मेरे विचार से तो स्त्री , कभी भी किसी स्त्री की दुश्मन नहीं होती, लेकिन एक स्त्री ब्लॉगर की लगातार नीचता ने मुझे भी सोचने को मजबूर कर दिया ! इन मोहतरमा को मेरी
इस पोस्ट पर आपत्ति है! इन्होने एक गहन विषय पर विचार तो रखे नहीं केवल भाषा की दलाल बनकर लेखिका को अपमानित करने के उद्देश्य से " आई ऑब्जेक्ट" का झंडा लेकर खड़ी हो गयीं, मानों दुनिया भर की सारी अकल इन्हें ही नवाजी गयी हो! कभी ये नारी की आर्थिक स्वतंत्रता के विरोध में खड़ी हो जाती हैं तो कभी अपने पुरुष मित्र की तरफदारी करने के लिए महिला ब्लॉगर्स के खिलाफ पोस्ट लगाकर महिलाओं का अपमान करती है ! इनकी इस मानसिक अवस्था के लिए हो सकता है हो सकता है घरेलू हिंसा जिम्मेदार हो , अतः निवेदन है इस महिला के साथ सहानुभूति का रवैय्या रखा जाए !
अब आते है उस पोस्ट पर जिस पर मोहतरमा को आपत्ति है ! बेचारी का संशय भी तो दूर करना है, क्योंकी इनकी पोस्ट पर आये इनके चाटुकार मित्रों ने न ही तर्क रखे , न ही भ्रम दूर किये ! केवल जी हुजूरी करके चले गए ! ( क्या करें बेचारे , टिपण्णी पाने के लिए ये सब तो करना ही पड़ता है ) ! एक दुसरे की पीठ खुजाना ( ब्लॉगिंग की अनैतिक नीति)
भारत विभाजन के समय , नेहरू ने देश के साथ बहुत अन्याय किया ! जबरदस्ती प्रधानमंत्री बनकर बहुत से क्षेत्रों में मनमानी की , जिसकी सज़ा आज भी भुगत रही है भारत की मासूम जनता ! उन्ही नेहरू ने और गांधी ने मिलकर मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए अखंड भारत को खंडित करके हिन्दुस्तान और पाकिस्तान में विभक्त कर दिया! और भारतवासियों को सौगात में मिला कभी न थमने वाला आतंकवाद का सिलसिला ! इस आतंकवाद ने लाखों की संख्या में काश्मीरी ब्राम्हणों को विस्थापित किया उनका क़त्ल किया और उनकी बहन बेटियों के साथ बलात्कार किया !
नेहरू की मनमानी ने ही "अंबेडकर' के कंधे पर रखकर बन्दूक चलाई ! मात्र १५ दिन के अन्दर कॉपी-पेस्ट वाला मनमाना संविधान बनवाया ! अंबेडकर ने स्वयं उस संविधान में समय-समय पर बदलाव किये जाने के लिए लिखा है, जो की कभी नहीं किया गया ! उस समय जिस आरक्षण की बात कही गयी वह मात्र दस वर्षों के लिए थी, लेकिन उसे आज तक दुबारा कभी संशोधित नहीं किया गया और आरक्षण का कोढ़ हमारे देश को अभी भी लगा हुया है , जो भारत वर्ष को दशकों पीछे ले जा रहा है !
दलित भी हिन्दू है , और हम सभी एक हैं , लेकिन कहीं न कहीं इस संविधान में निहित कमियों के चलते दलित हमसे अलग हो गया है! उसके मन में कभी ना समाप्त होने वाली कुंठा और आक्रोश है! हिन्दू समाज को बाँट दिया गया ! जो मुखिया होता है , दोषी भी उसी को ठहराया जाता है ! जिसने संविधान बनाया उसके इरादे पाक साफ़ होते हुए भी , उसने नेहरू की दादागीरी से डरकर वही किया जो वे करवाना चाहते थे !
अंबेडकर को इस जबरदस्ती पर सख्त आपत्ति थी और उन्होंने ने स्वयं कहा था -- " मुझे दो संविधान। मैं बीच सड़क पर इसे जला दूंगा। ऐसा करने में मेरा राष्ट्रधर्म मुझे नहीं रोकेगा।"
काश यही राष्ट्र धर्म उन्हें संविधान बनाते समय समझ आ गया होता ! काश उन्होंने थोड़ी सी हिम्मत जुटा ली होती तब ! लेकिन नहीं , हम सबको बहुत कुछ भुगतना था , शायद इसीलिए ऐसा हुआ !
आने वाली कई शताब्दियों तक इन्हें इनकी अच्छाईयों के लिए जाना जाएगा तो इनकी भूलों को भी नज़रंदाज़ नहीं किया जाएगा, ताकि भविष्य में ऐसी गलतियों की पुनरावृत्ति ना हो !
उम्मीद है इन मोहतरमा को उत्तर मिल गया होगा और इनकी आत्मा को शांति मिली होगी! यदि न मिली हो तो इन्हें चाहिए कि अपने ब्लौग पर विष वमन करने के बजाये रामायण का पाठ जारी रखें !
इन मोहतरमा को भी विरोध में आई टिपण्णी मोडरेट करने की आदत है ! जो टिपण्णी इन्होने प्रकाशित नहीं की वह नीचे संलग्न है !
Diwas Gaur---ये तो कोई बात नहीं है। जो प्राणघातक है, उसका कैसा सम्मान? संविधान भारत नहीं और भारत कोई संविधान नहीं। हम भारत का सम्मान करते हैं, प्यार करते हैं, पूजा करते हैं, उस पर मर मिट सकते हैं किन्तु संविधान? वह क्या है? केवल एक तरीका कि भारत कैसे चलाया जाए। यदि तरीका ही गलत हो तो फिर कैसा सम्मान?
मुझे दो संविधान। मैं बीच सड़क पर इसे जला दूंगा। ऐसा करने में मेरा राष्ट्रधर्म मुझे नहीं रोकेगा"--स्वयं डॉ. अम्बेडकर ने भी संविधान के सम्बन्ध में यही कहा था। जिसे संविधान का निर्माता कहा जाता है उसे ही संविधान से प्यार नहीं।
और इस समूचे ब्लॉग जगत में टारगेट करने के लिए सबको दिव्या दीदी ही क्यों मिलती हैं? ब्लॉग जगत में फैली अनियमितताओं, मठाधीशों, इस्लामी टट्टुओं, जमाल जैसे कुत्तों पर आँखें क्यों मूँद ली जाती हैं?देखिये जमाल ने क्या किया? http://www.diwasgaur.com/2012/04/blog-post.html
-
नोट- मजे कि बात यह है कि मेरे पोस्ट लिखने के तुरंत बाद ही, आधे
घंटे के अन्दर इन मोहतरमा ने घबराकर दिवस जी कि टिपण्णी प्रकाशित कर दी ,
जो पिछले २४ घंटों से इनके मॉडरेशन में दम तोड़ रही थी ! ( वैसे बहाने तो
ऐसे लोगों के पास अनेक होते हैं अपनी इस अशिष्टता को छुपाने के)
यदि इस महिला के पास ज़रा भी बुद्धि है, तो इनसे निवेदन है , मुझसे
ईर्ष्या और द्वेष ना पालें ! अपनी ऊर्जा यदि सच्चे अर्थों में कहीं लगानी
है , तो समाज के हित में लगायें और सत्ता में बैठे देश के गद्दारों के
खिलाफ लिखें ! मेरे विरोध में लिखकर ये सिर्फ अपनी तुच्छ और बीमार मानसिकता
का ही परिचय देती हैं !
जय हिंद !
वन्दे मातरम् !
.