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Tuesday, May 15, 2012

अकेली स्त्री -- समाज और असहिष्णुता

आज भी हमारे समाज में अनेक तरक्की हो जाने के बावजूद भी 'स्त्री' की स्थिति सुदृढ़ नहीं है ! भले ही मनुष्य आज चाँद पर पहुँच गया हो लेकिन उसकी सोच उतनी परिष्कृत और परिपक्व नहीं हुयी है ! विज्ञान और संसाधनों में तो अभूतपूर्व तरक्की हुयी है , लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर समाज छोटी से छोटी इकाईयों में बंटता चला जा रहा है ! कारण है सहिष्णुता का विलुप्त होते जाना !

जैसे मशीनों के कल-पुर्जों की निर्बाध गति को बनाए रखने के लिए ग्रीज़ का इस्तेमाल करते हैं , उसी तरह रिश्तों को बनाये रखने के लिए भी सहिष्णुता नामक चिकनाई अथवा स्नेहक (lubricant ) की आवश्यकता होती है ! ये सहिष्णुता किसी एक व्यक्ति या समुदाय के पास से विलुप्त नहीं हो रही अपितु देश-विदेश में , हर बोली, भाषा और धर्म में 'बर्दाश्त' करने की क्षमता कम होती जा रही है ! हर व्यक्ति स्वयं में सिमटा हुआ , अपने ही बारे में सोचने में व्यस्त है! अपनी-अपनी एक छोटी सी दुनिया बना रखी है! उस छोटी सी दुनिया में थोडा सा भी विचलन व्यक्ति के जीवन में भूचाल सा ला देता है ! फिर वो स्वयं को असमर्थ और असहाय पाता है ,इससे निपट पाने में !

धीरे-धीरे व्यक्ति खुद को जागरूक, निडर और सक्षम बना रहा है ताकि ऐसी परिस्थियों से सफलतापूर्वक निपटा जा सके ! समाज में बढती विषमताओं और असंतोष को देखते हुए बहुत से युवक और युवतियां आजीवन अविवाहित रहने का निर्णय ले रहे हैं !कुछ लोग स्वयं को किसी भी प्रकार के बन्धनों से मुक्त रखकर देश और समाज की सेवा अपने स्तर पर करना चाहते हैं और अपना जीवन अपने तरीके से , अपने बनाए हुए आदर्शों पर चलकर जीना चाहते हैं ! हमारा कर्तव्य है की हम उनके निर्णयों का सम्मान करें और उन्हें भी सुख से जीवन जीने का अवसर प्रदान करें!

स्त्री हो अथवा पुरुष, दोनों को ही अनेक प्रकार की बाधाओं और दुश्वारियों को झेलना पड़ता है ! इष्ट-मित्र , समाज और रिश्तेदार भी बहुत सी बाधाएं उपस्थित करते हैं ! ऐसी परिस्थितियों में पुरुष तो संघर्ष करता हुआ येन-केन प्रकारेण, किसी प्रकार उस भंवर से बाहर भी आ जाता है, लेकिन एक अकेली-स्त्री को बहुत सी विषम परिस्थितियों से गुज़ारना पड़ता है ! समाज का हर तबका उसके लिए चरित्र प्रमाण-पत्र लिए खड़ा रहता है ! ज़रा सी भूल हुयी नहीं की थमा दिया हाथ में !

पुरुषों के अनुचित कृत्य, अनर्गल प्रलाप भी सर आँखों पर रखे जाते हैं , जबकि इसके विपरीत एक स्त्री को उसके सहज और ममतामयी, स्नेहिल व्यवहार के लिए भी सूली पर आसानी से चढ़ा दिया जाता है ! ऐसी स्थिति से बचने के लिए, स्त्रियों को स्वयं ही अपनी सुरक्षा करनी पड़ेगी ! सबसे पहले वो इंसान परखना सीख लें ! दुष्ट हमेशा घात ही करेगा, अतः सावधान रहे ! जो पुरुष पूर्व में किसी स्त्री के साथ घात कर चुका है वो मौक़ा मिलते ही आपके साथ भी घात अवश्य करेगा, अतः आवश्यक दूरी बनाकर रखें, अन्यथा शेर की मांद में घुसने का नतीजा तो सभी को पता है !

स्त्री हो अथवा पुरुष दोनों को ही अकेले पाकर , असहाय समझ , बहुतेरे मौकापरस्त लोग अपना उल्लू सीधा करने चले आते हैं ! आवश्यकता है सावधान रहने की ! अन्यथा सावधानी हटी तो दुर्घटना घटी !

Zeal 

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