Wednesday, June 22, 2011

सभी ब्लॉगर्स के लिए खुशखबरी .

आजकल समाचार में दस वर्षीय 'अवतार' नामक बच्चे को देखकर , जिसका पुनर्जन्म हुआ है , पर मंथन किया। पुनर्जन्म होता है आत्माएं नया शरीर धारण करती हैं। लेकिन अधिकांशतः पूर्वजन्म की स्मृतियाँ शेष नहीं रह जातीं , इसलिए पता नहीं चल पाता की किस व्यक्ति का कहाँ जन्म हुआ है।

जैसे पंजाब के 'सुभाष' का जन्म 'अवतार' नामक राजस्थानी बालक के रूप में हुआ है , जिसे अपने माता-पिता , भाई-बहन , पत्नी आदि सभी याद हैं यहाँ तक की उसे पंजाबी भाषा भी अच्छी तरह आती है। लेकिन उसका पूर्व जन्म में क़त्ल हुआ था , इसलिए शायद आत्मा पर एक बोझ के तहत पुनर्जन्म हुआ। यदि कुछ पेंडिंग नहीं रहता तो शायद मोक्ष मिल जाता

इसी समाचार पर मनन करते हुए स्वतः ही ब्लॉगर मित्रों का ध्यान गया क्या ब्लॉगर्स का पुनर्जन्म होगा ? क्या ब्लॉगर्स मोक्ष के अधिकारी हैं ?

हमारे यहाँ सभी दर्शनों में पुनर्जन्म को माना गया है , सिवाय 'चार्वाक' दर्शन के , जो कहता है की व्यक्ति अपने कर्मों का फल इसी जीवन में भुगत लेता है और उसको मोक्ष मिल जाता है।

यावद जीवेद सुखं जीवेद ,
ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत।

यदि चार्वाक दर्शन को मानें तो एक ब्लॉगर को अपने पाप-कर्मों का फल 'भडासी-टिप्पणियों' के माध्यम से बखूबी मिल जाता है और वह ब्लॉगर जन्म-मृत्यु के बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त हो जाता है।

इस आलेख के माध्यम से भडासी-टिप्पणीकारों का आभार अभिव्यक करती हूँ , क्यूंकि उन्हीं के द्वारा दी गयी यातना से मेरे पाप-कर्म कट रहे हैं और मोक्ष प्राप्ति के फलस्वरूप , स्वर्ग में मेरा स्थान सुनिश्चित हो रहा है।

कहते हैं ना की जो होता है , अच्छे के लिए होता है अब देखिये मित्र ब्लॉगर की टिप्पणियां ही उऋण कर रही हैं और मोक्ष दिला रही हैं। सभी भडासी-टिप्पणीकारों से निवदन है की मुझे मेरे पाप कर्मों के लिए यातना देने अवश्य आयें ताकि मेरे रहे-सहे पाप कर्म भी नष्ट होवें और मन निश्चिन्त होकर परलोक गमन करे।

यकीन जानिये ऐसा करके आप भी पुण्य के भागीदार होंगे हम सभी मोक्ष प्राप्त करके स्वर्गलोक में पुनः मिलेंगे।

Zeal

Tuesday, June 21, 2011

लेखन की बेला.

पैदा होते ही कोई लिखना नहीं शुरू कर देता। तो फिर लिखना कब शुरू करता है ? क्या परिस्थितियां बनती हैं जब लेखन शुरू होता है ? और सबसे अहम् प्रश्न है की लिखना कब प्रारम्भ करना चाहिए।

इन प्रश्नों पर मनन के बाद मुझे लगा की जब कहने को बहुत कुछ हो मन में , लेकिन सुनने वाला कोई मिल रहा हो तो लेखन प्रारम्भ कर देना चाहिए। क्यूँ की व्यस्तता भरी इस ज़िन्दगी में हर किसी के पास कहने के लिए तो बहुत कुछ है , लेकिन सुनने वाला कोई नहीं मिलता। सभी चाहते हैं की उनकी बात को बड़े ध्यान से सुना जाए , उस पर प्रश्न भी किये जाएँ , तर्क वितर्क भी हो और उनकी कही गयी बात को मान भी मिले। लेकिन अकसर ऐसा हो नहीं पाता व्यक्ति के पास देने के लिए अनुभव और ज्ञान तो बहुत होता है , लेकिन अफ़सोस ये है की लेने वाले सुपात्र नहीं होते।

कारण है की ज्ञान तो बहुत है , लेकिन लेने वाले की आवश्यकता, क्षमता और समय सीमित है। कोई भी व्यक्ति ज़रुरत और सुविधा के अनुसार उपयोगी सामग्री ही ग्रहण करता है लेकिन ज्ञान बांटने वाले को यह लगता है की कोई उसे तवज्जो नहीं दे रहा है।

ये शिकायत अक्सर बुजुर्गों में देखी गयी है , उन्हें लगता है की बच्चे बड़े हो गए हैं और खुद को ज्यादा काबिल समझने लगे हैं , माता पिता की ज्ञान भरी बातें सुनने के लिए उनके पास वक़्त नहीं है। वे चाहते हैं की लोग उनकी बात मन्त्र-मुग्ध होकर सुनें , फिर सराहें और फिर अगले दिन प्रवचन के अगले एपिसोड के लिए तैयार रहे

लेकिन ऐसा व्यवहारिक नहीं है। गृहस्थ आश्रम में फंसे स्त्री पुरुष पर प्रवचन सुनने के अतिरिक्त भी बहुत जिम्मेदारियां होती हैं वे चाहकर भी बहुत लम्बे समय तक ज्ञान-चर्चा का हिस्सा नहीं बन सकते। यदि वे ऐसा करेंगे तो अपने कर्तव्यों से विमुख हो जायेंगे।

आजकल की भागती-दौड़ती व्यस्त ज़िन्दगी में , हर व्यक्ति अत्यंत संक्षेप में सारगर्भित बात को सुनना, कहना और ग्रहण करना चाहता है। इसलिए अनावश्यक विषयों से व्यक्ति की अरुचि सी होती जा रही है और इन्टरनेट की दुनिया में व्यक्ति अपने पसंद के विषय चुनकर उसे ही पढना चाहता है इसलिए संभावनाओं के इस अति विशाल समुद्र में व्यक्ति बहुत selective हो गया है अतः ज्ञान बांटने वालों को यह सोचकर बुरा नहीं मानना चाहिए की अमुक व्यक्ति मेरी बातों में रूचि नहीं ले रहा है।

ऐसी परिस्थिति में जब आप कहना बहुत कुछ चाहते हों तो लेखन प्रारम्भ कर देना चाहिए जो कहना है उसे शब्दों में उतारकर पोस्ट कर देना चाहिए। जिसे रूचि होगी वह स्वयं ही पढ़ लेगा और आपको भी यह शिकायत नहीं रहेगी की कोई आपको सुन नहीं रहा है।

मैं अपने आस-पास परिवेश में जिन बुज़ुर्ग व्यक्तियों को लेखन में संलग्न देखती हूँ , उनके लिए मन में अपार श्रद्धा है , की वे अपने ज्ञान और बहुमूल्य समय का सदुपयोग कर रहे हैं बिना किसी अपेक्षा के लिख रहे हैं और योगदान दे रहे हैं

अतः लिखिए, जो भी है ह्रदय में लिख डालिए। बिना इस अपेक्षा के कोई मुझे पढ़ेगा , मुझसे प्रश्न करेगा , अथवा मुझे पढने के बाद मेरा भक्त बन जाएगा। आजकल लोग अपने काम की सामग्री लेकर आगे बढ़ जाते हैं , क्यूंकि जो एक लिए उपयोगी अथवा रुचिकर है वही दुसरे के लिए गैरज़रूरी एवं अरुचिकर भी हो सकता है। लेकिन आप लिखते रहिये हम पढ़ रहे हैं

Zeal

Monday, June 20, 2011

चंचल -- कहानी

एक लड़की थी। नाम था 'चंचल' सीधी -साधी लड़की थी , किसी का दिल नहीं दुखाती थी। जहाँ तक बन पड़ता था गैरों के दुःख सुख में शामिल होती थी। बच्चे , बूढ़े , स्त्री-पुरुष सभी की अपनी थी वो कभी बुरा नहीं मानती थी किसी बात का। कोई बात हो भी जाए तो समझने प्रयास करती थी , लेकिन अपने मन में द्वेष नहीं रखती थी , कोशिश करती थी अपनापन बना रहे। धीरज और साहस ही उसकी ताकत थी

उसका एक मित्र था मिहिर मिहिर बुद्धिमान था, विद्वान् था और अन्य भी बहुत से गुणों की खान था। लेकिन अकसर अपने व्यवहार से चंचल को दुःख देता रहता था। चंचल उन बातों का बुरा ना मानकर अपने कामों में व्यस्त रहती थी। वो उसके अवगुणों पर ध्यान देने के बजाये उसके गुणों को ज्यादा सम्मान देती थी। लेकिन मिहिर इस बात से बहुत परेशान रहता था की चंचल को गुस्सा क्यूँ नहीं आता ? इतना शांत कैसे रख पाती है स्वयं को ?

चंचल जितना ही शांत रहती थी , मिहिर उससे नाराज़ करने के प्रपंच रचता रहता था। बार-बार उसके दिल को चोट पहुंचाता था। सफल भी रहता था, लेकिन चंचल हर बार उसे माफ़ कर देती थी। चंचल का माफ़ कर देना ही मिहिर को अपनी पराजय लगता था। वो चाहता था की चंचल उससे झगडा करे। क्यूंकि वो जानता था की जिस दिन वो उससे नाराज़ होकर झगडा करेगी उसी दिन उसकी विजय होगी।

चंचल बखूबी समझती थी उसके अहम् को उसका चुप रहना भी मिहिर के अहंकार को पोषित करता था। मिहिर का तिलमिलाया अहम् चंचल को हर हाल में पराजित देखना चाहता था वो उसके शांत स्वभाव को तोड़ देना चाहता था। ऐसी बातें करता था जिससे उत्तेजित होकर वो अपना धैर्य खो दे और गुस्से में कुछ अनुचित कहे अथवा करे। लेकिन वो हमेशा असफल रहता था।

एक दिन मिहिर ने चंचल का इतना अपमान किया की वो रो दी। चंचल को रोते देखकर मिहिर को अपने विजयी होने का एहसास हुआ। फिर एक बार चंचल ने उसे माफ़ कर दिया।

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मेरा आपसे दो प्रश्न है --

- क्या चंचल को अपमान से तिलमिलाकर मिहिर से नाराज़ हो जाना चाहिए था अथवा रोने के बाद पुनः अपने शांत स्वभाव के कारण मिहिर को माफ़ करके उसने उचित किया ?
Link
- मिहिर जैसे लोग , जो एक अति शांत से व्यक्तित्व को भी दुखी कर देते हैं , जो की किसी भी प्रकार से उसका नुकसान नहीं कर रहे , दुःख नहीं दे रहे , मित्र-धर्म भी निभा रहे हैं , क्यूँ ऐसा करते हैं ? इसके पीछे मिहिर की मानसिकता क्या है ? क्या मिहिर कमज़ोर है जो किसी को रोता देखकर विजयी महसूस करता है? किसी को तोड़ देना ही क्यूँ ध्येय होता है किसी का ?

लोग किसी के शांत स्वाभाव से भी द्वेष क्यूँ रखते हैं। मधुर संबंधों को मधुरता के साथ क्यूँ नहीं जीते ?

Zeal

Saturday, June 18, 2011

लेखक और क्रांति

क्या अकेला चना कभी भाड़ फोड़ सकता है ?

जब भी कहीं किसी देश में , किसी मुद्दे पर क्रांति आती है तो यह बिना जन-चेतना के संभव नहीं है। हर क्रान्ति के पहले वैचारिक-क्रांति का मस्तिष्क में होना सबसे जरूरी है। इसी को जागरूकता कहते हैं यह जागरूकता कैसे आती है ? संवाद से , मीडिया से , पठन से विमर्श आदि से

आज कम्पूटर द्वारा , अनेकों वेब-साईट्स पर , फेस-बुक पर , ट्विट्टर पर , ब्लॉगिंग द्वारा करोड़ों लोगों तक पहुंचा जा सकता है। अपने विचारों को अनेक लोगों तक पहुँचाया जा सकता है। लोगों की आवाज़ में आवाज़ मिलाना संभव हुआ है । Information और technology की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।

संचार के माध्यम से हिंसा-रहित , बिना खून-खराबे के , विचारों का आदान-प्रदान संभव हो सका है जन चेतना जगाने में आधुनिक तकनीक की महती भूमिका है।

व्यस्तता के इस दौर में जहाँ रोजी-रोटी के लिए व्यक्ति हड्डी-तोड़ मेहनत कर रहा है , और उसके पास आन्दोलनों में सड़क पर उतरने का वक़्त नहीं है , वहाँ पर संचार माध्यम से अपनी बात को लिखकर अपना योगदान कर पा रहा है बच्चा-बच्चा। और यही लिखित शब्दों की ताकत ही है जो समाज को , क्रांति की नयी ऊर्जा से भर रहा है

कितने ही लोग सड़क पर उतरकर आन्दोलन का हिस्सा नहीं बन पाते , अनशन पर भी नहीं बैठ पाते , लेकिन वे लेखन के माध्यम से अपना योगदान करना चाहते हैं , अपनी आवाज़ क्रांतिकारियों की आवाज़ में मिलाना चाहते हैं और हर क्रान्ति को सफल बनाने के लिए वैचारिक क्रांति लाना चाहते हैं। तो क्या लेखन में समय देना व्यर्थ है??

कोई भी क्रान्ति किसी एक के लाने से नहीं होती , जन-जन का सहयोग जब विभिन्न स्तर पर होता है , और लोग जी-जान से समर्पित होते हैं , वैचारिक क्रांति उन पर पूरी तरह छा जाती है , तभी कोई क्रांति अपना रंग लाती है।

क्या लेखक जो अपने लेखन से विचारों के बीज बोता है और विचारों को पैदा करता है , उसे आयाम देता है , और समय के साथ उसमें से क्रांति के अंकुर फूटते हैं , क्या यह भूमिका नगण्य है ?

Zeal

Wednesday, June 15, 2011

क्या अनशन व्यर्थ गया ?

दो अनशन -

  • बाबा रामदेव का अनशन भ्रष्टाचार और काले धन की वापसी के लिए
  • स्वामी निगमानंद का अनशन गंगा नदी बचाने के लिए।

एक की मृत्यु हो गयी और दुसरे का अनशन तुडवा दिया गया क्या दोनों असफल हैं ? क्या अनशन व्यर्थ गया ? क्या सरकार की विजय हुयी ?

मेरे विचार से , कुछ भी व्यर्थ नहीं जाता। विज्ञान की मानें तो ऊर्जा का नाश नहीं होता , ये केवल अपना स्वरुप बदलती है kinetic से potential , और कभी heat energy तो कभी sound आदि आदि...

इसी प्रकार बाबा के अनशन और स्वामी निगमानंद के अनशन से जो जन चेतना चुकी है , वही इस अनशन की सफलता है। सजग तो मनुष्य पहले से ही था, बस एक नेतृत्व की आवश्यकता थी मार्ग दर्शन की ज़रुरत थी अब जनता को दिशा मिल गयी है। यही सफलता है इस जन आन्दोलन की।

हार तो सरकार की हुयी है। सरकार ने इस पूरे प्रकरण में निम्न मिसालें कायम की हैं।

  • सरकार ने बर्बरता की मिसाल कायम की है।
  • इस देश में संतों का कितना अनादर होता है , ये बताया है।
  • कायरों का देश है जहाँ सोयी हुई निहत्थी जनता को मारा जाता है।
  • कोई भूखा प्यासा , देश के हित में मांग कर रहा है , तो कैसे उसके दम तोड़ने का इंतज़ार किया जाता है।
  • जनता के मूल अधिकारों का हनन करती है ।
  • लोकतंत्र की हत्या करती है ।
  • मानवता जैसी कोई चीज़ नहीं है राजनीतिज्ञों के दिलों में।
  • बाबा निगमानंद के ६८ दिन के अनशन पर भी जूँ तक नहीं रेंगी दृष्टिहीन और बधिर राजनीतिज्ञों पर।
  • ये सरकार तानाशाह है जो जनता पर शासन कर रही है , जनता के कष्टों से उसे कोई सरोकार नहीं है।
  • लोगों को five star होटल में बुलाकर गुप-चुप मंत्रणा करती है फिर धोखा और blackmail करके पत्र लिखवाती है , फिर पब्लिक में जलील करती है और सबके सोने का इंतज़ार करती और फिर निशाचरों की तरह अपनी असलियल दिखाती है।
  • इस देश में देशभक्त होना भी गुनाह है।
  • सच्चाई के मार्ग पर चलना गुनाह है।
  • दुश्मन मुल्कों के साथ नाश्ता पानी करती है।
  • आतंकवादियों को शाही दामाद की तरह रखती है , और मासूमों को पीटती है।
  • खुद तो दो जून की रोटी भी त्याग नहीं सकती , लेकिन देशहित सोचने वाले संतों और नागरिकों के मरने का इंतज़ार करती है।
  • सबसे बड़ी मिसाल तो घोटालों में कायम की है।
  • उससे भी बड़ी मिसाल सबकी धन-सम्पति पर आयोग बिठाने में की है
  • वाह जनाब वाह ! कमाल हैं आप !

विपक्ष की राजनितिक रोटियां -

विपक्ष में बैठे राजनीतिज्ञ भी अनशन की आंच पर अपनी कुटिल रोटियां सेंकते दिखाई दिए। घायलों का हाल चाल नहीं पूछा , केवल बयानबाजी की और जगह-जगह निरर्थक सत्याग्रह किया।

देशभक्ति के नाम पर अनावश्यक रूप से नाचा-गाया , लेकिन कोई देशभक्त भूख से दम तोड़ रहा है , उस दिशा में नहीं सोचा।

मायावती की सोंधी रोटी -

कांग्रेस की निंदा तो कर दी , लेकिन बाबा को अपने राज्य में घुसने की इज़ाज़त तक नहीं दी डर किस बात का ? सब एक जैसे हैं दम्भी और स्वार्थी चोर-चोर मौसेरे भाई

राहुल राजकुमार की राजनीति -

यत्र-तत्र गत्रीबों का झंडा लिए दिखाई दे जायेंगे। सब के दुःख-सुख से नकली सरोकार रखेंगे। देश के युवा को जागृत करते फिरेंगे। लेकिन जब लोग जागृत हो जायेंगे तो ये आँख बंद करके नंदन-कानन में underground हो जायेंगे

क्या इस सुकुमार को तंत्र की बर्बरता नहीं दिखी ? स्त्रियों , युवाओं और बुजुर्गों पर अत्याचार नहीं दिखा ? बड़ा selective दिल पसीजता है राजकुमार का।

ईमानदार प्रधानमन्त्री के रहते यदि भ्रष्टाचार पनपता है तो क्यूँ कोई अत्यंत-भ्रष्ट व्यक्ति को शासन की बागडोर सौंपी जाये , शायद राम राज्य वापस जाए ?

क्या ख़याल है आपका ?

Monday, June 13, 2011

जश्न-ए-ज़ील -- आज ZEAL ब्लॉग की प्रथम सालगिरह है -- आप सादर आमंत्रित हैं.

गत वर्ष १३ जून को ZEAL ब्लॉग पर लेखन आरम्भ किया था। आज इस ब्लॉग के एक वर्ष पूरे हो गए हैं। इस अवधि में जो ब्लॉगर , पाठक और टिप्पणीकार मेरे साथ रहे , उनका विशेष आभार। कुछ नाराज़ होकर चले गए , कुछ दो कदम साथ चलकर हार गए , कुछ दूर जाकर भी वापस गए। कुछ साथ ही साथ चल रहे हैं , ताउम्र साथ रहने के लिए।

  • आप सभी का हार्दिक आभारक्यूंकि बिना आपके प्रोत्साहन और सकारात्मक योगदान के ये यात्रा संभव ही नहीं थीमेरा व्यक्तिगत अनुभव यही है की प्यार सभी भावों पर भारी होता हैये आपसी प्यार ही है जो हमें एक दुसरे से जोड़े रखता हैखट्टी-मीठी यादों के साथ nostalgic हूँ...

कुछ लिखा है आप सभी के लिए , पहचानिए तो आप किन पंक्तियों में हैं , यदि आप पहचान लें तो अपनी टिप्पणी में पूरा नाम अवश्य लिखेंआप स्वयं को अथवा अन्य नामों को पहचान सकते हैंclue के रूप में पाठकों के नाम के initials लिख रही हूँ

-पापा तुम कितने अच्छे हो , कितना मुझको है प्यार दिया
मुझको 'बेटी' कह करके, हर बेटी पर उपकार किया।
I love you Dad ...

(clue- JC )

-तुम 'मोम' के जैसी भावुक हो ...clue-A S

-है ब्लॉग तुम्हारा बहुत बड़ा ,
जिसकी छाया में पला बढ़ा
है बरगद के सादृश खड़ा ,
हर ब्लॉगर का नग है जड़ा। -----clue - प्र

-चुन चुन कर कवियों को लाते हो
शायर को भी पढवाते हो
जब मुझसे मिलने आते हो
तो प्यार ही प्यार लुटाते हो
मैं जब भी अकेली होती हूँ,
सब 'musings' पर कह लेती हूँ -------clue- R k

-सुन्दर गजलों की मालिक तुम
हो कपिला सी तुम सरल-सरल
मन तेरा, मन-भावन है
टिप्पणी देती निर्मल निर्मल -------clue- N k

-धीर-गंभीर व्यक्तित्व तुम्हारा
जब भी घर तुम आती हो
माँ जैसा प्यार लुटाती हो ----clue-S C

-टिप्पणी के बदले टिप्पणी मिलती है,ये तुम ही तो समझाती हो
लम्बे-लम्बे लेखों से तुम अपनी पहचान बनाती हो ---------clue- R R

-शेक्सपियर की धरती पर ,
हिंदी का मान बढाया है --------clue -S v

-औद्योगिक नगर से आते हो
तुम मेरा मान बढ़ाते हो
कितने भी तुम व्यस्त रहो
पर आशीष सदा दे जाते हो -----clue-A

१०- अद्भुत , गरिमामय व्यक्तित्व तुम्हारा
दीन दुखी का दर्द समझते हो
"साहस नाम है दिव्या का (The ZEAL)"
ये कहकर मेरा मान बढाया है .------clue--B B

११-कुछ छोटे भी खोटे निकले
नहीं ज़रा भी मान दिया
पर 'दीदी' कह करके तुमने
दिल भर कर सम्मान दिया ----clue -- D D G

१२-निर्भीक , निडर तुम रहती हो
बिना डरे सब कहती हो
निरपेक्ष अपने वक्तव्यों में
नीर-क्षीर विभाजन करती हो ......clue- A G

१३ -भ्रष्टाचार की खातिर तुमने ,
मूंछों को कुर्बान किया -----clue- T S D

१४-मेरा तुम से है पहले का नाता कोई,
यूँ ही नहीं दिल लुभाता कोई ......clue - S

१५-तुम भाई मेरे अनमोल रतन
मैं बहन तुम्हारी 'शुष्क-शिला '----clue-P V

१६-'संगीत' तुम्हारी कविताओं में
रच-बस कर यूँ बहता है
बार-बार पढूं , और डूब जाऊं
मन ये मेरा कहता है --------clue--S S

१७-छोटे परदे पर तुम सबको
खुश करते और हंसाते हो
लेकिन अपनी गंभीर टिप्पणियों से
श्रेष्ठ बात कह जाते हो --------clue- A k

१८-तुम कितनी मेहनत करती हो
तुम सबकी 'चर्चा' करती हो
तुम मेरे दिल में रहती हो ------clue--V G

१९-तुम कविता सुन्दर रचते हो
और सबके दिल में रहते हो
बच्चों में भी तुम लोकप्रिय
हे 'मयंक' तुम हो सरल सहज ---clue- RC S M

२०-प्यार तुम्हारा निश्छल है
भरी हुयी हो करुणा से
'झील' तुम मुझको कहती हो
नाम तुहारा 'अरुणा' है -----clue---D. A


२१-दिल में जो तुम रखते हो
वो चित्रों से ही कह देते हो
टिप्पणी में कोई शब्द नहीं
बस smiling emoticon देते हो ---Clue--K K

२२-तुम प्यार असीम लुटाते हो
दुनिया भर की खबरें तुम
सब ब्लॉगों तक पहुंचाते हो
सबका जन्म दिन हैं याद तुम्हें
शुभकामनाएं देते और दिलवाते हो -----Clue--B S P

२३- अच्छी अच्छी बोध-कथा तुम
ब्लॉग पर अपने लगाते हो
जीवन कैसे जीना होगा
ये हमको तुम सिखलाते हो -------Clue -- H S

२४-लेकिन तुम सबसे अलग क्यूँ हो ?
भीड़ जिस तरफ चलती है ,
तुम उससे जुदा मेरे ही साथ चलते हो
अपनी एक पंक्ति में मुझे
तूफानों से लड़ने का साहस दे जाते हो.....Clue--M V

२५-है ओज तुम्हारी कविता में , स्नेह तुम्हारी बातों में
जब भी तुम घर आते हो , सारे 'झंझट' मिट जाते हैं ------clue ---S S 'J'



कुछ बेहतरीन टिप्पणियां आपकी , जिनके माध्यम से आप सभी को याद कर रही हूँ....पहचानिए खुद को अपने ही शब्दों में .... मेरा वादा है आप खुद को निम्नलिखित उद्घृत की गयी टिप्पणियों में अवश्य पायेंगेक्यूंकि आप मुझे भूल सकते हैं , लेकिन मैं नहीं ...तो फिर देर किस बात की ...पहचानिए खुद को ........


  • आज देखा सपना ही कल का सच बनता है खुदा उन आंखों को सलामत रखे और उनके नूर से दुनिया रौशन होती रहे दिव्या जी वादा रहा कि सपनों को सच बनते हुए मैं जरूर कैद करूंगा अपने कैमरे में ...आप श्रेष्ठ हैं ..और सर्वस्व संपूर्ण भी ...(clue -AKJ)
  • कुछ लोगों के कद सम्मानों से भी ऊंचे होते हैं.....(clue-V)
  • दिव्या रानी ! बहुत पहले एक कहानी पढी थी ...आज तुम्हारे सपने से याद गयी ....बता नहीं सकूंगा ...बस मेरी आँखें नम हैं ....एक बार और तुम्हें मेरा आशीर्वाद. ....(clue-K)
  • By the way, the women who fires machine gun by her words is now firing, sweet candy on us! :)
  • Apart from the Best,the most enthusiastic blogger!

  • हमारा मूल्यांकन, हमा्रे अन्तरमन से अधिक कौन करेगा?

  • आपकी लेखनी किसी भी पुरस्कार की मुहताज नहीं है ...

  • हमारे फन की बदौलत हमें तलाश करें,मज़ा तो तब है कि शोहरत हमें तलाश करें।

  • खुशियाँ कही से भी मिले...बटोर लेनी चाहिए!...अगर स्वप्न में कुछ पलों के लिए भी मिलती है, तो भी उन्हे गले लगा लेना चाहिए!...

  • .जिन आंखो में सपने होते हैं सच भी होते है...
  • ।hundreds of Comments at ur each and every Post are enough to prove that it was not merely a dream of yours. Personally i feel that these comments are much more valuable than those tiny awards....
  • ॥ पुरूषाकारं अनुवर्तते दैवम ॥अर्थात- प्रयत्न करनेवाले के साथ दैव(आशिष)रहता है।
  • दिव्या जी...जब मै कभी - कभी आप के ब्लॉग को पढ़ता हूँ तो यही देखता हूँ की ....मेरे अधूरे वाक्य को आप एक गजब ढंग से पेश कर देती है ! आप की लेखनी का नमूना अभी तक तो मुझे नहीं मिला !
  • नींद के स्वप्न तो क्षणिक होते है दिन में खुली आँखों से स्वप्न देखा करे वे साकार होते हैं
  • आपके सभी ब्लॉगों की रचना अति सुन्दर होती है ! सभी ब्लॉग ज्ञानवर्धक हैं ! सामाजिक समस्याओं और उनके समाधान से जुड़े हैं ! हमदोनो के आंकलन में आप के ब्लॉग हर तरह से हिन्दी भाषा के सर्वश्रेष्ठ ब्लॉग हैं ! रोचक शब्दावली , आकर्षक ले आउट और, overall presentation ! आज नहीं तो कल आपका स्वप्न सच होगा ही ! हमारी शुभ कामनाएं और आशीर्वाद ...
  • हम ब्लॉग्गर नहीं है, तो क्या हुआ?
    क्या वफ़ादार पाठक और टिप्पणीकार के लिए उस सभा गृह के एक कोने में भी जगह नहीं?
    क्या कुछ दिनों की अनुपस्थिति की सजा है यह?
  • Your father has a great handwriting. I enlarged the picture and read his message.
    I could not see even a single erasure or strike out.
    Many of the youngsters today just cannot write like this.
    They type or use the thumb for texting and can hardly hold a pen or pencil to write neatly.
    Even when they type they use the backspace or Del key more often than any other key.

    Please convey my regards to him.
  • we need to learn to contain ourselves in mist of strangers and not share our personal tidings with everyone
  • विकास संसाधनों का हुआ है स्त्री पुरुष की मानसिकता का नहीं । इनमें आज भी वही हॉमोन्स बनते हैं जो कि हज़ारों साल पहले बनते थे। एहतियात बेहतर है ।
  • ये जिन्दगी इतनी आसान नहीं प्यारे गैर तो गैर अपने भी मेहरबान नहीं प्यारे ||वे रिश्ते जब अपनी कीमत तय कर ले | मोल चुका देने में, नुकसान नहीं प्यारे ||
  • यह सरकार उसी राह पर निकल पड़ी है जिसपर इंदिरा जी इमरजेंसी में निकल पड़ी थीं। अच्छा प्रेरक पोस्ट।
  • सच में यह एक पार्दार्शिकता की क्रांति है...भ्रष्टाचार के खिलाफ सशक्त आवाज है॥इन मुद्दों को राजनीतिज्ञों के हाथ का खिलौना न बनने दें। सभी को इस क्रान्ति में सभी मतभेद भुला कर एकजुट होने की ज़रूरत है...
  • इस क्रांति को तोड़ना बहुत सरल है..... बस, हिंदुत्व का ठप्पा लगा दीजिए! हमारे यह लिखने तक शायद यह क्रांति टूट चुकी होगी:(
  • विश्वास फिर अंधविश्वास और उसके बाद विश्वास घात के आसार ज्यादा रहते हैं। वो जो कहते हैं की जबान से निकली बोली और बन्दुक से निकली गोली वापस नहीं जाती. सो किसी से कुछ भी बोलने के पहले चाहें वो जान पहचान वाला हो य अनजान दस बार सोच ही लेना बेहतर है.
  • we should keep the confidentiality and trust which is bestowed upon us, but as always exceptions are always there !!
  • हमें कोई छोटा मोटा काम मिल जाये दिव्याजी तो बहुत खुशी हुई | वैसे आपने तो सारे प्रश्न चुटकी में सुलझा दिये, अब बचा हि क्या है| और हां एक हिंदी ब्लॉगर और महिला ब्लॉगर के PM बनने से हमारी भी इज्जत बड गयी, अब जरा रोब झाड सकेंगे, दिव्याजी हमारी दोस्त है! पता नही आपको? :) :).
  • बेशक निजता का सम्मान किया जाना चाहिए...इसी में मित्रता की गरिमा है।
  • I hope that when people tell us they will make public or this and that then at least we know how good a friend they are
  • प्रेम वही कर सकता है जिसमें जुनून होगा... जिसमें जुनून और पाने की चाहत ही नहीं वो किसी भी काम को नहीं कर सकता..
  • व्यक्ति के दोषों के लिये पूरे वर्ग को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।
  • मै आप से वादा करती हूँ की मैं न तो ऐसे जुमलों का कभी खुद प्रयोग करुँगी और न ही सुनूंगी
  • इस समय देश को जिस क्रान्ति की ज़रूरत है उसका आवाहन हो चुका है .
    मुँह मोड़नेवाले कायरों में श्रेणी में गिने जाएँगे ।
  • Those who have read British India history will know how slowly the colonial rule is coming back to India।
  • इस भ्रष्‍ट सरकार का तो समझ आता है लेकिन बुद्धिजीवियों का ताण्‍डव समझ नहीं आ रहा है।
  • बहुत सारे अच्छे मुद्दों के बीच "भारत स्वाभिमान" का मुद्दा मेरे मन में बरसों से है। जब हम अपना, अपने प्राकृतिक संसाधनों, अपनी प्रतिभा का सही नियोजन कर इसे उद्द्याम्शीलता में नहीं बदलेंगे तब तक हम दुसरे देशों, विदेशी भाषाओं, विदेशी संस्कृतियों के ग़ुलाम बने रहेंगे; घोषित आजादी के बाद से ही हमारा इंडिया यही अनुसरण करता दिखा रहा है. आवश्यक परिवर्तन के लिए पहले मन से और फिर समूह के साथ क्रान्ति तो बनता है
  • तो अब तक कर क्या रहे थे? क्या अपने आप बदला है किसी नें खुद को? यह बात तो सभी यथास्थितिवादी सदियों से कहते आए है। पर सुधार का झंडा हमेशा किसी महापुरूष को उठाना पडता है। इस ज्ञानगम्भीर बात में फुसलाकर पापो से बचने के प्रयास मत करो। बुरे स्वयं कभी नहीं सुधरते किसी नेतृत्व की हृदयभेदी प्रेरणा की जरूरत रहती है।यदि इन्सान में स्वयं सुधरने की कुवत होती तो न महापुरूष अवतार धारण करते न सुधारक आकर अपना जीवन ही होम देते।
  • बाबा रामदेव का मुद्दा सही है और इनको इमानदार लोगों का सहयोग मिलना ही चाहिए लेकिन उनको सहयोग करने के नाम पे कुछ भ्रष्ट राजनेताओं और पार्टियों ने अपना उल्लू सीधा करना शुरू कर दिया है और यही बाबा के भ्रष्टाचार मिटाओ अभियान को नुकसान पहुंचा रहा है।
  • मैं फिर दोहराऊंगा कि आजादी इस लिये मिल गयी कि लोग अधिक पढ़े लिखे नहीं थे. गांधी जी ने बुलाया कि हाजिर. सुभाष बाबू ने आवाज दी कि दौड़ पड़े अपना सबकुछ लेकर.किसी ने यह नहीं कहा कि गांधी जी आप वकील हो कहां आजादी के संघर्ष में सियासत चमकाने आ गये.किसी ने यह नहीं कहा कि भगत सिंह पढो-लिखो, यह तुम्हारा क्षेत्र नहीं.किसी ने यह नहीं कहा कि सुभाष बाबू अपने खातों की जांच कराओ...
  • मातु पिता गुरु गणपति सादर..पूजहू सदा होय सुख आगर
  • Speechless ,but salute the maneuverability to that one who cares at that extant। That is only beloved Dad undoubtedly .
  • माता-पिता के सत्कर्मों का सीधा लाभ संतान को ही मिलता जाता है....
  • 'Feedjit' लगा के करते है वो इन्तेज़ारे यार,
    'टिप्याए' गर न आके, तो होते है बेक़रार,
    'तुम' को क्या फ़िक्र, तुम तो 'शतक-वीरनी' रही,
    याँ मर-मराके होता है इक आंकड़ा ही पार!!!
  • अच्छा बच्चू , तू तो मेरा दुश्मन है , फिर तेरी जुर्रत कैसे हुई मेरे ब्लौग पर झाँकने की ....(अब मिलिए , Hypertensive हो गए जनाब )
    पहली बार डॉक्टर दिव्या की पोस्ट पढ़ कर अनायास ही हँसी आ गई।अच्छा लगा.अभी तक सिर्फ गंभीर विषयों पर लिखी गई पोस्ट ही पढ़ी थी ।
  • इरफ़ान... मैने लिखा तो था कि यह बसंत होगा या माली , जो बिना लालच मे गुल की देख भाल करता हे, प्यार करता हे, एक सच्चा प्रेमी, जो गुल को देख कर उसे बडता फ़ुलता देख कर उस की खुशी मे खुश होता हे...
  • हमारे मोहल्ले में इतने तो नहीं मगर इसका ६०% के एक थे, पूरा मोहल्ला उनको पीठ पीछे लल्लु राम पुकारता था...उसी से डर के हमने इस दिशा में कभी कदम ही नहीं उठाये. न कभी ललक हुई.

    जैसे हैं, स्वीकृत है उस जगह, जहाँ होना चाहिये, विवाह भी हो चुका है उन्हीं से तो मान्यता प्राप्त भी कहलाये और सबसे ज्यादा खुशी की बात कि प्रसन्न भी हैं... :) :)
  • हम सदा ही आदर्श और यथार्थ के बीच एक पुल बनाते रहते हैं। जितना यथार्थ की ओर बढ़ेंगे उतना स्थायित्व भी आता है। बड़ा ही सुन्दर गीत।
  • आपकी बेबाक लेखनी ने गुल गुलशन और गुलफाम सहित इरफ़ान भी दिखा दिए , हमारे,आपके,सबके अन्दर बैठे है गुलफाम भी इरफ़ान भी, इस सभ्य समाज में ज्यादातर गुलफाम ही उभरते है , इरफ़ान तो छिपे ही होते है या लगभग नदारत। ये विडंबना ही है की किसी गुल ने कभी नहीं कहा मुझे इरफ़ान मिल गया. इस बेचैन समाज में सभी गुलफाम ही है इरफ़ान तो भगवान् हो गए मूर्तियों में बैठे है .

  • आदर्श प्रेमी का सटीक विश्लेषण किया है आपने...किन्तु .....‘कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता.कभी ज़मी तो कभी आसमां नहीं मिलता.’शायद यही प्रेमी और आदर्श प्रेमी के बीच का अन्तर है...केवल प्रेमी ही नहीं , दुनिया में कुछ भी आदर्श नहीं है। रसायन शास्त्र में आदर्श गैस का जिक्र आता है, लेकिन वह भी केवल सैद्धांतिक तथ्य है।मेंहदी हसन साहब द्वारा गाई यह ग़ज़ल उनकी सबसे बेहतरीन ग़ज़लों में से एक है। राग झिंझोटी पर आधारित इस ग़ज़ल को जितनी बार भी मैं सुनता हूं, हर बार नए-नए भाव प्रकट होते हैं। आपका आभार, इसे यहां प्रस्तुत करने के लिए।
  • आदर्श प्रेम और आदर्श प्रेमी की कल्पना एक सुख एहसास से ज़्यादा कुछ नहीं.....अपने परिवार को एक सूत्र में बाँध कर साथ साथ चलते जाना भी आदर्श प्रेम का ही उदाहरण है मेरे विचार में...
  • पवित्र प्रेम (आदर्श भी कह सकते हैं) शाश्‍वत सम्‍बन्‍धों का आधार है। शिष्‍ट व्‍यवहार शालीनता से भरा होता है, जबकि दूषित व्‍यवहार अकीर्तिकर होता है।

  • थोड़े से शब्दों में बहुत बड़ी बात मैं आपकी बात से बिल्कुल सहमत हूँ क्युकी इन्सान बिना किसी स्वार्थ के कोई काम करता ही नहीं और जब तक स्वार्थ है तक तक लोभ और इर्षा का होना लाज़मी है और जब तक इन्सान में ये सब है और प्रेम में सफल हो ही नहीं सकता प्रेम वही सफल है जहां लेने की नहीं सिर्फ देने की चाह हो |
  • गुल, गुलशन, गुलिस्तान... सभी में प्यार की समीर :)
  • आदर्श तो पाने कि कोशिश की जाती है...तब कहीं ९०-९५% करीब पहुँच पाते हैं...लेकिन आदर्श की कल्पना भी कम नहीं है...अगर हम कुछ खोज रहे हैं तो...वो कहीं ना कहीं होगी जरुर...तलाश जारी रखिये...

  • फैज़ की इन पँक्तियों ने आकर्षित किया ।आदर्श प्रेमी की परिभाषा फैज़ ने भी इसी गज़ल में दी है ।
" मकाम फैज़ कोई राह में जँचा ही नहीं
जो कू--यार ( यार की गली ) से निकले तो
सू--दार ( सूली की ओर ) चले "

  • हाँ ,स्त्री और पुरुष की मानसिकता में काफ़ी अंतर है.अक्सर तो पुरुष स्त्रियों से संबद्ध बोतों को वे गंभीरता से लेते नहीं ,कभी लें भी लें तो कुछ ही समयके लिए .फिर वही सोच कि हमें क्या करना .स्त्रियाँ दूसरी को परेशानी में पड़ा देख कर सोचती हैं कहीं हमें झंझट में न पड़ जायँ सो सहानुभूति दिखा कर तटस्थ हो जाती हैं .पुरुष दूसरे आदमी की खोट जानते हुए भी चुप्पी लगा जाते हैं ,उसके साथ यह भी डर होता होगा कहीं बेकार मैं बदमज़गी न हो जाय ..स्त्रियों पर आक्षेप करने में उन्हें कोई ख़तरा नहीं लगता कभी मज़ा लेने के लिए ,या दूसरे समर्थन करने के लिए ,तो वहाँ कमेंट करने से चूकते नहीं .साघारणतया ऐसा होता है -विशेष स्थिति की बात अलग है
  • हम्म ...और या फिर इतना शक्तिशाली होना होगा कि अपनी उपस्थिति मात्र से बदल सकें हर तरह की नकारात्मक उर्जा के प्रवाह को ! जैसे बुद्ध की चेतना से अंगुलिमाल की धारा बदल गयी थी।


    • "art of weeding" a new concept of "art of living"...a novel thought...and true one.

    • Theory of natural selection और Auto polarization दो ऐसे कंसेप्ट हैं जो जाने-अनजाने, जीवन के नेपथ्य में काम करते रहते हैं। ये प्रत्येक को वांछित परिणाम प्रदान करते हैं :)

    • नकारात्मक - सकारात्मक उर्जा सभी में घटती बढती रहतीं हैं।केवल व्यक्तियों पर ही यह निर्भर नहीं करता.देश,काल परिस्थिति भी इसमें अपना योगदान करती रहतीं हैं.यदि किसी को शराब पिला दी जाये,और कहें बहके तो यह संभव नहीं लगता.इसीलिए पूर्ण सत्संग की आवश्यकता है ,जैसा कि मैंने अपनी पोस्ट 'बिनु सत्संग बिबेक होई' में वर्णित किया है.

    • राधिका उवाच - " कहती तो तुम ठीक हो दिव्या .....मगर मुश्किल यह है कि ये मरे नासपीटे निगेटिव ऊर्जा वाले इस बुरी कदर चिपके हुए हैं कि इन्हें निराई-गुडाई करके निकाल फेकना बड़ा मुश्किल हो गया है। अब अपने बॉस को ही लो .......कैसे निकाल फेकूँ उस मरदूद को ?

    • additionally there is one more thing called constructive negativism like worst case Scenario analysis

    • bahut sach hai...

    be the change we wish to see in the world...gandhi ji...

    be strong and concentrate on the goal..and negativity will turn into positivity...
    i think being positive is best way to avoid negative thoughts ....
    i second babusha ji...we can't be lord buddha but we should try....
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    • दिव्या जी, यह आलेख नहीं बल्कि एक कहानी है...जीवन की गांठों से परिचित करवाती। सपना हमेशा निराश करता है क्योंकि बहुत कम संभावनाएँ होती है उसके पूरा होने की। लेकिन विराट जीवन को जिंदा रखता है...विराट जीवन की अहमियत समझता है, वह जीवन को चलायमान रखने के लिए नम्र है...लेकिन कर्म के बिना वह स्वप्न को पूरा नहीं कर सकता। सपना को विराट होने के लिए कर्म करना ही पड़ेगा...और इस रहस्य को भी समझना पड़ेगा कि जीवन है तो सपना है। विराट भी तब तक साथ देता है जब तक जीने की इच्छा और कर्मण्यता का भाव है।

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    very intricate !!
    really sometimes people ( which involves u and me ) don't realize that our actions are hurting others, and often its too late to realize।

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    Congratulation on 200th post. Expressing love is equally important as लव

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    दिव्या जी आपकी बात विचारणीय है किन्तु यदि ऐसे लोग अपने बहुत निकट के ही हों तो उनसे कैसे निबटा जाये ! ये तो दिन रात आपके साथ आँखों के सामने ही रहते हैं और आपके हर निर्णय और प्रस्ताव को प्रभावित करते हैं ! सारगर्भित आलेख
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    i try to say to myself॥ "avoid yaar" whenever i am in contact with these negative vibes ppl.. i gained this mantra during an orientation programme.. its really हेल्पफुल
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    खर-पतवार, निराई-छंटाई आदि शब्दों को एक अरसे के बाद पाकर बेहद खुशी हुयी कि ऐसे शब्द अभी भी हैं।इस विचार को पढ़ते समय न जाने कितने चहरे मेरी नज़रों से गुजर गए, सारे के सारे नकारात्मक उर्जावाले हैं। दूरी बनाये रखूंगा.एक बार फिर सचेत हो गया, सावधान हो गया.
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    २०० वीं पोस्ट की बधाई।मेरे विचार से कथा का सुखांत ही होगा.सपना ने सशक्त होकर पुन: आने का विचार करके ही घर को छोड़ा है,सदा के लिए नहीं. शाश्वत सत्य है कि उपलब्धता में मूल्य ज्ञान नहीं होता.मूल्य ज्ञान तो खोने पर ही होता है.भाई -बहन के स्नेह में अहम् नहीं होता.विराट को बहन के खोने पर दुःख अवश्य होगा.दुःख के क्षणों में मनुष्य अपनी अंतरात्मा को जरुर टटोलता है.विराट इन क्षणों में आत्म विश्लेषण कर अपनी कमी का एहसास जरुर करेगा और सपना को ढूंढ कर जरुर लायेगा.
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  • दिव्या जी ,बिलकुल सही सपना देखा आपने ....आप अपने तेवर की 'सर्वश्रेष्ठ ब्लागर ' हैं , वह भी निःसंदेह |
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बाबा के जिस पत्र का लोग हवाला दे रहे है उसमे गलत क्या है ? उसमे यही लिखा है कि- मांगे मान ली जाएगी तो अनशन ख़त्म कर दिया जायेगा | जहाँ तक मांगो पर सहमती बन कर समझोता होने वाली बात है तो सरकार ने भी बाबा को आश्वासन दिया था और उस पत्र में बाबा ने भी अनशन खत्म करने का आश्वासन दिया था उसमे गलत क्या है ?जब तक सरकार सब कुछ लिखित में नहीं दे देती तब तक बाबा अनशन ख़त्म कैसे कर सकते थे ?वैसे भी अब इस धूर्त सरकार पर कौन भरोसा करेगा ? पहले अन्ना टीम को इसने ठगा अब बाबा को शिकार बना दिया

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दमनपूर्ण कार्यवाही गलत है तो गलत है ही। ऐसे मौके पर दुष्टता का खुलकर विरोध करने के बजाय, अनशन को सरकारी आज्ञा थी या नहीं, जनता को सुशासन की आशा रखनी चाहिये या बाबा के कपडे भगवा क्यों जैसे बेतुके सवाल उठाने वालों की मंशा क्या है, यह किसी से छिपा नहीं रह सकता है। (बाबा और दिव्या दोनों से अनेकों मुद्दों पर सहमत होते हुए भी) मैं यही कहूंगा कि सरकार ने कायरतापूर्ण क्रूरकर्म किया है, यह घटना शर्मनाक है और इसका मुखर और प्रखर विरोध ज़रूरी है।

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महाकाव्लिख डालो इतना पतन दिखाई देता है
घोर गरीबी में जकड़ा ये वतन दिखाई देता है
जनता की आशाओं पर इक कफन दिखाई देता है।
उजड़ा उजड़ा सच कहता हूँ चमन दिखाई देता है

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यह निंदनीय तो हैं ही पर इसकी निंदा करने के लिए हमें घरों से निकलना होगा। प्रतिकार करना होगा। तरीका जो भी हो

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जब दिग्विजय सिंह जो लादेन के साथ सम्बन्ध रखने वाला हो कपिल सिब्बल के पास भी विदेशी बैंको का अकाउंट हो कसाब और अफजल गुरु जिनके चचेरे मौन्सेरे हों तो दिव्या जी ये स्वतन्त्र भारत, ऐसी सरकार से क्या उमीद कर सकता है जब बडबोले कपिल सिब्बल ने चिठ्ठी से बाबा को धमकाया तो तभी आशंकाए घर करने लगी थी अभी कांगेरेसी ब्लॉगर भी इसे सांप्रदायिक कहलाने पर तुले है . हिन्दू पूजा करता है भगवा पहनता है , तो साम्प्रदयिक है मुस्लमान सवेरे बांक देता है मस्जिद से , तो धर्म निरपेक्ष है सोनिया गिरजाघर जाती है तो धर्म निरपेक्ष है परन्तु अडवानी , ऋतंभरा मदिर की बात भी करते है तो सांप्रदायिक है . जब है भ्रस्ताचार के बाद साम्प्रदायिकता की भी परिभाषा स्पष्ट की जाय इस देश में.

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भ्रष्टाचार के खिलाफ जो आन्दोलन शुरू हुआ है ... वो यदि बरकरार रहे तो निस्संदेह समाज और देश में बेहतरी होगी ... आम जनता को इस मुहीम में अन्ना और रामदेव जी का साथ देना चाहिए ... इस आन्दोलन के खिलाफ केवल वही लोग आवाज़ उठाएंगे जो खुद भ्रष्ट खेमे से हैं या फिर बेवक़ूफ़ है
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DIVYA MAM ME CHAUNGA KI APKA KHWAB PURA HO SUBHKAMNAYE APKE SATH HAIN . . . . . . . . . JAI HIND JAI BHARAT

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..Dearest ZEAL:

It feels very good to see your huge love for the nation and your respectful liking for various languages. Today, on your birthday, I am sending to you in three languages, this ghazal which is full of love for the soil of one’s native place. Hope you like it. Given below is the link to this unforgettable ghazal:


With the best wishes on your birthday,

Arth Desai



नदी नी रेत मा....

[01]

Nadi ni retmaa ramtu nagar made naa made

Fari aa drayshya smruti pat upar made naa made

Nadi ki ret mein kheltaa nagar mile naa mile

Fir ye drashya smruti pat par mile naa mile

A City playing amidst the river sands, may or may not be

Again this fine sight in the mind’s eye, may or may not be

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Bhushan ji,

This is wonderful news. I am so thrilled to see this about our Dear Dr. Divya Srivastav and her articles being appreciated worldwide on the blogworld, specially the tone of recognition of her YEOMEN service to women in particular and human kind in general is highly laudable, indeed. KUDOS!. Much appreciated that you have highlighted this here as well.
Dr. Divya definitely deserves many more of such accolades and "This is DEFINITELY a great way to encourage her in her mission, for which she has chosen to give her mind, heart and soul"

When I was in school, back home in India, my Physics professor used to say "If one uses just the Mind, one can be called intelligent, if Mind and heart are used the person would be extra-ordinarily intelligent/Brilliant, but if one uses the mind, heart and soul, the person would be called a genius" -- And Dr. Divya uses all three!
Many regards and gratitude for publishing this on your Blog site.
Jagan Ramamoorthy
Los Angeles, CA. USA

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मधुमोहिनीजी का एक गीत है :

रूप को सिंगार दे तो जानिए वो प्यार है
रंग को निखार दे तो जानिए वो प्यार है
जीने की जो चाह दे तो जानिए वो प्यार है
ज़िंदगी को राह दे तो जानिए वो प्यार है
मोम-सा पिघल गया तो जानिए वो प्यार है
दर्द को निगल गया तो जानिए वो प्यार है
भावना को ज्वार दे तो जानिए वो प्यार है
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आँख बोलने लगे तो जानिए वो प्यार है
भेद खोलने लगे तो जानिए वो प्यार है
बिन कहे सुनाई दे तो जानिए वो प्यार है
हो हो दिखाई दे तो जानिए वो प्यार है
हो के दूर पास हो तो जानिए वो प्यार है
मन युँ ही उदास हो तो जानिए वो प्यार है
दर्द से उबार दे तो जानिए वो प्यार है


बहुत भावपूर्ण सुन्दर पोस्ट
आभार & शुभ कामनाएं

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कुछ रूठे हुए पाठकों के लिए --

क्या तुम्हारा प्यार इतना हल्का था,
जो ज़रा सी बात पर खफा हो गए ?
तुमको बुला रहीं हूँ वापस
जाओ , गर प्यार है
फिर कहना ...
हमसे आया गया ,
तुमसे बुलाया गया

कठिन है राह बहुत ,
थोड़ी दूर साथ चलो

आभार

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