Sunday, October 30, 2011

हमारा तिरंगा




जो गलती कपिल सिब्बल जी ने की , उसकी पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए। भारत की शान , हमारी पहचान हमारा राष्ट्रीय ध्वज है। इसमें सबसे ऊपर गहरा केसरिया रंग, फिर सफ़ेद और सबसे नीचे हरे रंग की पट्टी होती है। ध्वज के मध्य में सफ़ेद पट्टी पर २४ तीलियों वाला अशोक चक्र नेवी-ब्लू रंग में बना होता है। ध्वज का अनुपात : है।

किसी भी अवस्था में राष्ट्रीय ध्वज का अपमान होने पाये इस बात का ध्यान बना रहना चाहिए।

समय-समय पर लोगों की अज्ञानता के फलस्वरूप हमारे राष्ट्रीय ध्वज का अपमान होता रहा है , जो अक्षम्य है।

कभी सानिया मिर्ज़ा द्वारा ध्वज के सामने अपने जूतों को रखने द्वारा , कभी काश्मीर के विद्रोहियों द्वारा ध्वज को जलाकर तो कभी सत्ता में बैठ कपिल सिब्बल द्वारा अपनी मेज पर ध्वज को उल्टा लगाये जाने द्वारा।

अक्षम्य हैं ऐसी भूलें।

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JALANDHAR: Bharat Gaurav, an organization led by BJP leader Vijay Sampla, has lodged a complaint with police here against Union HRD minister Kapil Sibal, accusing him of showing "disrespect" to national flag three months ago.

In his complaint, Sampla said that a photograph of Sibal and minister of education of Republic of Mozambique, Zeferino Aledandre, signing an MoU in New Delhi on July 13, which had been put on a website, was brought to his notice where the national flag of India was placed upside down on the table in front of the minister.

"The national flag of India was in reverse order with its green colour on the upper side," the complaint submitted in the Basti Bawa Khel police station said.

Asked why he was filing the complaint three months after the incident, Sampla said he chanced upon the photograph only recently।

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Friday, October 28, 2011

'लाश' खाने के शौक़ीन हैं आप ?




जब खाने के लिए प्रकृति ने भाँती-भाँती की वनस्पतियाँ, फल और अनाज उपलब्ध करा दिए हों तो हिंसक पशुओं के समान 'लाश' के टुकड़े खाने की क्या आवश्यकता है ?


कम से कम उन पशुओं से ही कुछ सीखिए जिनके मृत शवों को आप खाते हैं। बेचारे बेजुबान पशु (गाय, ऊंट, बकरी, सुवर , मुर्गी आदि) तो शाक भाजी ही खाते हैं , लेकिन आप जैसे दरिन्दे इनके मांस का भक्षण करते हैं।

एक बकरीद आने की देर है , करोड़ों की संख्या में बेजुबान पशु हलाल कर दिए जायेंगे। बेदर्द और हिंसक आदमजात बैठकर इनकी लाश की दावत करेगी।

धिक्कार है ऐसी आदमीयत पर जिसमें मानवीयता का अभाव हो। लाश का सेवन करने वालों से मानवीय संवेदनाओं को समझ सकने की अपेक्षा व्यर्थ है।

ऐसे लोग हिंसक होते हैं तथा समाज में हिंसा और आतंकवाद को ही बढ़ावा देते हैं।

हमारी सरकार को चाहिए की भारत देश में पशुओं के हलाल पर पूर्णतया पाबंदी लगा दे। जिसे अपनी जबान के चटोरेपन पर नियंत्रण न हो वे तुर्किस्तान अथवा पाकिस्तान में जाकर निवास करें ।

हिंदुस्तान को सात्विक ही रहने दें।

Zeal

Wednesday, October 26, 2011

दूध के धुले सत्ताधारी !

सत्ता में बैठे देश के कर्णधार सब दूध के धुले हुए हैं। कोई पाप नहीं किया। भ्रष्टाचार से इनका सरोकार नहीं है। ये देश के लिए ही पैदा हुए हैं। देश को ले डूबने के बाद ही पिंड छोड़ेंगे। जो भी आएगा देश को बचाने , उनकी ये तहस नहस कर देंगे। अच्छे से अच्छा व्यक्तित्व भी पल भर में भ्रष्ट घोषित कर दिया जाएगा।

इन मठाधीशों से कोई पूछे , दूसरों पर उँगलियाँ उठाना क्या इनकी पार्टी का फैशन है ? लेटेस्ट फैशन ?

प्रज्ञा ठाकुर आतंकवादी
भगवाधारी देशद्रोही
रामदेव भ्रष्ट!
बालकृष्ण फर्जी!
अब एक इमानदार आफिसर किरण बेदी भी भ्रष्ट !


अगला किसका नंबर है ?

कृष्ण भी भ्रष्ट ?
विदुर भी मूर्ख?
राम मर्यादाविहीन ?


धर्म का नाश कर रहे हैं ये छद्म सेकुलर सत्ताधारी। अलगाववादियों (गिलानी, अरुंधती) को गले लगाते हैं पाकिस्तानियों के साथ बैठकर ( दोनों देशों के प्रमुख) समोसा खाते हुए क्रिकेट देखते हैं। ३७७ क़त्ल करने वाले (कसाब जैसे ) आतंकवादियों को देशवासियों पर जबरदस्ती थोप रखा है।

होटल ताज में फंसी जनता को बचाने में हमारे देश के अनमोल हीरों ने अपनी जान गवां दी। शहीद हो गए देश के जाबांज सिपाही आप उनका परिवार सिसकियाँ ले रहा होगा, लेकिन हमारे देश के 'दूध के धुले सत्ताधारियों' को इनकी कुर्बानी कहाँ याद है भला।

इन्हें तो बस उँगलियाँ उठाना आता है। देशभक्तों की छवि धूमिल करना आता है। आरोप और आक्षेप लगाना कांग्रेसियों का फैशन है।

कभी अपनी भी गिरेहबान में झांको कांग्रेसियों !

आज का यह प्रकाश पर्व शहीदों और देशभक्तों के नाम !...... मेरी दिवाली का हर दिया देश की समृद्धि के नाम !

हे माँ लक्ष्मी ,
देना है वरदान तो धनवान अब कर दो।
देशभक्ति के ऐश्वर्य से हिंदुस्तान को भर दो।
सारे दिये दीपावली के मशाल बन जाएँ
बन के आग देशभक्ति की हर सीने में जल जाएँ।
हे माँ लक्ष्मी हमें धनवान तुम कर दो।
हर देशभक्त भारतवासी को बलवान तुम कर दो।

दीपाली के शुभ अवसर पर हर शहीद और देशभक्त को नमन !

हर हर महादेव !
भारतमाता की जय !
वन्देमातरम !

Zeal

Monday, October 24, 2011

क्या साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर जिन्दा हैं ?

जी हाँ, जीवित ही नहीं अमर भी हैं देश और धर्म की रक्षा करने वाली वीरांगनायें हर दिल में जीवित रहती हैं और अपनी सशक्त क्रांतिकारी आवाज़ से करोड़ों लोगों को उद्वेलित करती हैं। ऐसे लोगों के मन में अपने देश को ऊँचाइयों की और ले जाने का जो जज्बा होता है वह विरले ही किसी में होता है। धन्य है इस भारत की माटी जहाँ कुटिल राजनीतिज्ञों को ललकारने वाली वीरांगनायें भी जन्म लेती हैं।

आइये हम इस वीरांगना के अच्छे स्वास्थ के लिए प्रार्थना करें और इन्हें सरकार के चंगुल से बचाने के लिए प्रयत्न करें। आज देश को ऐसी ही देशभक्त नारियों और वीर पुरुषों की ज़रुरत है जो राष्ट्र की रक्षा करने के लिए अपनी जान की परवाह किये बिना सतत प्रयत्नशील हैं और कटिबद्ध हैं।

जो लोग कुत्सित विचारों को धारण किये हुए हैं और अजमल कसाब को बचाने के लिए प्रयत्नशील हैं उन पर थू है। इस देश को आतंकवादियों का शरण स्थल नहीं बनने दिया जाएगा। यहाँ सिर्फ सच्चे , इमानदार और देशभक्त लोगों को जन्मने और जीने का अधिकार दिया जाएगा।

साध्वी प्रज्ञा जैसी वीरांगनाओं के अस्तित्व को कभी मिटाया नहीं जा सकता करोड़ों दिलों में इस जज्बे की मशाल है। एक नहीं अनेक साध्वी प्रज्ञायें हैं इस धरती पर किस-किस को मिटायेंगे ये ? हर दिन इस विशाल भारत भूमि पर एक साध्वी का , एक वीरांगना का जन्म होता है।

साध्वी प्रज्ञा के अच्छे स्वास्थ्य की कामना कीजिये ताकि वे उसी दम-ख़म के साथ वापस आकर देश के लिए लडाई लड़ सकें। आज भारत को ज़रुरत है वीर सपूतों की और वीरांगनाओं की।

शहीदों की जय
जीवित देशभक्तों की जय
भारतमाता की जय
वन्देमातरम !

Zeal

Wednesday, October 19, 2011

पवित्र , पावन , कल्याणकारी क्रोध का महात्म्य --महिषासुरमर्दिनी और ईश्वर चर्चा भाग ११

बच्चों का क्रोध जिद्द होता है, यदि नहीं करेंगे तो उन्हें इच्छित वस्तु नहीं मिलेगी। कहीं प्यार भरा क्रोध होता है (माता-पिता और शिक्षकों का क्रोध)। कहीं आपस में द्वेश्जनित क्रोध होता है। कहीं अहंकार के स्वरुप अनायास ही मन में क्रोध अपना स्थान बना लेता है। कहीं ईर्ष्या क्रोध का कारण होता है जैसे पाकिस्तानी आतंवादियों का क्रोध। समाज में फैली कुरीतियों पर, दीन हीन पर हो रहे अन्याय को देखकर, भ्रष्ट आचरण को देखकर और अपने ऊपर हो रहे शोषण को देखकर भी क्रोध करना नपुंसकता है। .

लेकिन एक क्रोध पवित्र भी होता है , जहाँ क्रोध की अग्नि में भस्म होकर समस्त दैत्य और दानवों का विनाश होता है, क्रोध करने वाले का नहीं। जब-जब जगत में दत्यों और पापियों का प्रादुर्भाव बढ़ा है, तब-तब देवों, संतों और वीरों ने क्रोध करके ही दुष्टों का संहार किया है।

चंड , मुंड, शुम्भ, निशुम्भ, और रक्तबीज जैसे दैत्यों का मर्दन करने के लिए देवी अम्बिका को क्रोध करना पड़ा। रावण की भूल के लिए राम को युद्ध और कौरवों की दृष्टता के लिए महाभारत हुयी।

अतः असुरों के विनाश के लिए और आम जनता की रक्षा के लिए संतों को क्रोध करना ही पड़ता है , कोई अन्य विकल्प नहीं है। क्रोध वीरता का भी प्रमाण है और मनुष्य के अन्दर संचारी भावों का दोत्तक भी है। देशभक्तों में देश की रक्षा के लिए जो अग्नि जलती है , वही गद्दारों को पहचान करके उनसे युद्ध करके देश की रक्षा करती है। यह आक्रोश है देशभक्ति का जज्बा है। जो अनुकरणीय है यह क्रोध वीरों का आभूषण है। यदि यह जज्बा नहीं होगा तो धरती वीरों से विहीन हो जायेगी। सिर्फ उपदेशक बचेंगे और श्रोता। कर्मठ लोगों का अकाल हो जाएगा।

मन करे सो प्राण दे , जो मन करे तो प्राण ले
वही तो एक सर्वशक्तिमान है
कृष्ण की पुकार है ये भागवत का सार है
की युद्ध ही तो वीर का प्रमाण है
कौरवों की भीड़ हो या पांडवों का नीड हो
जो लड़ सका वही तो बस महान है।

आज भगत सिंह, चन्द्र शेखर आजाद और नेताजी जैसे संतों के पवित्र क्रोध , जो वीरता से परिपूर्ण है , की आवश्यकता है। चंड-मुंड , रक्तबीज और महिषासुर जैसे दानवों के विनाश के लिए चामुण्डा, काली और महिषासुरमर्दिनी की ज़रुरत है।

हे देवी सर्वभूतेषु , शक्ति (क्रोध) रूपेण संस्थिता,
नमस्तस्ये, नमस्तस्ये, नमस्तस्ये नमो नमः

Zeal

Monday, October 17, 2011

जब नेतृत्व का भार हो स्वयं पर तो अपनी जिम्मेदारी समझिये.

महात्मा गांधी ने निसंदेह राष्ट्र के लिए एक पिता की भूमिका निभायी लेकिन उनकी कुछ भूलों का दुष्परिणाम आज भारत की निर्दोष जनता भुगत रही है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के लिए ह्रदय में अपार सम्मान होते हुए भी मन में एक प्रश्न आता है .....आखिर क्यूँ किया उन्होंने ऐसा ? राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के व्यक्तित्व के अनुकरणीय हिस्से को धारण करिए , लेकिन उनसे हुयी भूलों की पुनरावृत्ति मत कीजिये। सिक्के के दोनों पहलुओं को जानिये और स्वविवेक से आने वाले समय में राष्ट्रहित के लिए निर्णय लीजिये। एक नज़र यहाँ और यहाँ भी ...
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1. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (1919) से समस्त देशवासी आक्रोश में
थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाए।
गान्धी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से मना कर दिया।

2. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व
गान्धी की ओर देख रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचाएं,
किन्तु गान्धी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग
को अस्वीकार कर दिया। क्या आश्चर्य कि आज भी भगत सिंह वे अन्य क्रान्तिकारियों
को आतंकवादी कहा जाता है।

3. 6 मई 1946 को समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने सम्बोधन में गान्धी ने मुस्लिम
लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।

4.मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते
हुए 1921 में गान्धी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी
केरल के मोपला में मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग
1500 हिन्दु मारे गए व 2000 से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गान्धी ने इस
हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में
वर्णन किया।

5.1926 में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी
श्रद्धानन्द जी की हत्या अब्दुल रशीद नामक एक मुस्लिम युवक ने कर दी, इसकी
प्रतिक्रियास्वरूप गान्धी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को
उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दु-मुस्लिम
एकता के लिए अहितकारी घोषित किया।

6.गान्धी ने अनेक अवसरों पर छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोविन्द
सिंह जी को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।

7.गान्धी ने जहाँ एक ओर काश्मीर के हिन्दु राजा हरि सिंह को काश्मीर मुस्लिम
बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श दिया, वहीं
दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दु बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।

8. यह गान्धी ही था जिसने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।

9. कॉंग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए बनी समिति (1931) ने सर्वसम्मति से चरखा
अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी कि जिद के कारण उसे तिरंगा कर
दिया गया।

10. कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से
कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी पट्टभि सीतारमय्या का समर्थन कर
रहा था, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पदत्याग कर दिया।

11. लाहोर कॉंग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु
गान्धी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।

12. 14-15 जून, 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति की बैठक
में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी ने वहाँ
पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था
कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।

13. मोहम्मद अली जिन्ना ने गान्धी से विभाजन के समय हिन्दु मुस्लिम जनसँख्या की
सम्पूर्ण अदला बदली का आग्रह किया था जिसे गान्धी ने अस्वीकार कर दिया।

14. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय
पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के
सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त
करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की
मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।

15. पाकिस्तान से आए विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब
अस्थाई शरण ली तो गान्धी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व
बालक अधिक थे मस्जिदों से से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर
किया गया।

16. 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने काश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व
माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए की राशि देने का
परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने
को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के
लिए आमरण अनशन किया- फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे
दी गयी।

17.गाँधी ने गौ हत्या पर पर्तिबंध लगाने का विरोध किया

18. द्वितीया विश्वा युध मे गाँधी ने भारतीय सैनिको को ब्रिटेन का लिए हथियार
उठा कर लड़ने के लिए प्रेरित किया , जबकि वो हमेशा अहिंसा की पीपनी बजाते है

.19. क्या ५०००० हिंदू की जान से बढ़ कर थी मुसलमान की ५ टाइम की नमाज़ ?????
विभाजन के बाद दिल्ली की जमा मस्जिद मे पानी और ठंड से बचने के लिए ५००० हिंदू
ने जामा मस्जिद मे पनाह ले रखी थी…मुसलमानो ने इसका विरोध किया पर हिंदू को ५
टाइम नमाज़ से ज़यादा कीमती अपनी जान लगी.. इसलिए उस ने माना कर दिया. .. उस
समय गाँधी नाम का वो शैतान बरसते पानी मे बैठ गया धरने पर की जब तक हिंदू को
मस्जिद से भगाया नही जाता तब तक गाँधी यहा से नही जाएगा….फिर पुलिस ने मजबूर
हो कर उन हिंदू को मार मार कर बरसते पानी मे भगाया…. और वो हिंदू— गाँधी
मरता है तो मरने दो —- के नारे लगा कर वाहा से भीगते हुए गये थे…,,,
रिपोर्ट — जस्टिस कपूर.. सुप्रीम कोर्ट….. फॉर गाँधी वध क्यो ?

२०. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 24 मार्च 1931 को फांसी लगाई जानी थी, सुबह
करीब 8 बजे। लेकिन 23 मार्च 1931 को ही इन तीनों को देर शाम करीब सात बजे फांसी
लगा दी गई और शव रिश्तेदारों को न देकर रातोंरात ले जाकर ब्यास नदी के किनारे
जला दिए गए। असल में मुकदमे की पूरी कार्यवाही के दौरान भगत सिंह ने जिस तरह
अपने विचार सबके सामने रखे थे और अखबारों ने जिस तरह इन विचारों को तवज्जो दी
थी, उससे ये तीनों, खासकर भगत सिंह हिंदुस्तानी अवाम के नायक बन गए थे। उनकी
लोकप्रियता से राजनीतिक लोभियों को समस्या होने लगी थी।
उनकी लोकप्रियता महात्मा गांधी को मात देनी लगी थी। कांग्रेस तक में अंदरूनी
दबाव था कि इनकी फांसी की सज़ा कम से कम कुछ दिन बाद होने वाले पार्टी के
सम्मेलन तक टलवा दी जाए। लेकिन अड़ियल महात्मा ने ऐसा नहीं होने दिया। चंद
दिनों के भीतर ही ऐतिहासिक गांधी-इरविन समझौता हुआ जिसमें ब्रिटिश सरकार सभी
राजनीतिक कैदियों को रिहा करने पर राज़ी हो गई। सोचिए, अगर गांधी ने दबाव बनाया
होता तो भगत सिंह भी रिहा हो सकते थे क्योंकि हिंदुस्तानी जनता सड़कों पर उतरकर
उन्हें ज़रूर राजनीतिक कैदी मनवाने में कामयाब रहती। लेकिन गांधी दिल से ऐसा
नहीं चाहते थे क्योंकि तब भगत सिंह के आगे इन्हें किनारे होना पड़ता

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Friday, October 14, 2011

मेरे देश की धरती गद्दार उगले , उगले रोज़ मक्कार .....

प्रशांत भूषण ने देश को शर्मसार किया , देशद्रोह किया , हमवतनों के साथ गद्दारी की अखंड भारत को खंड -खंड करने का आवाहन किया। ये बुद्धजीवी अपनी बुद्धि क्या दरिया में बहा आते हैं? भारत का हित किसमें है , क्या यह भी नहीं जानते ज्वर से पीड़ित होकर जैसे प्रलाप होता है , वैसे ही प्रशांत भूषण और अरुंधती आदि का अनर्गल प्रलाप होता रहता है समय-समय पर।

देश को दीमक की तरह चाट रही कांग्रेस ही इन अनर्गल प्रलापों की जिम्मेदार है। कांग्रेस से ज्यादा खतरनाक हैं कांग्रेसी मानसिकता वाले भारतीय। दोहरा चरित्र इनकी पहचान है। मासूम , निर्दोष और भोली जनता का समर्थन प्राप्त करने के बाद ये पूरी ताकत के साथ आम जनता के विश्वास का गला घोंटते हैं।

हमारे देश की अकर्मण्य और भीरु सरकार कसाब जैसे आतंकवादियों को पालती पोसती है , लेकिन साध्वी प्रज्ञा जैसे देशभक्तों को सरकारी अस्पताल में तिल-तिल मरने को मजबूर करती है। यहाँ संतों और जनता को आधी रात में मरवाया जाता है। बहिन राजबाला , निगमानंद और अरुण दास जैसे देशभक्त रोज़ ही शहीद होंगे जब तब तक बिना रीढ़ की हड्डी वाले भूषण हमारे देश का आभूषण बनेंगे।

जिन वीरों ने प्रशांत भूषण को उनके गैरजिम्मेदाराना वक्तव्य के लिए पिटाई की , उनको नमन। उन्होंने भारत की मिटटी में जन्म लेने का ऋण अदा कर दिया। जिन्दा कौमें पांच साल तक इंतज़ार नहीं करतीं। दुष्टों, भ्रष्टों, गद्दारों और मक्कारों को सजा तुरंत दे देनी चाहिए। सरकार और अदालतों से न्याय की उम्मीद व्यर्थ है।

आज देश को ज़रुरत है शहीद भगत सिंह जैसे वीरों की नयी खेप की। वतन पर मर मिटने वालों देशभक्तों की अखंड भारत का स्वप्न देखने वालों की दुश्मन मुल्कों के नापाक इरादों को धूल चटाने वालों की, देश के साथ गद्दारी करने वालों की नाक सड़क पर रगड़ देने वालों की

आज ज़रुरत है नेताजी जैसे वीरों की और एक ऐसी फ़ौज की जो गद्दारों के हौसले पस्त कर दे और अकर्मण्य सरकार को उखाड़ फेंके। एक ऐसी फ़ौज जिसमें सिर्फ इमानदार , निस्वार्थ , निडर , निर्भीक और देशभक्त नागरिक हों।

जय हिंद !
जय भारत !

भारत का स्वाभिमान बचा रहे।
भारत की अखंडता बनी रहे।
भारतवासियों का विश्वास बना रहे

Zeal

Monday, October 10, 2011

तटस्थता और सुकून ....

मेरी चिर-परिचित सहेली राधिका ने कहा- "दिव्या यदि मैं तुम्हारा साथ दूँगी तो रेवती मुझसे दूर हो जाएगी और इस तरह तो मैं अकेले पड़ जाउंगी आखिर मैं भी तो एक सामाजिक प्राणी हूँ। इसी समाज में रहना है , तो हर किसी के साथ निभाना ही होगा वर्ना मैं अकेले कैसे जी सकुंगी ...और फिर मुझे तो किसी ने कुछ कहा नहीं है, मुझे तो किसी ने गाली नहीं दी , फिर मैं क्यूँ खुद को मुसीबत में डालूँ। और फिर मेरे आलेख तो हमेशा ऐसे होते हैं की लोग वाह-वाह ही करेंगे, फिर मैं क्यूँ तुम्हारी खातिर अपनों को खो दूँ ? "

राधिका की बात तो सही है। गैरों के कष्ट से खुद को क्यूँ व्यथित किया जाए। सही तो किया राधिका ने तटस्थ रहकर। आजकल सामाजिकता और औपचारिकता ही तो निभाई जाई है। जब तक सब ठीक हो तो 'बतरस' लो , प्रेम लो , स्नेह लो और जब कोई कष्ट में हो तो तटस्थ रहो।

वाह रे दोस्ती ! धन्य हो राधिका !

खैर ऐसी समस्या बहुतों के सामने आती होगी अतः इस विषय पर भी लिख देना उचित ही समझा मन में आये विचारों को स्थान मिलना ही चाहिए ब्लॉग में।

मेरे विचार से कभी भी किसी का सगा बनने का दावा नहीं करना चाहिए और यदि सगे बनते हैं तो आड़े वक़्त पर साथ भी देना चाहिए। वरना सब दिखावा है , मौकापरस्ती है भावनाओं के साथ खिलवाड़ है

यदि निभाने की ताकत हो तो रिश्तों को औपचारिक ही रखना चाहिए , तटस्थ बने रहने में ही भलाई है

लेकिन एक बात स्पष्ट कर दूँ। तटस्थता इंसान की कमजोरी ज़ाहिर करती है। तटस्थ रहकर आप अपने मित्र को तो खो ही देते हैं आप इस मनभरोसे में रहते हैं की चलो अच्छा हुआ दोनों से सेटिंग कर रखी है। लेकिन यकीन जानिये आप दोनों के साथ कभी नहीं निभा सकते। आपका मित्र चुपचाप बिना आपसे शिकायत करे आपसे दूर चला जाएगा।

और जब तक आपकी तटस्थ बने रहने की आदत बनी रहेगी आपका कोई भी मित्र नहीं बन सकेगा। आप अकेले ही रहेंगे मात्र औपचारिक और सामाजिक। सब ऊपर-ऊपर का बचा रहेगा। अन्दर कुछ भी शेष रहेगा।

तटस्थता कभी भी सुकून नहीं देती वह अपनों के साथ घात करने का अपराध बोध कराती है। तटस्थ व्यक्ति केवल एक स्थिति में ही सुकून से जीता है , जब की वह दोनों के ही साथ घात कर रहा हो।

दुनिया में प्रतिक्षण घट रही घटनाओं में जहाँ दो पक्ष होते हैं , वहां दोनों ही सही अथवा दोनों ही गलत नहीं हो सकते एक की गलती तो स्पष्ट दिखती है। फिर दुविधा कैसी ? जो सही लगे उसका साथ दीजिये ...निडर और निर्भय होकर।

तटस्थता कोई विकल्प नहीं और तटस्थता को निष्पक्षता का नाम कदापि मत दीजिये। ऐसे भ्रम पालकर आप खुद को भुलावे में रख रहे हैं।

खैर मुझे तो तटस्थ रहने से बड़ा अपराध दूसरा कोई नहीं लगता। अपने विवेक से नीर-क्षीर विभाजन करके सही गलत को देखकर , सप्रयास जो सही है उसका साथ देती हूँ और जो गलत है उसका विरोध करती हूँ। इस प्रक्रिया में यदि कोई दूर हो जाए तो कोई गम नहीं। अकेले रह जाऊँगी , इसका कोई भय नहीं है मन में। अकेले ही इस पृथ्वी पर जन्म लिया है और अकेले ही प्रयाण भी होगा। फिर भय किस बात का ?

सत्य की राह पर अक्सर अकेले ही चलना पड़ता है। एक बार चल पड़ो तो फिर आदत सी पड़ जाती है , उसी में सुकून भी आने लगता है वही जीवन का मकसद भी बन जाता है। जो कमज़ोर होते हैं वे एक एक करके साथ छोड़ देते हैं, लेकिन सत्यवादी आगे ही बढ़ता रहता है ...अकेले नहीं , अपनी आस्था और आत्मविश्वास के साथ ....Link
सत्यमेव जयते

Zeal