Monday, May 30, 2011

आदर्श प्रेमी --An Ideal lover -- [गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौबहार चले.----चले भी आओ के गुलशन का कारोबार चले]

गुकी कहानी में 'इरफ़ान' को कोई नहीं चिन्हित कर सका , क्यूंकि इरफ़ान एक काल्पनिक पात्र हैवो एक 'आदर्श प्रेमी' है, जो इस धरा पर नहीं होते लेखिका ने एक 'आदर्श प्रेमी' की कल्पना की है जो स्वार्थ से रहित है और बिना किसी अपेक्षा के नायिका के सपनों को सच बनाने में पूरे समर्पण के साथ जुटा है। वो गुल के सपनों को साकार होता देखना चाहता है। वो सामने भी नहीं आना चाहता , क्यूंकि वो जानता है की सामने आकर वो स्वार्थ से युक्त हो जाएगा। उसके अन्दर भी अपेक्षाएं पैदा हो जायेंगी और अपेक्षाएं इंसान को कमज़ोर बना देती हैं।

एक अच्छे , संस्कारवान , सुहृदय, दयालु और प्रेमी-ह्रदय वाले लोग तो कभी कधार मिल भी जायेंगे , लेकिन एक आदर्श प्रेमी कभी नहीं देखा। अब आप पूछेंगे की आदर्श प्रेमी के सर पर सींग होते हैं क्या ? तो बता दूँ की कैसे होते हैं आदर्श प्रेमी ....

  • ये ,दो कदम चलकर आपका साथ नहीं छोड़ते। एक बार आपको अपना समझ लिया तो पूरी उम्र आपका साथ निभाते हैं।
  • ये स्वार्थ से पूर्णतया रहित होते हैं।
  • ये जिससे प्रेम करते हैं , उससे कोई अपेक्षा नहीं रखते।
  • एक बात-बात पर बुरा नहीं मानते।
  • द्वेष नहीं रखते।
  • अपने मित्र का मनोबल नहीं तोड़ते।
  • किसी भी परिस्थिति में दिल नहीं दुखाते।
  • अपने मित्र की ख़ुशी में खुश और दुखों में दुखी होते हैं।
  • उनका जीना मरना दोनों अपने मित्र के लिए ही होता है।
  • हर परिस्थिति में साथ निभाते हैं।
  • इनका प्यार बिना शर्तों के होता है.

मुझे लगता है , इस पृथ्वी पर कोई भी व्यक्ति स्वार्थ से रहित नहीं है। और एक व्यक्ति के पवित्र मन को जो भाव बहुत जल्दी दूषित करते हैं , उसमें से प्रमुख हैं ईर्ष्या और अपेक्षा। इन दोनों में से एक भी भाव ह्रदय में जाने पर 'प्रेम' अपना स्थान छोड़ देता है।

इसीलिए कहा है की सज्जन व्यक्ति तो बहुत मिलेंगे, आखिर ये दुनिया टिकी ही सज्जनों की सज्जनता पर है। सज्जन व्यक्ति सुसंस्कारित , सभ्य और शिष्टाचार युक्त होते हैं , लेकिन ये एक आदर्श प्रेमी नहीं होते।

आदर्श प्रेमी होते ही नहीं हैं ये सिर्फ कल्पना में ही हो सकते हैं।

एक आदर्श प्रेमी की झलक देखिये मेरे इस पसंदीदा गीत में मिलिए मेरे 'इरफ़ान' से।

I feel so romantic in listening his voice.

आभार

Sunday, May 29, 2011

निस्वार्थ प्रेम-- Unconditional love

ये कहानी है एक लड़की की, जिसका नाम है 'गुल' गुल के पास एक बगीचा था जिसमें वो रंग बिरंगे फूल खिलाती थी , जिससे बहुत से लोग लाभ लिया करते थे किसी को शारीरिक बिमारियों से निजात मिलती थी , तो किसी मानसिक शांति मिलती थी। किसी को उन्हीं फूलों से दुनिया की नयी-नयी तसवीरें दिखती थी , तो कोई बिछड़े हुए अपनों से मिल जाता था। किसी के लिए वे फूल प्यार का पैगाम लाते थे तो किसी के लिए मरहम का काम करते थे। कुल मिलाकर 'गुल' के उस 'गुलशन' के विविध रंगी फूलों से पूरे समाज को लाभ होता था 'गुल' निस्वार्थ भाव से छोटे-बड़े , गरीब अमीर , सभी के लिए उस गुलशन में फूल उगाती थी। और हर किसी को उस गुलशन में आने जाने की पूरी स्वतंत्रता थी। कोई भी ज़रुरतमंद वहां से अपनी पसंद का फूल चुन सकता था। किसी प्रकार की कोई बंदिश नहीं थी।

गुल अकेली ही उस गुलशन का ध्यान रखती थी जिसके फूलों पर लाखों जिंदगियां बसर रही थीं। गुल चाहती थी कोई ऐसा हो जो उसकी इस नेक काम में मदद करे , लेकिन कोई भी नहीं था जो उसका साथ देता। एक दिन उसका एक बचपन का मित्र 'गुलफाम' वहां आया , उसे देखकर गुल को बहुत ख़ुशी हुई उसे लगा अब इस गुलशन का ध्यान रखना अब बहुत आसान हो गया है। गुलफाम के जाने से गुल को बहुत अच्छा लगता था। गुलफाम के छू देने से फूलों का आकार बढ़ जाता था और उसके रंग भी गहरे हो जाते थे। धीरे धीरे गुलफाम में अहंकार आने लगा। उसने सोचा मैं क्यूँ मदद करूँ गुल की। इसमें मेरा क्या लाभ है भला , नाम तो गुल का हो रहा है , फिर मैं अपना योगदान क्यूँ करूँ ? फिर उसने फूलों को छूना बंद कर दिया। उसने गुल से कहा - तुम बहुत ज्यादा फूल खिला रही हो , बहुत तेज़ी से लोग इसका इस्तेमाल भी कर रहे हैं मैं चाहता हूँ तुम अपना काम धीरे-धीरे करो

गुल समझ गयी गुलफाम उसकी मदद नहीं करना चाहता है गुल ने कुछ नहीं कहा , वो उसी लगन और मेहनत से अपने काम में जुटी रही। वो जानती थी की कोई भी व्यक्ति निस्वार्थ नहीं होता इसलिए लम्बे समय तक उसकी खातिर उसके गुलशन में उसका सहयोग नहीं कर सकता गुलफाम जैसे मित्र उससे अपेक्षा तो बहुत रखते हैं , लेकिन उसके लिए निस्वार्थ रूप से सहयोग नहीं कर सकते। समय बीतता गया और गुल अपने काम में वापस व्यस्त हो गयी फूलों का रंग गहरा सही , बड़ा आकार सही , लेकिन वो अपनी बगिया में फूल खिलाती रही और लोग चुन-चुन कर ले जाते रहे।

कुछ समय बाद एक दिन अचानक सुबह उठी तो देखा गुलशन के सारे फूल बहुत ही बड़े-बड़े और गहरे रंग के हो गए हैं और बहुत ही सुन्दर सुगंध से पूरा गुलशन गमक रहा है गुल आश्चर्यचकित हो गयी , आस पास देखा तो कोई नहीं था अब तो ये रोज़ का ही नियम हो गया था , गुलशन के फूलों का रंग , आकार और खुशबू बढती ही जा रही थी। गुल बहुत प्रसन्न रहने लगी कोई अनजाना निस्वार्थ होकर मदद कर रहा था और अनेकों जरूरतमंदों की मदद में गुल का सहयोग भी कर रहा था।

गुल की इच्छा बढ़ गयी उस अजनबी फ़रिश्ते से मिलने की , लेकिन वो तो चुपचाप अपना काम करके चला जाता था। एक दिन गुल घूमते-घूमते बहुत दूर निकल गयी उसने देखा एक छोटा सा गुलिस्तां है वहां और अनेक फूल भी खिले हैं , लेकिन सभी बहुत छोटे आकार के हैं और खुशबू भी नहीं है।

फूलों से बेहद प्यार करने वाली गुल ने उन फूलों को धीरे से सहलाया। देखते ही देखते सारे फूलों का आकर बढ़ गया और उनमें भी सुन्दर सुगंध गयी हर तरफ खुशबू फैलते ही अचानक एक युवक 'इरफ़ान' दौड़ता हुआ वहां आया। उसने गुल को धन्यवाद दिया और कहा -"मेरी बगिया तुम्हारा ही इंतज़ार कर रही थी इतने दिनों से गुल ने पूछा -तुम कौन हो और मुझे कैसे जानते हो? इरफ़ान ने गुल को बताया , मैं ही तुम्हारे गुलशन के फूलों को खुशबू देता हूँ। गुल चौंक गयी पूछा- "तो तुम अपनी बगिया को क्यूँ नहीं सुवासित करते? तुम्हारे पास तो ये अद्भुत हुनर है।

इरफ़ान ने कहा - " नहीं , ये हुनर हम दोनों के ही पास है लेकिन जब हम अपने लिए करते हैं तो वो स्वार्थ से ग्रस्त हो जाता है इसलिए फूलों में खुशबू नहीं पाती , लेकिन जब हम निस्वार्थ होकर किसी गैर के लिए कुछ करते हैं तभी पूरे चमन में ये खुशबू फैलती है।

गुल ने पूछा - " लेकिन तुमने मुझे पहले क्यूँ नहीं बताया , मैं भी तुम्हारी बगिया के लिए कुछ कर सकती इरफ़ान ने कहा - "यदि मैं तुमसे कुछ मांग लेता तो मैं निस्वार्थ नहीं रह जाता और फिर तुम्हारे गुलशन को सुवासित करने की शक्ति भी जाती रहती , इसलिए मुझे छुपकर ही ऐसा करना पड़ा, और मैं भी दिल ही दिल में तुम्हारे आने का इंतज़ार करता था। जानता था तुम ज़रूर आओगी। मेरा विश्वास अटल था।

उस दिन के बाद से गुल और इरफ़ान ने मिलकर लोगों के लिए फूलों को खिलाना शुरू कर दिया। पहले एक थी , फिर अनेक बगिया हो गयी।

कहानी के पात्र वास्तविक हैंलेकिन उनके नाम काल्पनिक हैंरोचकता बढाने के लिए आप यदि गुल , गुलशन , गुलफाम और इरफ़ान को पहचान सकें तो टिप्पणियों का आनंद दोगुना हो जाएगा

तीन पात्रों को पहचानना आसान है लेकिन जो 'इरफ़ान' को पहचानेगा , वही विजेता घोषित होगा

आभार

Monday, May 23, 2011

क्या पश्चिमी सभ्यता का अन्धानुकरण सिर्फ महिलाएं कर रही हैं ?

अकसर लोगों की ज़बान पर एक जुमला चढ़ा रहता है - "महिलाएं पश्चिम का अन्धानुकरण कर रही हैं , वस्त्र पहनने के मामले में मान मर्यादा का ध्यान नहीं रख रही हैं। "

और भी गन्दी भाषा में लोग इस बात को कहते और विभिन्न ब्लॉग्स पर लिखते हैं। लेकिन क्या ये सच है ? कुछ प्रश्न मन में आ रहे है -
  • क्या ये वास्तव में पश्चिम का ही अन्धानुकरण है ?
  • क्या पश्चिम का प्रभाव महिलाओं पर ज्यादा है ? पुरुष कितने ही वर्ष विदेशों में क्यूँ न रह लें , वे शरीफ ही रहते हैं ? पश्चिम का कोई भी दुष्प्रभाव पुरुषों पर नहीं होता ?
  • यदि पुरुष पश्चिमी दुष्प्रभावों से मुक्त हैं तो उनकी माँ , पत्नी और बेटी कैसे संस्कारों को भूल गयी ?
  • भारतीय स्कूलों में शिक्षिकाओं को , अस्पातालों में डाक्टर्स को , कार्यालयों में महिला कर्मचारियों को , घरों में दादी , नानी , चाची , मौसी , बुआ , सभी को सभ्रांत वस्त्रों में ही पाया आज तक । क्या आपके घर की महिलाएं या आस-पास महिलाएं अभद्र वस्त्रों में दिखती हैं?
  • मोहल्ले में या बाज़ार में , रेलवे स्टेशन पर या एअरपोर्ट पर , सभी जगह भारतीय महिलाओं को मर्यादित ही पाया है आज तक , फिर पश्चिम का अन्धानुकरण कहाँ है ?
  • क्या साड़ी पहनने में ही एक महिला मर्यादित है ? अन्य किसी भी परिधान में अमर्यादित ?
  • समय के साथ स्त्री यदि सुविधानुसार सलवार कमीज़ अथवा जींस-टॉप पहनती है तो क्या यह अभद्र और अश्लील की श्रेणी में गिना जाएगा ?
  • पहले महिलाएं न स्कूटर चलाती थीं, न गाडी , न प्लेन उडाती थीं । पहले नौकरी के लिए भागते हुए लोकल ट्रेनें और बस नहीं पकडनी होती थी । पहले स्पोर्ट्स में भी इतनी शिरकत नहीं होती थी महिलाओं की । तो क्या ज़रुरत के अनुसार यदि परिधान बदलते गए तो उसे अभद्र , अश्लील और पश्चिम का अन्धानुकरण कहेंगे?
  • सुविधानुसार इंसान साइकिल से स्कूटर, फिर कार आदि को अपनाता गया , लेकिन सुविधानुसार यदि एक स्त्री अपने लिए परिधान का चुनाव करती है तो वो समाज के ठेकेदारों को खटकने लगता है।
  • पुरुषों का पहनावा ऐसा होता है , जो सुविधाजनक होता है तथा एक्टिव बने रहने में मदद करता है । तो यदि महिलाएं आज भाग-दौड़ की ज़िन्दगी में अपनी सुविधानुसार सलवार कमीज़ अथवा जींस टॉप को प्राथमिकता देती हैं तो क्या यह अभद्र है , जो आज ज्यादातर बच्चियां , बहुएं , सासें , अमीर और गरीब दोनों तबका पहन रहा है।

अब बात करते हैं उस वर्ग की जहाँ वास्तव में अभद्रता दिखाई देती है । वो है मोडलिंग अथवा फिल्म जगत। यहाँ पर चंद कलाकार अश्लीलता और फूहड़ता का प्रदर्शन करते हैं , जिसके कारण आम जनता को भी उसी श्रेणी में खड़ा कर देना सर्वथा अनुचित है।

इसलिए ये व्यापक कथन कहना की "महिलाएं वस्त्र धारण में पश्चिम का अन्धानुकरण कर रही हैं" , थोडा आपत्तिजनक लगता है। दो-चार बिपाशा , राखी और मल्लिका को छोड़ दें तो ज्यादातर महिलाएं अपने तन पर वस्त्रों की गरिमा को बखूबी समझती हैं और अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए क्या ज़रूरी है , ये भी बेहतर जानती हैं।

यदि साड़ी को सबसे गरिमामय मानें तो कुछ लोगों का ये प्रश्न है की -"आधा पेट खुला क्यूँ रहता है ? साडी navel के नीचे क्यूँ बंधी है ? और माशा अल्ला क्या खूब आधुनिक ब्लाउज हैं, पीठ पर मात्र दो इंच की पट्टी । क्या ये डिजाईन भी पश्चिम से आई है ? फिर पश्चिम का दोष क्यूँ ?

गन्दगी लोगों के दिमाग में होती है। जिसके पास संस्कार है , वो कोई भी परिधान पहने , शोभनीय और अशोभनीय का ख़याल हमेशा रखता ही है। जिसके पास संस्कार ही न हो अथवा लज्जा ही न हो तो उससे क्या उम्मीद रखना । लेकिन फिल्म जगत की अभद्रता की सजा आम स्त्री को उपरोक्त जुमले से नहीं मिलनी चाहिए।

आभार

Thursday, May 19, 2011

देश की दूसरी महिला प्रधानमंत्री - एक हिंदी ब्लॉगर.

कभी सोचा है आपने की 'हिंदी' भाषा किसी को प्रधानमन्त्री भी बना सकती है ? नहीं सुना न ? तो अब जान लीजिये कैसे मैं प्रधानमन्त्री बनी अपनी राष्ट्र भाषा हिंदी के कारण

एक दिन फोन की घंटी बज रही , हम ब्लौग लिख रहे थे , खैर भागकर फोन उठाया तो पता चला प्रधानमन्त्री मोहना का फोन था। बोले- "दिव्या busy हो क्या , कुछ ज़रूरी मुद्दों पर तुम्हारी राय लेनी थी ?" मैंने कहा - "नहीं, busy नहीं हूँ , आपके किसी काम सकूँ , ये तो सौभाग्य है , कहिये , क्या समस्या है ? "

मोहना - "आजकल ओबामा का बहुत नाम हो रहा है , कुछ बताओ की मैं क्या करूँ ताकि मेरी भी कुछ नाम हो विश्व स्तर पर "

दिव्या - " Sir, listen to your heart "

मोहना- कैसे सुनूँ अपनी , तुम तो जानती हो सोनिया जी की बात भी रखनी पड़ती है।

दिव्या- Sir , एक काम कीजिये, आप सोनिया जी को प्रधानमन्त्री बना दीजिये फिर बन्दूक उनके कंधे पर रखकर....

मोहना - वाह ! ग्रेट आईडिया !

तभी राहुल बाबा गए , बोले -

राहुल - आपकी बातें सुनीं , आप तो जबरदस्त रणनीतिज्ञ हो । "Will you marry me ?"

दिव्या - Sorry Sir , I am already taken । Beauty with brains की डिमांड ज्यादा रहती है और वे शीघ्र ही विवाह करके settle हो जाती हैं

राहुल- इतना घमंडी हो तुम !

दिव्या- अब इसमें घमंड की क्या बात है , जो सच है वो कह दिया आप क्या उम्मीद कर रहे थे की मैं कहूँगी - "कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली ".........ना भाई न , इतना underestimate नहीं कर सकती स्वयं को वैसे आप उदास हों , आपके लिए कोई कोई सरल , सुशीला ढूंढ ही दूँगी।

राहुल बाबा कुछ आश्वस्त दिखे , चिंतामग्न होकर बोले - "दिव्या कोई रास्ता बताओ , माया बहन को सबक सिखाने का ---मैं अपनी राजनीति की शुरुवात उत्तर प्रदेश से ही करना चाहता हूँ"

दिव्या- आप तो बिलकुल सही दिशा में चल रहे हैं बस लगे रहिये। अभी UP police ने जो नर संहार किया है , उसके भंडाफोड़ में आपके बयान अनमोल हैं आपने गरीबों और प्रधानमन्त्री के मध्य वार्तालाप कराकर एक सेतु का काम किया है। आप बधाई के पात्र हैं लगे रहिये !! बस बचे रहिएगा कुछ कांग्रसी मानसिकता के संक्रमण से। वैसे हर प्रकार की आपदा से एक पुरुष को उसकी पत्नी ही बचाती है , इसलिए विवाह कर लीजिये समय रहते।

बहू की बात सुनते ही सोनिया जी भी गयीं। बेटे के हाथ से फोन छीन लिया ,बोलीं- " दिव्या आज बहुत बात करने का मन है तुमसे , कभी चैन के दो पल भी नहीं मिले मुझे ...कुछ बताओ मन को सुकून कैसे मिले "

दिव्या- देखिये सोनिया जी , मन को सुकून सिर्फ देश भक्ति करने से ही मिलता है और वो आपने किया नहीं कभी।

सोनिया - क्या बात करती हो तुम ! मैं तो इतने वर्षों से भारतीय राजनीति में हूँ, महिलाओं के ३३ % आरक्षण के भी हक में हूँ मोहना को अपनी कीमती राय भी समय समय पर देती रहती हूँ , और तुम कह रही हो....

दिव्या- आपने राजनीति की है , देशभक्ति नहीं होश संभालते ही तो आप विदेशी धरती पर गयीं अपने देश की मिटटी की सोंधी खुशबू क्या होती है , ये तो आपने जाना ही नहीं आपका बचपन, सखियाँ सहेलियां ....क्या आपको याद नहीं आती इन सबकी ?...

सोनिया जी नोस्टालजिक हो गयीं , उनकी आखों के कोरों से दो अश्रु की बूँदें टपक पड़ीं॥

थोडा संयत होकर बोलीं - अब क्या करूँ , इधर मोहना ने मुझे प्रधानमन्त्री बना दिया है तुम्हारे कहने पर , अब इतना बड़ा दायित्व छोड़कर जाऊं कैसे ?

दिव्या- चिंता कीजिये , प्रधानमंत्री पद के लिए 'मोदी' से बेहतर कोई ना मिलेगा। फ़ौरन उन्हें सौंप दीजिये देश अच्छा चलायेंगे वे।

सोनिया- नहीं मोदी नहीं , मेरे वोटर नाराज़ हो जायेंगे। और फिर उनके खिलाफ भी सीडी वगैरह तैयार रखी होगी। इसलिए उनके प्रधानमंत्री बनते ही , वे जांचों के घेरे में जायेंगे। एक काम करो , तुम ही प्रधानमंत्री बन जाओ तुम्हें कोई जानता भी नहीं है , इसलिए तुमसे कोई ईर्ष्या द्वेष भी नहीं रखेगा। और फिर तुम तो हिंदी ब्लॉगर हो , इसलिए 'हिंदी' द्वारा दो अरब जनता को एक सूत्र में बाँध भी सकोगी। अब मैं कुछ दिनों के लिए इटली जाती हूँ। वहीँ खाऊँगी 'इटालियन पिज्जा '

क्या करती , सोनिया जी की बात नहीं टाल सकी और मैंने अंततोगत्वा शपथ ले ली प्रधानमन्त्री पद की

प्रधानमन्त्री दिव्या -

अब आया ऊँट पहाड़ के नीचे इतने सारे मुद्दे और एक अकेली जान खैर , जो भी हो मैदान छोड़ का भाग तो नहीं सकती थी न।

शपथ लिए अभी दो दिन ही हुए थे की विरोधी अपना सर उठाने लगे। दिग्गी जी बोले - " दिव्या अपनी चल-अचल संपत्ति का उल्लेख करें " ....खैर मेरी निजी संपत्ति के नाम एक पुराना लैपटॉप मिला जो अक्सर हैंग हो जाता है।

अभी दिग्गी जी से निजात मिली ही थी की , डॉ अमर, आमरण अनशन पर बैठ गए- काला धन वापस लाओ नहीं तो दिव्या इस्तीफ़ा दें।

क्या करती ...ये हीरो बनें , इससे तो बेहतर था की मैं ही काला धन वापस मंगाकर लोगों के दिलों में राज करती। खैर हिम्मत करके काला धन बटोरने वालों की सूची जारी कर दी। लोग इतने प्रसन्न हुए की उन्होंने मेरा नाम उस सूची में होने के बावजूद मुझे ह्रदय से लगा लिया।

फिर क्या था , मुझमें भी जोश और हिम्मत , zeal ,वापस गयी --
  • सबसे पहले कसाब को पाकिस्तान भिजवाया
  • फिर घोटालेबाजों की संपत्ति को नीलाम करके उन्हें जेल भिजवाया
  • भारत और चढ़ाई करने वाले मुल्कों के मध्य चीन की दीवार से भी लम्बी दीवार के लिए निर्माण शुरू करवा दिया।
  • प्रत्येक जिले में आधुनिक चिक्तिसा सुविधाओं से युक्त अस्पताल और भव्य स्कूल का निर्माण शुरू ...
  • सभी बेरोजगार को रोजगार मिला man power कम पड़ने की स्थिति में अमेरिका से सस्ते लेबर को मंगवाया गया
  • देश से निकलने वाले टनों इलेक्ट्रोनिक कचरे को अमेरिका भेजा जाएगा recycle होने के लिए।
  • किसानों को खाद , बीज और कृषि सबंधी सभी सुविधाएं मुफ्त मुहैय्या। सूखे अथवा किसी भी प्रकार की प्राकृतिक आपदा की स्थिति में , किसानों के भरण-पोषण की जिम्मेदारी सरकार की होगी।
  • महिलाओं को harass करने वालों को पांच साल की बामशक्कत कैद।
  • पत्नी पर घरेलु हिंसा करने वाले पतियों को नौकरी से छुट्टी दिलाकर घर में बर्तन और झाड़ू-पोंछा करवाया जाएगा और पत्नी को नौकरी दी जायेगी।
  • लिस्ट जारी है ....

दिव्या के भ्रष्टाचार विरोधी मंत्री मंडल के सदस्य -

निर्मला कपिला जी ,
शोभना चौरे जी ,
अजित गुप्ता जी ,
राजेश कुमारी जी ,
एवं किरण बेदी जी

अब ज्यादा शोर मचाने की ज़रुरत नहीं की पुरुषों को मंत्री मंडल में क्यूँ नहीं शामिल किया गया। अरे भाई विरोधी दल जितना तगड़ा होगा , सरकार चलाने में उतने ही tough challenges आयेंगे। तभी हम अपना बेस्ट दे सकेंगे और कोशिश करेंगे की हमारा देश हर क्षेत्र में अग्रणी रहे इसलिए पुरुषों को अपने सशक्त विरोधी दल में रखा है। उम्मीद है opposition वाले सहयोग करेंगे।

विजयी विश्व तिरंगा प्यारा
झंडा ऊंचा रहे हमारा

जय हिंद !

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Monday, May 16, 2011

विपक्ष में बैठना आसान है , लेकिन सरकार चलाना भी उतना ही आसान है क्या ?

दीदी और अम्मा [ममता बैनर्जी और जयललिता ] , की जीत एक हर्ष का विषय है। देश के चार राज्यों में महिला मुख्य मंत्री और देश प्रमुख भी एक महिला निसंदेह स्त्री सशक्तिकरण की अभूतपूर्व मिसाल है ये संयोग।

ममता जी की मैं स्वयं भी बहुत बड़ी प्रशंसक हूँ सादगी से भरा उनका देश को समर्पित एक जीवन। बिना दिखावे की जिंदगी। सस्ती सी ढाई सौ रूपए की साडी और १०० रूपए की हवाई चप्पल काँधे पर लटका खादी का झोला। भारत की एक ममतामई तस्वीर है ममता दीदी। सस्ते से मकान में एक आम इंसान की तरह रहना और आम जनता के सरोकार से पूरी तरह जुडी होना।

ममता जी ने अपने राज्य के लिए निसंदेह अब तक बहुत कुछ किया है जिस भी मुद्दे के खिलाफ आवाज़ उठायी उसमें जीत हासिल करके ही दम लिया। इससे सिद्ध होता है की वे एक काबिल मुख्य मंत्री हैं। लेकिन इसके आगे भी तो सोचना चाहिए। सिर्फ राज्य तक ही सीमित क्यूँ हैं ? देश के बारे में कोई क्यूँ नहीं सोचता ?

इसी तरह अन्य राज्य के मुख्य मंत्रियों में भी वही बात देखने को मिलती है। चाहे मायावती हों , चाहे शीला जी , जयललिता , नितीश कुमार हों या फिर मोदी सभी अपने-अपने राज्य के बारे में ही सोचते हैं केवल। इसके ऊपर उठना चाहते हैं , ही सोचना

विपक्ष में बैठकर , हर मुद्दे पर हो-हल्ला करना तो बहुत सरल है लेकिन किसी को भी कभी गभीरता से विचार करते नहीं पाया, देश हित में बस अपनी-अपनी कुर्सी और अपना अपना राज्य

क्या आपको नहीं लगता की इन मुख्यमंत्रियों को अपने राज्य की सीमा-रेखाओं से बाहर निकलकर , अन्य राज्यों के प्रति भी निर्मल दृष्टि रखनी चाहिए। यदि ये शक्तियां एक जुट हो जाएँ तो क्या भारत एक अति शक्तिशाली और समृद्ध देश नहीं बन जाएगा ?

आभार

'ZEAL' ब्लॉग का उद्देश्य - [शब्दों में ढले जिंदगी के अनुभव]

ZEAL , एक अंग्रेजी का शब्द है , जिसका अर्थ है - उमंग , उत्साह , जोश , enthusiasm

कहते हैं , नाम का बहुत असर होता है व्यक्तित्व पर इसलिए परेशानी के दौर से गुज़रते हुए सन २००५ में जब मन को 'उत्साह' की बहुत ज़रुरत हुयी तो अपना नाम 'ZEAL' रख लिया। ताकि जीवन में उत्साह बना रहे। आज बहुत से लोग मुझे 'ZEAL' ही पुकारते हैं मुझे ये नाम उतना ही प्रिय है जितना 'दिव्या'

सन २०१० में अपना ब्लॉग बनाते समय प्रश्न उपस्थित हुआ की ब्लॉग का नाम क्या रखूं फिर लगा की मेरे ब्लॉग का नाम भी 'ZEAL' ही होना चाहिए। तो ऐसे हुआ ZEAL ब्लॉग का जन्म।

मेरा परिचय -

मेरा परिचय सिर्फ एक शब्द में ही है , क्यूंकि मैं स्वयं को बहुत मज़बूत देखना चाहती हूँ। जब तक मैं स्वयं को इतना मज़बूत नहीं बना सकूँगी तब तक समाज में मेरी महिला बहनों को , मेरे द्वारा लिखे गए नारी सशक्तिकरण के लेखों द्वारा सदेश पूरी तरह नहीं संप्रेषित हो सकेगा। इसलिए इस संक्षिप्त परिचय [IRON] की बहुत आवश्यकता समझी। ये परिचय मुझे सदा ये याद दिलाता रहता है की मुझे हर परिस्थिति में 'लोहे' की तरह मज़बूत ही रहना है। कुछ लोगों को मेरा परिचय शायद offend भी करता हो , लेकिन मेरी बहुत सी महिला मित्रों को ये पसंद भी बहुत है

ब्लॉग का उद्देश्य -

चाणक्य ने कहा है , किसी भी कार्य को करने के पूर्व बहुत बार सोचना चाहिए की क्यूँ कर रहे हैं हम ये कार्य तो मैंने भी सोचा -क्यूँ ?

  • इधर-उधर निरर्थक गोष्ठी और प्रपंच करने से अच्छा है अपनी ऊर्जा और समय का सकारात्मक उपयोग किया जाए।
  • दूसरों के अनुभवों और लेखन से बहुत कुछ सीखा है तो क्यूँ न समाज को कुछ दूँ जिससे उनका भी लाभ हो और मेरा ऋण भी उतरे।
  • जो आस पास के परिवेश में , देश में , समाज में जो घटता है , उसपर मंथन के फलस्वरूप एक विकल्प के साथ ज्यादातर लेख लिखती हूँ।
  • मनोवैज्ञानिक विषयों पर लिखना बहुत अच्छा लगता है। व्यक्ति के स्वभाव का , उसके शब्दों का , उसकी प्रतिक्रियाओं का , उसके मंतव्यों का , उसकी इच्छाओं का , उसकी उलझनों का , उसके दुखों का ,उसकी परिस्थितियों का , उसकी मानसिक अवस्था का एवं उसके संघर्षों का बहुत गहराई से अध्ययन करती हूँ फिर यथासंभव एक विकल्प के साथ लेख लिखने का प्रयास करती हूँ।
  • मेरे ज्यादातर लेखों में मेरे निजी अनुभव शामिल होते हैं।
  • कोशिश करती हूँ कुछ अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर देने का, इन्हीं मनोवैज्ञानिक लेखों द्वारा।

ब्लॉग के विषय जिन पर लेख लिखे अभी तक-
  • चिकित्सा
  • प्रेम
  • ईश्वर
  • धर्म
  • विज्ञानं
  • राजनीति
  • स्त्री सशक्तिकरण
  • पुरुषों का सम्मान
  • अनुकरणीय व्यक्तित्व
  • बच्चों के लिए
  • वृद्धों के लिए
  • अध्यात्म
  • आत्मा, पुनर्जन्म
  • न्याय व्यवस्था
  • संस्कृति एवं संस्कार
  • समाज की विसंगतियां
  • कुछ चर्चाएँ एवं विमर्श
  • निर्मल हास्य
  • रिश्ते
  • कवितायें

ब्लॉग के सहयोगकर्ता--
माँ सरस्वती की कृपा , बड़ों का आशीर्वाद और कुछ अपनों का प्यार

आभार ,
दिव्या


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