कुछ विद्वान् मित्रों का मत है कि आरक्षण से पहले जातिवाद को हटाया जाए ।
किन्तु जाति व्यवस्था से किसी को व्यक्तिगत नुक्सान नहीं है । किसी का अधिकार नहीं मारा जा रहा है । कोई ठाकुर , कोई बनिया , कोई कुर्मी , कोई बढ़ई है तो उससे फरक क्या पड़ता है । नाम दिव्या हो, सीमा हो, मोहन हो, राकेश हो , कोई फरक नहीं पड़ता । सब अपने आप में खुश हैं , कोई किसी का हक नहीं मार रहा , बशर्ते कि आरक्षण की तलवार न लटकी हो कीन्हों दो के कन्धों पर ।
जब आरक्षण नहीं होगा तो सभी को सामान अवसर मिलेगा । अपनी योग्यता से अपनी प्रतिभा सिद्ध कर ऊपर आया जा सकता है । अपना परचम लहराया जा सकता है । आगे आने का आधार मेरिट होना चाहिए ।
प्रतिभाओं के आगे सभी नतमस्तक होते हैं , किसी का किसी से द्वेष नहीं होता । यदि आरक्षण नहीं होगा तो जातिभेद होगा ही नहीं । सभी जतियाँ सामान हैं और वे सौहार्द के साथ इस भारत भूमि पर रहती हैं ।
जातियों को कलंकित करने का काम ये नेता करते हैं । अपने स्वार्थ में ये समाज के अनगिनत टुकड़े कर उनकी तरफ आरक्षण के टुकड़े फैंकते हैं । ये नेता ही आरक्षित जतियों से उनका स्वाभिमान छीनते हैं और अनारक्षित जातियों की प्रतिभाओं का गला घोंटकर असमानता और आपसी दुराचार पैदा कर हम पर राज करते हैं ।
बाहर आना होगा इस मृगतृष्णा से । आरक्षण नहीं होगा तो समस्त जातियाँ मिलजुल कर रहेंगी। अतः ये स्पष्ट है कि आरक्षण से जातिवाद का जहर फैलता है। जातियाँ स्वयं किसी प्रकार से किसी का नुक्सान नहीं करतीं ।