Saturday, February 15, 2014

शहादत या जिम्मेदारियों से पलायन

भारी माहौल बनाने के बाद अब जबकि आम आदमी पार्टी ने त्यागपत्र दे ही दिया है तो जान लीजिए कि :
1. कोई इसे  त्याग' नहीं मानेगा। कैसा त्यागपत्र? त्याग कहां है इसमें? आप कोई भी एक म़ुद्दा बनाकर, उसे बढ़ाकर, उसे 'अदर एक्सट्रीम' तक ले जाकर जिम्मेदारी से हटना चाह रहे थे, सो हट गए।
2. 'जन लोकपाल के लिए हजार बार करूंगा कुर्सी कुर्बान' जैसे वक्तव्य इतने खोखले हैं कि किसी को प्रभावित नहीं करते। कोई कुर्बानी नहीं है यह। पलायन है।
3. 'हिट एंड रन' आपका मूल स्वभाव है। अण्णा के जन आंदोलन के बाद जब आपने राजनीति में उतरने का निर्णय लिया तब एक-के-बाद-एक आरोप जड़ते चले गए। गंभीर आरोप लगाकर सबको भ्रष्ट कहकर मुद्दे को भूल जाना और मामले छोड़ देना अरविंद केजरीवाल के लिए सहज सामान्य बात है। सरकार बनाना भी 'हिट' जैसा था- फिर छोडऩा 'रन' जैसा।
4. वैलेन्टाइन डे पर कांग्रेस और भाजपा का गठजोड़ दिखाई दिया आप को। दोनों ने ग़ज़ब तालमेल दिखाया। ऐसा कि केजरीवाल ने कहा था '...वैसा तालमेल जैसा कि मार्च पास्ट के दौरान जवानों के कदमताल में रहता है...।' तो आप क्या समझते रहे? राजनीति इतनी आसान
होगी? सबकुछ आपके अनुसार चलेगा? विपक्ष को झेलना, विरोध का सामना करना - यही तो राजनीति है। आपके शॉट को कोई रोकता है तो आप शिकायत करते हैं कि रोका क्यों? विरोध तो होगा ही। होना ही चाहिए। यही तो लोकतंत्र है।

5. आप का कहना है 'मुकेश अम्बानी देश चला रहा है, सरकार चला रहा है, उसके विरुद्ध हमने मुकदमा दर्ज किया, पेट्रोलियम मंत्री वीरप्पा मोइली, पूर्व मंत्री मुरली देवड़ा पर मुकदमा किया - अब सब को डर है कि उन पर भी केस होगा- इसीलिए सबने मिलकर हमारी सरकार गिरा दी।' यह सबसे बड़ा झूठ है। क्योंकि किसी ने आपकी सरकार नहीं गिराई। 'अम्बानी देश चला रहा है', लेफ्टिनेंट गवर्नर नजीब जंग एजेंट है, ख़ुद को अंग्रेजों का वाइसरॉय समझता है, केंद्र फिरंगियों की सरकार है क्या; लंदन से चलती है क्या' जैसी केजरीवाल की भाषा शैली पर तो अभी देश ने प्रतिक्रिया दी ही नहीं है। किसी को अम्बानी से कोई फर्क नहीं पड़ता। आप एक क्या, सौ मुकदमे कीजिए। पहले ही हजार मुकदमे चल रहे हैं, उन पर, सीधे या प्रकारान्तर से।
6. केजरीवाल का आरोप है कि जब वे भ्रष्टाचार मिटाने चले तो सबने कहा- यह संविधान विरुद्ध है। यह पूरी तरह झूठ है। किसी ने ऐसा नहीं कहा। कोई ऐसा क्यों कहेगा? जहां तक जन लोकपाल बिल को पेश करने को विपक्षी दल व 'मित्र' कांग्रेस दोनों ने असंवैधानिक बताया तो यह एक बिल पर उनके विचार और स्टैंड हो सकते हैं। भ्रष्टाचार नहीं, लेफ्टिनेंट गवर्नर की चिट्ठी के आधार पर बिल को असंवैधानिक कहा गया है।
7. केजरीवाल दावा कर रहे हैं कि भ्रष्ट लोगों को जेल में डालने के कारण उन्हें गिराया गया। यह पूरी तरह सच से परे हैं। सच तो यह है कि उन्होंने लाख कोशिश कर ली, किन्तु कांग्रेस ने उनसे समर्थन वापस ही नहीं लिया। कांग्रेस ने तो वास्तव में उन्हें कुंठित कर दिया। वे रोज कांग्रेस और उसके जितने भी शीर्ष नेता हो सकते हैं - उनके विरुद्ध जमकर, निम्न स्तर पर जाकर बोलते रहे। किन्तु कांग्रेस उनका तमाशा देखती रही। समर्थन जारी ही रखा। और अंतत: केजरीवाल को ही तमाशा बना दिया। 'शहीद' बनने नहीं ही दिया।
8. 'शहीद' बनकर जनता के बीच जाने की अरविन्द केजरीवाल की रणनीति बिल्कुल गलत नहीं थी। उनकी अपनी राजनीतिक इच्छाएं हैं। महत्वाकांक्षाएं हैं। अति प्रचार, अति प्रशंसा और अति समर्थन को देखकर बौरा जाना कतई आश्चर्यजनक नहीं है। कोई भी ऐसा ही करेगा। अति देखकर उनमें अति महत्वाकांक्षा जाग उठी। किन्तु संसार की अन्य नीतियों और राजनीति में संभवत: यही सबसे बड़ा अंतर है।
यहां अति महत्वाकांक्षाएं पूरी करने के लिए अति संघर्ष करना पड़ता है। अत्यधिक संघर्ष। निरंतर संघर्ष। संघर्ष ही संघर्ष। यहीं केजरीवाल चूक गए। वे इसे अनदेखा कर गए कि जो लाखों हाथ उन्हें यदि रातोरात आसमान पर बैठा सकते हैं - तो रातोरात गिरा भी सकते हैं। रातोरात जो कुछ हुआ था, होता है - वो रातोरात ही मिट जाता है।
केजरीवाल भाग्यशाली हैं कि उन्हें तो किसी ने मिटाया ही नहीं। उनके बग़ैर संघर्ष शीर्ष पर पहुंचने और अति महत्वाकांक्षा पालने पर तो किसी ने कुछ अभी किया ही नहीं है।
हां, स्थायी खांसी खांसते, गर्मी-सर्दी सभी में कानों पर मफलर लपेटे और वैगन आर को 'सीएम की सवारी' के रूप में प्रचारित कर चुकने के बाद शुक्रवार 14 फरवरी 2014 की रात को 'आप' मुख्यालय से उन्होंने जब कार्यकर्ताओं को संबोधित किया तो 'शहादत' का ही अंदाज़ अपनाया। किन्तु सिर्फ अंदाज़ ही था। शहादत कहीं नहीं थी।
अपनी 13 दिन की सरकार के गिरने पर अटल बिहारी वाजपेयी ने सारगर्भित और मंत्रमुग्ध कर देने वाला भाषण धाराप्रवाह दिया था। उसमें 'शहादत' थी। क्योंकि उनके भाषण का आधार था विपक्ष के महारथियों के भाषण। जिनमें कहा गया था कि वाजपेयी बहुत अच्छे हैं, ईमानदार हैं, योग्य हैं, प्रधानमंत्री के रूप में सक्षम सिद्ध होंगे - किन्तु उनकी सरकार गिरनी चाहिए। देश ने 'शहादत' मानी। सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद ठुकराया। देश ने 'अमेजिंग़ ग्रेस' कहकर शहादत मानी।

आप की सरकार बनी ही झूठ पर थी। कांग्रेस उस दिन चार राज्यों में बुरी तरह हार गई थी। उसने चतुराई से आप को समर्थन दे, सरकार बनवा दी और अपनी हार से मीडिया का ध्यान हटाने में सफल हुई। झूठ पर बनी सरकारें, मज़बूत से मज़बूत भी क्यों न हों, गिरती ही हैं। गिरनी ही चाहिए। विश्वनाथ प्रतापसिंह के नाम पर सत्ता में आए गठबंधन की शुरुआत भी झूठ से हुई थी। चंद्रशेखर द्वारा देवीलाल के नाम पर प्रस्ताव और देवीलाल द्वारा विश्वनाथ प्रतापसिंह के नाम लाने की रणनीति चतुराई तो लगती है, किन्तु थी तो झूठ ही। इसलिए पतन हुआ।
लोग सबकुछ जानते हैं। लोग सबकुछ समझते हैं।
झूठ, सौ तरह से कहा जाए, हजार बार कुर्सी कुर्बान कर कहा जाए - तो भी झूठ ही रहता है। आप लोकपाल कानून ला रहे हैं। किन्तु देश में लोकपाल कानून लागू हो चुका है, यह छुपा रहे हैं। दिल्ली में लोकायुक्त लाना था। किन्तु तयशुदा कानूनी तरीके तोड़कर। ऐसा कैसे हो सकता है? संविधान का मखौल उड़ाकर, गणतंत्र दिवस को तमाशे में बदलने का प्रयास कर, देश के हर विरोधी व्यक्ति को 'भ्रष्ट' घोषित कर कौनसी शहादत सिद्ध हो सकती है? कौन सा झूठ सच हो सकता है।

राजनीति में झूठ कम हो, यह असंभव है। किन्तु करना ही होगा। हर सच का साथ देकर। हर झूठ का विरोध कर। हम करेंगे। आसान नहीं है। वैसे, जैसा कि फ्रेडरिक नीत्शे ने ग़ज़ब कहा था :
...व्यक्ति जब भी झूठ बोलता है, उसके साथ उसका जो चेहरा बनता है वो लेकिन सच कह देता है

 साभार -- कल्पेश याग्निक

2 comments:

Aditi Poonam said...

सहमत हूँ आपसे....जनतंत्र के साथ विश्वासघात
हुआ है.....

सूबेदार said...

सहादत नहीं ---------कोई क्षमता नहीं जो कुछ कर सके।