अथर्ववेद के उपवेद "आयुर्वेद" का निरंतर हश्र हो रहा है ! सृष्टि की उत्पत्ति के समय ब्रम्हा जी के मुख से निकली और वेदों में वर्णित इस चिकित्सा पद्धति को निरंतर तिरस्कृत किया जा रहा है ! सरकार चाहे कितनी भी क्यों न बदल जाएँ , आयुर्वेद को नहीं उठाया जाता ! सभी को मात्र २०० वर्ष पुरानी एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति का ही विकास करना होता है ! बड़े बड़े अस्पताल AIIMS जैसे अस्पताल खुलेंगे हर राज्य में , इसकी घोषणा होती है , लेकिन आयुर्वेद के उत्थान के लिए कोई सरकार नहीं सोचती ! ऐलोपैथिक के नाम पर बड़ी बड़ी मल्टीनेशनल कम्पनियाँ जनता को लूटती हैं और ऐलोपैथिक डॉक्टर, इन महंगे मल्टी-फैसिलिटी अस्पतालों के नाम पर रोगियों को बुरी कदर लूटते हैं और जनता त्राहि त्राहि कर उठती है !
विलुप्त होते बाघों को तो बचाया जाएगा लेकिन विलुप्ति की कगार पर खड़ी इस सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा पद्धति को संरक्षित करने , शोध करने , विकास करने और इनके अस्पताल खुलवाने के बारे में कोई नहीं सोचता !
यदि आयुर्वेद के साथ इतना ही सौतेला व्यवहार करना है तो इसे पूर्णतयः बंद कर देना चाहिए ! हज़ारों प्रतिभावान क्षात्र क्षात्राएं आयुर्वेद पढ़कर प्रतिवर्ष बेरोजगार हो रहे हैं ! उन्हें नौकरी के लिए चंद शहरों में स्थित आयुर्दिक मेडिकल कॉलेज में यदि लेक्चरर की नौकरी मिल गयी तो ठीक वरना आयुर्वेदिक अस्पातालों के ना होने के कारण एक आयुर्वेदिक डॉक्टर को अपनी एक दुरूह प्राइवेट प्रैक्टिस के लिए मजबूर होना पड़ता है जिसमें संघर्षों और अवरोधों के साथ अपनी परिवार का पालन भी ठीक तरह से नहीं कर पाता !