विनय न मानत जलधि जड़, गए तीन दिन बीत ,
बोले राम सकोप तब, भय बिनु होए ना प्रीत
अपनी
बात पूरी इमानदारी से रखनी चाहिए , शब्दों का चुनाव सही होना चाहिए और
उसमें पर्याप्त मात्रा में तीव्रता भी होनी चाहिए ताकि ठस दिमाग वालों के
दिमाग की परतें भेद सकें और उन्हें समझ भी आये ! लेकिन अगर तीन बार कहने
से भी किसी को समझ न आये तो उसे उसका स्थान बता देना चाहिए ! (सीढ़ी ऊँगली
से घी नहीं निकलता अक्सर)
समुद्र को श्रीराम का अनुनय-विनय समझ नहीं
आया जब तो अति विनम्र मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के कोप करने पर समुद्र
को ये समझ आ गया की उचित क्या है और क्या करना है !
विभीषण ने
अहंकार में डूबे अपने भाई को उचित-अनुचित समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन
अहंकारियों को विवेकपूर्ण तर्क और शालीन विरोध समझ कब आता है भला ? वे तो
अपने दंभ में चूर होकर समझाने वाले का अपमान ही करते हैं ! अंत में
अहंकारियों का त्याग ही एकमात्र विकल्प बचता है !
जब सज्जन और
सत्चरित्र लोग दुर्जनों का साथ छोड़ देते हैं तो दुर्जनों का विनाश स्वतः ही
बेहद अल्प काल में ही हो जाता है ! और जो लोग दुर्जनों का साथ नहीं
त्यागते वे गलत संगती के कारण अपने विनाश का कारण स्वयं बंनते हैं !
डाक्टर
भी यदि एक दवा से इलाज न हो रहा हो तो दवा बदल देते हैं और मरीज भी लाभ न
होने की अवस्था में डाक्टर समेत पद्धति बदल देते हैं !
कांग्रेस
का अनेक मुद्दों जैसे मुस्लिम तुष्टिकरण, दलित तुष्टिकरण, अप्ल्संख्यक
आरक्षण, कोयला थोरियम घोटाला, काला घन, FDI , आदि का विरोध करने पर भी कोई
लाभ ना आने पर , देश-हित में इस पार्टी का पूर्णतया बहिष्कार की एकमात्र
विकल्प बचता है !
कसाब जैसे स्थापित आतंकवादियों जिसने १९९ क़त्ल
किये , उसका विरोध नहीं उसका इहलीला समाप्त की जानी चाहिए तत्काल से ! ऐसे
घिनौने लोगों के लिए सुप्रीम कोर्ट का विकल्प नहीं होना चाहिए ! लेकिन
अफ़सोस कुछ गद्दार इसे पालते-पोसते हैं , केवल राजनीति करने के उद्देश्य से !
तत्काल सज़ा ही समाधान है इसका ! लंबा मत खींचो ! सज़ा दो , न्याय करो !
क्योंकि ऐसी दुर्बुद्धि लोग जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद करते हैं ,
अतः इनके सामने प्रेम की थाली मत पोसो ! ये प्रेम और विनम्रता के हक़दार
नहीं !
जो attention seeker होते हैं वे आपका ध्यानाकर्षण करने
के लिए अश्लील गालियों और विवाद का सहारा लेते हैं ! इन विवादों का हिस्सा
बनकर आप इनके अहंकार को पोषित ही करते हैं ! अश्लीलता और फूहड़पन करने
वालों से विमर्श नहीं , बहिष्कार करना चाहिए , अन्यथा इसे आपकी एक कमजोरी
ही समझा जाएगा ! कहीं न कहीं आप भी उस अश्लीलता का रसास्वादन कर रहे होते
हैं ! ऐसे असामाजिक तत्वों के साथ आपकी मित्रता आपको संशय के घेरे में खड़ा
कर देती है ! अतः सावधान रहे !
विरोध का समाधान यदि दो बार समझाने
से न आये तो असामाजिक तत्वों का बहिष्कार और त्याग कर देना चाहिए , इससे ये
शक्तिविहीन हो जाते हैं और पृथ्वी पर गन्दगी कुछ कम हो जाती है !
किसी भी प्रकार का त्याग हो, त्याग करने लिए बहुत बड़ी इच्छा शक्ति की ज़रुरत होती है ! विरले ही कर पाते हैं ऐसा!