हैं। उनके अनुभवों का लाभ हमें मिलता रहता है इसके लिए पोस्ट के माध्यम उन सभी का आभार व्यक्त कर रही हूँ, जिनके अनुभवों और आशीर्वाद से हमारा जीवन खुशहाल बना रहता है अनेक ब्लॉग्स पर साहित्य और लालित्य की वर्षा होती है , जहाँ ज्ञान के मोती चुनने में अपार आनंद आता है। ऐसे सभी ब्लॉगर्स ( बहुत से-किसका नाम लिखूं किसका छोड़ दूँ) और टिप्पणीकार ( JC जी , विश्वनाथ जी ) को नमन।

मेरी पडोसी श्रीमती कमल , जिनकी आयु ७५ वर्ष है, उनके पास सप्ताह में एक बार जाने का नियम बना रखा है। वे आश्चर्य चकित होकर कहती हैं की-तुम्हारी उम्र का तो कोई, ख़ास मुझसे मिलने आता ही नहीं। लेकिन उन्हें क्या पता की मैं उनके पास आकर अति-सुकून पाती हूँ और उनके अनुभवों से ज्ञान लाभ करती हूँ। वे पहले सिंधिया-विद्यालय में लेक्चरर थीं जब भी उनसे मिलने जाती हूँ, वे कुछ कुछ पढ़ती ही रहती हैं और कुछ नोट्स भी बनाती रहती हैं। मेरे पहुँचते ही वे जो पढ़ती थीं वह मुझे बताने लगती हैं। मैंने अनुभव किया है की उनका ज्ञान बहुत विस्तृत है अपने बुजुर्गों के ज्ञान का लाभ हम उनके साथ वक़्त गुज़ार कर ले सकते हैं उनकी सबसे अच्छी बात ये है की हर २० मिनट पर अपने हाथों का बनाया हुआ कुछ खाने के लिए भी ले आती हैं उनके हाथ के स्वादिष्ट व्यंजन अमृत-तुल्य लगते हैं। चलते समय जब उनका चरण स्पर्श करती हूँ तो वे आशीर्वादों की झड़ी लगा देती हैं। मैं मूढ़-अज्ञानी , केवल दुलार, ज्ञान और आशीर्वाद लूटने वहां नियम से जाती हूँ। और वे निस्वार्थ होकर अक्षय-पात्र की तरह देती भी रहती हैं।

मेरी ईश्वर से प्रार्थना है , पृथ्वी के सारे बुज़ुर्ग स्वस्थ रहे और दीर्घायु हों। वे ज्ञान के भण्डार हैं और उनका स्नेह अमृत है। हमारे जीवन का सबसे बड़ा खज़ाना बुजुर्गों से मिलने वाला आशीर्वाद है

हमारे बुज़ुर्ग सिर्फ देते ही हैं, लेते कुछ नहीं।

Zeal


Wednesday, August 24, 2011

एक श्रेष्ठ ब्लॉगर और व्यक्तित्व ,डॉ अमर कुमार का निधन --विनम्र श्रद्धांजलि.


show details Jul 9

Divya,
I guess over long absence that you got operated as planned for june,
recovering well and shall be back with high spirits,
I recall that you opted venue of surgery at motherland,
so you should be with your didi.. what about her cholelithiasis..
has she too has got rid of it ?

Good wishes to everyone
amar


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dramar21071 to me
show details Jul 9

Thank God,
I am relieved.... you will pass through test of time.
I think you should not keep yourself behind other priorities, important whatsoever.
As per cardiac issue, having LVH, myopathies, ASD,VSD, Sick Sinus Syndrome are no problem in hands of an expert anesthetist, now a days.
Living in fear of one more newly discovered artifact is not wise. For keeping yourself in bad shape, you become answerable to your Children an Husband, too ! Bearing the burden of being sick to become a martyr one day... is something beyond my understanding !
Take Care.. your family needs you.
Bless you
amar
- Show quoted text -

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डा० अमर कुमार said...

जन्मदिन की असीम शुभेच्छायें !


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ब्लौगजगत में पदार्पण के बाद जिस हस्ती से प्रथम परिचय हुआ वे थे डॉ अमर कुमार, जिनसे एक वर्ष के सानिध्य में बहुत कुछ सीखा। ह्रदय से उनकी ऋणी रहूंगी। वे इतने व्यस्त रहते थे फिर भी , समय-समय पर मेल अथवा फोन द्वारा मेरा समाचार लेते रहते थे। कभी मैं किसी प्रकार की मुश्किल में रहती थी तो भी सदैव उन्होंने मेरा मार्गदर्शन किया, जो उनके बडप्पन और विशाल ह्रदय का परिचायक है।

पिछले महीने मेरी अस्वस्थता के कारण ब्लॉग पर मेरी अनुपस्थिति से चिंतित होकर , ९ जुलाई को जो मेल उन्होंने लिखी , उसे यहाँ उनकी यादगार के तौर पर प्रकाशित कर रही हूँ।

डॉ अमर की सर्जरी के बाद , उन्हें बोलने में बहुत तकलीफ थी , फिर भी कष्ट के साथ बात करते हुए हमेशा मेरे परिवार का ध्यान रखा। उन्होंने सदैव स्वयं से ज्यादा दूसरों को मान दिया और स्नेह दिया।

मेरी उनसे अंतिम बार बात ११ जुलाई २०११ को हुयी जब उन्होंने मुझे जन्मदिन की बधाई दी थी।

डॉ अमर के निधन से ब्लॉगजगत ने एक श्रेष्ठ ब्लॉगर खो दिया है । इस क्षति की भरपाई नहीं हो सकती। अब हमारे पास उनकी सिर्फ स्मृतियाँ ही शेष हैं। मन बहुत उदास है।

ईश्वर से प्रार्थना है , उनकी आत्मा को शान्ति दे, और शोक संतप्त परिवार को इतना बड़ा दुःख सहने की शक्ति दे।

विनम्र श्रद्धांजलि।

Sunday, August 21, 2011

व्यक्ति बड़ा है या मुद्दा ?

आज जब सारा देश भ्रष्टाचार के दानव से जूझ रहा है तो ऐसे में अन्ना जैसे भारतीय इसके खिलाफ लड़ने के लिए मैदान में गए हैं। इस उम्र में इतने कड़े विरोधों को झेलना और निरंतर अपनी बात पर डटे रहने कोई मामूली बात तो नहीं आखिर वे ये कर क्यूँ रहे हैं ? वे निस्वार्थ भाव से देश के लिए ही कर रहे हैं , इसमें उनका कोई निजी स्वार्थ तो है नहीं। फिर देश के लिए लड़ी जाने वाली लडाई में कुछ लोग उनका इतना विरोध क्यूँ कर कर रहे हैं? क्या हासिल होगा इससे?

देश की जनता जो उनके साथ है वो इसलिए क्यूंकि वे जिस बात के लिए लड़ रहे हैं वह हम सभी की समस्या है। जनता मुद्दे के साथ है , किसी व्यक्ति के साथ नहीं। ही आज की जनता इतनी इतनी भोली है की गलत व्यक्ति को यूँ ही अपना समर्थन दे देगी। इसलिए अनायास ही अन्ना का विरोध करके अपनी ऊर्जा का व्यर्थ मत कीजिये ही मुद्दे से भटकाईये मुद्दा बड़ा है , व्यक्ति नहीं इसलिए अपनी ऊर्जा को एकजुट होकर समर्थन जैसे सकारात्मक कार्य में लगाइए।

अन्ना और बाबा की अनावश्यक तुलना करने से बचिए दोनों ही देश और आम जनता के लिए समर्पित हैं , दोनों ही निस्वार्थ देश के हित में लड़ाई लड़ रहे हैं। बस हर किसी के लड़ने का अपना अंदाज़ अलग होता है, इतना ही अंतर है। आज़ादी की लड़ाई में गरम दल और नरम दल में भी तो अंतर था , लेकिन लड़ तो सभी देश के लिए ही रहे थे , बस तरीके अलग थे। और सभी का नाम आज हम सम्मान के साथ वीर शहीद देशभक्तों के रूप में लेते हैं। अतः अन्ना और रामदेव में अनावश्यक भेद मत कीजिये। दोनों ही देश के लिए दो बड़ी सकारात्मक ताकतें हैं जो आम जनता के हित में ही सोच रही हैं।

इतने लोगों के समर्थन के बाद और इतनी बड़ी जिम्मेदारी होने पर कोई गलत दिशा में सोच भी नहीं सकता अपने आप मन मस्तिष्क में नैतिकता और जिम्मेदारी बढ़ने लगती है। करोड़ों जोड़ी आँखें आज उन पर लगी हुयी है फिर उनके मंतव्यों पर संशय करना एक दुराग्रह जैसा लगता है। विरोध ही करना है तो उन हस्तियों की करिए जो बड़े-बड़े मुद्दों पर चुप्पी साधे हुए है।

आखिर विरोधों से लाभ क्या है ? सरकार करे तो करे लेकिन आम जनता का कुछ प्रतिशत विरोध क्यूँ कर रहा है ? यदि अन्ना भी अन्य सामान्य व्यक्तियों की तरह अपना आन्दोलन छोड़ दें और घर बैठ कर सामान्य चर्या अपना लें तो विरोधियों को क्या हासिल होगा। कौन लडेगा इस लड़ाई को ? देश के लिए स्वयं को आहुत करने वालों का विरोध हमारी तुच्छ एवं नकारात्मक सोच को परिलक्षित करता है।

जन आन्दोलों की आंधी में हम यदि एकजुट होकर अपना समर्थन दें और अनावश्यक निंदा से बचें और सकारात्मक सोच रखें तभी यह लड़ाई जीती जा सकती है।

Unity is strength ! ( एकता में ही बल है , विरोधों में नहीं)

Zeal


Saturday, August 20, 2011

नेह निमंत्रण इकलौता

ajit gupta said...

............................लेकिन मैं इतना जरूर चाहूंगी कि तुम जब भी भारत आओ तो कम से कम मुझसे मिलकर जरूर जाओ। वैसे मिलने के बाद कुछ लोग और अच्‍छे लगने लग जाते हैं और कुछ लोगों के बारे में बना हुआ भ्रम टूट जाता है। मुझे भी डर ही लगता है कि कहीं थेडी बहुत बनी हुई छवि समाप्‍त ही ना हो जाए।

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अक्सर ब्लॉगर्स मीट के बारे में पढ़ती रहती हूँ। भाग्यशाली लोगों को एक दुसरे से मिलने का सौभाग्य प्राप्त होता है। पता ही नहीं चलता कब आयोजित हुयी , कब संपन्न हो गयी। सिर्फ ब्लॉग्स पर पढ़कर ही पता चलता है। लेकिन अब मुझे भी एक आत्मीय निमंत्रण मिला है। लगा तो की कोई मुझे भी मिलने के लायक समझता है। म्रत्यु के उपरान्त ईश्वर के समक्ष ये कसम खा सकती हूँ अब की हाँ मुझे भी किसी ने याद किया था।

प्रिय अजीत जी , नहीं जानती मिलना कब होगा , लेकिन मिलन प्रतीक्षित है। आपके स्नेह-निमंत्रण से मन को एक सुखानुभव हुआ , जिसे यहाँ व्यक्त कर रही हूँ। हृदय में आपके लिए आभार के भाव हैं।

Zeal

Wednesday, August 17, 2011

७३ साल के सत्याग्रही से डरी सरकार

मारो , पीटो , बंदी बनाओ - यही है भारतीय सरकार की रणनीति ! कुचल दो , दमन कर दो , बुझा दो लोगों के दिलों में धधकती आग को , दबा दो जागरूक होती आवाजों को - यही है पहचान , भारतीय लोकतंत्र की !

कितने अन्ना और रामदेव को मारोगे, जिन्होंने अपने जैसे करोड़ों तैयार कर दिए हैं भारत-भूमि , देशभक्तों , सत्याग्रहियों , अहिंसावादियों , सत्यवादियों और स्पष्ट्वादियों से अभी खाली नहीं हुयी है आन्दोलन जारी रहेगा। दमन की नीति कारगर नहीं हो सकेगी लोकतंत्र सही अर्थों में बहाल होगा

गरीब जनता बढती महंगाई और भूखमरी से त्रस्त होकर आत्महत्या का विकल्प चुन रही है , जिसके लिए सरकार जिम्मेदार है। हमारी सरकार तानाशाही की मिसाल कायम कर रही है। छोटे से लेकर बड़े , हर स्तर पर भ्रष्टाचार व्याप्त है। ऐसे में अन्ना की मांग जायज है और बहुत जरूरी भी है। जनता की हर इकाई की यही मांग है। लोकपाल बिल के दायरे में सभी को होना चाहिए। आखिर डर किस बात का ? डर तो सिर्फ चोरों को लगना चाहिए। जो सही है उसे भय किस बात का?

वैसे हमारी सरकार इतनी भी कमज़ोर नहीं। आजादी के ६४ वर्षों में बड़ी उस्तादी से कुर्सी बचाए हुए है। एक अरब जनता को मूर्ख बनाना कोई मामूली काम नहीं है। अन्ना , रामदेव और उनके साथ उठती लाखों आवाजों का दमन करना कोई हमारी सरकार से सीखे।

लोगों का कहना है कि सभी राजनीतिक पार्टियाँ एक सी ही हैं , सरकार बदलने से कोई लाभ नहीं यदि यह सच है तो भी तख्ता पलटना चाहिए और यह सिलसिला तब तक जारी रहना चाहिए जब तक हम पर शासन करने वाली सरकारें अपनी जनता के हित में सोचना सीख जाएँ

हमारे बेशकीमती मतों का लाभ स्वार्थी सरकार आराम से ले रही है। हमारी सरकार कमज़ोर है, डरपोक भी। स्वार्थी और अलोकतांत्रिक भी। भ्रष्ट भी और असंवेदनशील भी। जो जनता कि आवाज़ का दमन करे , वह असंवैधानिक और अनैतिक भी है।

Zeal

Thursday, August 11, 2011

"मन का मीत" -- Soulmate

हर मन को एक - "मन के मीत" की तलाश रहती है , जो दुर्भाग्य से उन्हें मिलता नहीं मिलेगा कैसे , उनके मन में इतना ठहराव तो है ही नहीं की मिलने वाले प्यार को महसूस कर सकें और आत्मिक रूप से जुड़ सकें

किसी के साथ यदि आत्माओं का मिलन नहीं है तो वह सम्बन्ध अधूरा है विचारों का मिलना तथा किसी के सानिध्य में आनंद की प्राप्ति होना ही आत्माओं का एकाकार होना है। एकाकार होने की अवधी कुछ क्षणों से लेकर कुछ वर्षों या फिर जीवन पर्यंत हो सकती है

आत्मा का मिलन एक से या फिर अनेक से हो सकता है , एक ही काल में विभिन्न देश काल आदि परिस्थियों में भिन्न भिन्न लोगों से मिलना होता है। कभी कभी तो कोई अजनबी इतना अच्छा लगता है की ह्रदय कह उठता है - मेरा तुझसे है पहले का नाता कोई ...

जैसे आत्माएं अपनी इच्छानुसार शरीर धारण करती हैं और जब उनका मन भर जाता है तो वे उस शरीर का त्याग कर देती है और वह शरीर निष्प्राण हो जाता है उसी प्रकार किसी भी रिश्ते में , किसी अजनबी के साथ अथवा मित्र के साथ आत्माओं का संयोग और वियोग चलता रहता है संयोग की स्थिति में सत-चित-आनंद रहता है और वियोग की स्थिति में हर रिश्ता निष्प्राण हो जाता है

जहाँ आत्माओं का मिलन होता है वहां संवाद बिना कुछ कहे ही सपन्न हो जाता है "मन का मीत" अनकहा भी सुन लेता है और बिना लिखा हुआ भी पढ़ लेता है

कुछ पंक्तियाँ समर्पित हैं मन के मीत को ....

हमारी साँसों में आज तक वो हिना की खुशबू महक रही है
लबों पे नगमे मचल रहे हैं , नज़र में मस्ती छलक रही है

कभी जो थे प्यार की ज़मानत , वो हाथ हैं गैर की अमानत,
जो कसमें खाते थे चाहतों की , उन्हीं की नियत बहक रही है ,
हमारी साँसों में...

किसी से कोई गिला नहीं है , नसीब ही में वफ़ा नहीं है
जहाँ कहीं था हिना को खिलना , हिना वहीँ पे महक रही है
हमारी साँसों में ...

वो जिनकी खातिर ग़ज़ल कही थी , वो जिनकी खातिर लिखे थे नगमे
उन्हीं के आगे सवाल बनकर , ग़ज़ल की झांझर झनक रही है

हमारी साँसों में आज तक वो हिना की खुशबू महक रही है
लबों पे नगमे मचल रहे हैं , नज़र से मस्ती छलक रही है


Zeal

Tuesday, August 9, 2011

विरक्ति

दिव्या दीदी पिछले कुछ समय से देख रहा हूँ कि आप अपने लेखों पर आने वाली टिप्पणियों का जवाब नहीं दे रही हैं| क्या कोई विशेष कारण है?
यह आपकी व्यक्तिगत इच्छा हो सकती है, किन्तु हम चाहते हैं कि आपके जवाब मिलें...क्योंकि कुछ टिप्पणीकार लेख की आड़ में व्यक्तिगत रूप से धावा बोलते हैं| इन्हें जवाब देना आवश्यक है| पहल हम में से कोई करेगा तो गुटबाजी का आरोप भी मढ़ सकते हैं|
आशा है आप समझ रही होंगी...
सादर....
दिवस...



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दिवस जी ,

अब जवाब इसलिए नहीं देती क्यूंकि मन में एक "विरक्ति" पैदा हो गयी है !

ये विरक्ति एक दिन में पैदा नहीं हुयी , एक कारण से पैदा नहीं हुयी बल्कि एक लम्बी अवधि , कई कारणों और लोगों का रुख देखने के बाद ही बाद ही पैदा हुयी है ! कुछ लोग बहुत aggressive हैं , वे वाद के स्थान पर विवाद करने लगते हैं , जिससे मन खिन्न हो जाता है ! ऐसे लोगों से वाद करके समय नष्ट करने से लाभ नहीं !

आपका जिस तरफ इशारा है , उससे अच्छी तरह समझ रही हूँ लेकिन उनसे भी ज्यादा व्यक्तिगत धावा कुछ अन्य लोग बोलते हैं , जिधर आपका ध्यान नहीं गया है।

मेरे आलेख हमेशा एक बड़े वर्ग से संबोधित होते हैं , लेकिन निराश होकर किसी को भी जवाब न देने का निर्णय मेरे स्वयं के मानसिक सुकून के लिए है ! लोगों के triggers विचलित न कर सकें यही प्रयास रहेगा।

इस "विरक्ति" के आने से थोडा सा सिमट गयी हूँ खुद में.... शायद मेरे लिए यही बेहतर है ! फिर भी यही कोशिश रहेगी की अपने आलेखों और दुसरे ब्लौग पर की गयी टिप्पणियों में इमानदार रह सकूँ !

It is wise to bend rather than to break. Those who change will get spiritual wisdom. Conversely, those who have wisdom will decide to change. Change is the first law of Nature।

मेरे निराशाजन्य निर्णय से बहुतों को निराशा हुयी है , जिसका मुझे खेद है , लेकिन संभव है इसका कोई बेहतर परिणाम आये !

Just trying to maintain a very low profile.

कमेन्ट आप्शन बंद है !

Zeal

Monday, August 8, 2011

ज्ञान और वैराग

एक ऐसा ग्रन्थ जिसका महात्म्य सर्वविदित है , वह है भगवद गीता! बहुत बार मन किया इसे पढूं , लेकिन पढ़ नहीं सकी क्यूंकि मन में एक संशय था की गीता पढने से मन में वैराग उत्पन्न हो जाता है ! ऐसा कहीं सुना था ! पहले से ही वैरागी मन थोडा सा अनुराग और थोडा सा अज्ञान ढूंढता है ताकि मन , घर संसार में रमा रह सके!

तार्किक मन ये बात नहीं मानता , उसका कहना है की - "गीता पढने से वैराग नहीं, ज्ञान आता है ! इस पर तार्किक मन पुनः बोल उठा -" ज्ञान से ही वैराग आता है , अन्यथा ये मोह-माया का बंधन तो अज्ञानता के कारण ही है ! एक बार यदि ज्ञान हो जाए तो किसी भी प्रकार के मोह में पड़ना संभव ही नहीं है !

परिजनों के मोह में जकड़े अर्जुन को ज्ञान देकर और मोह दूर करके ही उन्हें उनके कर्तव्य पथ पर लाया गया! वैसे गीता तो बहुतों ने पढ़ी होगी , लेकिन यदि कोई उसमें लिखे उपदेशों को पूरी तरह समझकर आत्मसात नहीं करेगा , तब तक उसे न ही ज्ञान होगा , न ही वैराग !

विद्वान् पाठक कृपया अपने विचार रखकर मेरा संशय दूर करें !



Saturday, August 6, 2011

राज भी विदेश पर और इलाज भी विदेश में !

राज करने के लिए भारत से अच्छा देश कौन सा मिलेगा भला ! गरीबी के नीचे बसर कर रही 40 % जनता को बहलाना कोई मुश्किल काम नहीं ! बाकी बचे अल्पसंख्यकों को रंगीन सपने दिखाकर पिछले ६४ वर्षों से बखूबी बहलाया जा रहा है ! अतः निष्कंटक राज करने के लिए भारत से बेहतर भूमि दूजी कोई न होगी ! अंग्रेज हों या मुग़ल , इटालियन हों या फिर जापानी , भारत देश सबका स्वागत करता है - "अतिथि देवो भव"

चलिए राज कर लीजिये लेकिन जिस देश पर बरसों से राज कर रहे हैं , कम से कम उसकी चिकित्सा व्यवस्था में आस्था तो रखिये ! इलाज के लिए विदेश मत जाइए , भारत भूमि पर श्रेष्ठ चिकित्सकों का अकाल नहीं है ! अमेरिका में इलाज कारायेंगे तो स्वार्थपरक अमेरिकी नीतियों का विरोध कैसे करेंगे ? झुकने और मानने के लिए बाध्य होना ही पड़ेगा ! कुछ तो आस्था रखिये अपने ही राज में !

हमारे देश के अमीर नेता यदि विदेशों में इलाज करायेंगे तो देश का सफ़ेद धन अनायास ही देश से बाहर जाता रहेगा !

खैर देश के सभी ऐश्वर्यवान नेताओं को स्वास्थ्य लाभ की शुभकामनाएं !



Friday, August 5, 2011

दिलों में सम्मान क्या मुलाक़ात के बाद उपजता है ?


आजकल ब्लॉगर्स एक दुसरे से मुलाक़ात कर रहे हैं ! देश-विदेश, शहरों और राज्यों की दूरियां छोटी हो रही हैं ! दिल मिल रहे हैं ! परस्पर प्रेम वर्षा हो रही है और मुलाकातियों के हृदयों में एक-दूजे के लिय सम्मान उफान पर है ! उनके ब्लौग पर आलेख आ रहे हैं एक दुसरे की शान में ! प्रसन्नता की बात है , लेकिन ऐसा प्रतीत होता है जैसे जो लोग मुलाकातों से वंचित रह जाते हैं उनका अस्तित्व ही नहीं ! मुलाकातियों का गुट बन जाता है , जिसमें अन्य ब्लॉगर्स उपेक्षित रहते हैं ! उनके लेखन का कोई सम्मान नहीं और उनसे किंचित द्वेषपूर्ण व्यवहार भी होता है !

  • प्रश्न यह है की क्या सम्मान लेखन को मिलना चाहिए या व्यक्ति को ?
  • आत्मीयता सिर्फ मुलाकातों पर निर्भर है क्या ?
  • क्या यह गुटबाजी को तो बढ़ावा नहीं दे रहा ?
  • क्या यह अन्य ब्लॉगर्स की उपेक्षा का कारण तो नहीं बन रहा ?
  • क्या इसके कारण लेखक का फोकस बेहतर विषयों से हटकर गैर जरूरी सोशल-नेटवर्किंग पर तो नहीं केन्द्रित हो रहा ?

ऐसी मुलाकातों से ब्लॉगर्स की स्वतंत्रता छिन जाती है , वे एक दुसरे की प्रशंसा करने को बाध्य हो जाते हैं ! टिप्पणियों और आलेखों से इमानदारी लुप्त हो जाती है ! प्रायः वे एक दुसरे को महिमामंडित करते हुए दिखाई देते हैं ! समझ भी नहीं आता की ऐसे आलेखों पर टिपण्णी क्या लिखी जाए !

मुझे लगता है , मेल-मिलाप हो, प्रेम रहे , सम्मान रहे लेकिन अन्य ब्लॉगर्स को उपेक्षित होने का अहसास न करायें , गुटबाजी न करें और बेहतर लेखन के लिए सम्मान बना रहे!

ब्लॉगर्स मीट में हिंदी ब्लौगिंग के विकास और स्थापना से जुड़े विषयों पर चर्चा होनी चाहिए और उसके क्या परिणाम और सुझाव आये इनकी चर्चा होनी चाहिए आलेखों पर !

Zeal

Wednesday, August 3, 2011

मंहगाई की सुनामी में धधकता पेट्रोल


अर्थशास्त्री प्रधानमन्त्री के राज में मंहगाई इतनी तेजी से बढ़ रही है लेकिन सरकार उसे रोक पाने में असफल है , ये दुखद है और हैरान करने वाला भी ! वैसे प्रधानमन्त्री स्वयं एक विद्वान् हैं और जानते हैं की किन प्रयासों द्वारा इस मुद्रा-स्फीति पर नियंत्रण पाया जा सकता है , लेकिन अफ़सोस है की सरकार का पूरा ध्यान नकारात्मक ऊर्जा के रूप में व्यय हो रहा है जैसे रामदेव से कैसे बचें और बालकृष्ण को कैसे उखाड़ फेंके आदि ! इस कारण से मुद्दे पर से उनका ध्यान सदैव हटा ही रहता है और उचित निर्णयों का अभाव सा दीखता है !

साढ़े छः करोड़ टन खाद्यान्न गोदामों में सड़ रहा है , इसके पीछे सरकार की क्या रणनीति हो सकती है भला ? राजकोष में घाटा बढ़ता जा रहा है , जिसे नियंत्रित करने के लिए खाद्यान के दाम ऊंचे कर दिए , जिसके खरीददार ही नहीं मिल रहे ! क्या इससे inflation कम हो जाएगा ! एक ओर भूखमरी, दूसरी अनाज की बर्बादी और तीसरी बढती मंहगाई ! आखिर ये किस अर्थशास्त्र की नीति है ?

मंहगाई की आग में पेट्रोल और डीज़ल भी भभक रहे हैं और सरकार ने इसे बुझाने की जिम्मेदारी RBI को सौंप दी है , जिसने पिछले दो वर्षों में ग्यारह बार ब्याज दरें बढा दी हैं ! क्या इससे रुकेगी मुद्रा-स्फीति ?

उद्योगपति अपना धन विदेशों में निवेश कर रहे हैं ! २७ अरब डॉलर घर आया तो बदले में ४४ अरब डॉलर का निवेश विदेशों में हुआ ! विदेशों में निवेश से मंहगाई बढ़ेगी या घटेगी ? "वालमार्ट" जैसी कम्पनियाँ यदि हमारे देश में आयेंगी तो छोटे-छोटे दुकानदार और किसान तो बर्बाद हो जायेंगे ! अमेरिका के दबाव में आकर और उनके सुझाव मानकर पहले ही बहुत नुकसान हो चुका है , अब वालमार्ट आदि में निवेश से आम जनता का कोई भला नहीं होने वाला! आखिर सरकार की मंशा क्या है -आम जनता को आबाद करना या फिर बर्बाद करना ? वही आम आदमी जो इन्हें चुनाव जिताकर कुर्सी पर बैठाता है ! लेकिन ऊँचे सिंहासन पर विराजने के बाद इन्हें न ही जनता की आवाज़ सुनाई देती है , न ही उसकी भुखमरी और न ही बढती मंहगाई से त्रस्त आदमी से कोई सरोकार दिखता है !

वैसे जो लोग इस सरकार को दुबारा चुनेंगे क्या उनपर इस बढती मंहगाई की मार नहीं या फिर वे सरकार को जिम्मेदार नहीं मानते ?


Monday, August 1, 2011

पुरुषों की व्यथा

पुरुषों के कष्ट भी असीमित हैं ! उनके कष्टों का परिमाण इसलिए और भी बढ़ जाता है क्यूंकि वे अपने कष्ट किसी से नहीं कहते हैं , मन में ही रखते हैं और घुलते रहते हैं ! जबकि स्त्रियाँ अपने मन की बात अपनी माँ , बहन , मित्र और पति से कहकर अपने मन को हल्का कर लेती हैं !

  • पुरुषों पर आफिस के कार्यों का अत्यधिक बोझ रहता है जिसके कारण वे तनावग्रस्त रहते हैं , घर आने पर भी आफिस की परेशानियाँ पीछा नहीं छोड़तीं ! चाहकर भी पत्नी अथवा बच्चों को समुचित प्यार और समय नहीं दे पाता ! बच्चों के साथ समय बिताना चाहता है , उन्हें पढाना चाहता है , बहुत कुछ नया सिखाना चाहता है , लेकिन समयाभाव उसे ऐसा करने नहीं देता ! इससे परिवार में असंतोष पनपता रहता है और उसकी जडें गहरी होती जाती हैं !
  • सास और बहू की अनबन में तो बेचारा घुन की तरह पिसता ही रहता है !
  • पुरुष वर्ग ज्यादा लोगों के संपर्क में रहता है ! कभी-कभी अनायास ही उसमें inferiority complex पैदा हो जाता है ! कारण कुछ भी हो सकता है ! यथा - आर्थिक , सामाजिक , साथियों की तरक्की अथवा कुछ कर पाने की असमर्थता आदि ! ऐसे में एक समझदार पत्नी ही उसका मनोबल बनाए रख सकती है अथवा स्थिति अति विकट हो जाती है !
  • कई बात लगातार असफलताओं को झेलते हुए एक पुरुष का स्वभाव अति-कटु हो जाता है , जिसे एक पत्नी को समझना आवश्यक है और कोशिश करनी चाहिए की पति पर अतिरिक्त दबाव न डाले!
  • कभी अनजाने ही कोई बड़ा आर्थिक नुकसान हो जाए तो वह उसे अकेले ही वहन करने की कोशिश करता है , अपनी पत्नी से नहीं कहता क्यूंकि वह उसे परेशान नहीं देखना चाहता !
  • प्राइवेट नौकरियों में बढ़ता दबाव और आगे निकलने की होड़ में लोग अपना दूना समय और सामर्थ्य दे रहे हैं , तब कहीं नौकरी सुरक्षित रह पा रही है ! ( सरकारी नौकरी वालों को थोड़ी राहत है यहाँ ) ! ऐसी स्थिति में वे परिवार को समय नहीं दे पाते , फलस्वरूप दोहरा तनाव झेलते हैं !
  • अक्सर पत्नियों का लगातार शिकायती रवैय्या पुरुषों को निराशाजनक सोच दे देता है और वे अनायास ही परिवार क प्रति उदासीन हो जाते हैं ! स्थितियां सुधरने के बजाये बिगड़ने लगती हैं !
  • पुरुष अपने परिवार की ख़ुशी के लिए उन्हें बाहर घुमाने ले जाते हैं , खिलाते हैं , लेकिन स्वयं वे घर के बने स्नेहयुक्त भोजन की अभिलाषा रखते हैं , जो अक्सर पूरी न होने पर उनमें एक अनजाना असंतोष पैदा करता है ! कुछ स्त्रियाँ स्वयं में इतनी व्यस्त रहती हैं या फिर आलस्यवश वे इस महवपूर्ण कार्य को अनुशासन के साथ नहीं करतीं ! .देरी हो जाने पर कुछ शोर्ट-कट बनाकर काम चलाती हैं ! पति इस बात पर चुप ही रहता है लेकिन एक असंतोष रहता है !
  • कभी कभी स्त्रियाँ अपने सामान्य स्नेहपूर्ण व्यवहार की जगह , अति रूखा व्यवहार करती हैं ! वे बार-बार उसे उसकी कमतरी का एहसास दिलाती हैं और उनका मनोबल तोडती हैं ! उनकी संवेदनहीनता पुरुषों को अति निराश करती है और अपनी अपेक्षाओं के पूरा न हो पाने की स्थिति में वे तनावग्रस्त रहने लगते हैं !

पुरुषों की व्यथा भी अनंत हैं ! ऐसे में यदि पत्नी का सहयोग न मिले तो यही व्यथा अंतहीन हो जाती हैं !