१९९७ में बुकर सम्मान विजेता , अरुंधती रॉय ने दिल्ली में एक सेमीनार में कहा की -- " काश्मीर को आज़ादी मिलनी चाहिए , भूखे-नंगे हिंदुस्तान से "।
एक साहित्यकार और सामजिक कार्यकर्ता के इस प्रकार के गैरजिम्मेदाराना वक्तव्य अति विचारणीय एवं चिंताजनक हैं। एक लेखिका को अपने शब्दों के प्रति बेहद जिम्मेदार होना चाहिए। क्या वजह है जिसके कारण उन्होंने ऐसा बयान दिया। क्या हुर्रियत नेता गिलानी की संगत का असर है उन पर ।
हिंदुस्तान को उन्होंने भूखा-नंगा कहा । हमें शर्म आ रही उनके हिन्दुस्तानी होने पर। उनके वक्तव्य के अनुसार काश्मीर को आज़ादी मिलनी चाहिए। लेकिन क्या अरुंधती को स्वयं पहले आज़ाद नहीं हो जाना चाहिए इस देश से ।
क्या वजह है की अरुंधती जैसी कार्यकर्ता ने ऐसे देशद्रोही वक्तव्य दिया । क्या उनकी मानसिक अस्वस्थता है इसका कारण या फिर वो वास्तव में शान्ति पसंद महिला हैं । क्या वो तंग आ चुकी हैं , काश्मीर मुद्दे से और भारत शान्ति बहाली का एक अनूठा तरीका अपनाना चाहती हैं ।
या फिर वो दानवीर कर्ण बनकर इसिहास के पन्नो पर स्वर्णाक्षरों में उल्लिखित होना चाहती हैं । क्या काश्मीर दान देने से शान्ति बहाली हो जायेगी । क्या चीन , जो अरुणांचल प्रदेश पर आँख जमाये हैं वो भी दान कर दें । क्या मुंबई राज ठाकरे को दे दें ? तो फिर हिंदुस्तान कहेंगे किसको । इसकी सीमा रेखा कहाँ तक है । हमारे देश का भूगोल भी बदलने की आवश्यकता है अब। कितने राज्य हमारे देश में हैं इसका पुनर्निर्धारण करने की जरूरत है ।
इससे भी बड़ी चिंता का विषय है की की असली हिन्दुस्तानी कौन से हैं । क्या अलगाववादी हुर्रियत नेता गिलानी जैसे लोग हिन्दुस्तानी हैं ? क्या अरुंधती रॉय जैसी लेखिका जो हिंदुस्तान को " भूखा-नंगा" कहती हैं वो हिन्दुस्तानी कहलाने की हक़दार हैं ।
क्या भूख -प्यास से तड़पकर , एक लेखिका ने ऐसा शर्मनाक वक्तव्य दिया है या फिर शान्ति बहाली ही अरुंधती का उद्देश्य है ?
क्या बुकर के बाद इनका नामांकन , शांति बहाली के सद्प्रयासों के लिए नोबेल प्राइज़ के लिए होना चाहिए ?
Saturday, October 30, 2010
Wednesday, October 27, 2010
एक खूबसूरत महिला का आतंक -- भारतीय संस्कृति की चिता मत जलाइए -- Hiss
निर्देशक जेनिफ़र लिंच द्वारा निर्देशित फिल्म -'हिस' में अभिनेत्री मल्लिका ने भारतीय संस्कारों को तिलांजलि दे दी है। पैसे और शोहरत के लिए पहले अपनी आत्मा को बेचा, फिर तन के कपड़ों को । और अब भारतीय संस्कृति की चिता जला दी।
फिल्म हिस्स हमारी सभ्यता एवं संस्कृति के अनुकूल नहीं है। सर्प बनी ये विष कन्या हमारी संस्कृति एवं स्त्री की अस्मिता पर ही विष-वमन कर रही है। लाखों नवयुवकों एवं नवयुवतियों को सही पथ से भ्रमित करती हैं ऐसी अश्लील फिल्में ।
आज मिसाल देने वाली फिल्में तो जैसे बनना ही बंद हो चुकी हैं । परिवार के साथ बैठकर पहले फिल्मों को देखा जा सकता था , लेकिन आज कल बेशर्मी की हद से गुजर जाने वाली फिल्मों को आप साथ बैठकर नहीं देख सकते। बच्चों की मानसिकता को बुरी तरह विकृत करने वाली ऐसी फिल्मों का पुरजोर बहिष्कार होना चाहिए।
इस फिल्म की निर्देशिका जेनिफर इसकी जिम्मेदार है या फिर अन्य लोग जिन्होंने इस फिल्म को अंजाम दिया वो ? या फिर मल्लिका का भाई विक्रम ? चाहे जो भी हो , लेकिन एक अकेली स्त्री मल्लिका इस घिनौने शारिक-मानसिक आतंकवाद को रोक सकती थी । लेकिन नहीं , निज स्वार्थ ने सभी को अँधा कर दिया है।
क्या हम अपनी भारतीय संस्कृति बचा सकेंगे ?
Tuesday, October 26, 2010
धन्यवाद मिहिर --आपको भी शुभकामनाएं .
आज तक बहुत से पत्र एवं कमेंट्स मेल से मिले लेकिन उसमे प्रकाशित न करने की गुजारिश होती थी। मिहिर जी की टिपण्णी / पत्र , जिसमें उन्होंने इसे प्रकाशित करने की इच्छा जाहिर की है, यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ। और मिहिर जी का आभार भी व्यक्त कर रही हूँ की उन्होंने अपने विचार हमारे साथ साझा किये । आपकी संवेदनशीलता पुरुष के भावुक ह्रदय की परिचायक है। आपकी पूर्वाग्रहों से रहित एक उत्तम सोच प्रशंसनीय है। मेरा विश्वास-वर्धन करने लिए आपका आभार।
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दिव्या जी, पिछले करीब ५-६ माह से आपको निरंतर पढता हूँ। हर बार आपको पढ़कर मुग्ध होता हूँ । आपकी हर पोस्ट आत्म आत्म मंथन को विवश करती है । जब भी अपने विचारों को आपकी पोस्ट्स पर लिखने की सोचा, शब्दों को हमेशा कम ही पाया। आज आपकी पोस्ट देखकर खुद को रोक नहीं पाया । आपसे गुजारिश है की मेरे पत्र को प्रकाशित किया जाये। क्यूंकि आपका , पति के साथ आने का निर्णय बहुत सी स्त्रियों को प्रेरित करेगा एक सही निर्णय लेने की दिशा में। और मेरा अनुभव यहाँ जुड़ जाने से शायद एक और पक्ष सामने आएगा। मैं पिछले १० वर्षों से कनाडा में हूँ। पेशे से इंजिनियर हूँ । इश्वर की अनुकम्पा से धन दौलत भी खूब है । एक सुन्दर सा बेटी भी है मेरी। लेकिन दुखी हूँ। सब कुछ होते हुए भी ठगा सा महसूस करता हूँ। मेरी पत्नी भी एक डाक्टर है । चेन्नई के एक प्रतिष्ठित अस्पताल में उसकी नौकरी है । मुझसे ज्यादा पैसा कमाती है। जब हमारे बीच ऐसी स्थिति आई तो उसने पैसे और अपने करियर को ही चुना। मेरा परिवार बिखर गया है । एक बार मैंने कोशिश की भारत जाकर नौकरी करने की और अपने परिवार के साथ रहने की , लेकिन मैंने देखा की अब मेरी पत्नी स्वयं में ही बहुत व्यस्त हो चुकी थी , आत्म निर्भर हो गयी है और अब उसे मेरी आवश्यकता नहीं के बराबर है। सिर्फ एक सामाजिक नाम मात्र का रिश्ता सा है हमारे बीच। साल में एक या दो बार मिलना होता है , और कुछ फोर्मल से दूरभाषिक वार्तालाप। सब कुछ महज एक औपचारिकता सा हो गया है। अपनी पत्नी और बेटी के लिए ह्रदय बहुत विलाप करता है अक्सर। मैं आपके निर्णय की सराहना करता हूँ । अपने करियर को त्यागना निश्चय ही कष्टकर होता है , लेकिन अपने परिवार से जुड़े हुए सदस्यों की खातिर अपनी निजी खुशियों की तिलांजलि देना , साधारण लोगों के बस की बात नहीं है। ऐसा तो वो ही सकते हैं , जो संवेदनशील हैं, और अपनों को प्यार करना जानते हैं। आपके इस नारी रूप को मैं नमन करता हूँ। ब्लॉग जगत में कुछ लोग दुसरे ब्लोगर को अपमानित करने में सदैव अग्रणी रहते हैं। ऐसे लोगों की तरफ आप बिलकुल ध्यान मत दीजिये। पूजा का लेख पढ़ा , उसने तो आपकी सभी टिप्पणियां ही हटा दी हैं। ऐसी स्त्रियाँ जो दूसरी स्त्री को द्वेष वश अपमानित करती है वो निंदनीय है। उसने ऐसा किया क्यूंकि सबको मालूम है की आपसे जलने वाले उसके लेखों पर जाना शुरू कर देंगे और उसको चाटुकारों की टिप्पणियां मिलने लगेंगी। मैंने देखा की उसके ब्लॉग पर ज्यादातर अनोनिमस और फर्जी आई-डी वाले ही थे उसके लेख पर। और अमरेन्द्र , अरविन्द , राजेश उत्साही तथा जैसे ब्लोगर तो वहां जरूर दिखेंगे जो निरंतर ये मौका ढूंढते हैं , की कहाँ आपका अपमान हो रहा है, वहां पहुँच कर आयोजन को सफल बनाया जाए। इसके अतिरिक्त कुछ ब्लोगर ऐसे थे वहां जो आप और पूजा दोनों को सहानुभूति दिखा रहे थे , ऐसे लोग सबसे खतरनाक होते हैं और ये सिर्फ अपने स्वार्थवश दोनों को ही बंदरबाट जैसी समझाइश देते हैं। आपसे कहना चाहूँगा की आप इन ईर्ष्या करने वाले लोगों [ अरविन्द, अमरेन्द्र , राजेश उत्साही , पूजा , जलजला आदि] तुच्छ मानसिकता वालों की बातों से तनिक भी व्यथित न हों तथा इनके स्वार्थ्य से भरे उद्देश्यों को कभी सफल न होने दें। आप बहुत से लोगों की आदर्श हैं और अपने आप में एक मिसाल हैं। मेरी तरह बहुत से लोग आपको पढ़ते हैं और ह्रदय से आपके विचारों का सम्मान करते हैं। आपके लेख गहरे चिंतन को दर्शाते हैं और ज्ञानवर्धक होते हैं। आप अपने समाज और देश के लिए एक उपलब्धि हैं। धन्य है वो पति जिसकी आप पत्नी हैं , वो माँ-बाप जिसकी आप औलाद हैं और वो माटी जिसमें आप जन्मी हैं। करवाचौथ के इस शुभ अवसर पर आपको एवं आपके पति को अशेष शुभकामनायें ... आपका एक शुभ चिन्तक , मिहिर।
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दिव्या जी, पिछले करीब ५-६ माह से आपको निरंतर पढता हूँ। हर बार आपको पढ़कर मुग्ध होता हूँ । आपकी हर पोस्ट आत्म आत्म मंथन को विवश करती है । जब भी अपने विचारों को आपकी पोस्ट्स पर लिखने की सोचा, शब्दों को हमेशा कम ही पाया। आज आपकी पोस्ट देखकर खुद को रोक नहीं पाया । आपसे गुजारिश है की मेरे पत्र को प्रकाशित किया जाये। क्यूंकि आपका , पति के साथ आने का निर्णय बहुत सी स्त्रियों को प्रेरित करेगा एक सही निर्णय लेने की दिशा में। और मेरा अनुभव यहाँ जुड़ जाने से शायद एक और पक्ष सामने आएगा। मैं पिछले १० वर्षों से कनाडा में हूँ। पेशे से इंजिनियर हूँ । इश्वर की अनुकम्पा से धन दौलत भी खूब है । एक सुन्दर सा बेटी भी है मेरी। लेकिन दुखी हूँ। सब कुछ होते हुए भी ठगा सा महसूस करता हूँ। मेरी पत्नी भी एक डाक्टर है । चेन्नई के एक प्रतिष्ठित अस्पताल में उसकी नौकरी है । मुझसे ज्यादा पैसा कमाती है। जब हमारे बीच ऐसी स्थिति आई तो उसने पैसे और अपने करियर को ही चुना। मेरा परिवार बिखर गया है । एक बार मैंने कोशिश की भारत जाकर नौकरी करने की और अपने परिवार के साथ रहने की , लेकिन मैंने देखा की अब मेरी पत्नी स्वयं में ही बहुत व्यस्त हो चुकी थी , आत्म निर्भर हो गयी है और अब उसे मेरी आवश्यकता नहीं के बराबर है। सिर्फ एक सामाजिक नाम मात्र का रिश्ता सा है हमारे बीच। साल में एक या दो बार मिलना होता है , और कुछ फोर्मल से दूरभाषिक वार्तालाप। सब कुछ महज एक औपचारिकता सा हो गया है। अपनी पत्नी और बेटी के लिए ह्रदय बहुत विलाप करता है अक्सर। मैं आपके निर्णय की सराहना करता हूँ । अपने करियर को त्यागना निश्चय ही कष्टकर होता है , लेकिन अपने परिवार से जुड़े हुए सदस्यों की खातिर अपनी निजी खुशियों की तिलांजलि देना , साधारण लोगों के बस की बात नहीं है। ऐसा तो वो ही सकते हैं , जो संवेदनशील हैं, और अपनों को प्यार करना जानते हैं। आपके इस नारी रूप को मैं नमन करता हूँ। ब्लॉग जगत में कुछ लोग दुसरे ब्लोगर को अपमानित करने में सदैव अग्रणी रहते हैं। ऐसे लोगों की तरफ आप बिलकुल ध्यान मत दीजिये। पूजा का लेख पढ़ा , उसने तो आपकी सभी टिप्पणियां ही हटा दी हैं। ऐसी स्त्रियाँ जो दूसरी स्त्री को द्वेष वश अपमानित करती है वो निंदनीय है। उसने ऐसा किया क्यूंकि सबको मालूम है की आपसे जलने वाले उसके लेखों पर जाना शुरू कर देंगे और उसको चाटुकारों की टिप्पणियां मिलने लगेंगी। मैंने देखा की उसके ब्लॉग पर ज्यादातर अनोनिमस और फर्जी आई-डी वाले ही थे उसके लेख पर। और अमरेन्द्र , अरविन्द , राजेश उत्साही तथा जैसे ब्लोगर तो वहां जरूर दिखेंगे जो निरंतर ये मौका ढूंढते हैं , की कहाँ आपका अपमान हो रहा है, वहां पहुँच कर आयोजन को सफल बनाया जाए। इसके अतिरिक्त कुछ ब्लोगर ऐसे थे वहां जो आप और पूजा दोनों को सहानुभूति दिखा रहे थे , ऐसे लोग सबसे खतरनाक होते हैं और ये सिर्फ अपने स्वार्थवश दोनों को ही बंदरबाट जैसी समझाइश देते हैं। आपसे कहना चाहूँगा की आप इन ईर्ष्या करने वाले लोगों [ अरविन्द, अमरेन्द्र , राजेश उत्साही , पूजा , जलजला आदि] तुच्छ मानसिकता वालों की बातों से तनिक भी व्यथित न हों तथा इनके स्वार्थ्य से भरे उद्देश्यों को कभी सफल न होने दें। आप बहुत से लोगों की आदर्श हैं और अपने आप में एक मिसाल हैं। मेरी तरह बहुत से लोग आपको पढ़ते हैं और ह्रदय से आपके विचारों का सम्मान करते हैं। आपके लेख गहरे चिंतन को दर्शाते हैं और ज्ञानवर्धक होते हैं। आप अपने समाज और देश के लिए एक उपलब्धि हैं। धन्य है वो पति जिसकी आप पत्नी हैं , वो माँ-बाप जिसकी आप औलाद हैं और वो माटी जिसमें आप जन्मी हैं। करवाचौथ के इस शुभ अवसर पर आपको एवं आपके पति को अशेष शुभकामनायें ... आपका एक शुभ चिन्तक , मिहिर।
Monday, October 25, 2010
एक डॉक्टर की मौत -- भाग दो
जब एक पुरुष की नौकरी विदेश में लगती है , तो उसकी पत्नी अपनी नौकरी , अपना करियर , अपनी महत्वाकांक्षाएं त्यागकर और स्वजनों का मोह छोड़कर , अपने पति के साथ विदेश आ जाती है।
एक स्त्री के इस निर्णय के पीछे उसको बचपन से दिए गए संस्कार ही होते हैं। एक परिवार को बनाये रखने की ही शिक्षा हमें मिली होती है बचपन से। ज्यादातर स्त्रियों के लिए उनका परिवार ही उनकी प्राथमिकता होती है। इसीलिए वो हमेशा परिवार के साथ रहने को ही प्राथमिकता देती हैं। चाहे इसके लिए उन्हें अपने डिग्री , को ताख पर क्यूँ न रखना पड़े।
स्त्री को हमेशा एक दो-धारी तलवार का सामना करना पड़ता है। यदि वो अपने करियर की खातिर भारत में रहती है , तो परिवार बिखरता है, और यदि पति के साथ विदेश में रहती है। तो करियर बर्बाद हो जाता है। उसे हमेशा इन दो में से एक को चुनना होता है। परिवार या फिर करियर। बहुत विरली ही कोई स्त्री होती है जो विदेश में जाकर अच्छी नॉकरी पाकर परिवार और करियर दोनों का सुख उठा सकती है।
मैं हर तरह से सौभाग्यशालिनी होते हुए भी , मेडिकल की प्रक्टिस न कर पाने का दुःख हमेशा महसूस करती हूँ। लेकिन मेरे पास दूसरा कोई ऑप्शन भी नहीं है। पति की जॉब यहाँ होने के कारण डिपेनडेंट- वीजा पर ही हूँ यहाँ पर। इस कारण जॉब-परमिट भी नहीं है। हमारी भारतीय डिग्री भी मान्य नहीं है यहाँ। यहाँ मेडिकल प्रैक्टिस करने के लिए यहाँ की भाषा सीखनी होगी और फिर यहाँ से ही मेडिकल के किसी क्षेत्र में डिग्री लेकर ही प्रैक्टिस की जा सकती है।
मेरे मन की उलझन मेरे पति समझते हैं और वो भी मेरी असहायता पर दुखी हो जाते हैं। उनको दुखी देखकर कोशिश करती हूँ खुश रहने की । खुद को व्यस्त रखती हूँ ब्लोगिंग में। किसी से अपनी मजबूरी का रोना रोने से तो बेहतर है की अपना मन किसी और दिशा में लगाया जाए। मुझे ब्लोगिंग एक सशक्त माध्यम लगा खुद को व्यस्त रखने का भी और कुछ सार्थक करने का भी।
खाली बैठकर कुंठा का शिकार होकर अपने पति, भाई-बहन, और वृद्ध पिता को दुखी करने का कोई औचित्य नहीं लगता , इसलिए खुद को व्यस्त रखकर खुद भी खुश रहने का प्रयत्न करती हूँ और परिवार को भी खुश रखती हूँ।
मैं खुश हूँ ! शिकायत करना और फ्रस्टेट होना मेरी फितरत में नहीं है।
आभार।
एक स्त्री के इस निर्णय के पीछे उसको बचपन से दिए गए संस्कार ही होते हैं। एक परिवार को बनाये रखने की ही शिक्षा हमें मिली होती है बचपन से। ज्यादातर स्त्रियों के लिए उनका परिवार ही उनकी प्राथमिकता होती है। इसीलिए वो हमेशा परिवार के साथ रहने को ही प्राथमिकता देती हैं। चाहे इसके लिए उन्हें अपने डिग्री , को ताख पर क्यूँ न रखना पड़े।
स्त्री को हमेशा एक दो-धारी तलवार का सामना करना पड़ता है। यदि वो अपने करियर की खातिर भारत में रहती है , तो परिवार बिखरता है, और यदि पति के साथ विदेश में रहती है। तो करियर बर्बाद हो जाता है। उसे हमेशा इन दो में से एक को चुनना होता है। परिवार या फिर करियर। बहुत विरली ही कोई स्त्री होती है जो विदेश में जाकर अच्छी नॉकरी पाकर परिवार और करियर दोनों का सुख उठा सकती है।
मैं हर तरह से सौभाग्यशालिनी होते हुए भी , मेडिकल की प्रक्टिस न कर पाने का दुःख हमेशा महसूस करती हूँ। लेकिन मेरे पास दूसरा कोई ऑप्शन भी नहीं है। पति की जॉब यहाँ होने के कारण डिपेनडेंट- वीजा पर ही हूँ यहाँ पर। इस कारण जॉब-परमिट भी नहीं है। हमारी भारतीय डिग्री भी मान्य नहीं है यहाँ। यहाँ मेडिकल प्रैक्टिस करने के लिए यहाँ की भाषा सीखनी होगी और फिर यहाँ से ही मेडिकल के किसी क्षेत्र में डिग्री लेकर ही प्रैक्टिस की जा सकती है।
मेरे मन की उलझन मेरे पति समझते हैं और वो भी मेरी असहायता पर दुखी हो जाते हैं। उनको दुखी देखकर कोशिश करती हूँ खुश रहने की । खुद को व्यस्त रखती हूँ ब्लोगिंग में। किसी से अपनी मजबूरी का रोना रोने से तो बेहतर है की अपना मन किसी और दिशा में लगाया जाए। मुझे ब्लोगिंग एक सशक्त माध्यम लगा खुद को व्यस्त रखने का भी और कुछ सार्थक करने का भी।
खाली बैठकर कुंठा का शिकार होकर अपने पति, भाई-बहन, और वृद्ध पिता को दुखी करने का कोई औचित्य नहीं लगता , इसलिए खुद को व्यस्त रखकर खुद भी खुश रहने का प्रयत्न करती हूँ और परिवार को भी खुश रखती हूँ।
मैं खुश हूँ ! शिकायत करना और फ्रस्टेट होना मेरी फितरत में नहीं है।
आभार।
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