Tuesday, January 12, 2016

PISCEAN


बात कुछ वर्ष पुरानी है, तकरीबन २००८ की ! आभासी दुनिया के एक परिचित थे ! उनका नाम था "PISCEAN " अर्थात मार्च के महीने में जन्मा व्यक्ति ! वे अत्यंत विद्वान थे ! प्रत्येक विषय पर उनकी जानकारी अद्भुत थी ! अध्यात्म हो या तकनीक, सभी में पारंगत ! उनकी लिखी एक-एक पंक्ति में उनकी गहन विद्वता झलकती थी !एक बार हमने उनसे पूछा कि आपका जन्मदिन कब है ? उन्होंने कहा मैं अनाथ हूँ इसलिए मुझे अपना जन्मदिन नहीं पता ! हाँ मार्च के महीने में मुझे अनाथालय लाया गया था इसलिए मैंने अपना नाम PISCEAN रख लिया है ! मैंने कहा कोई बात नहीं , हम आपको जन्मदिन की जगह जन्म-माह की हार्दिक बधाई देते हैं !.
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उन्होंने बताया कि वे केरल के हैं ! अनाथालय में पले बढे हैं , अब एक किराए के कमरे में रहते हैं जिसमें एक तखत और एक कुर्सी-मेज़ है और मकान मालिक उन्हें ३०० रूपए में एक घंटे के लिए इंटरनेट यूज़ करने देता है ! हमने कहा ये काफी महंगा देते हैं ! मैंने तो एयरटेल की मात्र २९९ रूपए में पूरे एक महीने के लिए अनलिमिटेड यूज़ वाली स्कीम ले रखी है ! उन्होंने कहा , मेरे लिए इतना ही पर्याप्त है की मकान मालिक ने मुझे ये सुविधा दी हुयी है !
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खैर होली का महीना था , हमने उन्हें शुभकामनाएं दी त्यौहार की ! पता नहीं क्यों शेर की तरह दहाड़ने वाले वे सज्जन उस दिन बेहद उदास दिखे ! कहने लगे मेरा कोई परिवार नहीं , भाई-बहन नहीं है ! हमने कहा, होली पर हमारे घर आईये ! हमारा परिवार आपका भी परिवार है ! आप अनाथ रहे होंगे , अब नहीं हैं ! वे बहुत देर तक चुप रहे फिर बोले .."रुला दिया"
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इस घटना के बाद कई वर्षों तक उनका कोई अता-पता नहीं चला ! एक दिन हमने फेसबुक पर इस बात का जिक्र किया और घोर आश्चय की अगले दिन ही उनका एक संक्षिप्त मेसेज मिला की ..."मैं कनाडा में हूँ , मल्टीनेशनल कम्पनी में बहुत अच्छी नौकरी मिल गयी है , बहुत धन है मेरे पास और मैं बहुत सुखी हूँ , मेरी चिंता मत करना " ! झूठा संदेश भेजकर अपने स्वाभिमान की रक्षा कर ली थी शायद ! इस सन्देश को मिले पुनः तीन वर्ष बीत चुके हैं ! उस बुज़ुर्ग व्यक्ति का कोई अता-पता नहीं है !
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शायद मेरी सहानुभूति उस दिन उनका स्वाभिमान छीन रही थी ! इतने वर्षों तक, शायद अनाथ होने की उनकी पीड़ा ही उनका सम्बल थी , जिसने उन्हें पढ़-लिख कर इतना विद्वान बनाया ! जब उन्होंने स्वयं को भावुकता में बहकर कमज़ोर होते पाया तो फिर से गुमनामी के अंधेरों में डूब गए ! जीवन में इतना विद्वान और इतना स्वाभिमानी किसी को नहीं देखा ! हमेशा याद रहते हैं वे, उनकी विद्वता और उनका स्वाभिमान से भरा विषमताओं में गुज़रता जीवन !

5 comments:

कविता रावत said...

आजकल तो जिसके पास कुछ नहीं उसे अनाथ मान लिया जाता है.... एक मुकाम हासिल करने के बाद अनाथ और सनाथ का भेद नहीं रहता है ...
प्रेरक प्रस्तुति ...

कविता रावत said...

आजकल तो जिसके पास कुछ नहीं उसे अनाथ मान लिया जाता है.... एक मुकाम हासिल करने के बाद अनाथ और सनाथ का भेद नहीं रहता है ...
प्रेरक प्रस्तुति ...

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14 - 01- 2016 को चर्चा मंच पर <a href="http://charchamanch.blogspot.com/2016/01/2221.html> चर्चा - 2221 </a> में दिया जाएगा
धन्यवाद

Anonymous said...

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