Friday, September 28, 2012

नरपिशाच हैं ये दोनों

राजेश और बेबी  नामक दो नरपिशाचों ने आपस में विवाह कर लिया ,  फिर छः वर्ष तक बच्चा  न होने पर अपने रिश्तेदार की छः वर्षीय बेटी शिवानी को गोद ले लिया ! जिस दिन से गोद लिया उसे मारना पीटना  शुरू कर दिया ! निर्वस्त्र करके उस पर रोज़ ठंडा पानी डालना, घर  में  कैद करके उससे नौकरों वाला काम लेना , पिटाई  से उसके कान का पर्दा फट गया तो इलाज नहीं कराया ! इतने पर भी जब इन दोनों की हैवानियत  शांत नहीं हुयी तो उस बच्ची को दीवार पर मार-मार कर मार डाला ! तीन ह्रदयविदारक चीखों के साथ वह बच्ची हमेशा के लिए शांत हो गयी !

दिल  दहला देने वाली आवाजों को रोज़ सुनने के बाद भी असंवेदनशील पड़ोसियों ने कभी उन नरपिशाचों की रिपोर्ट नहीं की थाने में ! बच सकती  थी उसकी ज़िन्दगी !

कभी आप अपने इर्द-गिर्द ऐसा होते देखें तो चुप न रहे।  आगे बढ़कर बचा लें एक ज़िन्दगी को।

Wednesday, September 26, 2012

'हिंदी ब्लॉग जगत ' -- एग्रीगेटर , कपिल सिब्बल का है !

"हिन्दिब्लौग्जगत"  नामक एग्रीगेटर कपिल सब्बलों का है जो अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता से घबराकर कभी फेसबुक बंद कराने की धमकी देते हैं तो कभी कुछ !

पूर्व में भी इन्होने मेरी किसी बात से चिढ़कर , मेरा ब्लौग  'ZEAL' अपने एग्रीगेटर पर BLOCK कर  दिया था , लेकिन बाद में माफ़ी मांगते हुए पुनः जोड़ दिया था !

अब इन्होने पुनः किसी बात से नाराज़ होकर , दुबारा मेरा ब्लौग , BLOCK  कर दिया है !

ये न तो कारण बताते हैं , ना ही मेल लिखकर पूछने पर जवाब देते हैं ! बस सर  कलम कर देते हैं तत्काल , अपनी सत्ता का एहसास दिलाने के लिए !

मैं समझती थी ब्लॉग एग्रिगेटर्स निष्पक्ष होते हैं और ये हमसे हमारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं छीनेंगे ! लेकिन नहीं अब ये पता चल चुका है की "हिन्दिब्लौग्जगत" नामक एग्रीगेटर निष्पक्ष नहीं है!

उम्मीद है बाकी एग्रीगेटर्स निष्पक्षता बनाये रखेंगे ! अन्यथा बिकी हुयी  मीडिया पर से तो लोगों का भरोसा उठ ही चुका  है , इन पर से भी उठ जाएगा !

एग्रीगेटर्स यदि ईमानदार नहीं हो सकते तो इन्हें एग्रीगेटर्स चलाने का भी कोई हक नहीं है !

कोई हो न हो , लेकिन  ईश्वर और आपका खुद का ईमान गवाह रहता है आपके बिके हुए ज़मीर का !

Tuesday, September 25, 2012

हे भद्र पुरुषों..

हे भद्र पुरुषों , किसी स्त्री को इतना भी ना चाहो की मंथरा की पहचान ही न कर सको !  और हे भारत की नारियों , किसी पुरुष को कभी भी गांधारी बन कर ना पूजो ! तुम दोनों ही अपना अस्तित्व बचा कर रखो !

बॉस की पत्नी हैं आप, बॉस नहीं ..

महिलाओं की एक बहुत बड़ी अज्ञानता है की वे अपने पति को अपनी पहचान समझती हैं !  प्रधानमन्त्री की पत्नी का नाम भी कोई नहीं जानता लेकिन वे खुद को किसी प्रधानमंत्री से कम नहीं समझतीं!

उसी प्रकार कॉरपोरेट जगत में जो पुरुष जिस ओहदे पर है उसकी पत्नी खुद को भी यूनिट हेड , मैनुफैक्चरिंग हेड अथवा विभागाध्यक्ष समझने लगती हैं !

गलत है ये रवैय्या ! आपको सम्मान निश्चय ही आपके पति के ओहदे के अनुसार मिलेगा , लेकिन इसका ये अर्थ नहीं की आप गुमान में ही डूबी रहे और तानाशाहों की तरह बर्ताव करें !

हो सके तो अपना बर्ताव सही रखें ! आपके पति का ओहदा उसकी पहचान है , आपकी नहीं  ! आपको सम्मान सामाजिक शिष्टाचार के नाते मिल रहा है , शेष आपकी शालीनता और विनम्रता के कारण ही मिलेगा !

आपकी पहचान आपकी खुद की योग्यता है ! अपने पति के ओहदे से अपना दिमाग मत चढ़ा के रखिये !

Monday, September 24, 2012

अकेला आगमन, अकेला प्रयाण ..


जो आज है वो कल नहीं रहेगा ! अच्छा या बुरा, बदल जाएगा सब कुछ! चेहरा भी , विचार भी , मान्यताएं भी ! क्योंकि समय बदल रहा है , उसके साथ हमारा बदल जाना भी स्वाभाविक है !  यदि हम बदलेंगे नहीं और समय के साथ खुद को अनुकूलित नहीं करेंगे तो प्रकृति द्वारा असमय ही विनाश होना तय है !  लेकिन विकट और विरोधी परिस्थितियों में अपनी सुरक्षा का इंतज़ाम स्वयं ही करना होता है ! संगदिल ज़माने से अपेक्षा करना की वो आपकी सच्चाई को समझेगा , ये आपकी मूर्खता ही होगी !

अकेले ही आगमन  होता है इस पृथ्वी रुपी रंगमंच पर और अकेले ही प्रयाण करना पड़ता है ! न कोई साथ आता है न कोई साथ जाता है !

इसलिए एकला चलो रे ....

 दुःख कम होगा  !


घोटालों का पेड़

घोटालों का पेड़ सिर्फ कांग्रेस के ही पास है जिसपर कभी थोरियम, कभी कोयला , कभी 2G का अम्बार लगता रहता है , पैसा झरता है और दनादन स्विस खातों में जमा होता रहता है और हमारे  प्रधानमन्त्री जी कहते हैं की पैसे पेड़ पर नहीं लगते ! अरे सारी दुनिया यही समझती थी की पैसे पेड़ पर नहीं लगते हैं , लेकिन कांग्रेस की कारगुजारियों के बाद अब तो यकीन हो गया है कांग्रेस के पास पैसे उगलने वाले घोटालों का पेड़ है !

Sunday, September 23, 2012

विधुर-विलाप

सब नहीं , केवल पौरुष-विहीन पुरुषों में , सशक्त होती नारी के कारण जो असुरक्षा की भावना बढ़ रही है , उसके कारण वे आर्त क्रंदन करने को मजबूर हो रहे हैं ! उनके कातर-प्रलाप और रूंदन  से जहाँ धरती और आकाश भीग रहे हैं वहीँ सशक्त नारी की हुंकार से उठती टंकार द्वारा समस्त चराचर जगत और चारों दिशायें गुंजायेमान हो रही हैं !

पति को , देवर को , सास को मार गयी
फिर पूरे भारत को चट से डकार गयी
रेफरी बनी खड़ी है केंद्र में घेरे के ,
चाटुकार खिलाड़ी हैं चारों तरफ खेमे में
जोर से बजाती है सीटी जब उचक के
एक नया घोटाला आता है चमक के
शर्म का जो पानी था, कोरों पे टिका हुआ
कोयले की राख ने उसको भी सुखा लिया
कौन से नछत्र लिए आई थी धरा पे तुम,
कालसर्प योग कब जाएगा भारत का ?

उपरोक्त कविता पर जहाँ राष्ट्रवादियों ने इसकी भूरी-भूरी सराहना की वहीँ समाज के अनेक ठेकेदारों का विधुर-विलाप भी देखने को मिले ! उनके रूंदन की ध्वनि बढाने विभिन्न प्रान्तों से पुरुष-रुदालियों का एक बड़ा समूह  भी आया ! विधुर -विलाप करने वालों ने नारीवादियों को ललकार कर उनसे भी विलाप करने का निवेदन किया , लेकिन जब जागरूक नारियों ने अनावश्यक प्रलाप/विलाप करने इनकार किया तो इन पुरुष-रुदालियों ने इनको भी अपशब्द कहकर अपमानित किया !   फिर क्या था इनके सरगना ने हमारे प्रधानमन्त्री की तरह आदेश जारी किया की - 'अपशब्दों की न्यायिक जांच कराई जाए शब्दकोष से" .....

विद्वानों ने शब्दकोष खंगाल डाले....खैर मेरे जैसे आम लोगों ने शब्दकोष पर मगजमारी करने से ज्यादा रोचक इन पुरुष-रुदालियों के लिए उपयुक्त शब्दावली ढूँढने का प्रत्न किया तो पाया की इनके कातर-प्रलाप के लिए, 'विधुर-विलाप' शब्द ही ज्यादा उपयुक्त है ! क्योंकि ये लोग अपना स्वाभिमान बेचकर कविता में निहित नारी  के चरणों में बैठकर , देश के साथ गद्दारी ही कर सकते हैं  और जब उस नारी पर आक्रमण होता है तो इनका विधुर-विलाप शुरू हो जाता है !

पाठकों को विधुर-विलाप का अर्थ शब्कोष में तलाशना न पड़े उसके लिए इसका अर्थ नीचे दे रही हूँ--


वन्दे मातरम् !

Saturday, September 22, 2012

लेखन के लिए बस जूनून चाहिए ....

बहुतों के मुंह से सुना की ब्लॉगिंग का मज़ा तो बस टिप्पणियों से है , इससे लेखक का उत्साह बना रहता है  ! 

बिलकुल गलत है ये धारणा ! अरे जनाब एक से एक टिप्पणियां आती हैं जो खून पी जाती हैं ! अतः ये कहना की टिप्पणियां उत्साह बढाती हैं एकदम गलत बात है ! 

कुछ लोगों की फितरत ही होती है की काट खाते हैं टिप्पणियों में !

अपनी तो एक ही आदत है , बिंदास लिखो , जिसको काटेगा वो अगले स्टेशन जाएगा ! लेकिन भईया विवादों के चक्रव्यूह में पडना अपने बस का नहीं है , बहुत होमवर्क करनी पड़ती है !

सच्चा लेखक वही है जिसके अन्दर जूनून है, जज्बा है ...और जिसके पास कोई उद्देश्य है !   लिखने की ऊर्जा और हौसला तो अन्दर से आता है ! प्रेरणा स्रोत तो आपके अन्दर का जूनून ही है ! अगर जूनून नहीं है तो लेखन व्यर्थ है ! अगर लेखन दिशाहीन है तो भी व्यर्थ है ! अगर आपका लेखन दूसरों की प्रशंसा किये जाने पर निर्भर है तो भी आपका लेखन व्यर्थ है !

दिल की ही सुना जाता है और दिल से ही लिखा जाता है !

हम लिखते हैं अपने विचारों को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाने के लिए !  हमें पढने वाले  पाठकों की संख्या  ही हमारे लेखन की सच्ची सफलता है ! भले ही कोई टिपण्णी लिखे या न लिखे !

टिपण्णी तो बस एक सामाजिक रस्मो-रिवाज़ बन कर रह गयी है --एक हाथ से दे, एक ही हाथ से ले, गलती से भी दो हाथ न होने पाए !

कुछ दशक पूर्व तक जब मुंशी प्रेमचंद्र, दिनकर, मथिलीशरण गुप्त , बिस्मिल , बच्चन और प्रसाद का लेखन था तो कौन था वहाँ टिपण्णी लिखने वाला ?  कौन सी टिपण्णी उन्हें ऊर्जा देती थी ?

ऊर्जा , प्रेरणा, जूनून सब अन्दर से आता है !

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आप मुझे पढ़ा उसके लिए आपका आभार ! टिपण्णी अगले स्टेशन पर कर दीजियेगा !
मुस्कुराईये की आप  'ZEAL' ब्लॉग पर हैं !

विरोध करो, मज़ाक नहीं

विनय न मानत जलधि जड़, गए तीन दिन बीत ,
बोले राम सकोप तब, भय बिनु होए ना प्रीत

अपनी बात पूरी इमानदारी से रखनी चाहिए , शब्दों का चुनाव सही होना चाहिए और उसमें पर्याप्त मात्रा में तीव्रता भी होनी चाहिए ताकि ठस दिमाग वालों के दिमाग की परतें भेद सकें और उन्हें समझ भी आये ! लेकिन अगर  तीन बार कहने से भी किसी को समझ न आये तो उसे उसका स्थान बता देना चाहिए ! (सीढ़ी ऊँगली से घी नहीं निकलता अक्सर)

समुद्र को श्रीराम का अनुनय-विनय समझ नहीं आया जब तो अति विनम्र मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के कोप करने पर समुद्र को ये समझ आ गया की उचित क्या है और क्या करना है ! 

विभीषण ने अहंकार में डूबे अपने भाई को  उचित-अनुचित समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन अहंकारियों को विवेकपूर्ण तर्क और शालीन विरोध समझ कब आता है भला ? वे तो अपने दंभ में चूर होकर समझाने वाले का अपमान ही करते हैं ! अंत में अहंकारियों का त्याग ही एकमात्र विकल्प बचता है !

जब सज्जन और सत्चरित्र लोग दुर्जनों का साथ छोड़ देते हैं तो दुर्जनों का विनाश स्वतः ही बेहद अल्प काल में ही हो जाता है ! और जो लोग दुर्जनों का साथ नहीं त्यागते वे  गलत संगती के कारण अपने विनाश का कारण स्वयं बंनते हैं !

डाक्टर भी यदि एक दवा से इलाज न हो रहा हो तो दवा बदल देते हैं  और मरीज भी लाभ न होने की अवस्था में डाक्टर समेत पद्धति बदल देते हैं !

कांग्रेस  का अनेक मुद्दों जैसे मुस्लिम तुष्टिकरण, दलित तुष्टिकरण, अप्ल्संख्यक आरक्षण,  कोयला थोरियम घोटाला, काला घन, FDI , आदि का विरोध करने पर भी कोई लाभ ना आने पर , देश-हित में इस पार्टी का पूर्णतया बहिष्कार की एकमात्र विकल्प बचता है !

कसाब जैसे स्थापित आतंकवादियों जिसने १९९ क़त्ल किये , उसका विरोध नहीं उसका इहलीला समाप्त की जानी चाहिए तत्काल से ! ऐसे घिनौने लोगों के लिए सुप्रीम कोर्ट का विकल्प नहीं होना चाहिए ! लेकिन अफ़सोस कुछ गद्दार इसे पालते-पोसते हैं , केवल राजनीति करने के उद्देश्य से ! तत्काल सज़ा ही समाधान है इसका ! लंबा मत खींचो ! सज़ा दो , न्याय करो ! क्योंकि ऐसी दुर्बुद्धि लोग जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद करते हैं , अतः इनके सामने प्रेम की थाली मत पोसो ! ये प्रेम और विनम्रता के हक़दार नहीं !

जो attention seeker होते हैं वे आपका ध्यानाकर्षण करने के लिए अश्लील गालियों और विवाद का सहारा लेते हैं ! इन विवादों का हिस्सा बनकर आप इनके अहंकार को पोषित ही करते हैं ! अश्लीलता और फूहड़पन  करने वालों से विमर्श नहीं , बहिष्कार करना चाहिए , अन्यथा इसे आपकी एक कमजोरी ही समझा जाएगा ! कहीं न कहीं आप भी उस अश्लीलता का रसास्वादन कर रहे होते हैं !  ऐसे असामाजिक तत्वों के साथ आपकी मित्रता आपको संशय के घेरे में खड़ा कर देती है ! अतः सावधान रहे !

विरोध का समाधान यदि दो बार समझाने से न आये तो असामाजिक तत्वों का बहिष्कार और त्याग कर देना चाहिए , इससे ये शक्तिविहीन हो जाते हैं और पृथ्वी पर गन्दगी कुछ कम हो जाती है !

किसी भी प्रकार का त्याग हो, त्याग करने लिए बहुत बड़ी इच्छा शक्ति की ज़रुरत होती है ! विरले ही कर पाते हैं ऐसा! 


Thursday, September 20, 2012

निर्णायक की कुर्सी पूर्वाग्रहों से मुक्त कर सकेगी क्या ?


यदि कोई आयोजन हो , अथवा प्रतियोगिता , बिना किसी निर्णायक मंडल के पूरा नहीं होता !

लेकिन सबसे दुरूह कार्य है , निर्णायकों का चयन !  क्योंकि जो गुण एक निर्णायक में होने चाहिए वे आसान नहीं है किसी में मिलना ! लोग अपने पूर्वाग्रहों से मुक्त नहीं होते ! जिसे पसंद नहीं करते उसके प्रति निष्पक्ष नहीं रह पाते ! ब्लॉगजगत  में भी अपनी-अपनी रूचि, मित्रता, सहयोग , वैचारिक समानता , ईर्ष्या, कटुता, विवाद और विरोधों के आधार पर अनेक छोटे-छोटे समूह बने हुए हैं ! लोग अपनी पसंद के लेखन पर कम जाते हैं बल्कि  अपनी पसंद के लोगों को अधिक पढ़ते हैं !  जो उनके मन की कमजोरी को दर्शाता है ! और ऐसे लोग बहुत शान से कहते भी फिरते हैं की मैं फलां को ज्यादा नहीं पढता  अथवा पढ़ती , उसके ब्लौग पर ज्यादा नहीं जाता अथवा जाती ! .. आखिर क्यों नहीं पढ़ते आप ?...क्योंकि  आप उसके लेखन से भी ज्यादा उस व्यक्ति को नापसंद करने लगते हैं ! इससे आपके मन के पूर्वाग्रह उभर कर सामने आ जाते हैं !

अक्सर लोग अपनी व्यक्तिगत राय के अनुसार दूसरों के लेखन के अर्थ का अनर्थ भी कर देते हैं ! बिना सोचे-समझे घोर आपत्ति भी कर देते हैं , जो उनके दिमागी जिद्द को दर्शाता है ! ऐसे निर्णायक से निष्पक्षता की उम्मीद नहीं की जा सकती ! वे आपके विचारों का सम्मान कभी नहीं कर सकेंगे और गलत ही निर्णय लेंगे !

कभी -कभी आपसे व्यक्तिगत द्वेष रखने वाले भी निर्णायक के पद पर आसीन होतेहैं , जो मौक़ा मिलते ही अपनी भड़ास ज़रूर निकालेंगे, ये मानवीय स्वभाव है  ! ऐसी परिस्थिति में निष्पक्षता और न्याय की उम्मीद करना ही व्यर्थ होगा !

निर्णायक होने के लिए ऐसा कुछ होना चाहिए --

  • उसे पूर्वाग्रह से रहित होना चाहिए
  • प्रतिभागियों के प्रति उसके मन में कोई ईर्ष्या, द्वेष अथवा अनावश्यक धारणा नहीं होनी चाहिए !
  • निर्णायक का मन निर्मल होना चाहिए
  • निर्णायक को स्थापित रूप से प्रतिभागियों से श्रेष्ठ होना चाहिए जो सही मूल्यांकन करने की क्षमता रखता हो
  • निष्पक्ष और न्यायप्रिय होना चाहिए
  • जाने अनजाने किसी खेमे से उसका ताल्लुक नहीं होना चाहिए
  •  निर्णायकों का , प्रतिभागियों के साथ कभी पूर्व में व्यक्तिगत विवाद नहीं हुआ होना चाहिए !
  •  जहाँ तक संभव हो निर्णायक और प्रतिभागी पूर्व परिचित न हों  (External होना चाहिए )

Zeal

Wednesday, September 19, 2012

हार्दिक शुभकामनाएं

गणेश चतुर्थी के इस पुनीत पावन अवसर पर अपने सभी मित्रों को हार्दिक शुभकामनाएं ! गणपति आपके परिवार में खुशहाली लायें !  ॐ श्री गणपतये नमः !

Zeal

Tuesday, September 18, 2012

दिव्या देखे मूड़ पिराये, दिव्या बिन रहा न जाए ..

डॉ दिव्या श्रीवास्तव की पोस्टों से अक्सर कन्फ्यूजियाये प्रवीण शाह नामक ब्लॉगर ने बिना सोचे समझे चुनौती दे डाली महिला ब्लॉगर्स को !  लेकिन वे भूल गए की ये ब्लॉगजगत विद्वान् एवं पढ़ी-लिखी महिलाओं के लेखन से सुसज्जित रहता है !  अंशुमाला जी , रचना जी , रेखा जी ने इनकी ललकार  का जब करारा जवाब दिया तो हमारे बेचारे प्रवीण जी निरुत्तर हो गए, किसी का भी जवाब नहीं दे पाए ! !  टिप्पणियों की लालच में गन्दी मानसिकता वालों की बेहूदा टिप्पणियां भी डिलीट करने से इनकार कर दिया ! आखिर एक जैसे पर वाली चिड़ियाँ एक साथ जो उडती हैं ! 

अर्थ का अनर्थ करना कोई प्रवीण शाह से सीखे ! राजनैतिक परिपेक्ष्य में लिखी गयी कविता को भी स्त्री-पुरुष का मुद्दा बना डाला ! आखिर परपंची क्या समझेंगे क्रांतिकारियों की कविताओं को ! उनका तो काम ही है , स्त्री बनाम पुरुष का मुद्दा उठाकर अपनी दूकान चलाने का !

प्रवीण ने कोशिश तो बहुत की महिला ब्लॉगर्स को बहकाने की , भड़काने की , बरगलाने की , लेकिन अफ़सोस की
एक महिला को छोड़कर अन्य किसी को बरगला नहीं पाए !

धन्य है ब्लॉगजगत !

नारीवादियों अपना मानसिक संतुलन बनाए रखो

कुछ स्त्रियों पर नारीवाद का भूत इस कदर सवार हो गया है कि सही और गलत कि पहचान ही खो दी उन्होंने !  यदि स्त्री गलत भी होती है तो भी वे उसके समर्थन में झंडा लेकर खड़ी हो जाती हैं ! गलतियाँ तो स्त्री-पुरुष दोनों से ही हो सकती हैं न , फिर स्त्रियों कि गलतियों , उनके अत्याचार , उनकी गद्दारी और उनकी अशिष्टता पर पर्दा क्यों डाला जाए ?  जब स्त्री के अपराधों को नारीवादी महिलाएं छुपाती हैं तो समाज में एक असंतुलन पैदा होता है ! मासूम स्त्रियाँ दिग्भ्रमित भी होती हैं, गलत कार्यों को बपौती समझ कर करने के लिए प्रेरित होती हैं !  नारीवादियों के आँचल तले पनपने लगता है स्त्रियों द्वारा किया जाने वाला अन्याय और अत्याचार  !

कल एक नारीवादी महिला मुझसे बहस करने लगी , बात कुछ सशक्त नारियों की गलत सोच पर हो रही थी ! बातों के दौरान , सोनिया गांधी का जिक्र आ गया! मेरे विचार से इटली की इस विदेशी महिला से बड़ा गद्दार और दुश्मन कोई नहीं है इस देश का  ! जिन्होंने उसके होटल में पिज्जा बेचने से लेकर  भारत-भूमि पर अतिक्रमण की कथा पूरी जानी उसे पता है की कैसे उसने  अपने परिवार का विनाश किया और अब भारत देश को तिल-तिल लूट रही है ! कांग्रेस जैसे गद्दार संगठन के माध्यम से देश को खोखला कर रही है , आतंकवादियों को प्रश्रय दे रही है ! घोटालों और  बम-ब्लास्ट की जिम्मेदार है ! पार्टी के सदस्यों को कब्जे में रखकर मनमाना आतंक फैला रही है !  

ऐसी स्त्री के विरोध में मेरे राष्ट्रवादी विचारों का विरोध करती हैं ये नारिवादियाँ !  एक बात स्पष्ट कर दूं , मैं नारीवादी नहीं हूँ , लिंग-भेद नहीं करती ! नारी सशक्तिकरण में विश्वास रखती हूँ , लेकिन  पागल नहीं हूँ जो गलत स्त्रियों का भी समर्थन करूँ जबरदस्ती !  अब मायावती, सोनिया, बिपाशा, पूनम पांडे और मल्लिका जैसी  महिलाओं का समर्थन मुझसे नहीं होगा !

अंत में एक चेतावनी नारीवादियों को---

राष्ट्रवादियों से मत उलझो नारीवादियों !  मेरे लिए , नारी सशक्तिकरण से ऊपर है देश के लिए लड़ना !

भारत माता की जय !

वन्दे मातरम् !

Sunday, September 16, 2012

छपास के भूखे हमारे मुखिया ..

मनमोहन सिंह को अब ये पता चल गया है की उनकी विदाई निश्चित है, इसलिए उन्होंने देश के साथ भरपूर दुश्मनी निकालने की ठान ली है ! अब विदेशी कंपनियों को दी घुसपैठ की इज़ाज़त ! FDI को मंज़ूरी ! गरीबों के पेट पर लात और देश पर कब्जा करने वाली अमीर कंपनियों को हरी झंडी !
कुछ दिन पूर्व अमेरिकी समाचार पत्रों में मनमोहन सिंह की इतनी छीछालेदर हुयी की उससे तिलमिलाए हुए हमारे प्रधान मंत्री ने पूरे भारत को ही FDI के माध्यम से दांव पर लगा दिया ! बदले में इन्हीं अमरीकी अखबारों ने जम कर सराहना की है मनमोहन की ! विदेशी अखबारों में झूठी प्रशंसा के लिए ईमान बेचते हमारे मुखिया!


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Foreign direct investment : investment --FDI

आखिर FDI है क्या बला ?

विद्वान् पाठकों को FDI के बारे में अवश्य ही पता होगा फिर भी सामान्य पाठकों की जानकारी के लिए सरल शब्दों में -- FDI अर्थात किसी देश का अन्य देश में निवेश करना। यह निवेश किसी भी क्षेत्र में हो सकता है , लेकिन आजकल जो मुद्दा सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है , वह है FDI-Retail का। उदाहरण के लिए 'वालमार्ट' ।

विदेशी कंपनी ५१ प्रतिशत की भागीदारी के साथ हमारे देश में 'वालमार्ट' आदि के द्वारा निवेश करना चाहती है, जिसकी अनुमति श्री सिंह ने दी है।


क्यों करना चाहती है निवेश ? विदेशी कंपनी को क्या लाभ होगा ?



  • जाहिर सी बात है , पैसा कमाने के लिए।


  • निस्वार्थ तो करेगी नहीं


  • दान देने की प्रथा केवल भारत में है , विदेशों में नहीं।


  • भारत का हित तो चाहेंगे नहीं, अपना हित देखकर ही निवेश कर रहे हैं।


  • इससे इन्हें एक बड़ी मार्केट मिलेगी , इनका नाम , प्रचार और टर्न -ओवर बढ़ जाएगा।


  • मालामाल पहले से थीं , अब और हो जायेंगी।


  • सीधा लाभ निवेश करने वाले देश को होगा। उसकी आर्थिक स्थिति और सुदृढ़ होगी।



FDI -Retail से भारत को क्या लाभ होगा ?



  • एक अच्छी और निरंतर सप्लाई मिलेगी खाद्य और अन्य वस्तुओं की --लेकिन यह आपूर्ति हम अपने स्वदेशी संसाधनों द्वारा बखूबी कर सकते हैं।


  • अपने गोदामों में सड़ते अनाज का इस्तेमाल करके भी कर सकते हैं।


  • एक लाभ है क्वालिटी और variety मिलेगी (क्या अपने देश में क्वालिटी नहीं है ? यदि नहीं है तो उस दिशा में प्रयास किये जाएँ)


  • देश को एक अच्छा इन्फ्रा-स्ट्रक्चर मिलेगा-( क्या इस उपलब्धि के लिए विदेशियों को घुसपैठ करने दी जाए ? यह काम करने में तो हमारा देश स्वयं ही सक्षम है । कब तक दया पर जीवित रहेंगे परजीवियों की तरह ?)


इस निवेश से संभावित नुक्सान--


  • छोटे तथा घरेलू उद्योग समाप्त हो जायेंगे।


  • छोटे व्यापारी उजड़ जायेंगे।


  • किसान बर्बाद हो जायेंगे।


  • गरीबों की आजीविका छीन जायेगी।


  • वालमार्ट अपना पाँव पसारेगा तो धीरे धीरे हमारी ज़मीनें भी महंगे दामों में खरीद कर अपनी जडें मजबूत करेगा और रियल स्टेट के दाम बढेंगे।


  • पूर्व में गुलामी भी इसी तरह विदेशी कंपनियों की घुसपैठ से ही मिली थी।


  • हज़ारों लोग बेरोजगार हो जायेंगे।


  • दूसरा कोई विकल्प न होने के कारण ये आत्महत्या करने पर मजबूर हो जायेंगे।


  • अपने देशवासियों के साथ घात करके विदेश को संपन्न करना कहाँ की अकलमंदी है?


इस तरह से तो हमारा देश तरक्की नहीं करेगा बल्कि हम अपने देश की गरीब जनता, छोटे मोटे व्यापारी , उधोगपति, किसानों आदि के पेट पर लात मारेंगे।
श्री सिंह तो देशवासियों के दर्द को समझ नहीं रहे , लेकिन हम और आप इस निवेश के खिलाफ एकजुट होकर इसका बहिष्कार कर सकते हैं। हमने स्वदेशी के इस्तेमाल द्वारा आजादी पायी थी और विदेशी सामानों का बहिष्कार किया था। आज एक बार फिर उसी जागरूकता की ज़रुरत है वरना देश पुनः इन विदेशियों के चंगुल में चला जाएगा।
बेरोजगारी से पीड़ित हो हज़ारों लोग भूखे मरेंगे , रोयेंगे और कलपेंगे, आत्महत्या करेंगे, वहीँ हमारी आने वाली पीढियां हो सकता है गुलाम भारत में ही जन्म लें। अतः सचेत रहने की अति-आवश्यकता है। ये विदेशी कम्पनियाँ हम पर राज करेंगी और हमें कई दशक पीछे धकेल देंगीं ।
कब्र में पाँव लटकाए लोग तो चल बसेंगे, लेकिन ज्यादा ज़रुरत है नौजवानों के खून में उबाल आने की और सचेत रहने की। बहिष्कार करो अन्यथा आप और आपकी आने वाली संतानें की भुक्तभोगी होंगी इस विदेश निवेश की। ये ईसाईयों की पार्टी (सरकार) , जो भगवा को आतंकवाद करार देती है और आतंकियों को शाही दामाद की तरह रखती है, वह अब विदेशियों को घुसपैठ करने की अनुमति देकर हमारी आधी जनता के मुंह का निवाला छीन रही है।
इन वाल मार्ट्स द्वारा कनाडा आदि कई देश अपने लोकल निवेशकों और व्यापारियों को पूरी तरह खो चुके हैं । यही हश्र भारत का भी होगा। शुरू-शुरू में ये कम्पनियाँ लुभावेंगी , लेकिन एक बार जडें मज़बूत होने के बाद ये हमारे किसानों और उत्पादकों को दूध से मक्खी की तरह निकाल फेकेंगी . बाद में ये हमारे किसानों द्वारा उत्पादित फसलों की क्वालिटी पर ऊँगली उठा, उन्हें भी नकार देंगीं। हम मुंह ताकते रह जायेंगे।
यह निवेश भारत देश की आने वाली आबादी के लिए गुलामी और गरीब आबादी के लिए मौत का फरमान होगी। श्री सिंह को इटली से आदेश मिलते ही हैं, चीन भी बताता है की कौन सी कान्फरेन्स अटेंड करनी है दलाई लामा की और अब अमेरिका बताएगा की देश कैसे चलाया जाए और देश का विकास कैसे हो।
जब देश आतंकवाद और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों से जूझता है तो श्री सिंह भोली-गाय बन जाते हैं लेकिन क्या चक्कर है जब विदेशी निवेश की बात होती है तो वे 'शेर' बन जाते हैं ? स्वयं तो कुछ वर्षो के ही मेहमान होंगें लेकिन आने वाली पीढ़ियों को गुलाम कर जायेंगे ये।
अपने देश को सुरक्षित रखने के लिए सचेत रहना होगा। ये विदेशी कम्पनियाँ हमारी सगी कभी नहीं हो सकतीं। इनका स्वार्थ इन्हें भारत की तरफ गिद्ध-दृष्टि करवाता है। और श्री सिंह की असंवेदनशीलता ही छोटे व्यापारियों और कुटीर उद्योगपतियों के पेट पर लात मारती है और बेरोजगारी को बढाती है। जब तक बेरोजगार होने वालों की पुनर्स्थापना का कोई बेहतर विकल्प न ढूंढ लिया जाए , तब तक ऐसे निवेश के बारे में सोचने का कोई अधिकार नहीं है सरकार को।
अपने देशवासियों की आहों पर तरक्की नहीं चाहिए हमें। हमारे देश के पास संसाधन भी है, विद्वता भी। हम अपने प्रयासों से और स्वदेशी के उपयोग से अपने देश का विकास करने में सक्षम हैं और इस निवेश का पूर्णतया बहिष्कार करते हैं।
केवल 'भारत-बंद' से काम नहीं चलेगा। इस सरकार का तख्ता उलटना भी बहुत ज़रूरी है क्योंकि यह देश और देशवासियों के विकास के उल्टा ही सोचती है।
ईश्वर भारतवासियों को सद्बुद्धि और जागरूकता दे। सचेत रखे।

भारत-माता की जय।

वन्देमातरम !

Zeal

Thursday, September 13, 2012

गलती किसकी ?

कभी-कभी माता-पिता भी अपने बच्चों के दुश्मन हो जाते हैं , बच्चा आपसे कभी कुछ नहीं माँगता , सिर्फ अपने प्रेम-विवाह के समय होने वाले सामाजिक विरोध के समय अथवा अविवाहित रहने के निर्णय के विरोध में खड़े लोगों से त्रस्त होकर वह संतान आपकी तरफ बहुत अपेक्षाओं के साथ देखती है की आप तो समझेंगे कम से कम !--- लेकिन ऐसे में अक्सर माता-पिता भी समाज के ठेकेदार की भूमिका निभाते हैं ! संतान का साथ न देकर उसकी ऑनर- किलिंग करते हैं ! उसे अपना मन-मारने को बाध्य करते हैं !

गलती आवाम की ? या फिर सरकार की ?

५० % जनता अपने मताधिकार का इस्तेमाल ही नहीं करती ! अकर्मण्य होकर घर बैठे ताश खेलती है , घटिया सीरियल देखती है, क्रिकेट देखकर झूमती है, या फिर खानाबदोशो की तरह उस दिन यारी-दोस्ती निभाती है अपने जैसों के साथ , लेकिन मतदान को अपनी ज़िन्दगी का सबसे अहम् हिस्सा नहीं समझती ! मतदान करने का मौक़ा बहुत मुश्किल से मिलता है ! उसे यूँ ही न गवायिये ! जो लोग मतदान करने के लिए निकलते भी हैं , उसके आधे तो आँख बंद करके भ्रष्ट सरकार द्वारा चंद दारू की बोतलों में खरीद लिए जाते हैं ! बचे हुए का आधा प्रतिशत अंग्रेजों का तलवा-चाट निकला , इसलिए बार-बार विदेशियों को ही चुन लेता है ! लुछ हिंजड़े आरक्षण के लोभ में पहले ही से गद्दार हो चुके हैं , अतः उनसे उम्मीद ही व्यर्थ है ! खुद ही सोचिये वो प्रतिशत कितना छोटा है जो देश हित में सोचने वाली सरकार को अपना बहुमूल्य मतदान करके लाता है ! और उसी के भरोसे बाकी के निठल्ले भी ऐश करते हैं ! अतः अज्ञानी जनता को अपनी गलती समझनी चाहिए ! गद्दार, मक्कार सरकार आएगी तो घोटाले और बम-ब्लास्ट ही तो होंगे ना !बाद में धिक्कारने से क्या फायदा जब चिड़िया चुग गयी खेत !

Zeal

Monday, September 10, 2012

कालसर्प योग कब जाएगा भारत का ?

पति को , देवर को , सास को मार गयी
फिर पूरे भारत को चट से डकार गयी
रेफरी बनी खड़ी है केंद्र में घेरे के ,
चाटुकार खिलाड़ी हैं चारों तरफ खेमे में
जोर से बजाती है सीटी जब उचक के
एक नया घोटाला आता है चमक के
शर्म का जो पानी था, कोरों पे टिका हुआ
कोयले की राख ने उसको भी सुखा लिया
कौन से नछत्र लिए आई थी धरा पे तुम,
कालसर्प योग कब जाएगा भारत का ?

Zeal

पुरुष एवं स्त्री ब्लॉगर्स सभी को भाग लेना चाहिए इस आयोजन में

नारी ब्लॉग पर रचना जी द्वारा नारी सशक्तिकरण , घरेलू हिंसा और यौन प्रताड़ना आदि विषयों पर प्रविष्टियाँ आमंत्रित हैं ! इस आयोजन में शामिल होने के लिए आप उपरोक्त विषयों पर अपना लिखा कोई भी आलेख शामिल कर सकते हैं ! अपनी प्रविष्टि का लिंक नारी ब्लॉग पर दीजिये ! सम्पूर्ण जानकारी भी इस लिंक पर मिल जायेगी ! प्रविष्टियाँ शामिल करने की अंतिम तारीख १५ अक्टूबर है !


धन्यवाद

Saturday, September 8, 2012

NSG हीरो 'मानेश' (मुम्बई २६/११) को सरकारी चिकित्सा खर्च देने से इनकार जबकि आतंकवादी मदान को महंगी आयुर्वेदिक-स्पा की सुविधा


आतंकवादी मदान (बैगलोर बम-ब्लास्ट का आरोपी), को आयुर्वेदिक-स्पा जैसी महंगी सुविधाएं लेकिन शौर्य चक्र से सम्मानित NSG के हीरो 'मानेश' , जिसने मुम्बई के २६/११ हमले के आतंकवादियों को मौत के घाट उतारा , छाती पर गोलियां खायीं , सर पर गहरी चोटें आने से कोमा में गया और पक्षाघात से पीड़ित होकर चलने-फिरने में असमर्थ हो गया , उसे रक्षा मंत्री एंटनी ने सरकारी खर्च देने से इनकार कर दिया ! कारण बताया की AFMS ( अर्मेद फोर्सेस मेडिकल सर्विसेस) में आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति को मान्यता नहीं है ! अंग्रेजी पद्धति से उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ था , लेकिन आयुर्वेदिक इलाज से अब वह काफी स्वस्थ्य है और चल सकता है लेकिन प्रति माह होने वाले आयुर्वेदिक खर्च को सरकार देना नहीं चाहती ! नष्ट कर दो अपनी भारतीय चिकित्सा पद्धति को मर जाने दो देश के जाबांज सिपाहियों को ! शर्मनाक है अंग्रेजी गद्दार सरकार का रवैय्या !

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Defence Minister AK Antony on Wednesday ruled out introduction of Indian systems of medicine in the Armed forces saying the Armed Forces Medical Services (AFMS) system is based on the allopathic system of medicine.
Replying to a question by BJP MP Chandan Mitra in the Rajya Sabha, the Minister said in a written reply that the feasibility of introduction of the Indian systems of medicine in the armed forces was repeatedly studied by various committees and they did not recommend their inclusion.
Mitra had asked whether Indian systems of medicine have not been introduced in the armed forces and the scientific reasons for not including these systems besides steps taken by the Government to reimburse expenses on Ayurvedic treatment of the army personnel who opt for this system.
Antonysaid combat medical and surgical requirements are the pivot on which the structure of the AFMS revolve.
He also said the Government has not taken steps to reimburse expenses for Indian systems. The AFMS is responsible for providing comprehensive medical care to Services personnel.
This question came in the backdrop of the Army disallowing reimbursement of Ayurvedic treatment of PV Manesh, a National Security Guard (NSG) commando who was wounded during the firefight with terrorists in the 26/11 Mumbai terror carnage. Manesh was awarded Shaurya Chakra for his act of bravery.
Manesh was in coma for six months after he was hit by a grenade and discharged from the Army hospital with left side fully paralysed. He then underwent Ayurveda treatment and recovered. He is currently incurring an expense of `5,000 on Ayurvedic treatment per month and has sought reimbursement from the Army. The Army has refused it saying Ayurveda is not approved under the defence medical system. The Karnataka Government is forced to cough up huge sums on spa treatment of Bangalore blast accused Abdul Nasser Madani, but the authorities are not ready to reimburse a paltry Rs 5,000 a month on Ayurvedic treatment of a NSG commando, who was paralysed in the Mumbai 26/11 operations, reports The Pioneer.

Shaurya Chakra awardee PV Manesh from Kannur was paralysed after he was hit by a grenade in his head during the terror attack on Oberoi Hotel in Mumbai. But before a grenade fell on his helmet, he shot dead a terrorist. A splinter is still lodged in his brain.
Shame! Spa For Madani, Crumbs For 26/11 Hero NSG Commando
[ Updated 20 Jul 2011, 15:31:34 ]
http://www.indiatvnews.com/upload/news/mainnational/Shame_Spa_For_M9287.jpg









Manesh recalls that his commando team was airdropped on the roof of Hotel Oberoi in the early morning hours of November 28, 2008.

“We started from the top and raided each room. We rescued around 40 people who were trapped inside their rooms. When I reached Room No 203, I sensed the presence of terrorists. After blasting the doors when I first entered, I saw the tip of an AK47 rifle behind a curtain. In a split second, I fired and killed that terrorist. Then I saw the second man hurl grenade at me. Shooting him, I dived to catch the grenade. But it fell on my helmet,” he narrated his near-death experience.

His Shaurya Chakra citation says: “For his undaunted valour, resolute determination and dedication towards the mission beyond the call of duty, Naik PV Manesh was awarded ‘Shaurya Chakra.”

But now Manesh has been forgotten by the nation. His employers will not reimburse his treatment cost citing “blind rules” and he can’t even get a confirmed train ticket. All because, like Madani, he can’t hire top lawyers to argue his case for Ayurvedic treatment.

Manesh says his doctors have advised that Ayurveda was his last hope. “I have to travel by train every fortnight to a hospital 300 km away in Ottapalam in Palakkad district for treatment, which costs `2,000 every time,” he said.

“Some time I don’t get train reservations. I was once even asked by the ticket collector to get off the train,” he said.

Talking to The Pioneer on phone from his home village Azheekode in Kannur, Manesh narrates his sad tale.

“The right side of my body is completely paralysed. After year-long treatment at Army hospitals in Delhi and Mumbai, I returned to my hometown. All the doctors advised me to undertake Ayurvedic treatment. Ayurveda is the last resort for me and the treatment is helping,” he said.

“But unfortunately, my treatment expenses of `2,000 per visit can’t be reimbursed, simply because Army rules won’t permit such reimbursement for Ayurveda. It is not an approved treatment system in the forces. What am I to do? I have tried my level best,” laments the 35-year-old former NSG commando.

Manesh is now rehabilitated in his parent force Indian Army’s Madras Regiment as a Naik. The Army provides him full salary of a serving staff.

For the past one year, Manesh is undergoing treatment at Karuna Hospital in Ottapalam in Palakkad district, a well-known private Ayurveda hospital in the State. “They don’t take any consultation fee from me. But I have to pay `2,000 for medicines per visit. It would be fine, if the Government and forces reimburse the cost of Ayurvedic treatment. I believe in Ayurveda. I was wheel-chair bound when I reached the hospital one year ago. Now I can walk at least 100 metres at a stretch with the help of a walking stick,” says the brave soldier.

Manesh fumes when he talks about his railway journey to the hospital. “As I am a Shaurya Chakra awardee, the Army granted me free travel rail pass along with a companion. We are entitled first class travel. But the problem is we never get confirmed reservation. Doctors insist prompt attendance. Most of the time I travel on an unreserved ticket. I can’t stand for long time as my right side from head to leg is paralysed. Some people who recognise me offer their seats,” he said.

Then he went on to narrate what has left a deep wound on his psyche. “Once, I was asked to get out of the compartment, as I had no reservation. That was the day, I cursed myself. I thought for whom I have ruined my life,” says Manesh in a choking voice.

Manesh now lives at his ancestral home with his aged parents, unemployed wife Sheema, and their four-year-old son Yadukrishnan. “Now I am engaged in the construction of our new home. Recently I took a loan of Rs10 lakh from Federal Bank. I spend time with friends. It is sad to hear about the recent attack in Mumbai. It takes me to 26/11 operation days,” say Manesh.

Manesh fell down and his US made helmet was broken into three pieces. The terrorist who threw the grenade was neutralised by Manesh’s colleague. Manesh was in coma for four months. He regained the capacity to speak after six months. Three shrapnel pierced his head. Two were removed and Manesh lives with one inside his head now. “Let it be there. I am used to it,” laughs the brave soldier.

“I have no regrets in life. I am proud to get Shaurya Chakra,” he said, and then added, “I have a wish. I want to go to the Oberoi Hotel with my wife and kid once in my life. One day I will.”
0 #3 Dr.shekhar sharma 2012-09-06 15:16
It is very shameful. Ayurveda is scientific and establish system of medicine , traditional system of India. our respected minister cannot understand the pain of brave NSG commando, who recovered through Ayurveda. our ministers will spend crores of rupee in celebration but not reimbursing the treatment cost of the brave commando!!!
Jaago bharat jaago this minister will sell entire India and will finish the glorious tradition of our country

Courtesy- A blogger friend who gave this info.

Friday, September 7, 2012

आग लगे बस्ती में , मीडिया अपनी मस्ती में

पूर्वी असाम , मणिपुर , गोवाहाटी, कोकराझार आदि क्षेत्रों के आर्मी बेस पर उल्फा के आतंकवादी संगठन ने तकरीबन ११ सीरियल बम-ब्लास्ट किये , जिसमें २० से ज्यादा सैनिकों की जान जाने की खबर मिली है ! मीडिया ने इस समाचार को दिखाना उचित नहीं समझा ! वो केवल दिग्गी के निरर्थक और वाहियात बयान दिखाना ही पसंद करती है !

Zeal

Thursday, September 6, 2012

दशक का ब्लॉगर सम्मान--एक समीक्षा

नज़ाकत और नफासत की नगरी लखनऊ में हुए ब्लॉगर सम्मान पर असंख्य पोस्टें आ चुकी हैं अब तक ! मैंने तटस्थ रहने की बहुत कोशिश की लेकिन डॉ शास्त्री की पोस्ट आज पढने के बाद बेहद दुःख हुआ इसलिए तटस्थ रहना एक गुनाह समझा और अपने मन में आये विचारों को शब्द देना ज़रूरी समझा !

कहते हैं कि -"मुस्कुराईये की आप लखनऊ में हैं "--लेकिन ये क्या , नवाबों के शहर से लौटे अधिकाँश ब्लॉगर्स के चेहरे से मुस्कान मानो उड़नछू हो गयी हो !

आखिर ऐसा क्यों हुआ ?

सबसे पहले तो आयोजकों के अथक प्रयास के लिए अनेकों बधाईयाँ ! उसके बाद सभी सम्मानित लेखक और लेखिकाओं को ढेरों बधाई एवं शुभकामनाएं !

मेरे विचार से किसी भी प्रकार का ब्लॉगर सम्मलेन हो , ब्लॉगर्स को सबसे ज्यादा उत्सुकता एक दुसरे से मिलने और परिचय प्राप्त करने कि होती है , लेकिन जैसा कि मैंने जाना और पढ़ा , दूर-दराज़ से आये ज्यादातर ब्लॉगर बिना किसी परिचय के ही लौट गए , जिससे उनमें काफी निराशा देखने को मिली !

अतिथि देवो भव-- सबसे पहला कार्य तो आने वाले प्रत्येक ब्लॉगर को यथोचित सम्मान के साथ वार्म-वेलकम दिया जाना चाहिए था ताकि लौटने के बाद ब्लॉगर कि स्मृति में वो सुखद यादगार हमेशा बनी रहे !

डॉ रूपचन्द्र शास्त्री जी के आलेख पर जो पढ़ा वह अत्यंत खेदजनक है ! एक वरिष्ठ ब्लॉगर अपमानित और ठगा सा महसूस करे यह हम सभी कनिष्ठ ब्लॉगर्स के लिए दुर्भाग्य कि बात है ! डॉ शास्त्री को समुचित सम्मान मिलना चाहिए था !

डॉ पवन मिश्र, कानपुर जी ने कुछ प्रश्न पूछे जो बेहद विनम्रता से पूछे गए थे , उसका उत्तर भी विनम्रता से दिया जाना चाहिए था , लेकिन अफ़सोस कि ऐसा नहीं हुआ ! आपस में ही एक दुसरे पर कानूनी कार्यवाई किये जाने कि धमकी कुछ अशोभनीय एवं खेदजनक लगी !

मंगलायतन पर मनोज जी ने , पवन जी को जो उत्तर दिए वे बहुत कटुता से भरे हुए थे ! यही वही उत्तर थोड़ी मिठास लिए हुए होते तो ब्लॉगर्स कि गरिमा बढती !

वो कहते हैं न कि -"फल आने पर डालियाँ विनम्रता से झुक जाती हैं "

महेंद्र श्रीवास्तव जी के आलेख से शत प्रतिशत सहमत हूँ ! उस पर आई टिपण्णी और प्रति टिप्पणियां भी सार्थक लगीं, बस एक ही बात खेद जनक लगी कि ज्यादातर टिप्पणीकारों ने महेंद्र जी के शिखा का नाम लिखने पर आपत्ति जताई , जो अनुचित लगी मुझे !

महेंद्र जी कि आपत्ति जायज़ है ! मंच पर आसीन शिखा हो अथवा वहां आसीन कोई अन्य कनिष्ठ ब्लॉगर, उसे शिष्टाचारवश अपने से वरिष्ठ ब्लॉगर को सम्मान देना चाहिए था ! मंच पर अपनी कुर्सी छोड़कर अपने से बड़े को आदर देने से कोई छोटा नहीं हो जाता ! यदि आयोजक से कोई भूल-चूक हो भी रही थी तो वह उपस्थित अन्य सम्मानित समूह अपने बडप्पन का परिचय दे सकता था !

आयोजक ने भले ही ब्लॉगर्स का सम्मान किया हो , लेकिन आयोजक समूह का सम्मान तो वहां शिरकत करने वाले सभी अतिथि ब्लॉगर्स के आगमन से ही हुआ ! अतः कोई भी आयोजन हो आयोजक को सम्मलेन में आने वाले प्रत्येक अतिथि का पूरे मनोयोग से स्वागत-सत्कार करना चाहिए , ताकि वे मधुर-स्मृतियाँ संजो सकें !

किसी भी आयोजन में सबसे अहम् होता है -- आयोजन का खर्चा ! इसके लिए यदि आयोजक इसका पूरा खर्चा नहीं वहन कर सकता तो उसे एक छोटी धन-राशि सभी आमंत्रित सदस्यों से लेनी चाहिए थी, ताकि किसी को भी खाने-पीने और ठहरने कि असुविधा नहीं होती ! सभी एक दुसरे से मिल-बैठकर परिचय प्राप्त कर सकते थे और नए सम्बन्ध बनते , जिससे आपसी मृदुता बढती ! और आयोजन कि सार्थकता द्विगुणित हो जाती !

कुछ आलेखों पर रश्मि प्रभा जी की अति निंदा की गयी है , जो अनुचित लगी ! अनावश्यक रूप से किसी को बदनाम करना बहुत गलत है ! यदि वे कार्यक्रम में उपस्थित न हो सकीं तो उसके बहुत से कारण हो सकते हैं ! हो सकता है वे अस्वस्थ रही हों !  किसी की उपस्थिति पर प्रश्न-चिन्ह  लगाना अशिष्ट  लगा !

अन्य कई आलेखों में चित्रों द्वारा इस आयोजन कि झलकियाँ अत्यंत मोहक लगीं !

पुनः आयोजक समूह, सम्मानित लेखक , लेखिकाओं एवं वहां उपस्थित सभी मित्र ब्लॉगर्स को ढेरो बधाई एवं शुभकामनाएं !

बस ध्यान रहे -- "भूल से भी कोई भूल हो ना"

Zeal

Wednesday, September 5, 2012

नहीं पढूंगी तुम्हारी पोस्टों को ..

उसकी पोस्ट पर एक लाईक
उनकी पर दो
उनकी पर तीन
उनकी पर पांच
और तुम्हारे पर एक भी नहीं ??

क्या समझूं मैं ? तुम बकवास लिखते हो ! एक भी लाईक नहीं है तुम्हारे आलेखों पर ! नहीं पढूंगी तुम्हारी पोस्टों को ! समय क्यों नष्ट करूँ ?

कभी तो सामाजिक लिखो,
देश की अव्यवस्था पर लिखो
घोटालों पर लिखो
प्रेम-श्रेम पर लिखो
आलोचना-विवाद कुछ तो लिखो
नारी न सही पुरुष सशक्तिकरण पर ही लिखो ......

क्या कहा , लिखते हो इन सभी विषयों पर ? .....फिर भी...??

पहले जाओ आकाओं से दोस्ती बढ़ाओं ! पांच नहीं तो कम से कम एक लाईक तो लाकर दिखाओ ! हर एक पर ना सही , किसी एक पर तो पाकर दिखाओ !  ऐरों गैरों को कुछ नहीं मिलता, सब कुछ रसूख वालों को ही मिलता है !

जाओ मेहनत करो.... मन लगाकर लिखो ...माँ-बाप का नाम रौशन करो...

तब समझूँगी तुम्हें भी लिखना आता है , अन्यथा तुम भी मेरी तरह ही बेसुरे समझे जाओगे !

सादर वन्दे एग्रीगेटर्स !

Zeal

Tuesday, September 4, 2012

दलितों के लिए खुशखबरी ..

Reservation quota in promotion has been approved by this 'Gutter' Government. This is the first time they have done somthing right ! I am very pleased and congratulate this Govt. headed by a loony / empty-headed Sardar because -

Ram Vilas Paswan and Mayawati are very happy. May their Souls rest in peace whenever they die the way politicians die.
I am sad too because this Gutter Govt. did not go for 100% reservation in favour of SC / ST. They should have done that to 100% reservation for SC / ST and history would have been created.
SC / ST enjoy the same, equal rights to destroy the nation. Hitherto, this privilege had been monopolised by so-called Savarnas. Right to destroy the nation has been democratised in a democratic manner.
Let us hope now even against all hopes, Ram Vilas Paswan and Mayawati shall no more curse Maharshi Manu for authoring the legendary Manusmriti. They have received / collected their dues very well.
Private sector shall prosper more as merit shall migrate to that sector in herds.
Population of talented NRIs shall rise by leaps and bounds as large number of so-called Savarnas are going to migrate abroad for greener pastures. THEN, THE ENTIRE NATION SHALL BECOME BIHAR OF KARPOORI THAKUR / LALLOOO YADAVA and I shall be proud of that.
Social divisions shall increase. However, there is nothing to worry about because the idiotology of UNITY IN DIVERSITY of this gutter-bound Congress Party shall take care of that effectively.

Future of the country is still bright !!!!!!

By Ramakant Tiwari

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आलोचनाओं का बाज़ार गर्म है

हर तरफ गहमा-गहमी है ! जिसे देखो वही आलोचनाओं में व्यस्त है ! एक छोटे से सम्मलेन ने ब्लॉगर्स के दिमाग को आच्छादित कर विचार-शून्य बना दिया है ! ऐसा प्रतीत होता है मानो दुनिया के सारे व्यापार ही ठप हो गए हों ! कबसे इंतज़ार में हूँ की ये आलोचनाओं का दौर ख़त्म हो जाए और कुछ पढने-गुनने लायक बाज़ार में आ जाए ! लेकिन नहीं, निंदा का ये तूफ़ान तो उफान पर है ! रिक्टर पैमाने पर इसकी तीव्रता ९.७ के आस पास आंकी जा रही है ! कुछ छोटे-मोटे समारोह और सम्मलेन जिसका अस्तित्व न ही व्यक्तिगत जीवन में है , न ही देश के विकास से सरोकार रखता है , उसे कहीं महिमामंडित करते हैं तो कहीं आलोचनाओं के साथ जबरदस्ती परोसते हैं ! टाइम, एनर्जी और स्पेस की बर्बादी इससे ज्यादा और क्या होगी ! इससे बेहतर है कुछ सम-सामयिक विषयों की चर्चा ही की जाए !

Zeal

Monday, September 3, 2012

मोहन , कोयले से भी काला...

घोटाले पे घोटाला
मोहन , कोयले से भी काला
पहने घोटालों की वो माला
हर मोती में घोटाला !
कोयले से है लूटा, अब
थोरियम दे डाला !
आवाज़ हम उठाएं , तो दे
नेकी का हवाला ,
जब मांगें हम इस्तीफ़ा, तो
वो करें हैं बवाला !

Sunday, September 2, 2012

हाय रे कैसी मौत है उसकी ..

अच्छा भला बहस किया करता था वो
बेधड़क अपने वक्तव्य दिया करता था वो,
अब वो संत बन गया है ,
बेवजह प्रवचन दिया करता है
मौत हो गयी उसकी बेबाकी की,
शब्दों में ढलने वाली उसकी इमानदारी की
वाक्यों में घुली उसकी शोखी की,
और उसके अन्दर की कसमसाहट की,

कैसी मौत मिली है उसको ,
अच्छा भला लेखक था,
संत बन गया है वो ...

Zeal

Saturday, September 1, 2012

बैसाखी तलाशते सपने

गाँव में पढ़ी-लिखी बोधिया शिक्षा क्षेत्र में बहुत आगे जा चुकी थी ! उसकी ज़हीनियत का लोहा सभी मानते थे ! लेकिन अफ़सोस की वो एक लड़की थी , बहुत आगे तक जाना उसके हाथ में नहीं था , धन और सुरक्षा दोनों के लिए दूसरों पर निर्भर थी ! जो उसकी मदद करना चाहता वह पहले बोधिया से बहुत कुछ पा जाने की अपेक्षा रखता था ! बोधिया को ये उम्मीद थी की कभी तो , कोई तो निस्वार्थ होकर उसकी काबिलियत को पहचानकर उसके सपनों को पूरा करेगा ! लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ ! धीरे धीरे बोधिया ने प्रकृति के इस नियम को जान लिया की कोई भी इतना महान नहीं होता की किसी दुसरे की खातिर अपने सपनों की तिलांजलि देकर किसी और के सपने जिये! साथ में पढ़ा और बड़ा हुआ गोपाल बोधिया से प्रेम करता था! उससे वादा करता था की वो उसके सपनों को पूरा करेगा ! समय-समय पर बोधिया को बताता था की उसे याद है की उसे बोधिया के सपनों को पूरा करना है ! थोड़े समय तक तो बोधिया , गोपाल के दिखाए सपनों में अपने खयाली पुलाव पकाती रही , लेकिन जब उसे ये एहसास हो गया की गोपाल सिर्फ बातें करता है , शायद मन से सोचता भी अच्छा है , लेकिन करेगा कुछ नहीं क्योंकि समय बहुत तेज़ रफ़्तार से बीत रहा था और कुछ बड़ा करने के लिए ज़िन्दगी का हर एक पल कीमती होता है ! बोधिया अपनी आयु को निरंतर छोटा होते हुए देख रही थी, उसके साथ ही उसके सपने भी अपना आकार कम रहे थे ! उसने अपनी किसमत स्वीकार कर ली थी !

समय के साथ गोपाल बहुत ऊपर चला गया था ! अपने सपनों को पूरा करने में दिलो जान से लगा हुआ था ! अपने स्वास्थ्य की परवाह किये बगैर वो दिन-रात एक करके अपने काम में लगा रहता था ! उसके बहुत से दोस्त थे , बड़े-बड़े परिचय थे ! रसूख वालों के साथ उठाना-बैठना था उसका ! जी-तोड़ मेहनत के बाद जब भी उसे प्रेम की ज़रुरत होती वो बोधिया से बात कर लेता था ! अपनी मेहनत , योजनायें , उपलब्धियां सभी कुछ बोधिया को बताता था ! बोधिया चुप-चाप सुनती थी ! उसकी ख़ुशी में शामिल रहती थी ! और जब गोपाल, बोधिया की चुप्पी से असहज हो उठता तो अचानक से बोल उठता - " मैं तुम्हारे सारे सपने ज़रूर पूरा करूंगा बोधिया , बस एक बार मुझे सक्षम, हो जाने दो "

बोधिया बुद्धिमान थी , स्त्री और पुरुष का फर्क जानती थी ! उसे पता था स्त्री को ऊपर उठाना है तो उसे किसी का सहारा नहीं तलाशना होगा ! जितनी हिम्मत, ताकत, और बुद्दी होगी , स्त्री उतना ही ऊपर जायेगी ! बैसाखियाँ उसे ऊपर नहीं ले जा सकेंगी , उलटे उसे कमज़ोर ही करेंगी!

आज बोधिया का विवाह हो चुका है , वह अपने पति मनसुख के साथ एक सामान्य-खुशहाल जीवन जी रही है ! अपने सपनों की उड़ान को विराम दे चुकी है ! कल्पनाओं का दायरा बहुत छोटा कर चुकी है ! महत्वाकांक्षाओं को मारकर बहुत सी समस्याओं का हल ढूंढ चुकी है ! घर-गृहस्थी में फंसी बोधिया अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में सब कुछ भूल चुकी है !

गोपाल उसका दोस्त है ! अब भी उससे मिलने पर अपनी समस्याएं, योजनायें और उपलब्धियों की चर्चा करता है ! बोधिया निर्विकार , चुप-चाप सुनती है ! बोधिया को बहुत देर से चुप पाकर वो असहज होकर कह उठता है -- "मैं तुम्हारे सपने पूरा करूंगा बोधिया , बस एक बार मुझे सक्षम हो जाने दो "

बोधिया मन ही मन सोचने लगती है...

Zeal