नज़ाकत और नफासत की नगरी लखनऊ में हुए ब्लॉगर सम्मान पर असंख्य पोस्टें आ चुकी हैं अब तक ! मैंने तटस्थ रहने की बहुत कोशिश की लेकिन डॉ शास्त्री की पोस्ट आज पढने के बाद बेहद दुःख हुआ इसलिए तटस्थ रहना एक गुनाह समझा और अपने मन में आये विचारों को शब्द देना ज़रूरी समझा !
कहते हैं कि -"मुस्कुराईये की आप लखनऊ में हैं "--लेकिन ये क्या , नवाबों के शहर से लौटे अधिकाँश ब्लॉगर्स के चेहरे से मुस्कान मानो उड़नछू हो गयी हो !
आखिर ऐसा क्यों हुआ ?
सबसे पहले तो आयोजकों के अथक प्रयास के लिए अनेकों बधाईयाँ ! उसके बाद सभी सम्मानित लेखक और लेखिकाओं को ढेरों बधाई एवं शुभकामनाएं !
मेरे विचार से किसी भी प्रकार का ब्लॉगर सम्मलेन हो , ब्लॉगर्स को सबसे ज्यादा उत्सुकता एक दुसरे से मिलने और परिचय प्राप्त करने कि होती है , लेकिन जैसा कि मैंने जाना और पढ़ा , दूर-दराज़ से आये ज्यादातर ब्लॉगर बिना किसी परिचय के ही लौट गए , जिससे उनमें काफी निराशा देखने को मिली !
अतिथि देवो भव-- सबसे पहला कार्य तो आने वाले प्रत्येक ब्लॉगर को यथोचित सम्मान के साथ वार्म-वेलकम दिया जाना चाहिए था ताकि लौटने के बाद ब्लॉगर कि स्मृति में वो सुखद यादगार हमेशा बनी रहे !
डॉ रूपचन्द्र शास्त्री जी के आलेख पर जो पढ़ा वह अत्यंत खेदजनक है ! एक वरिष्ठ ब्लॉगर अपमानित और ठगा सा महसूस करे यह हम सभी कनिष्ठ ब्लॉगर्स के लिए दुर्भाग्य कि बात है ! डॉ शास्त्री को समुचित सम्मान मिलना चाहिए था !
डॉ पवन मिश्र, कानपुर जी ने कुछ प्रश्न पूछे जो बेहद विनम्रता से पूछे गए थे , उसका उत्तर भी विनम्रता से दिया जाना चाहिए था , लेकिन अफ़सोस कि ऐसा नहीं हुआ ! आपस में ही एक दुसरे पर कानूनी कार्यवाई किये जाने कि धमकी कुछ अशोभनीय एवं खेदजनक लगी !
मंगलायतन पर मनोज जी ने , पवन जी को जो उत्तर दिए वे बहुत कटुता से भरे हुए थे ! यही वही उत्तर थोड़ी मिठास लिए हुए होते तो ब्लॉगर्स कि गरिमा बढती !
वो कहते हैं न कि -"फल आने पर डालियाँ विनम्रता से झुक जाती हैं "
महेंद्र श्रीवास्तव जी के आलेख से शत प्रतिशत सहमत हूँ ! उस पर आई टिपण्णी और प्रति टिप्पणियां भी सार्थक लगीं, बस एक ही बात खेद जनक लगी कि ज्यादातर टिप्पणीकारों ने महेंद्र जी के शिखा का नाम लिखने पर आपत्ति जताई , जो अनुचित लगी मुझे !
महेंद्र जी कि आपत्ति जायज़ है ! मंच पर आसीन शिखा हो अथवा वहां आसीन कोई अन्य कनिष्ठ ब्लॉगर, उसे शिष्टाचारवश अपने से वरिष्ठ ब्लॉगर को सम्मान देना चाहिए था ! मंच पर अपनी कुर्सी छोड़कर अपने से बड़े को आदर देने से कोई छोटा नहीं हो जाता ! यदि आयोजक से कोई भूल-चूक हो भी रही थी तो वह उपस्थित अन्य सम्मानित समूह अपने बडप्पन का परिचय दे सकता था !
आयोजक ने भले ही ब्लॉगर्स का सम्मान किया हो , लेकिन आयोजक समूह का सम्मान तो वहां शिरकत करने वाले सभी अतिथि ब्लॉगर्स के आगमन से ही हुआ ! अतः कोई भी आयोजन हो आयोजक को सम्मलेन में आने वाले प्रत्येक अतिथि का पूरे मनोयोग से स्वागत-सत्कार करना चाहिए , ताकि वे मधुर-स्मृतियाँ संजो सकें !
किसी भी आयोजन में सबसे अहम् होता है -- आयोजन का खर्चा ! इसके लिए यदि आयोजक इसका पूरा खर्चा नहीं वहन कर सकता तो उसे एक छोटी धन-राशि सभी आमंत्रित सदस्यों से लेनी चाहिए थी, ताकि किसी को भी खाने-पीने और ठहरने कि असुविधा नहीं होती ! सभी एक दुसरे से मिल-बैठकर परिचय प्राप्त कर सकते थे और नए सम्बन्ध बनते , जिससे आपसी मृदुता बढती ! और आयोजन कि सार्थकता द्विगुणित हो जाती !
कुछ आलेखों पर रश्मि प्रभा जी की अति निंदा की गयी है , जो अनुचित लगी !
अनावश्यक रूप से किसी को बदनाम करना बहुत गलत है ! यदि वे कार्यक्रम में
उपस्थित न हो सकीं तो उसके बहुत से कारण हो सकते हैं ! हो सकता है वे
अस्वस्थ रही हों ! किसी की उपस्थिति पर प्रश्न-चिन्ह लगाना अशिष्ट लगा !
अन्य कई आलेखों में चित्रों द्वारा इस आयोजन कि झलकियाँ अत्यंत मोहक लगीं !
पुनः आयोजक समूह, सम्मानित लेखक , लेखिकाओं एवं वहां उपस्थित सभी मित्र ब्लॉगर्स को ढेरो बधाई एवं शुभकामनाएं !
बस ध्यान रहे -- "भूल से भी कोई भूल हो ना"
Zeal