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Sunday, November 21, 2010

मेरा कान्हा -- The Charioteer -- विवेक, तुम मेरे साथ ही रहना

अब मैं अर्जुन कि तरह सौभाग्यशाली तो नहीं कि स्वयं श्रीकृष्ण मेरे सारथी बनें। लेकिन इश्वर ने हम इंसानों को विवेक [ सदबुद्धि] के रूप में एक सारथी दिया है। जो हर समय हमारे साथ रहता है , तथा अति विकट परिस्थियों में भी हमें एक उचित विकल्प प्रदान करता है। ये विवेक ही हमारा कान्हा है और कलियुग का सारथी है , जो नीर-क्षीर विभाजन कि क्षमता प्रदान करता है।

हमारा यही सारथी , थोडा सा वैरागी होने को कहता है। स्वजनों के मोह में मत पडो बल्कि अपने कर्तव्यों को प्राथमिकता दो। न तो कोई अपना है , न ही पराया। जो आज साथ है , वो कल आपका साथ छोड़ ही देगा। चाहे वो माता पिता ही क्यूँ न हों। काल के गाल में तो समाना ही है एक दिन। इसलिए बिना मोह-माया में लिप्त हुए निर्विकार भाव से अपने कर्तव्यों में संलग्न रहना चाहिए।

समाज तथा देश के लिए कर्तव्यों के पालन में अनेकानेक मुश्किलें भी सामने आती रहेंगी , लेकिन विचलित होने कि जरूरत नहीं है। हमारा सारथी , हामारा विवेक है ना हमारे साथ ।

कुछ लोगों ने , पूर्वाग्रहों के चलते मेरे ब्लॉग को भड़ास निकालने का स्थान बना लिया लिया है। अशिष्ट भाषा में गाली गलौज करते हैं तथा नीचा दिखाने का कुप्रयत्न करते हैं। विषय पर ना लिखकर व्यक्तिगत मुझ पर ही आक्षेप करते हैं। इसलिए मोडरेशन आवश्यक समझा। न चाहते हुए भी मोडरेशन लगाना पड़ा जिसका खेद है।

समाज कि भलाई सोचने के लिए खुद को भी तो जिन्दा रखना जरूरी है न ? जब मुझे गन्दी गालियाँ दे रहे थे ईर्ष्यालू लोग, तब तो किसी ने सहानुभूति नहीं जताई। इसलिए अपनी इज्ज़त अपने हाथ। मोडरेशन का कोई तो लाभ होना चाहिए । अरे भाई , भड़ास ही निकालनी है तो जाइए अपने ब्लॉग पर मेरे खिलाफ एक लेख लिखिए , जो ज्यादातर हस्तियाँ कर रही हैं। चाहे नाम लिखकर कीजिये, चाहे गोल मोल लिखिए। चाटुकार आपकी पोस्ट सूंघकर वहाँ आ ही जायेंगे।

अशिष्ट, अभद्र तथा अनावश्यक आक्षेपों वाली टिप्पणियां मोडरेट कर दी जायेंगी।

जो पाठक व्यक्तिगत होकर तथा अनर्गल प्रलापों द्वारा , लेखिका का मनोबल तोड़ने कि कोशिश करेगा , उसकी टिपण्णी भी मोडरेशन द्वारा हलाल कर दी जायेंगी। पाठकों और लेखक/लेखिका कि अपनी-स्वतंत्रता है। जिसका सम्मान किया जाना चाहिए। ना पाठकों पर टिपण्णी लिखने कि विवशता , न ही लेखक को उसे छापने कि विवशता होनी चाहिए। बस दोनों को ही अपनी अपनी कलम चलाते समय अपने शब्दों के प्रति जिम्मेदार होना चाहिए।

मन से, वचन से, और कर्म से किसी को दुःख नहीं देना चाहिए , ऐसा कहा है मुझसे मेरे सारथी ने।

एक चित्रकार ने एक एक बेहद खूबसूरत चित्र बनाया , और चित्र कैसा बना है यह जानने के लिए उसने उसे चौराहे पर लगा दिया और नीचे लिख दिया - " कृपया गलती पर निशान लगा दें "। शाम को जब वह वापस आया तो देखा, सैकड़ों निशान लगे थे उसकी गलतियाँ बताने के लिए।

चित्रकार बेहद निराश हुआ , उसकी आँख में आंसू आ गए । वो उदास होकर अपने गुरु के पास गया और पूरी बात बतायी । गुरु ने कहा, पुनः वैसा ही चित्र बनाओ और वहीँ पर लगा दो, इस बार तुम लिखना -- " यदि कोई भूल दिखाई दे तो कृपया सुधार दें " । चित्रकार ने वैसा ही किया । शाम को वहां पहुंचा तो चित्र पर एक भी निशान नहीं था। क्यूँकि गलतियां बताना बहुत आसान काम है , लेकिन कष्ट उठाकर सुधार करना सबके बस का नहीं।

सही ही तो है -- " पर उपदेश कुशल बहुतेरे "

हे विवेक ! तुम ही मेरे गुरु हो , तुम ही मेरे सारथी हो ! इस जीवन पथ पर सदैव मेरे सारथी बनकर मेरे साथ ही रहना। मुझे सही-गलत का मार्ग-दर्शन करना और मुझे किसी प्रकार के मोह में मत पड़ने देना और मुझे निर्भय रहकर सन्मार्ग पर चलने कि बुद्धि देना।