Thursday, February 2, 2017

वीर भोग्या वसुंधरा

कुछ विद्वान् मित्रों का मत है कि आरक्षण से पहले जातिवाद को हटाया जाए ।
किन्तु जाति व्यवस्था से किसी को व्यक्तिगत नुक्सान नहीं है । किसी का अधिकार नहीं मारा जा रहा है । कोई ठाकुर , कोई बनिया , कोई कुर्मी , कोई बढ़ई है तो उससे फरक क्या पड़ता है । नाम दिव्या हो, सीमा हो, मोहन हो, राकेश हो , कोई फरक नहीं पड़ता । सब अपने आप में खुश हैं , कोई किसी का हक नहीं मार रहा , बशर्ते कि आरक्षण की तलवार न लटकी हो कीन्हों दो के कन्धों पर ।
जब आरक्षण नहीं होगा तो सभी को सामान अवसर मिलेगा । अपनी योग्यता से अपनी प्रतिभा सिद्ध कर ऊपर आया जा सकता है । अपना परचम लहराया जा सकता है । आगे आने का आधार मेरिट होना चाहिए ।
प्रतिभाओं के आगे सभी नतमस्तक होते हैं , किसी का किसी से द्वेष नहीं होता । यदि आरक्षण नहीं होगा तो जातिभेद होगा ही नहीं । सभी जतियाँ सामान हैं और वे सौहार्द के साथ इस भारत भूमि पर रहती हैं ।
जातियों को कलंकित करने का काम ये नेता करते हैं । अपने स्वार्थ में ये समाज के अनगिनत टुकड़े कर उनकी तरफ आरक्षण के टुकड़े फैंकते हैं । ये नेता ही आरक्षित जतियों से उनका स्वाभिमान छीनते हैं और अनारक्षित जातियों की प्रतिभाओं का गला घोंटकर असमानता और आपसी दुराचार पैदा कर हम पर राज करते हैं ।
बाहर आना होगा इस मृगतृष्णा से । आरक्षण नहीं होगा तो समस्त जातियाँ मिलजुल कर रहेंगी। अतः ये स्पष्ट है कि आरक्षण से जातिवाद का जहर फैलता है। जातियाँ स्वयं किसी प्रकार से किसी का नुक्सान नहीं करतीं ।

Saturday, January 28, 2017

अवन्तिका चल बसी

मानव ने उसको मार कर फेंक दिया
वीरान से एक गंदे पड़े मैदान में
फिर भी लाश ज़िंदा थी, जीना चाहती थी 
दिल ने धड़कना नहीं बंद किया
गिद्ध नोच नोच कर उसे खाते ..
मानव हर सुबह उसको देखने आता
अवन्तिका के बहते आंसू और
मांस से रिस्ता खून , उसके बेचैन मन को
दो पल का सुकून दे देते और वो लौट जाता
अवन्तिका पीछे से पुकारती रहती
मानव कभी मुड़कर नहीं देखता
प्रतिदिन का नियम
एक का इबादत के लिए आना
दुसरे की लाश का रिसना
और गिद्धों द्वरा नोचकर
खाया जाना जारी था
कहीं कुछ था जो अभी
मुकम्मल नहीं हुआ था
वो सोचती थी कि मानव
उसकी याद में यहाँ आता है
लेकिन जब वो बेरुखी से मुंहमोड़कर
लौट जाता तो वो हैरान हो जाती
क्यों आता है वो
क्या चाहिए उसे
गिद्धों ने अपना काम
वफादारी से जारी रखा
मांस का एक टुकड़ा भी
अब शेष न था
सूखे बचे पिंजर में
बस दो आँखें थीं और
एक लाल धड़कता दिल
वो बहती थीं , वो रिस्ता था
अवन्तिका को अपने प्रश्न का
उत्तर मिल गया था
वो जान गयी थीं कि
मानव अपनी जीत के
बेहद नज़दीक आ चुका है
धीरे से अवन्तिका ने
अपनी आँखें बंद कर लीं
और मानव कि जीत को
मुकम्मल कर दिया !!

Sunday, January 22, 2017

दर्ज हुए इतिहास हो तुम

जीवित होते हुए भी
मर चुके हो तुम
इस जीवन में अब
तुम्हारा स्थान वो है जहाँ
मृत 'अपनों' की यादें रहती हैं 
तुम्हें याद तो किया जाएगा लेकिन
अब बातें न होंगीं तुमसे
तुम जाओ
तुम मुक्त हो
तुम उन्मुक्त उड़ो
अब पीछे से आवाज़ देने वाला
नहीं है कोई
कोई बाधा नहीं
कोई अवरोध नहीं
खाली वीरान सड़कों पर
अब निर्विघ्न चलो
मंज़िल खुद से तलाशो
कस कर हाथ पकडे अब
तुम्हारे कोई साथ नहीं
तुम मेरा वर्तमान नहीं
तुम मेरा भविष्य नही
हाँ , बीत चुके कुछ पन्नों पर,
दर्ज हुए इतिहास हो तुम ।

Wednesday, January 18, 2017

श्रृंगार

कल मायावती मैम का ओजमयी भाषण सुना ! उनका भव्य स्वरुप अंतर्मन को धीरे से कहीं छू गया । हलके रंग का रेशमी परिधान उस पर बहुत ही हलके रंग का पीच कलर का गर्व से इतराता कोट, फ़िज़ां में एक अलग ही गरम्भीरता पैदा कर रहा था ।कानों के आभूषण किसी भी स्त्री का मन ललचा देने के लिए पर्याप्त थे । बेहद आधुनिक डिज़ाइनर अंदाज़ में । बायें कान में करीब दस इंच लंबे झुमके थे तो दाहिनी कान में मात्र एक छोटा सा गोलाकार टॉप्स चिपका हुआ था । ज़ुल्फ़ों को हवा में उड़ने की मनाही थी , उन्हें संयम से अपने स्थान पर रहने की हिदायत थी । वे अपनी सधी हुयी गरिमामयी वाणी में अपना भाषण पढ़ रही थीं । गलतियाँ उन्हें पसंद नहीं इसलिए झुकी हुयी पलकें कागज़ से किंचित मात्र भी हटती न थीं । जब हमारे नयन इस रूप छटा से थोड़ा मुक्त हुये तो अपने श्रवण यंत्रों को तकलीफ देते हुए सुना हमने की वे बेहद धीमी किन्तु कड़क आवाज़ में मासूम सा क्रोध करते हुए अपने प्रधानमन्त्री से नोटबंदी के पहले और बाद का मित्रवत हिसाब माँग रही थीं । बात तो वाजिब है लेकिन जब नोटों की बात चली तो मन फिर से श्रृंगार पर ही आ अटका । कहीं कुछ अधूरा था ... कंठ में नोटों के हार की कमी खल रही थी .. मन उदास हो चला ..

Friday, January 13, 2017

श्रद्धांजलि

जीवनसाथी से बढ़कर साथ निभाने वाला दूसरा कौन हो सकता है भला ? जब दो में से एक नहीं रह जाता तो उसका दर्द क्या होता है ये उनसे पूछिए जो नितांत अकेला होकर , जीवन के इस कठिन सफर को उसकी यादों के सहारे काट रहा होता है ! पिताजी (श्री वी पी श्रीवास्तव , रिटायर्ड बैंक अधिकारी) द्वारा , उनकी स्वर्गीय पत्नी की याद में रचित उनकी कविता , उनकी अनुमति से यहाँ प्रकाशित कर रही हूँ!
-------------------------------------
.
A tribute to my second self 
(my soulmate , my life companion )
.
भूल न पाऊं तुम्हें मैं प्राणप्रिया
अगणित उपकार मुझपर तुमने किये
मोक्ष मिले तुम्हें यही विश्वास किया
क्षमाप्रार्थी हूँ भाव विह्वल कभी किया !
बन गयी तुम अब मेरा इतिहास
रक्षा कवच तुम्हारा सदा रहे मेरे पास
कैसा वियोग टूट गयी सब आशा
विधान मधुस्पर्श का होता काश
पीड़ा उभरी भवसागर में होने का
दिखे न कोई छोर, चहुँ और
प्रबल प्रवाह वेदना कर प्रताड़ित
बह रहा हूँ पकडे तेरी स्मृति डोर
त्यागमूर्ति थी, त्याग किया जीवन भर
बहाई प्रेमपुंज की मधुधारा जी भर
करती रही सदा तुम सेवा निस्वार्थ
तत्पर रहती करने को पूण्य परमार्थ
निर्मूल्य हुए सपने संजोये आस रही न मेरी
अपूर्ण लक्ष्य न होगी, सच श्रद्धांजलि तेरी
करने हैं कार्य तुम्हें ही, रहे जो शेष
करूँ याचना तुम्हीं से, शक्ति दो मुझे विशेष
साथ निभाये तुमने जो तैतालीस वर्ष
सच्चा था वही मेरे जीवन का उत्कर्ष
हो गया हूँ संतप्त अब नहीं रही आस
विस्मृत नहीं होगी तुम मेरी अंतिम सांस
शक्ति स्वरूपणी, शक्तिपुंज में हुयी विलीन
तेरे ज्ञान की गंगा बचा ले, होने से मेरा ह्रदय मलीन
वचन दो शुभे, आज न कहना काश
सदा रहो ह्रदय में जब तक आऊं तेरे पास
सरल स्वभाव तेरा , कैसा सलिल ह्रदय
निर्मल सारा जीवन , रही सदा करुणामय
त्यागमूर्ति थी तुम, ममता की पारावार
समझ न पाया कोई , तेरा विशाल आकार
तुम शक्ति अपार, कर दिया जीवन पार
ऋणी रहूँगा सदा तेरा, हुआ मैं लाचार
अनवरत प्रेरणा दो, न रहे अपूर्ण व्यवहार
चाहूँ बस हो पूर्ण तेरा विचार , मेरा आचार !
वेद प्रकाश श्रीवास्तव

मनकामेश्वर का चमत्कार


लखनऊ का मनकामेश्वर मंदिर । प्रसिद्द है श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ती के लिए । हम भी बोर्ड परीक्षा में अच्छे अंकों की मनोकामना लिए हुए वहाँ गए ।
बात पुरानी है । हमारी उम्र तकरीबन 16 वर्ष । शिवरात्रि का महापर्व । समस्त परिवार के साथ दर्शन करने गए । मंदिर के बाहर बहुत दूर तक स्त्री पुरुष की प्रथक कतारें महादेव के दर्शनों को आतुर ।
धीरे धीरे कतार खिसक रही थी । हम भी मंदिर प्रांगण तक पहुंचे । वहां लगा कपाट खुलता था और थोड़े श्रद्धालुओं को अंदर लेकर फिर बंद कर दिया जाता था । बंद कपाट के इस तरफ व्यग्र भीड़ उग्र होती जा रही थी । भीड़ इतनी ज्यादा की सरसों डालने की जगह नहीं । लोगों द्वारा पीछे से पड़ने वाला धक्का इतना तीव्र था की अग्रिम पंक्ति के लोगों का दम घुट रहा था लेकिन वापसी की कोई गुंजाइश नहीं थी ।
मेरी स्थिति बेहद नाज़ुक हो चुकी थी । कपाट के चौखट से लगी दीवार की edge शरीर में धंसती जा रही थी । पीछे से श्रद्धालुओं की फ़ौज बढ़ती जा रही थी और सामने के कपाट खुलने के इंटज़ार में बन्द थे । हमारी सांस रुकने लगी । मुँह से चिल्लाने की कोशिश की तो आवाज़ नहीं पा रही थी । घुरघुराने की आवाज़ निकल रही थी ।
साक्षात मृत्यु दिखाई दे रही थी । पता नहीं भीड़ के उस शोर में दीदी को मेरी घुटी घुटी आवाज़ कैसे सुनाई दे गयी । उन्होंने भीड़ के बीच में से हाथ बढाकर मेरा कुर्ता मुट्ठी में पकड़ा और पूरी ताकत से पीछे खींचा । बमुश्किल एक सेंटीमीटर पीछे खिंचे होंगे हम तब तक भीड़ के धक्के से हमारा स्थान बदल गया और वो दीवार जो हड्डी को तोड़ने को आतुर थी उससे बचाव हो गया और साँस का आवागमन शुरू हो गया । मृत्यु टल गयी थी ।
किन्तु इतना ही पर्याप्त न था । आगे जो होने जा रहा था वो सोचकर दिल दहल जाता है । उसी क्षण कपाट खुला । पीछे भीड़ के दबाव से अग्रिम पंक्ति के लोग तो फुटबॉल की तरह उछलकर सामने मंदिर प्रांगण में गिरे । कितने कुचले गए पता नहीं लेकिन मेरे साथ जो घटा वो कल्पना से परे किसी चमत्कार से कम नहीं था ।
हम भी भीड़ के धक्के से उछलकर सामने वरांडे में गिरे । लेकिन जहाँ गिरे वो फर्श नहीं थी बल्कि वहाँ तैनात पुलिस वाले का हाथ था जिस पर हम टंग गए जैसे किसी डोरी पर सूखने के लिए टंगे कपडे । उसने मुझे धीरे से उतारा और पूछा , "बेटा चोट तो नहीं लगी" ! मैं बिलकुल ठीक थी , सकुशल ।
यकीन ही नहीं हुआ । पहले दीदी ने जीवनदान दिया फिर मानो , साक्षात मनकामेश्वर महादेव ने उस पुलिसवाले के रूप में आकर मुझे भीड़ द्वारा कुचले जाने से बचा लिया ।
उस घटना को 20 25 साल गुज़र गए हैं लेकिन उसका असर ये है कि इतने सालों में फिर कभी , किसी पर्व पर मंदिर नहीं गए । केवल आम दिनों में जब भीड़ नहीं होती , तभी जाती हूँ ।
हर हर महादेव ।

जीवनदान


जन्म माँ देती है लेकिन जीवनदान कोई फरिश्ता दे देता है । आजीवन ऋणी हूँ ।
बात जनवरी 2011 की है । सर्द रात और तबियत खराब । संयोग से कोई बड़ा नहीं था घर में , अकेली थी बच्चे छोटे जिनसे मदद की अपेक्षा नहीं की जा सकती थी उस समय । ब्लड प्रेशर बहुत बढ़ा हुआ था । 190 के पार । उत्पन्न स्थिति का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। ऐसी अवस्था में अक्सर माँ को फोन लगाया करती थी लेकिन 2007 में वे भी इस दुनिया से विदा ले चुकी थीं । अन्य किसी को रात्रि में परेशान करने की हिम्मत नहीं थी । खैर बच्चों के पास उनके पिताजी और उनकी मौसी का नंबर लिखकर दे दिया और कहा की यदि कोई ज़रूरत पड़े तो इन दो नंबरों पर फोन कर देना ।
संयोग से एक शुभचिंतक मित्र का औपचारिक फोन आ गया उस रात्रि । दुआ सलाम के बाद जब उन्हें अपनी स्थितिजनित भय से अवगत कराया तो वे भी चिंतित हो गए । सैकड़ों किलोमीटर दूर खड़े एक दुसरे प्रांत से वे मेरी कोई मदद नहीं कर सकते थे । असहाय थे किन्तु स्थिति जानने के बाद इस तरह अकेला छोड़ना भी नहीं चाहते थे । उन्होंने कहा , "आप घबराओ मत , हम आपको कुछ सुनाते हैं और सब ठीक होगा "
फिर उन्होंने जाड़े की उस सर्द रात में, सड़क के किनारे खड़े होकर, पूरी हनुमान चालीसा गाकर सुनाई । शेष हमें कुछ याद नहीं लेकिन प्रातः जब नींद खुली तो हम ठीक महसूस कर रहे थे । एक कठिन रात टल चुकी थी ।
ये जीवन ऋणी है उस फ़रिश्ते का । उनका आभार व्यक्त करने के लिए शब्द अपर्याप्त हैं 

प्रेम

प्रेम की परिणति , विवाह हो , ये आवश्यक नहीं ।

communism

An economics professor at a local college made a statement that he had never failed a single student before, but had recently failed an entire class.

*That class had insisted that socialism worked and that no one would be poor and no one would be rich, a great equalizer*

The professor then said, "OK, we will have an experiment in this class on this plan : All grades will be averaged and everyone will receive the same grade !

After the first test, the grades were averaged and everyone got a B.
The students who studied hard were upset and the students who studied little were happy.
As the second test rolled around, the students who studied little had studied even less and the ones who studied hard decided they wanted a free ride too so they studied little.
The second test average was a D!
No one was happy.
When the 3rd test rolled around, the average was an F.
As the tests proceeded, the scores never increased as bickering, blame and name-calling all resulted in hard feelings and no one would study for the benefit of anyone else.
To their great surprise, ALL FAILED and the professor told them that communism would also ultimately fail because when the reward is great, the effort to succeed is great, but when government takes all the reward away, no one will try or want to succeed.

*These are possibly the 5 best sentences you'll ever read and all applicable to this experiment :*
1. You cannot legislate the poor into prosperity by legislating the wealthy out of prosperity.
2. What one person receives without working for, another person must work for without receiving.
3. The government cannot give to anybody anything that the government does not first take from somebody else.
4. You cannot multiply wealth by dividing it!
5. When half of the people get the idea that they do not have to work because the other half is going to take care of them and when the other half gets the idea that it does no good to work because somebody else is going to get what they work for, that is the beginning of the end of any nation !

केजरीवाल

मुझे लगता है केजरीवाल जी को दिल्ली के साथ साथ हरयाणा , गोवा, पंजाब और उत्तर प्रदेश का भी मुख्यमंत्री बना देना चाहिए । धीरे धीरे भारत की सभी रियासतें उनके अधीन हो जाएंगी और वे चक्रवर्ती सम्राट बन जायेंगे । आप लोगों को भी चंदगुप्त मौर्य के शासनकाल में दुबारा जीने का मौक़ा मिलेगा । बस समस्या एक ही है । मनीष सिसौदिया तो एक ही हैं । अन्य रियासतों में किसको टिकाया जाएगा ?