Wednesday, September 29, 2010

राहुल गाँधी के नाम एक खुला पत्र --- दिव्या

प्रिय राहुल (अमूल बेबी),

आज  ख़याल आया , क्यूँ न तुम्हें एक पत्र लिखूं। हर किसी को जीवन के किसी न किसी मोड़ पर , किसी की ज़रुरत होती है। तुम्हें नहीं लगता की तुम्हें है, लेकिन तुम्हें ज़रुरत है एक शुभचिंतक की, जो तुम्हे बताये की तुम क्या करो और देश को तुमसे क्या अपेक्षाएं हैं।

तुम सोने के पिंजरे मैं कैद हो, आजादी का सुख तुमने नहीं चखा है। बड़े वृक्ष के नीचे छोटा वृक्ष कभी नहीं पनपता । तुम कांग्रेस रुपी महा-वृक्ष के नीचे दिन प्रतिदिन सूख रहे हो। बाहर आ जाओ इस मृग-तृष्णा से । पार्टी के दिग्गज तुम्हारी पवित्र और मौलिक सोच को बदल डालेंगे और तुम्हें पता ही नहीं चलेगा। अपनी पहचान खुद बनाओ । त्याग दो मोह , इस उपहार में मिली विरासत का।

तुम्हारे पिताजी ४५ वर्ष की आयु में प्रधान मंत्री बने थे । तुम ४० वर्ष की आयु में ही अपने पिता से ज्यादा दुःख और दुनिया देख चुके हो। तुम देश का नेतृत्त्व करने की क्षमता रखते हो , लेकिन नहीं, त्याग दो कुर्सी के मोह को। इनकार कर दो लेने से, विरासत में मिलने वाले उपहारों को।

प्रिय राहुल तुम शतायु हो, ऐसी मेरी कामना है तुम्हारे लिए। देखो , अब सिर्फ ६० वर्ष हैं तुम्हारे पास इस देश के लिए कुछ कर सकने के लिए। इसलिए देर मत करो । आज़ादी के ६० साल बाद भी हम लोग दासता और मानसिक गुलामी में जकड़े हुए हैं। तुम कुछ करो राहुल। मुक्त कर दो अपने देशवासियों को इस विकृत मानसिकता से।

अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करो । तुम्हारे पास पैसा है, रुतबा है, जज्बा है , तुम शक्तिशाली हो। तुम्हारी आवाज़ गरीबों की, इमानदारों की, देश भक्तों की आवाज़ को मजबूत बनाएगी। विरासत में मिली अपनी शक्तियों को अपने लिए नहीं बल्कि अपने देश के गौरव की रक्षा , तथा जरूरतमंदों के लिए लगाओ। अगर तुम्हारे जैसे ताकतवर लोग नहीं सोचेंगे तो हम जैसे मामूली लोगों के आवाज़ उठाने से क्या होगा भला ? हमारी आवाज़ में आवाज़ मिलाओ राहुल।

सिद्धार्थ / राहुल / बुद्ध /- की तरह घर छोड़कर संन्यास लेने की जरूरत नहीं है । वहीँ रहो, उनके साथ रहो , लेकिन एक पार्टी के लिए मत जियो और सिर्फ अल्पसंख्यकों के लिए मत जियो। तुम पृथ्वी पर सबसे बड़े देश के सपूत हो। तुम्हारे एक -अरब भाई-बहन हैं। सबके बारे में सोचो।

और हाँ राहुल , अपनी एजुकेशन और बढाओ और कोशिश करो ये समझने की, कि हमारे देश में उच्च शिक्षा के लिए कितनी कम सीटें हैं और शिक्षा मेंहंगी भी है। कुछ करो । तुम कर सकते हो , क्यूंकि तुम सक्षम हो। देश में विद्यार्थियों को अच्छे शैक्षणिक संस्थानों कि ज़रुरत है। हो सके तो प्रति वर्ष , हर कसबे में एक विद्यालय और एक चिकित्सालय खुलवाओ।

तुमसे बहुत अपेक्षाएं हैं देश को। तुम कांग्रेस के नहीं , भारत माता के सपूत हो। लज्जित मत करो अपनी माता को। अभी भी देर नहीं हुई है, सही दिशा में बढ़ो । किसी के बहकावे में मत आओ। देश के बड़े-बड़े मुद्दों पर तटस्थ मत रहो। तुम्हारी चुप्पी बहुत खलती है। चुप रहना सबसे बड़ा अपराध है। इसके लिए ये गरीब जनता तुम्हें कभी नहीं माफ़ करेगी , जो तुम्हारे आगमन पर तुम्हें पलकों पर बिठा लेती है।

काश्मीर मुद्दा, अयोध्या मुद्दा, उच्च शिक्षा, वृद्धों और बच्चों , सबके लिए कुछ करो। कब तक यायावरी में जिंदगी गुजारोगे ? आज हम गरीबों क़ी महनत का ७० हज़ार करोड़ रुपया पानी क़ी तरह बह गया। इस पर कुछ बोलो, अंदर के सारे भेद खोलो । सच को छुपाओ नहीं। गुनाहगार को बचाओ नहीं। तटस्थ मत रहो, क्यूंकि वो तुम्हारे अपने हैं ? क्या हम सभी तुम्हारे नहीं हैं ?

प्रिय राहुल , तुम बदलाव लाना चाहते हो न ?, तो फिर देर किस बात क़ी ? स्वजन के मोह में गांडीव मत रखो। बांधो सर पे कफ़न और अपनी देश-सेवा से ये बता दो क़ी तुम्हारी रगों में भी देश-भक्ति से भरा , भारतीय लहू दौड़ रहा है।

मौका दो, नेताजी, भगत सिंह और शहीदों को तुम पर नाज़ करने का।

बता दो देश को , कि तुम्हारा जीवन देश के लिए समर्पित हैं। सुख और विलासिता में रहकर , देश के प्रति अपने कर्तव्यों को मत भुला देना।

जागो राहुल, देर न करो ।

तुम्हारी शुभचिंतक ,
दिव्या।

Tuesday, September 28, 2010

वोट बैंक बनाने के लिए आप कितना नीचे गिरेंगे चिदम भाई ?---ईमान, हया, शर्म सब बेच खायी ?

वोट बैंक बनाने के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते चिदंबरम महोदय ने " भगवा- आतंक " से सावधान रहने के लिए कहा है इस कथन से इन्होने लाखों लोगों को आघात पहुँचाया है लोगों के दिलों में इनके लिए विश्वसनीयता ख़तम हो गयी है

जनाब ने अपने वक्तव्य के लिए शानदार समय का चयन किया जब कोंग्रेस कई मुसीबतों से जूझ रही है, और देश को ठीक से संभाल नहीं पा रही है मुद्रा-स्फीति , रिसेशन , खेल आयोजन , कश्मीर आतंक, वहां के विद्यार्थी जो पढने के बजाये हिन्दुस्तान का झंडा का जला रहे हैं , अपनी ही सुरक्षा के लिए तैनात सुरक्षा-कर्मियों को पत्थरों से मार रहे हैं और हिन्दुस्तान-विरोधी नारे लगा रहे हैं ऐसे लोगों को सिर्फ अपने वोट बैंक के मद्दे नज़र समर्थन मिल रहा है ? शर्मनाक है आपका वक्तव्य और विश्नियता

भगवा -गेरुआ - केसरिया---

  • प्राचीन काल से ऋषियों द्वारा प्रयुक्त।
  • भारतीय झंडे में सबसे ऊपर 'बलिदान' का सन्देश देता हुआ।
  • स्वामी विवेकानंद ने जब कलिफोर्निया में parliament of religion में लाखों लोगों को संबोधित किया था तोभगवा रंग का साफा बाँधा था , जो शांति , सौहार्द्य एवं एकता बनाये रखने की अपील था
  • सनातन धर्म में भगवा रंग बलिदान और निर्वाण का प्रतीक माना गया है . हमारे ऋषि मुनि भी इसी रंग के वस्त्र पेहेनते थे।
  • बौद्ध धर्म में भिक्षु भगवा पहेनकर क्या भगवा-आतंक फैला रहे हैं ?
  • चिदम भाई , आपका बेटा जो शिवगंगा में trusty है, वहां प्रत्येक साल , बलिदान और पवित्रता का प्रतीक भगवा झंडा फेहराया जाता है, क्या आपने कभी बेटे से बात की इस विषय पर ?
चिदम भाई अब बस भी कीजियेवोट बैंक का बैलेंस कुछ ज्यादा ही बढ़ गया हैअल्पसंख्यकों के वोटों के साथ राजनीति कब तक करेंगे ? श्रीमान आप तो समझदार हैं, कृपया समझिये की भारत एक सेक्युलर देश है , क्यों नहीं कांग्रेसी भी सेकुलर होजाते ? क्यूँ छिछोरे तरह की राजनीति करते हैं

बोलने के पहले दो बार सोचियेइंस्टंट और cheap पोपुलारिटी [ सस्ती लोकप्रियता ] , का मोह त्याग दीजिये

भगवा आतंक कहते हुए आपको शर्म नहीं आई ?

राजनीति मत कीजियेइमानदारी और सच्चाई से , निष्पक्ष होकर देश की सेवा कीजिये

हमें भी एक मौका दीजिये नेताओं पर गर्व करने का

Monday, September 27, 2010

हमारा जीवन और अपेक्षाएं !

"Greater the expectations, Greater is the disappointment "

बहुत कोशिशों के बाद भी हमको ये मालूम पड़ता है की कहीं न कहीं हम भी , किसी न किसी से कुछ अपेक्षा कर ही रहे होते हैं। अपेक्षाएं हमें कुछ नहीं देतीं , सिवाय निराशा के।

पत्नी या पति चाहे सब कुछ समर्पित कर दें एक दुसरे के लिए, फिर भी कहीं न कहीं कुछ शेष रह ही जाता है॥

दोस्त कितनी भी संजीदगी से आपके साथ हो, लेकिन कहीं न कहीं वो अनजाने में ऐसी कोई भूल कर रहा होता है , जिससे उसके दोस्त का भला नहीं बल्कि नुकसान हो रहा होता है, क्यूंकि मानवीय भूलें तो स्वाभाविक हैं। और हमें पता भी नहीं होता की अमुक व्यक्ति की हमसे अपेक्षाएं क्या है।

इसलिए स्वयं को दुखों से बचाने के लिए हमें कोशिश करनी चाहिए की हम किसी से कोई भी अपेक्षा न रखें।

अपेक्षाएं हमारे व्यक्तित्व को कमज़ोर बनाती हैं। जब हम अपेक्षाओं का दमन करने में सफल हो जाते हैं , तो हमारे आत्म विश्वास में वृद्धि होती है।

आभार ।

Sunday, September 26, 2010

मेरा पुनर्जन्म !

कभी-कभी जिंदगी में ऐसे भी कुछ हादसे होते हैं जो हमारी जिंदगी बदल कर रख देते हैं। ऐसा ही कुछ आज हुआ। कोशिश करुँगी की एक नए उत्साह के साथ अपने इस नए जीवन को , अपने ध्येय के लिए समर्पित कर सकूँ।

आभार।

महिलाओं की तसवीरें , टेलीफोन नंबर -----और अदरख की चाय.

कुछ शुभ-चिंतकों ने ये प्रश्न खड़े किये जिससे प्रेरित होकर ये पोस्ट लिख रही हूँ...

सन २००५ से इन्टरनेट का उपयोग करना शुरू किया। कभी तस्वीर नहीं लगायी प्रोफाइल में। शायद डरती थी । तो अब क्यूँ लगायी , मित्रों ने पुछा -क्या दुनिया अब बदल गयी है ? न भाई , कुछ नहीं बदला । सिर्फ मैं बदल गयी हूँ। अपने मन के बे-बुनियादी भय को भगा दिया है।

बहुत लोगों ने भय दिखाया तरह-तरह का। लेकिन जब दिव्य-ज्ञान हुआ तो समझा क्या रखा डरने में। छोटी सी तो जिंदगी है , निर्भय होकर जियो। लोगों के आक्षेप लगते रहे की फर्जी आई-डी है , न कोई प्रोफाइल, न फोटो, मत करो यकीन इस का।

शुक्र है इश्वर का , आज कल अग्नि-परीक्षा का चलन नहीं है, नहीं तो खामखाह , वो भी देनी पड़ती। खैर दिल ने हिम्मत दिखाई और दिमाग ने सहमति दे दी , और आज मुझे फर्जी होने के संगीन आरोप से बरी करवा दिया।
अरे भाई जब बाकी लोग निर्भय हैं तो मुझे एक तस्वीर लगाने से क्या डरना ?

अब बात करते हैं टेलीफोन नंबर की। जिसको देखो वही ये समझाइश देता मिलेगा महिला हो, अपना टेलीफोन नंबर मत देना किसी को । अरे भाई आप पुरुष हैं, तो आप सुरक्षित हैं ? और आप अपनी बुद्धि से अछे-बुरे की पहचान करके अपना नंबर दे सकते हैं ? आप जरूरत पड़ने पर शीघ्रतम उपाय [दूर-संचार ] से मित्रों की सलाह ले सकते हैं , लेकिन एक महिला के लिए ये गुनाह क्यूँ समझा जाता है की वो अपने किसी शुभ चिन्तक पर यकीन करके , जरूरत के वक़्त बात कर सके।

जो महिलाएं नौकरी कर रही हैं, वो अपना नंबर , अपने साथ काम करने वालों को दे सकती हैं, और जो महिलाएं चिकित्सा जैसे पेशे में हैं, उनका नंबर तो मरीज के पर्चे पर बिन मांगे बंटता है। फिर जो महिलाएं घर में रहती हैं, घर- परिवार के दायित्वों से ही जुडी हैं , क्या उन्हें अपना टेलीफोन नंबर सहोदर भाई, बहिन, माँ, पिता , पति तथा नजदीकी रिश्तेदारों तक ही सीमित रखना चाहिए ?

क्या महिलाओं को इंसान परखने की शक्ति नहीं होती ? क्या वो मुर्ख हैं जो बिना व्यक्ति को ठीक से समझे , किसी पर भी विश्वास कर लेती हैं? क्यूँ महिलाओं को स्वतंत्र नहीं है अपना भला बुरा सोचने-समझने की ? या फिर महिलाएं एक दायरे से स्वयं ही बाहर नहीं आना चाहतीं ?

क्या सिर्फ महिलाओं के ही टेलीफ़ोन नंबर का मिसयूज़ हो सकता है ? पुरुषों को कोई खतरा नहीं ?

चलो माना कभी-कभी किसी को अच्छा समझकर उसपर यकीन कर लेते हैं। बाद में पछताना भी पड़ता है । लेकिन भाई , इसके लिए भी उपाय हैं। बदमाशों का नंबर सेव कर लीजिये, यदि कोई परेशान करे तो मत उठाइये। एक दिन थक-हार कर आपको परेशान करना बंद ही कर देगा।

और यदि कोई सिरफिरा आपका पीछा करते-करते आपके घर पहुँच जाये तो उसको अदरख की चाय पिलाइए । सारी जिंदगी के लिए सुधर जाएगा और यही कहेगा ---

" फलाँ के घर का नमक खाया है......ooooooopsssssss ......उनके घर की चाय पी है। अब और त्रस्त नहीं करूँगा "

Friday, September 24, 2010

दिव्या और शेरा ---- जियो-उठो-बढ़ो-जीतो ---- Commonwealth Games.

आज हमारे लिए ये हर्ष का विषय है की , विश्व का १९ वां कॉमन वेल्थ गेम्स हमारे देश में हो रहा है। इस खेल के आयोजन के लिए दो बड़ी बोलियाँ लगी थीं -- कनाडा और भारत से। ४६ मतों के अंतर से आखिर ये सुनहरा मौका हमारे हाथ आ ही गया।

१९५१ तथा १९८२ के एशियन गेम्स के बाद ये ये सबसे बड़ा खेल आयोजन है हमारे देश में , जो हमारे गौरवशाली इतिहास में एक और सुन्दर और गौरवान्वित करने वाला अध्याय जोड़ेगा।

तारीख-- ३ अक्टूबर से १४ अक्टूबर २०१०
स्थान--जवाहरलाल नेहरु स्टेडियम , नई दिल्ली ।
प्रतीक-- शेर [शेरा]
मोटो [स्लोगन]--" कम आउट एंड प्ले "
प्रतिभागी देश-- ८४ [अब ७२ हैं ]
आयोजित खेल --१७ विभिन्न खेलों के २६० क्रम

ये तो त्योहारों का मौसम होगा। ३ से १४ अक्टूबर तक , हर रोज़, दिवाली मनायेंगे हम। ओस्कर अवार्ड विजेता --ऐ आर रहमान द्वारा निर्देशित , [ उठो-जियो-बढ़ो-जीतो] गाना हर दिशा में गुंजायमान होगा।

क्वीन बैटन रिले-- इस खेल की बेटन मशाल, २९ अक्टूबर २००९ को बकिंघम palace से चली , जो ५४ देशों तथा भारत के हर प्रांत का भ्रमण करते हुए , ३ अक्टूबर २०१० को नई दिल्ली के शुभारम्भ समारोह में पहुंचेगी। इस मशाल की त्रिकोणाकार एल्मिनियम को कुंडलित आकार प्रदान किया गया है। इसको भारत के हर प्रान्त की रंगीन मिटटी से सजाया गया है। इसमें स्वर्ण-पत्र पर क्वीन एलिजाबेथ का मेसेज लिखा है। इस मशाल की उंचाई ६६४ मी मी तथा आधार ३४ मी मी चौड़ा है। इसका उपरी हिस्सा ८४ मी मी चौड़ा है , तथा इसका वजन १९०० ग्राम है।

इस बेटन में तकनिकी खूबियाँ--
  1. इससे तसवीरें और ध्वनि रिकार्ड कर सकते हैं।
  2. जी पी एस सुविधा- ग्लोबल पोजिशनिंग
  3. इसमें लगे लाइट इमिटिंग डायोड --जो विभिन्न देशों में उनके झंडे के अनुसार अपना रंग बदल लेते हैं।
  4. इस मशाल में टेक्स्ट मेसजिंग द्वारा मशाल वाहक को बधाई सन्देश भेजे जा सकते हैं।
आइये हम सब मिलकर इस खेल आयोजन को सफल बनाएं। ये हमारे देश की, अपने घर की इज्ज़त का सवाल है। बिना किसी पूर्वाग्रहों के हमें ख़ुशी-ख़ुशी अपने मेहमान देशों की मेजबानी करनी होगी और उमंग तथा भरपूर उत्साह के साथ इस खेल में शामिल अपने देश के खिलाड़ियों का उत्साह वर्धन करना है। ये हमारा कर्तव्य तथा समय की मांग है।

आज हमारी दिल्ली , यमुना की बाढ़ , डेंगू जैसी बिमारी तथा अयोध्या विवाद के संकट से जूझ रही है। हमारा नैतिक दायित्व है की हम गैरजरूरी विवादों को दरकिनार कर देश के हित में सोचे ।

जय हिंद ।

Wednesday, September 22, 2010

एक अनाम रिश्ता -- प्यार का --

' आई लव यू '
ये वाक्य बहुत बार, बहुत लोगों को दोहराते सुना था , लेकिन कभी यकीन नहीं हुआ उनके शब्दों पर। क्या प्यार जैसा कुछ होता भी है ? क्या लोग प्यार के मायने समझते भी हैं ? क्या प्यार करने के पहले सोचते भी हैं , की निभा पायेंगे या नहीं ? क्या प्यार तपस्या नहीं ? क्या प्यार बलिदान नहीं ? क्या एक आदर्श प्रेम संभव है ?

क्या , आई लव यू कहने के पहले , कोई इनसे जुड़े दायित्वों के बारे में सोचता है?

प्यार की बहुत सी परिभाषाएं सुनीं और पढ़ी हैं । जाने क्यूँ कोई भी परिभाषा मन को उपयुक्त नहीं लगी। बहुत सोचा, मनन किया, की प्यार आखिर है क्या ? बस इतना ही समझी --

-प्यार एक एहसास है।
-इस रिश्ते का कोई नाम नहीं होता। अनाम है ये रिश्ता।
-इस रिश्ते को नाम देने के साथ ही ये एहसास समाप्त हो जाता है , और एक नया रिश्ता जीने की कवायद शुरू हो जाती है।
- प्यार में अंतर्मन अपने प्रिय के स्मरण मात्र से कभी मुस्कुरा उठता है तो कभी आँखों में आंसू छलक उठते हैं।
- प्यार में पीड़ा [वेदना ] तीव्रतम होती है , इस वेदना का सुख भी स्वर्गिक होता है।
- प्रेम तो सात्विक होता है, जो अपने प्रिय से कोई अपेक्षा नहीं रखता।
- ये प्रेम न तो वात्सल्य है, न करुण, न ही श्रृंगार। ये तो वीर रस से युक्त है जो अपने प्रिय की खातिर सब कुछ आहुत , करने को तत्पर होता है।
-सात्विक प्रेम निश्छल और निर्भय होता है।
- मुझे लगता है कि प्रेम कभी न ख़त्म होने वाला सिलसिला है।
- प्रेम सदैव एक तरफ़ा ही होता है , जो चुप-चाप खामोश होकर अपने प्रिय को फलता-फूलता देखता है, और उसी कि मुस्कुराहटों में खुद को सफल हुआ मानता है।

कुछ पंक्तियाँ अपने प्रिय के नाम --

प्रेम कलि जो खिली थी उर में, उसकी उमर कुछ मॉस की थी।
प्रेम कि अग्नि पावन है, वो वजह नहीं उपहास की थी ॥
इस जगत में सब कुछ नश्वर है, ख़त्म तो एक दिन होना है ।
मीठी यादों का झरना जिसमें , वो मेरे उर का कोना है॥
तुम रचे वहां , तुम बसे वहां , तू सदा रहोगे पूज्य वहां।
मथुरा में रहो, गोकुल में रहो, उर में मेरे है धाम तेरा॥

तुम कृष्ण मेरे , तुम राम मेरे ।
तुम ही हो , अभिमान मेरे ॥

आभार ।

Tuesday, September 21, 2010

श्रीरुद्राष्टकम् ! -- , माँ आप स्वस्थ्य एवं दीर्घायु हों ---मेरी प्रार्थना है इश्वर से !

मेरे एक पाठक की माताजी अस्वस्थ्य हैं। माँ की अस्वस्थता से मन बहुत उदास है। मैं भगवान् शंकर की भक्ति करती हूँ, और आज मेरा ' प्रदोष ' का उपवास है। आज तक जो भी इश्वर से माँगा है, मिला है। आज अपनी इस माँ के अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हूँ। इश्वर मेरी इस नयी माँ के कष्टों को दूर करे एवं उनका शेष जीवन स्वस्थ्य होकर गुज़रे।

अपने पाठक से विनम्र निवेदन है की , की मुश्किल की इस घडी में धैर्य न छोडें और माँ का पूरा ध्यान रखें। मैं आपके साथ हूँ।

माँ के स्वास्थ्य के लिए रुद्राष्टक का पाठ कर रही हूँ....


श्रीरुद्राष्टकम्

shiva

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपं।

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजे5हं॥1॥

निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं।

करालं महाकाल कालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतो5हं॥2॥

तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं। मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं।

स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा। लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥3॥

चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालं।

मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं। प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि॥4॥

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं। अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम्।

त्रय: शूल निर्मूलनं शूलपाणिं। भजे5हं भवानीपतिं भावगम्यं॥5॥

कलातीत कल्याण कल्पांतकारी। सदासज्जनानन्ददाता पुरारी।

चिदानन्द संदोह मोहापहारी। प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥6॥

न यावद् उमानाथ पादारविंदं। भजंतीह लोके परे वा नराणां।

न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं। प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं॥7॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजां। नतो5हं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यं।

जराजन्म दु:खौघ तातप्यमानं। प्रभो पाहि आपन्न्मामीश शंभो।

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये।

ये पठन्ति नरा भक्तया तेषां शम्भु: प्रसीदति॥


अर्थ :- हे मोक्षस्वरूप, विभु, व्यापक, ब्रह्म और वेदस्वरूप, ईशान दिशा के ईश्वर तथा सबके स्वामी श्रीशिवजी! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। निजस्वरूप में स्थित (अर्थात मायादिरहित), [मायिक] गुणों से रहित, भेदरहित, इच्छारहित, चेतन आकाशरूप एवं आकाश को ही वस्त्ररूप में धारण करने वाले दिगम्बर [अथवा आकाश को भी आच्छादित करने वाले] आपको मैं भजता हूँ॥1॥ निराकार, ओङ्कार के मूल, तुरीय (तीनों गणों से अतीत), वाणी, ज्ञान और इन्द्रियों से परे, कैलासपति, विकराल, महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार से परे आप परमेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ॥2॥ जो हिमाचल के समान गौरवर्ण तथा गम्भीर हैं, जिनके शरीर में करोडों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है, जिनके सिर पर सुन्दर नदी गङ्गाजी विराजमान हैं, जिनके ललाटपर बाल चन्द्रमा (द्वितीया का चन्द्रमा) और गले में सर्प सुशोभित हैं॥3॥ जिनके कानों में कुण्डल हिल रहे हैं, सुन्दर भ्रुकुटी और विशाल नेत्र हैं; जो प्रसन्नमुख, नीलकण्ठ और दयालु हैं; सिंहचर्म का वस्त्र धारण किये और मुण्डमाला पहने हैं; उन सबके प्यारे और सबके नाथ [कल्याण करने वाले] श्रीशङ्करजी को मैं भजता हूँ॥4॥ प्रचण्ड (रुद्ररूप), श्रेष्ठ, तेजस्वी, परमेश्वर, अखण्ड, अजन्मा, करोडों सूर्यो के समान प्रकाश वाले, तीनों प्रकार के शूलों (दु:खों) को निर्मूल करने वाले, हाथ में त्रिशूल धारण किये, भाव (प्रेम) के द्वारा प्राप्त होने वाले भवानी के पति श्रीशङ्करजी को मैं भजता हूँ॥5॥ कलाओं से परे, कल्याणस्वरूप, कल्पका अन्त (प्रलय) करने वाले, सज्जनों को सदा आनन्द देने वाले, त्रिपुर के शत्रु सच्चिदानन्दघन, मोह को हरने वाले, मन को मथ डालने वाले कामदेव के शत्रु, हे प्रभो! प्रसन्न होइये, प्रसन्न होइये॥6॥ जबतक, पार्वती के पति आपके चरणकमलों को मनुष्य नहीं भजते, तबतक उन्हें न तो इहलोक और परलोक में सुख-शान्ति मिलती है और न उनके तापों का नाश होता है। अत: हे समस्त जीवों के अंदर (हृदय में) निवास करने वाले प्रभो! प्रसन्न होइये॥7॥ मैं न तो योग जानता हूँ, न जप और न पूजा ही। हे शम्भो! मैं तो सदा-सर्वदा आपको ही नमस्कार करता हूँ। हे प्रभो! बुढापा तथा जन्म (मृत्यु) के दु:खसमूहों से जलते हुए मुझ दुखी की दु:ख से रक्षा कीजिये। हे ईश्वर! हे शम्भो! मैं आपको नमस्कार करता हूँ॥8॥ भगवान रुद्र की स्तुति का यह अष्टक उन शङ्करजी की तुष्टि (प्रसन्नता) के लिए ब्राह्मण द्वारा कहा गया। जो मनुष्य इसे भक्तिपूर्वक पढते हैं, उन पर भगवान् शम्भु प्रसन्न होते हैं॥9॥


आभार।

Monday, September 20, 2010

ठुमक चलत रामचंद्र , बाजत पैजनिया --रामकोट-अयोध्या -- और मेरा बचपन !

ददिहाल और ननिहाल फैजाबाद में होने के कारण, तथा पिताजी की पोस्टिंग स्टेट बैंक अयोध्या में होने के कारण मेरा बचपन , श्रीराम की जन्मस्थली के इर्द-गिर्द , माँ सीता की रसोईं , कनक-भवन , कौशल्या भवन तथा हनुमान-गढ़ी में खेलते-कूदते बीता। हनुमान गढ़ी की वानर सेना से , प्रसाद बचाकर निकलना एक रोचक तथा दुष्कर कार्य था। सरयू नदी के तट पर पानी की लहरों से अटखेलियाँ करते हुए , इस जीवन स्वर्णिम समय व्यतीत किया है।

आजकल अयोध्या विवाद ने बार-बार , मेरे मन को वापस मेरे बचपन में भेज दिया।

कहीं न कहीं मन उदास भी है और आशंकित भी।

आइये जानते हैं राम जन्म-भूमि के इतिहास को --

साकेत नगर अयोध्या, जिसका पूर्व में नाम साकेत था, की स्थापना - वैवस्वत मनु ने की थी। कौशल नरेश दशरथ के पुत्र श्री राम , भगवान् विष्णु के सातवे अवतार माने जाते हैं । इन्होने अयोध्या में ११,००० वर्षों तक राज किया । इनके समय में देश में, खुशहाली, समृद्धि, शान्ति तथा न्याय का वर्चस्व था । जिसके लिए राम-राज्य आज भी याद किया जाता है। त्रेता युग में अवतरित श्री राम ऋग्वेद कालीन माने जाते हैं। त्रेता युग का समय करीब १.३ अरब वर्ष माना गया है।

अफ़सोस होता है यह जानकार की श्रीराम जो अयोध्या के राजा थे , के जन्म-स्थल को लेकर विवाद हो रहा है । श्रीराम तो अयोध्या के कण-कण में बसते हैं । फिर रामकोट पर कैसा विवाद ?

मुग़ल सम्राट बाबर सन १५२७ में उज्बेकिस्तान फरगना से हिन्दुस्तान आया। उसने चित्तोरगढ़ के राजा संग्रामसिंह को फतेहपुरसीकरी में हराकर आस पास के क्षत्रों पर अपना कब्ज़ा जमा लिया । बाबर ने मीर बांकी को अपना वाई-सराय बनाया जिसने सन १५२८ में रामकोट के विशाल राम मंदिर को ध्वस्त करके वहाँ एक विशाल मस्जिद का निर्माण कराया जिसे आज 'बाबरी मस्जिद ' के नाम से नाम से जानते हैं।

सन १९४० तक इस मस्जिद का नाम -- ' मस्जिद-ऐ- जन्मस्थान ' था , जो अपने आपने आप में ये साबित करता है की विवादित मस्जिद , पूर्व मैं बने मंदिर जो श्रीराम का जन्मस्थल है , को ढहाकर बनायीं गयी है। बबारनामे में इस मस्जिद का कहीं कोई उल्लेख नहीं है।

साक्ष्य के तौर पर -Archaeological Survey of India की रिपोर्ट [ १९९०, १९९२, २००३ ] प्रस्तुत की , जिसमें करीब ११३० साक्ष्य मिले । ऐ एस आई द्वारा उत्खनन में अनेकों कलाकृतियाँ , सजी हुई इंटें , दिव्य-युगल की टूटी संरचनाएं , पर्णसमूह , तथा नक्काशीदार वास्तुशिल्प की संरचनाएं , लोटस मोटिफ आदि मिलीं है।

The excavations yielded: stone and decorated bricks as well as mutilated sculpture of a divine couple and carved architectural features, including foliage patterns, amalaka, kapotapali, doorjamb with semi-circular shrine pilaster, broke octagonal shaft of black schist pillar, lotus motif, circular shrine having pranjala (watershute) in the north and 50 pillar bases in association with a huge structure"

आखिर कौन सा फैसला आने वाला है २४ सितम्बर को ? किसके हक में होगा ? इसका फैसला हमारे विद्वान् न्यायाधीश करेंगे । जो हम सभी को मान्य होगा।

मेरी अपने भारत वासियों से अपील है , की आने वाले फैसले को शान्ति से स्वीकारें और आपसी सौहार्द्र को बनाएं रखें । ये समय आतंरिक मतभेदों का नहीं है, अपितु विदेशी ताकतों से अपने देश की रक्षा करने का है।

ये लेख बिना किसी पूर्वाग्रहों के , निष्पक्ष होकर , पाठकों से जानकारी बांटने के उद्देश्य से लिखा गया है। ह्रदय में आने वाले भाव मेरी लेखनी से अविरल निकलते रहेंगे । किसी प्रकार की त्रुटी हो तो कृपया ध्यान दिलाएं एवं मार्दर्शन करें।

पाठकों से निवेदन है, कृपया नयी जानकारी इस लेख में जोडें ।

आभार।




Friday, September 17, 2010

मिश्र जी ने तलाक दिया --पांच फेरे काफी न थे --एक शर्मनाक फैसला इतिहास का !

१६ सितम्बर २०१० , कानपूर फॅमिली कोर्ट में जज ने यह कहकर की सेक्शन -११ के अनुसार बिना सात फेरों के , हिन्दू विवाह अधूरा है , एक मासूम स्त्री नीरू का जीवन अन्धकार से भर दिया।

नीरू के पति , महोदय संतोष मिश्र ने कहा की शादी में केवल पांच फेरे ही लगे थे जिसके कारण ये शादी हिन्दू रीती के अनुसार अवैध है। और तलाक ले लिया।

नीरू की शादी के बाद मिश्र जी ने उसे पत्नी की तरह साढ़े तीन साल अपने घर में रखा। पत्नी की तरह, यानी उसके तन और मन का पूरा पूरा उपभोग किया। जब दिल भर गया तो शादी के साढ़े तीन साल बाद उसे मार-पीट कर घर से निकाल दिया। और यह कहकर तलाक ले लिया की शादी में केवल पांच फेरे ही लगे थे , जो हिन्दू रीती के विरुद्ध है।

नीरू ने न्याय की गुहार की सन २००१ में । न्याय मिला नौ साल बाद २०१० में। फैसला हुआ मिश्र जी के हक में। मासूम , अभागी नीरू का विश्वास उठ गया है इन्साफ पर से। उसने हाई कोर्ट में अपील से इनकार कर दिया , हार मान ली नीरू और उसके पिता ने।

यदि यह विवाह मान्य नहीं था तो मिश्र जी ने साढ़े तीन साल तक नीरू के साथ बलात्कार क्यूँ किया ?

न्यायालय में साक्ष्य के तौर पर विडियो दिखाया गया , जिसमें सात फेरे पूरे हैं। पंडित जिसने विवाह कराया था, ने गवाही दी की पूरे सात फेरे कराये थे। बहुत से गवाहों ने बयान दिया की वे प्रत्यक्षदर्शी हैं उन सात फेरों के । लेकिन माननीय जज महोदय ने कहा की दो फेरे कम हैं, अतः ये विवाह अवैद्य है।

हिन्दू शास्त्रों में १२ प्रकार के विवाह वर्णित हैं। जिसमें , सुर विवाह, असुर विवाह , गन्धर्व विवाह , प्रजापत्य विवाह आदि हैं । प्रजापत्य विवाह प्रचलन में है।

शास्त्रों के अनुसार , हिन्दू विवाह में चार , पांच , छेह तथा सात फेरों का प्राविधान है । यदि चार फेरे भी हो गए हैं , तो विवाह वैद्य मन जाएगा।

शास्त्रों में यह भी कहा गया है की , शादी में सबसे पहले ' संकल्प ' लिया जाता है । यदि मन में संकल्प लिया जा चूका है , तो भी विवाह पूर्ण माना जाएगा।

नीरू के वकील का कहना है की कोर्ट में अपील करेंगे, न्याय निश्चित मिलेगा , लेकिन निर्दोष , मासूम नीरू टूटकर बिखर चुकी है । उसने कोर्ट के इस घिनौने फैसले के खिलाफ आवाज़ उठाने से इनकार कर दिया है । उसका इन्साफ पर से विश्वास उठ चुका है।

आप बताएं नीरू को क्या करना चाहिए ?

Tuesday, September 14, 2010

काया में स्थित कायस्थ --वेदान्त केसरी-- स्वामी विवेकानंद !

ब्रम्हा जी ने जब सिष्टि की रचना की तो उनके सर से ब्रह्मण , भुजाओं से क्षत्रिय , जंघा से वैश्य तथा पैर के तलवों से शुद्र पैदा हुएइस प्रकार ये चार वर्ण बनेब्रम्हा जी ने धर्मराज को कार्य सौंपा की तीनों लोकों में जितने भी जीव हैं उनके जन्म-मृत्यु, पाप-पुण्य, मोक्ष आदि का पूरा लेखा जोखा रखो धर्मराज कुछ समय के बाद परेशान होकर ब्रम्हा के पास गए और बोले- " प्रभु, चौरासी लाख योनियों के जीवों के पाप पुण्य के लेखा-जोखा मुझसे अकेले नहीं होता, मेरी समस्या का समाधान कीजियेउनकी बात सुन ब्रम्हा जी चिंता में पड़ गएउनकी इस अवस्था को देख, ब्रम्हा जी की काया से एक पुरुष कलम-दवात लेकर उनके समक्ष प्रकट हुआकाया से प्रकट होने के कारण उन्हें कायस्थ कहा गयाउनका नाम चित्रगुप्त हुआ। मनु स्मृति के अनुसार ब्रम्हा जी ने चित्रगुप्त महाराज को धर्मराज के साथ यमलोक में पाप-पुण्य कर्मों के अनुसार मोक्ष आदि के निर्धारण का कार्य सौंपा। इसीलिए कायस्थ लोग पारंपरिक तौर पर लेखांकन [ अकाऊंटिंग ], तथा साहित्यिक गतिविधियों से ज्यादा जुड़े हुए होते हैं। कलम के धनी कायस्थ लोग दीपाली के तीसरे दिन कलम-दवात की पूजा करते हैं।

पद्म पुराण तथा भविष्य पुराण के अनुसार , चित्रगुप्त महाराज की दो पत्नियों से बारह संतानें हुई । पहली पत्नी शोभावती / इरावती [ ऋषि शिव शर्मा की पुत्री ] से भटनागर, माथुर, सक्सेना , श्रीवास्तव तथा दूसरी पत्नी माता नंदिनी [ सूर्य पुत्र -आदि मनु की पुत्री ] से अम्बष्ट , अष्ठाना ,निगम , वाल्मीकि, गौड़, कर्ण , कुलश्रेष्ठ , एवं सुरजद्वाज नामक आठ संतानें पैदा हुईं।

कायस्थों की बारह उपजातियां जब भारत के विभिन्न प्रान्तों में फैलने लगे , तो उन्होंने कुछ स्थानीय नाम अपना लिए। जैसे बिहार के कर्ण कायस्थ, आसाम के बरुआ, उड़ीसा के पटनायक और सैकिया , पश्चिम बंगाल के बोस , बासु, मित्रा , घोष, सेन, सान्याल तथा महाराष्ट्र में प्रभु। कुछ लोग लाल, प्रसाद, दयाल तथा नारायण भी लिखने लगे।

आइये मिलते हैं , देश की कुछ गौरवशाली ' कायस्थ ' हस्तियों से --

१- स्वामी विवेकानंद -
  • स्वामी विवेकनद speaking on the status of Kayasthas said:
  • “I am the descendant of that great man at whose feet every Brahmin bows his head।”
१२ जनवरी 1863 को जन्मे नरेन्द्रनाथ दत्त [ विवेकानंद], रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे । स्वामी विवेकानंद ने विलुप्त होते हिन्दू धर्म को बचाया तथा पश्चिम में भी इसका प्रचार-प्रसार किया। इन्होने वेदान्त, योग तथा विज्ञान को भी उचाईयों तक पहुँचाया।

-१९ सितम्बर १८९३ को शिकागो की धर्म-संसद में अपना पहला अध्यात्मिक भाषण दिया। भाषण की शुरुआत इन्होने " सिस्टर्स एंड ब्रदर्स आफ अमेरिका " से की। इससे प्रभावित होकर वहाँ पर उपस्थित ७००० लोगों की भीड़ ने उन्हें स्टैंडिंग-ओवेशन दिया। न्यू योर्क हेराल्ड ने लिखा-......" Vivekananda is undoubtedly the greatest figure in the parliament of religion. After hearing him we feel how foolish it is to send missionaries to this learned nation . "

-१८९७ में इन्होने 'रामकृष्ण मठ तथा रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। अल्मोड़ा के निकट अद्वैत आश्रम की स्थापना की। इन्होने 'प्रबुद्ध भारत ' [अंग्रजी ] तथा 'उद्बोधन' [बंगाली ] पत्रिकाओं की शुरुआत की ।

-भारत के प्रथम गवर्नर जनरल , चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने लिखा की - " विवेकानंद ने हिंदुत्व तथा राष्ट्र को बचाया "
सुभाष चन्द्र बोस ने कहा की " Vivekananda is the maker of modern India "
गाँधी जी ने कहा-" Vivekananda's writings need no introduction from anybody. They make their own irresistible appeal. "

अरबिंदो घोष ने उन्हें अपना अध्यात्मिक गुरु माना।

रविन्द्र नाथ टैगोर ने लिखा- " If you want to know India- Read Vivekananda. "

Nobel Laureate Romain Rolland wrote- " His words are great music , phrases in the style of Beethoven, stirring rhythms like the march of Handel choruses."

बहुत से शैक्षणिक संस्थानों ने विवेकानंदा के नाम को अपनाया -
१-IIT Madras - Vivekananda study circle.
२-IIT Kanpur- Vivekananda Samiti.

११ नवम्बर १९९५ में शिकागो में मिशिगन अवेन्यु नामक सड़क-मार्ग का नाम ' स्वामी विवेकानंदा वे ' रखा गया।

स्वामी विवेकनद के पुण्य-स्मरण में १२ जनवरी , उनके जन्म-दिन पर ' नॅशनल यूथ डे ' मनाते हैं। जो हमारी युवा पीढ़ी को , अपनी प्राचीन संस्कृति को बनाए रखने के लिए प्रेरित करता है।

विवेकनद एक बहुत बड़े कवी तथा गायक भी थे। इन्होने मृत्यु से पूर्व '....काली डा मदर ' को राग-बद्ध किया।

२- डॉ राजेन्द्र प्रसाद -
-भारत के प्रथम राष्ट्रपति का जन्म , बिहार के जिला सीवान में ३ जनवरी १८८४ को हुआ था। इनके पिता नाम महादेव सहाय तथा माता का नाम कमलेश्वरी देवी था।
-ये भारत के एक मात्र ऐसे प्रेसिडेंट थे जो अपनी तनख्वाह का चौथाई हिस्सा , संस्कृत के विद्यार्थियों को दे देते थे।
-विद्या के धनी डॉ राजेन्द्र प्रसाद गोल्ड मेडलिस्ट थे । परीक्षा में कहा जाता था-' अटेम्प्ट ऐनी फाइव '....राजेंद्र प्रसाद सभी प्रश्न हल करके लिख देते थे - " चेक ऐनी फाइव '
- भारत का पहला संविधान १९४८-१९५० , डॉ राजेंद्र प्रसाद ने बनाया था।
-इन्हें भारत के सर्वोच्च पुरस्कार 'भारत-रत्न ' से पुरस्कृत किया गया।

आजादी के बाद , गांधी जी ने राजेन्द्र प्रसाद को प्रधान मंत्री बनाना चाह तो इन्होने अस्वीकार कर दिया और नेहरु को बनाने के लिए कहा। फिर गांधी जी ने इन्हें राष्ट्रपति बनाना चाह तो इन्होने अस्वीकार करते हुए कहा की- " मैं कर्ज में डूबा हुआ हूँ और मैं नहीं चाहता की आजाद भारत का पहला प्रेसिडेंट कर्जदार हो। तब गाँधी जी ने जमुना लाल बजाज को बुलाकर इनको कर्ज-मुक्त कराया और तब ये राष्ट्रपति बने।

नेहरु जी द्वारा प्रस्तुत - ' हिन्दू कोड बिल ' को जब डॉ राजेंद्र प्रसाद के सामने लाया गया तो उन्होंने उसे अस्वीकार कर दिया, काट-छाँटके बाद दुबारा लाया गया तो पुनः आपति जाहिर की, तीसरी बार में जाकर वह बिल पास` हुआ । तब तक उसका दो-तिहाई हिस्सा हटाया जा चूका था। यदि वो बिल उस समय पूरा पास हो जाता तो भारत का नैतिक मूल्य जो आज आजादी के साठ साल बाद गिरा है, वो तभी गिर चुका होता।

उस बिल पर डॉ राजेन्द्र प्रसाद को सख्त आपत्ति थी। उन्होंने लिखा है -- [" Had there been any clause of referendum in the constitution of India, the electorate would have decided the question. "]

यानि, यदि यह संवैधानिक अधिकार जनता के पास होता तो यह बिल कभी पास नहीं होता।


३- लाल बहादुर शास्त्री -

-भारत के दुसरे प्रधानमंत्री , लाल बहादुर शाष्त्री का जन्म , मुगलसराय -वाराणसी में हुआ। इनके पिता का नाम श्री शारदा श्रीवास्तव तथा माता का नाम रामदुलारी था।
- इन्हें पढ़ाई से बहुत लगाव था, किन्तु बहुत गरीब होने के कारण , नदी तैरकर पार करते थे तथा विद्यालय जाते थे।
- इनहें जाती व्यवस्था से बहुत चिढ थी , इसलिए इन्होने अपने नाम से श्रीवास्तव हटाकर 'शास्त्री ' रख लिया।
- इन्होने हरिजनों के उत्थान के लिए बहुत कार्य किये।
- इनकी मृत्यु संदिग्ध परिस्थितियों में ताश्केंटमें, १० जनवरी १९६६ में हुई।
- इन्हें मृत्युपरांत, भारत रत्न पुरूस्कार भी मिला।


४- लोकनायक जय प्रकाश नारायण--

-इस स्वतंत्रता सेनानी का जन्म बिहार के छपरा जिले में , ११ अक्टूबर १९०२ को हुआ।
-मृत्युपरांत इनहें भारत रत्न से पुरस्कृत किया गया।
-इसके अतिरिक्त इनहें मग्सेसे पुरस्कार भी मिला।
-पटना में इनके नाम पर जय प्रकाश नारायण एअरपोर्ट भी है।
- इन्होने 'सर्वोदय आन्दोलन' में अपनी सारी सम्पति दान कर दी तथा हरिजनों के उत्थान के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया।
-इन्होने विनम्रता से राष्ट्रपति पद का आफ़र ठुकरा दिया था।


५-जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा-

-बेहद इमानदार और निर्भीक व्यक्तित्व के थे।
-इलाहाबाद हाई-कोर्ट में १२ जून १९७५ को अपने एक फैसले में इन्होने , इंदिरा गाँधी के गलत तरीके से चुनाव प्रसार करने के कारण , उन पर छेह वर्ष का प्रतिबन्ध लगा दिया था, तथा प्रधान मंत्री को पंद्रह दिन की जेल करा दी थी। इंदिरा गांधी ने प्रतिशोध के चलते २५ जून १९७५ से लेकर १९७७ तक आपातकाल घोषित कर दिया था। लेकिन उसके बाद चुनाव होने पर इंदिरा गांधी की दाल नहीं गली और वे चुनाव हार गयीं।


६- डॉ सम्पूर्णानन्द -

-१ जनवरी को बनारस में जन्मे डॉ सम्पूर्णानन्द को संस्कृत तथा फलित ज्योतिष में बहुत रूचि थी।
-उत्तर प्रदेश के शिक्षा मंत्री तथा राजस्थान के गवर्नर रह चुके डॉ सम्पूर्णानन्द ने बनारस में संस्कृत विश्विद्यालय की स्थापना की।
-उनका मानना था की कैदियों को रिफार्म किया जाना चाहिए । इसके लिए १९६३ में राजस्थान की सरकार ने ' सम्पूर्णानन्द खुलाबंदी शिविर ' [ओपन जेल ] की शुरुआत की।


७-नेताजी सुभाष चन्द्र बोस-The forgotten hero.

-जन्म-२३ जुलाई १८९७।
-' तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा '- उनका नारा था।
- पूर्ण स्वराज उनका ध्येय था ।
-प्रतिभाशाली सुभाष चन्द्र बोस ने आई सी एस की परीक्षा में टॉप कर अच्छी नौकरी हासिल की, लेकिन देश की खातिर , विदेशियों के अधीन नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया।
- ६ जुलाई १९४४ में सिंगापोर से जब उनका भाषण प्रसारित हुआ तो उन्होंने ही बापू को पहली बार " फादर ऑफ़ था नेशन ' कहा।
-इनके प्रसिद्ध कोट हैं - 'दिल्ली चलो' , ' ऑन टू डेल्ही ' , 'जय-हिंद' तथा 'ग्लोरी ऑफ़ इंडिया '
- जय-हिंद नारे को भारत सरकार तथा आर्मी ने अपना लिया।
-इन्होने आजाद हिंद फ़ौज की स्थापना की तथा इनकी कुर्सी रेड फोर्ट में रखी है जो आज हमारी सांस्कृतिक धरोहर है।


८- हरिवंश राय बच्चन -

-रानीगंज, प्रतापगढ़ , उत्तर प्रदेश में जन्मे हरिवंश राय बच्चन के पिता का नाम प्रताप नारायण श्रीवास्तव तथा माता का नाम सरस्वती देवी था।
- ये कम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के दुसरे भारतीय थे जिन्हें , अंग्रेजी में डाक्ट्रेटकी उपाधि मिली।
- इनहें -
-साहित्य अकादमी पुरस्कार [१९६९]
-पद्म भूषण [१९७६]
-सरस्वती सम्मान
-यश भारती सम्मान
-सोवियत लैंड नेहरु पुरस्कार
-लोटस अवार्ड फॉर अफरो एशियन राईटर्स , आदि मिले।

- इनकी प्रचलित कविता ' अग्निपथ ' के अंश--

अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ! वृक्ष हों भले खड़े, हो घने, हो बड़े, एक पत्र-छॉंह भी मॉंग मत, मॉंग मत, मॉंग मत! अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ! तू थकेगा कभी! तू थमेगा कभी! तू मुड़ेगा कभी! कर शपथ! कर शपथ! कर शपथ! ये महान दृश्य है, चल रहा मनुष्य है, अश्रु श्वेत् रक्त से, लथ पथ, लथ पथ, लथ पथ ! अग्नि पथ! अग्नि पथ! अग्नि पथ!

-महर्षि शिव ब्रत लाल वर्मा -

इनका जन्म १८०७ में उत्तर प्रदेश के भदोही जिले में हुआ था। इन्होने अपने जीवन काल में हिंदी, अंग्रेजी तथा उर्दू में ५००० से अधिक पुस्तकें इतिहास , धर्म तथा अध्यात्म पर लिखीं । इन्हें आधुनिक महर्षि वेद व्यास के नाम से भी जाना जाता है। इन्होने १९०७ में 'साधू' नामक पत्रिका शुरू की जो बहुत लोकप्रिय रही। सन १९३९ में इस महान हस्ती का निधन हो गया। इनकी कुछ प्रचलित पुस्तकें इस प्रकार हैं --

  • 1) Light of Anand Yoga (English)
  • 2) Dayal Yoga
  • 3) Shabd Yoga
  • 4) Radhaswami Yog: Part 1-6
  • 5) Radhaswami Mat Parkash
  • 6) Adbhut Upasana Yog: Part 1-2
  • 7) Anmol Vichar
  • 8) Dus Avtaron Ki Katha
  • 9) Kabir Prichaya Adyagyan
  • 10) Kabir Yog: Part 1-13
  • 11) Kabir Bijak: Part 1-3
  • --------------------------------------------------------

  • कुछ महान कायस्थ हस्तियां जिन पर हमें गर्व है :
    स्वामी विवेकानंद
    सर अरबिंदो
    महर्षि महर्षि महेश योगी
    प्रभुपाद
    डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद
    लाल बहादुर शास्त्री
    सुभाष चन्द्र बॉस
    जय प्रकाश नारायण
    जस्टिस सिन्हा
    बाला साहब ठाकरे
    हरिवंश राय बच्चन
    मुंशी प्रेमचन्द्र
    महादेवी वर्मा
    फिराक गोरखपुरी
    डाक्टर सम्पूर्णानंद
    डाक्टर शांति स्वरुप भटनागर
    डाक्टर जगदीश चन्द्र बॉस
    भगवती चरण वर्मा
    धर्मवीर भारती
    फणीश्वर नाथ रेणू
    मन्ना डे
    मुकेश (गायक)
    गणेश शंकर विद्यार्थी
    बिपिन चन्द्र पाल
    सुभाष चन्द्र बोस
    खुदीराम बोस
    आदि ...

तो आज हमारा परिचय महाराज चित्रगुप्त की कुछ होनहार संतानों से हुआ। 

आभार
.





















Wednesday, September 8, 2010

आप डाक्टर हैं या कसाई ?---ZEAL

क्या आपको भी लगता है की पेशे से चिकित्सक लोग कसाई होते हैं?
क्या डाक्टर का चाकू , मरीज का नासूर हटाता है या फिर क़त्ल करता है ?
क्या डाक्टर को मारा-पीटा जाना चाहिए ?
क्या आपको लगता है की डाक्टर्स को कभी अपनी सुरक्षा और अधिकारों की मांग करनी चाहिए?
क्या सरकार , डाक्टरों की सुरक्षा का कोई इंतज़ाम रखती है ?
क्या डाक्टर के भी कोई मौलिक अधिकार अधिकार होते हैं?
क्या डाक्टर्स की भी अपनी कोई निजी जिंदगी होती है?
क्या आपने कभी सोचा की डाक्टर्स की पिटाई होती है , तो उनके भी बच्चे, पति या पत्नी, माता-पिता , भी दुखी , निराश और सहमे हुए होते हैं?
क्या डाक्टर्स को कभी हड़ताल पर जाना चाहिए?
क्या डाक्टर्स मानवीय संवेदनाओं से युक्त आपकी तरह मनुष्य होते हैं?
क्या डाक्टर्स को सदैव परहित ही सोचना चाहिए, कभी अपने लिए नहीं ?
क्या डाक्टर्स के सभी कर्तव्य मरीजों के प्रति होने चाहिए, अपने परिवार के प्रति नहीं ?
क्या डाक्टर्स को कोई मारे तो भी , उसे चुप-चाप बर्दाश्त कर लेना चाहिए? गांधी जी के अनुसार एक गाल पे मारे तो ,दूसरा आगे कर देना चाहिए?
क्या डाक्टर्स की हड़ताल गैर-वाजिब है?
राजस्थान में डाक्टर्स की हड़ताल के चलते बहुत से लोगों की मौत हो गयी। इसका जिम्मेदार ईश्वर है ?, या फिर सरकार ?, या फिर डाक्टर ?
क्या आपके घर में कोई डाक्टर है?
क्या आप अपने बच्चे को डाक्टर बनाना चाहते हैं ?
क्या आप डाक्टर को इंसान समझते हैं?
क्या एक डोक्टर को दुःख होता है ?
क्या एक डाक्टर से आपको सहानुभूति है?
क्या डाक्टर के भी कुछ मौलिक अधिकार होते हैं ?
क्या अपनी सुरक्षा के लिए आवाज़ बुलंद करना गैर-वाजिब है ?

आपकी राय का इंतज़ार रहेगा।

कृपया अपना बहुमूल्य वक़्त निकालकर अपनी राय से हमें अवगत करायें , और समाज को लाभान्वित करें।

आभार।

Monday, September 6, 2010

द्विआधारिय गणितीय पद्धती [ Binary numeral system ] ---ZEAL

प्राचीन भारत में Scholarly शिक्षा का प्रादुर्भाव था , जो विदेशी अतिक्रमण के कारण लम्बे समय के लिए रुक गया तथा हमारी बहुत सी वैज्ञानिक सम्पदा विलुप्त होगई थी । दक्षिण भारत में अतिक्रमण कम होने के कारण , कुछ ग्रन्थ जो बच गए उनसे ये प्रमाडित होता है की हमारे देश में विज्ञान तथा गणित ईसा से ५०० वर्ष पूर्व ही अर्थात आज से करीब २५०० वर्ष पूर्व , उन्नत स्थिति में था।

बाइनरी पद्धति की शुरुआत भारत से हुई थी, लेकिन इसका श्रेय मिला जर्मनी के वैज्ञानिक [Gottfried Leibniz ] को। जबकि सच तो यह है की इस पद्धति की खोज भारत के विद्वान्, पिंगला ने अपने छंदशास्त्र में छंदों के पदों [ लघु एवं दीर्घ ] की लम्बाई मापने के लिए प्रयुक्त की थी । जिसमें दीर्घ पद , लघु का दो-गुना था। पिंगला के इस छंद-शास्त्र से पता चलता है की द्विआधरिय [ Binary ] पद्धति हमारे भारतवर्ष में ईसा से करीब ५०० वर्ष पूर्व से प्रयुक्त की रही है , जबकि जर्मन वैज्ञानिक ने इसे १६९५ में खोजा था।

दशमलव पद्धति में दस संख्या होती है [शून्य से नौ तक ] , जबकि द्विआधारी पद्धति का आधार '२' होता है , जिसमें शून्य तथा एक की संख्या होती है , इन्ही दो संख्याओं के गुणकों का इस्तेमाल बाइनरी सिस्टम में किया जाता है।

द्विआधारिय पद्धति को इस प्रकार समझा जा सकता है....

-होना या न होना।
-लाइट या नो-लाइट
-sound और नो साउंड
-येस और नो

उदाहरण के तौर पर टेलेग्रफिक या इलेक्ट्रिकल सिग्नल भेजना।

इस पद्धति का प्रयोग बहुत सी जगहों पर किया जाता है। जैसे--

१-Computer में-

कंप्यूटर में बाइनरी पद्धति का प्रयोग होता है । जावा , कोबोल , आदि भाषा उपयोगकर्ता के लिए होती हैं जबकि हमारा कंप्यूटर केवल द्विआधरिय गणितीय पद्धति को ही समझता है तथा जावा आदि उन्नत भाषाओँ को येस तथा नो के कमांड में ट्रांसलेट करके ही कार्य करता है।

२- लखनऊ की भूल-भुलैय्या [ The labyrinth ]-

सन १७८४ में असफ-उद-दौला द्वारा बनी भुभुलैय्या में १०२४ सीढियां हैं , जो बाइनरी गणितीय पद्धति पर आधारित हैं। इन्हें '२' को आधार मानकर २ की घात १० गुना अर्थात [ २ x २ x २ x २ x २ x २ x २ x २ x २ x २ ] = १०२४ सीढियां बनायीं गयीं ।

बाइनरी पद्धति के इस्तेमाल से इसमें भूल-भुलैय्या वाला effect बेहतर तरीके से लाना संभव हो पाया।

भुल्भुल्लैया का विशाल भवन बिना किसी खम्बे के २० फीट मोती दीवारों से रुका हुआ है। यह दुनिया की एकमात्र सबसे बड़ी धनुषाकार संरचना है। इसमें बार-बार chadhne वाले तथा उतरने वाली सीढियां हैं। जो डेड-एंड पर समाप्त होती हैं। इसमें जो एक बार घुस जाता है वो आसानी से बाहर नहीं आ सकता । इसका निर्माण लोगों को रोजगार देने के उद्देश्य से कराया गया था। इसे बड़ा-इमामबाडा के नाम से भी जानते हैं।

तो आज वक़्त आ गया है की हम अपने गरिमामय इतिहास पर गर्व करें तथा इसे आगे ले जाने के लिए प्रयासरत रहे।

Friday, September 3, 2010

इन्द्रधनुषी दिव्या. !

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इस पोस्ट में पिछले एक हफ्ते में हुए अनुभवों को शेयर कर रही हूँ। जो सबके नहीं तो कुछ लोगों के काम अवश्य आयेंगे ऐसा विश्वास है।

पिछले दो-तीन दिनों में ज्यादातर पाठकों ने लिखा की आपकी सार्थक पोस्ट का इंतज़ार है..

मैंने सोचा सार्थक पोस्ट कैसी होती है भाई ? अंतर्मन ने जवाब दिया - " तुम्हारी हर पोस्ट सार्थक होती है , क्यूंकि हर पोस्ट समाज के सुधार के लिए लिखी गयी होती है। " यदि कुछ लोग शशि थुरुर, ललित मोदी और माधुरी गुप्ता जैसे लोगों को बेनकाब कर देश को लुटने से बचा रहे हैं, तो फिर अरविन्द मिश्र और अमरेंद्र जैसे लोगों को बेनाकाब का समाज के आधे बड़े हिस्से , जो की नारियों से बना है , की अस्मिता को बचाने की खातिर लिखी गयी पोस्ट साथक क्यूँ नहीं है ? अगर अरविन्द मिश्र मुझे कटही कुतिया कहें और अमरेन्द्र मुझे कहें की मैं " डॉक्टर के नाम पे कलंक हूँ ", तो यदि मैं अपनी आवाज़ बुलंद करूँ , तो वह पोस्ट सार्थक क्यूँ नहीं है ?

अरविन्द मिश्र का कहना है की " अभी तो मैं जवान हूँ , और महिला पाठक मरे ब्लॉग पर आना बंद नहीं कारेंगी"... सही कहा आपने अरविन्द जी...कुछ लोग देख- सुन कर सीखते हैं, लेकिन कुछ लोग गड्ढे में गिरने के बाद ही सीखते हैं।

महोदया अदा जी ने मेरे खिलाफ पोस्ट लगायी और आक्षेप लगाया की डाक्टर्स को नैतिक मूल्यों का ख़याल रखना चाहिए। महोदया अदा जी से मेरा कहना है कृपया पूरा प्रकरण [ द्विपक्षीय ] जान लिया करें , तभी कुछ लिखें। अदा मुझे जानती भी नहीं फिर भी जाने किन पूर्वाग्रहों से ग्रसित होकर इसने ऐसा किया। वो भी उस अमरेन्द्र के लिए जिसने मुझे links दे-दे कर दिखाया था की देखो अदा और महफूज़ के बीच क्या- क्या चलता है।
बहुत सी पोस्टों पर महफूज़ महोदय लिखते हैं। ' आई लव यू "। इन बातों से मेरा कोई लेना-देना नहीं , फिर भी महोदय अदा को ये बताना जरूरी है की, जिनको वो मरहम लगा रही हैं , और डॉक्टर्स को बदनाम कर रही हैं, वो महोदय इनके बारे में क्या ख़याल रखते हैं। और महफूज़ को तो सभ्य कहना , सभ्यता की तौहीन होगी। जो मुझे
जानता तक नहीं ठीक से उसने बहुत ही असभ्य लहजे में मेरे व्यक्तित्व पर प्रहार किया ।

अदा जी , डॉक्टर्स को मानवीय मूल्य मत सिखाइए ।

एक बार मेरी एक पोस्ट [Eleven days] पर डॉ दाराल ने पुछा, दिव्या तुम अपने नाम के डॉ ना नहीं लिखती हो ? कारण है , मैं यहाँ सिर्फ एक ब्लॉगर हूँ। अन्यथा थाईलैंड आने के पहले लखनऊ और इंदौर में छेह वर्ष तक प्रक्टिस कर चुकी हूँ। सन २००६ में डॉक्टर्स दे पर सम्मान भी पा चुकी हूँ , कभी हिम्मत कर सकी तो अपनी तस्वीरों के साथ उस शुभ दिन की भी चर्चा यहाँ करुँगी।

अमरेंद्र जी , पिछले २४ घंटों में जो तीन पत्र आपने मुझे लिखे हैं, आप मुझे चाहे जितनी बार लिखें , आप मुझे प्यार करते हैं , और मुझे अपनी बेहेन और माँ नहीं समझ सकते। तो मैं ये बता दूँ आपको , एक स्त्री सिर्फ ऐसे पुरुष को प्यार करती है जो स्त्री को अपने से कमतर नहीं समझता , उसके मान-सम्मान की रक्षा करता है, तथा उससे इर्ष्या नहीं करता है। आपने मुझे डॉक्टर के नाम पर कलंक लिखकर , अपने जिंदगी की सबसे बड़ी भूल की है। रही बात आप के भाई होने की , तो वो भी आप नहीं हो सकते , क्यूंकि आजकल तो भाइयों द्वारा "ऑनर किलिंग " का फैशन है और मेरे ऑनर को आप बखूबी किल कर ही चुके हैं।

चलिए बात करते हैं श्रीमान ज्ञानदत्त जी की, इनको आदरणीय समझती थी, बहुत छोटी हूँ इनसे, मन में ख्वाहिश थी एक बार ये मेरे ब्लॉग पर आयें और आशीर्वाद दें। ज्ञान जी नहीं आये, एक निराश , नवोदित ब्लोगर [ दिव्या ] ने लिख दिया 'अंतिम प्रणाम ' । इस अंतिम प्रणाम को ज्ञान जी ने मौत का फरमान समझ लिया, और ठोक दी एक पोस्ट दिव्या के नाम। जब एक सैकड़ा सहानुभूति मिल गयी और मित्रों ने दिव्या को कंडेम कर दिया , तब जाके मेरे पूज्य ज्ञान जी के कलेजे को ठंडक मिली। तिल को ताड़ बनाना कोई ज्ञान जी से सीखे ।

अरे दिव्या , तुम भी कितनी मुर्ख हो, शिकायत अपनों से की जाती है, गैरों से नहीं।

एक प्रश्न है...महाराष्ट्र के लाटूर, २००५ की सुनामी , हेती के तूफ़ान में मरने वालों को क्या दिव्या ने " अंतिम प्रणाम कहा था ?

अगर मेरे.. 'अंतिम प्रणाम' ..इतने ही इफेक्टिव हैं तो ... कसाब ...नक्सलवादी .. और ..आतंकवादियों.. को मेरा अंतिम प्रणाम ।

[फैशन के दौर में गारेंटी की कामना न करें ]

इस कठिन घडी में अनेक शुभचिंतकों ने मेरा साथ भी दिया , जिसमें सम्मानीय पुरुष एवं महिला ब्लोगर्स दोनों हैं। आप सभी को ह्रदय से आभार।

शोभना चौरे जी ने मेरी कठिन मानसिक अवस्था को समझा , उनके शब्द मरे लिए अमृत बूंद की तरह थे। माँ तो सभी की अच्छी होती है, लेकिन शोभना चौरे जी में तो ..." इश्वरत्व " हैं। शोभना जी आपका एक बार पुनः अभिनन्दन। आपने मुझे नया जीवन-दान दिया है।

एक पाठक ने लिखा , आशा है तीन पोस्ट पहले वाली दिव्या को वापस देख सकूँगा। ..प्रिय राजन, मैं तो ऐसी ही हूँ, ऐसी पोस्टों को भी देखो, इसमें निहित चेतना जगाती सार्थकता को देखो, इस तरह की पोस्टें भी दिव्या का एक रंग है। जब तक सारे रंग नहीं होंगे, इन्द्रधनुष अधुरा रहेगा।

उन्मुक्त जी के शब्दों से बहुत हिम्मत मिली । उन्होंने आग्रह किया है की रोग और उनके निदान पर भी पोस्ट्स लिखूं। मेरी सभी पोस्ट , जो मेडिकल से रिलेटेड होंगी , वो सभी आदरणीय उन्मुक्त जी को समर्पित होंगी।

राजेश उत्साही जी , महक जी , अर्थ जी, राजन जी , उन्मुक्त जी, अनूप जी,आशीष जी एवं विश्वनाथ जी ने इस कठिन घडी में मेरा मनोबल बनाये रखने में बहुत मदद की। सदैव आभारी रहूंगी।

मरे ब्लॉग पर moderation naa होने से , कुछ लोग असभ्य और अशिष्ट भाषा का प्रयोग कर टिपण्णी कर रहे थे , इसके लिए आदरणीय अनूप शुक्ल जी की राय से moderation लगा रही हूँ। पाठकों की असुविधा के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ । संभवतः आप लोग मेरी मजबूरी समझेंगे।

अंत में एक बार फिर अपने शुभचिंतकों की कर्जदार हो गयी हूँ, जिसके लिए आभार शब्द छोटा लग रहा है ।

ये थे मेरे मन के विचार जो , पिछले तीन दिनों में आये...
जो अच्छा लगे , उसे अपना लो, जो बुरा लगे, उसे जाने दो....

PS-

1- Arvind Mishra has commented in a foul language on all my blog-posts with a fake name of -Ajit

2-Amrendra has commented with a fake name of Ravi.

So readers are requested to be careful .