Saturday, October 23, 2010

क्या हिन्दुस्तान आजाद है ? पहले मुग़ल , फिर अंग्रेज़ और अब कांग्रेसी मानसिकता के गुलाम हैं हम

सदियों पहले मुगलों ने भारत पर आक्रमण किया और कई वर्षों तक हमारे ऊपर राज किया। फिर अंग्रेज आये और उन्होंने हमें लूटना शुरू किया । हम गरीब तो थे ही , कायर भी निकले। गुलामी में जकड़े रहना शायद हमें सुकून देता है। जैसे सुवर को कीचड में रहने का जो आनंद है , वो उसे कहीं नहीं मिलता।

फिर देश के कुछ सपूत- सरदार भगत सिंह , वल्लभ भाई पटेल, चन्द्र शेखर आजाद , सुभाष चन्द्र बोस , महात्मा गाँधी और अनेकानेक स्त्री-पुरुष , जिन्होंने अपने प्राणों की कुर्बानी देकर इस देश को आजाद कराया ।

देश के आजाद होने के साथ ही , गद्दारों ने अपने लिए एक पृथक राष्ट्र की मांग की और १४ अगस्त की रात को भारत माता के दो टुकड़े कर दिए गए। गद्दारों को फिर भी चैन नहीं आया और पिछले ६३ वर्षों से काश्मीर की मांग कर रहे हैं। जगह-जगह मंदिरों को ध्वस्त करके हिन्दुओं की आस्था के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। सोमनाथ का मंदिर और रामकोट का मंदिर ढहाना इसके ज्वलंत उदाहरण हैं ।

वो मुसलमान क्या भारतीय नहीं थे जिन्होंने भारत विभाजन की मांग की थी ? और जो मुसलमान आज भारत में रह रहे हैं क्या वो किसी भी कोण से भारतीय हैं ? क्या बाबरी मस्जिद के लिए सतत मांग उनकी काश्मीर के लिए पृथक मांग उनके भारतीय होने को दर्शाती है ?

क्या वो अपने जीवन में एक बार भी भारतीय होने का दायित्व नहीं निभा सकते । क्या एक बार ये जिहाद नहीं कर सकते की काश्मीर भारत का अभिन्न अंग है । काश्मीर का मुसलमान बच्चा -बच्चा भी आज सड़कों पर आन्दोलन कर रहा है की काश्मीर पकिस्तान को मिलना चाहिए। हमारे जवान अपनी जान देकर उनकी रक्षा कर रहे हैं और वो उन पर ही पत्थर बरसाकर विद्रोह कर रहे हैं। क्या ये मुसलमान भारतीय कहलाने के योग्य हैं ?

मुसलमानों का परचम आज इसलिए लहरा रहा है क्यूंकि वो कायर नहीं हैं। अपने मजहब का सम्मान करते हैं तथा अपना ईमान बेच कर खा नहीं गए हैं। बल्कि इनके पास हिन्दुओं का ईमान खरीदने की बेशुमार ताकत और दौलत है । ये जिस देश में रहते वहीँ की थाली में छेद करते हैं। हिन्दुस्तान में रहकर इस्लाम का प्रचार करते हैं। हिन्दू ग्रंथों और संहिताओं का आधा अधूरा अध्यन कर , तथ्यों को तोड़ मरोड़ का पेश करना इनका प्रिय शगल हो गया है।

इस्लाम के कट्टर प्रचारकों से मेरा ये कहना है की जब तक श्रद्धा न हो , दुसरे धर्म के ग्रन्थ न पढ़ा करें। क्यूंकि किसी धर्म के ग्रन्थ पढ़कर उसे अपमानित करके , आप स्वयं अपनी मानसिकता का परिचय देते हैं और अपने धर्म इस्लाम को बट्टा लगा रहे होते हैं। किसी को नीचा दिखाकर आप कभी ऊपर नहीं उठ सकेंगे। ईर्ष्या की अग्नि से आप जल रहे हैं, खुद को भस्म कर रहे हैं और मानवता को त्रस्त कर रहे हैं। भारतीय होने का फर्ज निभाइए । भारत विभाजन के बाद आप हमारे घर में एक मेहमान की तरह रह रहे है। इसलिए अनाधिकार चेष्टाओं से बचिए। उछल-कूद करने का शौक ज्यादा हो तो पड़ोस में [ पकिस्तान] में अपने बंधू-बांधवों के साथ रहिये।

कांग्रेस का अर्थ हैं- 'सभा' जहाँ पूर्वाग्रहों से रहित विचार विमर्श हो सके। लेकिन आज कांग्रेस , सिर्फ एक मानसिकता बनके रह गयी है । यहाँ लोग सेक्युलेरिज्म को भुना रहे हैं ! आखिर कब तक धर्म-निरपेक्षता के नाम पर बेच कर खाते रहेंगे अपने देश को ? यहाँ लोग अपने निजी हितों के लिए एक जुट होकर पापड बेल रहे हैं । देश के हित से इन्हें कोई लेना देना नहीं है। नेहरु से लेकर प्रपौत्र राहुल तक सभी इसी मानसिकता के गुलाम हैं। क्यूंकि शोहरत और कुर्सी पाने का सबसे आसान रास्ता है , मुसलामानों के फेवर में बोलो और गद्दी हथियाओ । फिर मुसलामानों से वोट बैंक छिन न जाये , इसलिए मुसलामानों की हर जायज और नाजायज मांगों को मानते चलो और उनकी आतंकवादी सरगर्मियों को भुलाते चलो जैसे शहीदों को भुला दिया है।

ये कांग्रेसी मानसिकता जो हिंदुत्व को ख़तम करेगी और देश को तीसरी बार गुलाम करेगी , बहुत तेजी से , एक संक्रामक रोग की तरह बढ़ रही है। हर तीसरा हिन्दू , मुसलमान की गौरव-गाथा में लिप्त दिखाई दे रहा है। बहुत शीघ्र ही इसकी भी जरूरत नहीं पड़ेगी क्यूंकि हमारी कायरता हमें उनका गुलाम बना देगी और फिर हम आरती की हिन्दू-थाली सजाकर उनका तिलक करते मिलेंगे।

बाबरी मस्जिद विवाद पर निर्णय से मसलमानों का तो रक्त खौल गया। उन्होंने १०, ००० पृष्ठों के निर्णय को बिना पढ़े ही एलान कर दिया की ये बईमानी है और वो सुप्रीम कोर्ट से पूरा का पूरा लेकर ही दम लेंगे। अरे आधे हिन्दुस्तान से दिल नहीं भरा तो आधे जन्मस्थान से उनका क्या होगा । उन्हें तो दो चाहिए एक से उनका क्या होगा ।

जनाब आप दो लीजिये। पकिस्तान के साथ हिन्दुस्तान फ्री लीजिये।

आभार ।

58 comments:

निशांत मिश्र - Nishant Mishra said...

वाह. एक और धमाकेदार पोस्ट!
अब अगली पोस्ट के आने तक कमेन्ट पढ़ने के लिए बार-बार आना होगा:)

RAJENDRA said...

आपके विचार शायद नपुंसकों को उद्वेलित नहीं कर पाएंगे हिन्दू कौम अपने महापुरुषों पर गर्व तो करती है पर विभिन्न प्रकार के प्रलोभनों पर फिसलने की पुरानी आदत को नहीं छोड़ पा रही है - त्याग तपस्या की बात तो अच्छी लगती है पर यह काम हमारे लिए कोइ और करे - हम नहीं

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

मेरा पूरा समर्थन आपके लेख को ! थोड़ा आगे बढ़कर कहूंगा कि हम चापलूस, घटिया और गुलाम मानसिकता के हिन्दुस्तानियों ने एक निहायत बेशर्म प्रजाति के जीवों को देश सौंपकर देश की ऐंसी-तैसी करवा दी है और देश एक और विघटन की और अग्रसर है! देश के दुश्मन दिल्ली में , इनकी नाक के नीचे देश तोड़ने का सड़यंत्र रचने के लिए इकठ्ठा हुए और इन जनाव को कुछ पता ही नहीं कि देश में क्या हो रहा है ! इस भरष्ट और बेशर्म इन्सान की तो मानो कोई जिम्मेदारी ही नहीं रह गई ! जब सारे चोर- उच्चक्कों को मनमाने तरीके से देश लूटने की खुली छूट मिल जायेगी तो वे तो इसे तो भला इंसान कहेंगे ही !

Anonymous said...

ohh !! post to padh li ab comments ka intzaar hai khaaskar agar koi musalmaan bhai comment de to kya baat hai...

S.M.Masoom said...

हिन्दुस्तान और पाकिस्तान का बटवारा अंग्रेजों की देन है. वरना जो मुसलमान हिन्दुस्तान से पकिस्तान गए , वोह ऐसा नहीं चाहते थे. हम सबसे पहली ग़लती यह करते हैं की किसी भी देश के नागरिकों को उनके धर्म के हिसाब से देखने लगते हैं. इंसानियत के अनुसार क्यों नहीं देखते? अगर ऐसा होता तो आज अँगरेज़ हिंदुस्तान का बटवारा करने मैं कामयाब नहीं हो सकता था. और ना ही महात्मा गाँधी जैसे नेताओं को शहीद होना पड़ता.
दूसरी बात किसी भी धर्म को अपमानित करना इस्लाम मैं मना है. यह धर्म के नाम पे, जो लोग भी एक दूसरे को बुरा भला कहते हैं, सच मैं , किसी धर्म को नहीं मानते.
अँगरेज़ नफरत के बीज बो के गए, और आज तक हम अंग्रेजों के ही वफादार बने हुए हैं और किसी ना किसी बात का सहारा ले के , उस नफरत के बीज को फलने और फूलने मैं, जाने या अनजाने मैं मदद कर रहे हैं.

बाबरी मस्जिद@ के फैसले से किसी मुसलमान का खून नहीं खोला. यह एक बेहतरीन फैसला था, जिसने देश मैं शांति काएम रखी. राजनीतिज्ञों का कोई धर्म नहीं हुआ करता.
हम आज तक भक्ति को ही नहीं समझ सके. हम को लगता है, हिन्दू के देश अलग होना चहिये, मुस्लमान का अलग, ईसाई का अलग. यह सोंच ग़लत है.
सब एक जैसे इंसान हैं, दुनिया के हर कोने मैं , मिल जुल के रहें, यही इंसानियत है

निर्मला कपिला said...

अज तो तेवर खूब रंग दिखा रहे हैं। लेकिन हमारी त्रास्दी यही है कि सरकार बन जाने पर सब की मानसिकता कांग्रेस जैसी हो जाती है।हिन्दुत्व के नारे लगाने वाले कुर्सियाँ सम्भालते ही सेकुलर बन जाते हैं,बजाये कुछ करने के आपस की लडाई मे ही टेन्यूर समाप्त हो जाता है। तो जनता क्या करे। जब तक हम मे राष्ट्रीयता की भावना सर्वोपरि नही होगी तब तक कुछ नही होगा। राष्टृीयता के लिये किसी एक धर्म की नही बल्कि सब धर्मों से ऊपर् केवल राष्ट्र धर्म होना चाहिये। जब हम मे ये भावना आ जायेगी तभी कुछ होगा। क्या जो भारतवासी हिन्दुत्व को नही मानते वो राष्ट्रप्रेमी नही हैं? जिस भी धर्म से कोई सम्बन्ध रखता हो उसका खून अपने देश के लिये हमेशा खौलना ही चाहिये। आज अगर हमे किसी धर्म की सब से अधिक जरूरत है तो राष्त्र धर्म जिसघमारे ग्रन्थों मे भी सब से बडा ऊँचा धर्म कहा गया है। शुभकामनायें।

सञ्जय झा said...

जनाब आप दो लीजिये। पकिस्तान के साथ हिन्दुस्तान फ्री लीजिये।

haqqiqut yahi hai....halat aise hi hain......


pranam.

रचना said...

जनाब आप दो लीजिये। पकिस्तान के साथ हिन्दुस्तान फ्री लीजिये।
Please rethink of reframing this punch line

None can take our hindustan

Bharat Bhushan said...

1.ग़ुलामी की मानसिकता गुलामी से अधिक खतरनाक है. इसका एक लक्षण और भी है जो मैं इंगित करना चाहता हूँ. शायद कइयों के गले न उतरे. परंतु आपके ब्लॉग पर चर्चा बेबाक होती है और होनी भी चाहिए.
2.भगत सिंह, राजगुरु और उनके अन्य साथियों के चित्र हम बचपन से एक संप्रदाय के मंदिरों में देखते आए थे. नब्बे का दशक आते-आते ये चित्र उतर चुके थे. कारण इस बात की जानकारी मिलना था कि भगत सिंह ने एक पुस्तिका लिखी थी 'मैं नास्तिक क्यों हूँ'. यह हमने कुछ ही वषों में होते हुए देखा है. क्या उनके नास्तिक होने से उनकी देशभक्ति की गुणवत्ता कम हो जाती है?
क्या ऐसी सोच विशेष प्रकार की गुलामी नहीं दर्शाती है?
3.प्रधानमंत्री रह चुके अटल जी की उक्ति बहुत सटीक थी कि सत्ता किसी की भी हो सत्ता का चेहरा एक होता है.

ABHISHEK MISHRA said...

@डा. दिव्या जी ,
आप के चिन्तन को नमन ,
यथार्थ को उजागर करती हुई कडवी सच्चाई
काश की हर भारतीय ये सब देखा सकता . पर भारत में काग्रेसी और वामपंथियों का धर्म है पैसा हिन्दुओ की चिंता करने पर कुछ नही मिलता है पर अन्य की तरफदारी करने पर अरब और यूरोप से इन कुत्तो के आगे हड्डी जो डाल दी जाती है. बस ये खुश भाड़ गया देश .

सोच रहा है क्या ! अब तो उठ ! ओ मेरे प्रिय हिंदुस्तान !
तेरा अंग भंग कर के वह , देख बन गया पाकिस्तान !!

VICHAAR SHOONYA said...

आपकी भावनाओं और आपके जज्बे को सलाम.

ABHISHEK MISHRA said...

अति महत्वपूर्ण सूचना
नीचे दिया गया लिंक अहम् सूचना दे रहा है अतः आप इसे अवश्य देखे
nationalizm.blogspot.com/

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

@सरकार बन जाने पर सब की मानसिकता कांग्रेस जैसी हो जाती है-मजबूरी है. हिन्दू, हिन्दू के नाम पर वोट नहीं करता, जबकि मुस्लिम फतवों के आधार पर वोट करते हैं. जनसांख्यिकीय संतुलन के गड़बड़ाने से अब यह आलम है कि तीस-पैंतीस प्रतिशत निर्वाचन इलाकों में यही वोट सरकार बना देते हैं. यही आलम रहा तो एक बार फिर साक्षात राज होगा...

प्रवीण त्रिवेदी said...

मुझे लगता कि इस मुद्दे पर और मंथन करना चाहिए था|

...समस्या मात्र इतनी है कि अधिकांशतः मुस्लिम भाई के नेता इस मुद्दे पर रोटी सेंक रहे हैं और इस्लाम में दिखाई पड़ने वाले सार्वजनिक चेहरे राष्ट्रवाद से ऊंचा अपने धर्म को मानते दिखाई देते हैं |...असल समस्या की जड़ यही है |
.......पर इसका इलाज मुस्लिम नेताओं के बजाय मुस्लिम संतुष्टीकरण करने वाले हिन्दू नेताओं पर किया जाना चाहिए !

ABHISHEK MISHRA said...

@ उस्ताद जी .
गलत आंकलन के लिया उस्ताद जी को
(००/१०)

अरविन्द said...

नमस्ते
आपने तो बहस का अच्छा मुद्दा उठाया है
धन्यवाद

सम्वेदना के स्वर said...

देश की आज़ादी एक मुगालता है, यह अभी भी एक उपनिवेश है।

"21 वीं सदी का उपनिवेश",19वीं सदी जैसा सीधा-सपाट नहीं है इस कारण मैकाले संस्कृति को शायद समझ नहीं आयेगा।

इस नवम्बर में यह उपनिवेश अपने आका की किस तरह चरण वन्दना करता है यह देखेंगे "हम लोग", We the People of India" ?

गौरव शर्मा "भारतीय" said...

सार्थक एवं प्रभावी पोस्ट के लिए सादर बधाई.......

HBMedia said...

aapki baato ka main samarthan karta hoon...chup rahne ke karan hi to ye sab ho raha hai...bahut achha kiye jo aise muddo ko uthaya aapne.

समयचक्र said...

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अब हम राजनीतिज्ञों के गुलाम हैं ... इनकी करनी और कथनी पर देश चल रहा है ... ये जो न कराएं तो कम होगा ...

कडुवासच said...

... प्रभावशाली पोस्ट !!!

प्रवीण पाण्डेय said...

धर्म को राजनीति का आधार बनाया जाये न कि माध्यम। माध्यम बनाने से वे कलुषित होने लगते हैं, आधार बनाने से और गम्भीर हो जाते हैं धर्म के सिद्धान्त।

राज भाटिय़ा said...

हम गरीब तो थे ही , कायर भी निकले।** आप की इस बात से कि हम गरीब थे नही सहमत, हम आज भी गरीब नही, बल्कि हमे हमारे इन नेताओ ने ही हमे एक एक रोटी के लिये तरसा दिया,अगर हम गरीब होते तो कोई भी हमे लुटने ना आता, यह मुगल यह गोरे कभी ना आते, हम कयार भी नही, लेकिन हम लोगो मे एकता नही, हम सब स्वार्थी हे अपने अपने स्वार्थ के लिये हम देश को बार बार गुलाम बना देते हे, हम लालची भी हे, आज के नेता हमीं मे से हे जो इस देश को भी बेचने को तेयार हे, आज जरुरत हे हर नागरिक को जागरु होने की मिल जुल कर इस व्यव्स्था से लडने के लिये सब को एक जुट होना पडेगा, तभी खुशहाली आयेगी,
बाकी आप के लेख से १००% सहमत हुं, ओर बहुत सुंदर ढंग से आप ने देश के बारे, आज के हालात के बारे लिखा, धन्यवाद

ZEAL said...

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@--अब मै कहु की हिन्दुओ को जो चहिए था वो उन्हें मिल गया उसके बाद भी हिन्दू महासभा क्यों ऊपरी कोर्ट में अपील कर रही है क्या उन्हें इतने से संतोष नहीं है ....

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संतोष कर लिया जाये ?.....दो तिहाई छोड़ दें ? फिर काश्मीर छोड़ दें ? उसके बाद धीरे-धीरे बाकि के सभी राज्य एक-एक कर के दें ? आखिर इतनी संतई दिखने की जरूरत क्या है ? क्या देशभक्ति और संतई में कोई फरक नहीं होना चाहिए ?

मुसलमान में लड़ाई-झगडे के मामले में काफी एकता है। विश्व के सभी इस्लामिक देश एक हो गए हैं । उन्होंने काश्मीर मुद्दे को अपने नॅशनल अजेंडा में शामिल कर लिया है।

गिलानी जैसे अलगाववादी नेता के बारे में क्या कहना है ? कहता है , काश्मीर मुद्दे पर कोई समझौता नहीं होगा ।
कश्मीर की भोली भली जनता को भड़काकर , जानत में हूरों के सपने दिखाकर , काश्मीर में प्रदर्शन करवा रहा है ।

हमारे ही देश में हिन्दुस्तान का झंडा ये मुसलमान जला रहे हैं, और आप उनका समर्थन करने आई हैं ? शर्म आणि चाहिए जो अपने राष्ट्र ध्वज को जला रहे हैं। यही अगर कोई हिन्दू जला दे पाकी-झंडे को पकिस्तान में तो उसके बदले शायद वहां रह रही पूरी हिन्दू जनता को ही जला डालेंगे ये लोग।

Continued..

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ZEAL said...

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ये केवल हिन्दुओं की कायरता ही है जो ये मुसलमान यहाँ अलगाववादी रुख अपना रहे हैं। कायर हिन्दू , मुसलमानों का समर्थन करते हैं और अपने जमीर के साथ साथ देश भी बेच रहे हैं। कल को माँ-बहन बेचने में भी नहीं हिचकिचायेंगे।

गिलानी जैसे अलगाववादी नेता , जिसने और भी मुस्लिम देशों का समर्थन पा लिया है , वो पकिस्तान के साथ-साथ , दिल्ली में आकर भी , भारतीय मुसलामानों को भड़का रहा है । उसपर दिल्ली पुलिस ने देशद्रोह का केस दायर किया है। लेकिन हमारे यहाँ तो सिर्फ केस चलते हैं , फैसले तो साठ साल बाद बन्दर-बाँट वाले ही होते हैं।

आज कल हिन्दू महिलाओं का जमीर भी कम नहीं बिका है । ऐशो आराम से रहना है तो 'माधुरी गुप्ता ' की तरह बन जाओ। उसने पकिस्तान जाकर इस्लाम अपना लिया और भारत की ख़ुफ़िया न्यूज़ लीक करने कगी। धिक्कार है ऐसे गद्दार हिन्दुओं पर। मुसलमान अपने धर्म और राष्ट्र से गद्दारी तो नहीं करते कम से कम ।

continued...

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ZEAL said...

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भारत सरकार काश्मीर पर सबसे ज्यादा पैसा लगा रही है, वहां की सुरक्षा तथा अन्य और भी सभी प्रकार की सुविधाओं में काश्मीर का विशेष ध्यान रखा जा रहा है , लेकिन वहां के मुसलमान जिस थाली में खा रहे हैं वहीँ छेड़ करते हैं। अलगाव चाहते हैं। भारत का झंडा जलाते हैं। धिक्कार है ऐसे लोगों पर।

शताब्दियों पुरानी बाबरी मस्जिद के लिए मुसलमान जिहाद कर सकते हैं , लेकिन देशभक्ति के नाम पर जीरो ही रहेंगे। क्यूँ नहीं समझाते अपने काश्मीरी भाइयों को की भारत का झंडा जलाने से बड़ा अपमान देश का कोई और नहीं है।

आज अपने की देश में बेचारे कश्मीरी पंडितों को काश्मीर से बाहर फेंक दिया गया है । वे लोग घर-बार से वंचित होकर अपने ही देश में शरणार्थी बनकर कैम्पों में रह रहे हैं।

धिक्कार है ऊस हिन्दुओं को और उन देशभक्त मुसलामानों जो निर्दयता के साथ , धर्म का ये क्रूर मज़ाक चुप-चाप देख रहे हैं।

पता नहीं ये कांग्रेसी-मानसिकता वाले कब बाज आयेंगे , मसलमानों के तलवे चाटने से।

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Kunwar Kusumesh said...

आपने आज तक जो भी, जिस भी विषय पर लिखा, बड़े ही शांत मन से गहन चिंतन और मनन से लिखा ऐसा मुझे हमेशा लगा.परन्तु "क्या हिन्दुस्तान आजाद है ? पहले मुग़ल , फिर अंग्रेज़ और अब कांग्रेसी मानसिकता के गुलाम हैं हम" विषय पर आपके लेखन में क्रोध का पुट बहुत जियादा है.
आप योग्य डॉ. हैं अतः मुझसे बेहतर समझती होंगी की क्रोध में आदमी अपनी बात अच्छी तरह से नहीं कह पाता. भारत की जनता ने बहुत सी पार्टियों को गद्दी नशीन किया और पाया कि वास्तव में किसी को न तो जनता की चिंता है न अपने प्यारे भारत देश की परवाह. अब अंधों में काना राजा तो चुनना ही पड़ता है.वर्तमान की राजनीति तो गन्दी हो ही चुकी है.जहाँ तक हिन्दू -मुस्लिम और उनकी सोंच और देश के प्रति वफादारी की बात है,तो वो लोग भी गन्दी राजनीति का हमेशा शिकार हुए हैं.देश का विभाजन भी इसी का परिणाम है.
मैं आपके लेखन से सदैव बहुत प्रभावित रहा हूँ और आपका बड़ा आदर करता हूँ.
मंदिर - मस्जिद के बारे में मेरी ग़ज़ल की कुछ पंक्तियाँ हाज़िर हैं:-
बेढब -सा इक सवाल है दुनिया के सामने,
इंसान बनाया है खुदा ने, कि राम ने.
बच्चों-सा एक चीज़ पे लड़ता है आदमी,
क्या अक्ल बख्श दी है तुम्हारे निज़ाम ने.

कुँवर कुसुमेश
blog:kunwarkusumesh.blogspot.com

ZEAL said...

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आज लाखों भारतीय हैं जो विदेश में रह रहे हैं । लेकिन ये भारतीय विदेशी धरती पर बवाल नहीं करते। उनकी संपत्ति और धर्म पर आँख नहीं गडाते। शांति के साथ जीते हैं और किसी प्रकार की लालच नहीं रखते।

लेकिन पकिस्तान तो अपने गुर्गों को भारत में फिट करके बैठा है , और सैटेलाईट से संदेश भेजकर २६/११ जैसा आतंक करवाते हैं । मजबूर सरकार कसाब जैसों पर करोड़ों खर्च करके दामाद जी की तीमारदारी कर रही है ।

और कायर हिन्दू , लगे हुए हैं मुसलामानों की गौरव गाथा में।

इतनी संतई क्यूँ ?

धिक्कार है।

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ZEAL said...

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कुंवर कुसुमेश जी,

क्रोध मुझे कभी आता नहीं। लेकिन मेरे खून में अब भी उबाल आता है।

आभार।

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Kailash Sharma said...

जिस विषय पर लोग बात करने में भी कतराते हैं उस पर इतनी बेवाक और कटु सत्य से पूर्ण पोस्ट के लिए आप निश्चय ही बधाई की पात्र हैं.आप के विचारों से सभी सहमत होंगे लेकिन हम सब छद्म धर्मनिर्पेक्षता का मुखौटा लगाकर अपनी कायरता को छुपाने की कोशिश करते हैं.हमें अपने आप को हिंदू कहने में शर्म आती है, इससे बड़ा हमारी कायरता का सबूत और क्या होगा. हम अपनी सदियों की गुलामी आजतक नहीं भूले हैं और शायद गुलामी में रहना हमारी आदत हो गयी है.एक बार इस गुलामी की मानसिकता से आज़ाद होने की आवश्यकता है,तभी हम वास्तविकता में आज़ाद कहलायेंगे. आभार

मनोज भारती said...

भावुक विचार ....

ZEAL said...

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अंशुमाला जी,

अगर सबको मेरा गुस्सा ही दिख रहा है । तो यही सही । मुझे गर्व है अपने गुस्से पर भी । कायरों को गुस्सा कम आता होगा । मुझे तो आता है ।

इश्वर करे मेरा गुस्सा यूँ ही बना रहे।

और हाँ -- आप मुसलामानों की तरफदारी कुछ ज्यादा ही कर रही हैं। आप का भी वोट बैंक का कुछ चक्कर है क्या जी ?


-- Smiles --


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ZEAL said...

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जानकार अफ़सोस हुआ की नेताजी , भगत सिंह, लक्ष्मीबाई आदि सब High blood pressure ke मरीज थे .


Patriotism should not be compared with hypertension. It's ridiculous.

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ashish said...

वाह वाह क्या करारा वार किया है . कश्मीर में हमारे जवानों पर पत्थर बरसाए जाते है , लेकिन कुछ कथित सेकुलरिस्ट और बामपंथियो को वो नहीं दिखाई देता है . वो कश्मीर के लोगों के पक्ष में कविता लिखते है . ये बोलते है कि बहुत कुचली जा रही है वहा कि जानता लेकिन उनको कश्मीरी पंडितो का ख्याल नहीं आता . बाकी उस्ताद जी शायद केवल मुंबई से बाहर रहने वालो कि पोस्ट पर ही जाते है , एकाध जगह ऐसे मैंने शिकायत सुनी है .. लगे रहो जी .

G Vishwanath said...

Divyaajee,

I thought of not commenting on this post.
But then you may perhaps wonder why ?
Since I am in a hurry, I will make a quick reply in English.

This is a subject that has been debated to death previously by politicians, statesmen, intellectuals and practically every section of society.

No conclusion has been reached and I don't think any useful conclusion will be reached here too on this blog.
This subject is hot and a debate will yield more heat than light.
Some of us are also likely to lose control, breach propriety and create an unnecessary storm.
Blog friends may end up as blog enemies after the dust settles down.


While you are welcome to voice your views, I would prefer not to go public with my views on this matter.

I will therefore make this harmless, non - committal and neutral comment and content myself with reading the comments of the other readers and your replies.

I am a "middle of the road" kind of guy in these matters.
I don't have extreme views like some bigoted members of either community.

So while I am in sympathy with some of your views, I feel you are being a bit too extreme in some views.

This time I am unable to praise your writing like I normally do but I won't make any adverse comment either.
I hope this will not affect your feelings towards me in any way.
My regard for you remains the same

Looking forward to your next posting
G Vishwanath

Ashok Vyas said...

pahle to is baat kee badhaee kee
apnee baat kahne mein kuchh parda rakha nahin.

Vishleshan mein Babri masjid wale maamle ko alag
rakh kar agar sirf Kashmir ke sandarbh se dekhen
to bahut saaree khabrein aapke drishtikon ke paksh mein dikhaee de jayengee.

Sarkar to bharat se bahar jakar bharat virodhee atankwadee prashikshan shiviron mein rahne wale
yuvaon ko phir se 'mukhya dhara' mein shamil karne ke liye 'aapke' 'tax' ka paisa dene ke liye bhee taiyyar hain.
Ye vichar aaya, iske baare mein CM aur PM ne baat kee, usse bhee spasht hai kee paanee sir se oopar nikal chuka hai

par is sabke peechhe 'Hindu'V/s 'Musalmaan' vaalee baat par 'matbhed' ho sakte hain
Hamne 'Dharm Nirpekshta' ka arth kya liya, iska kya banaya, ismein sirf congress hee shamil nahin, Bhartiya Janta Party Bhee shamil hai, har naagrik shamil hai

Paaramparik roop se jab jab ham kahte rahe 'Hinduism is a way of life', to wo baat galat nahin hai. Ham shanti kee prarthanayen karte hain, use hamaaree kamjoree maan lena theek nahin lagta

par agar Hinduon kee taraf se hee baat karen
to hindu samaj mein ekta nahin, naa hee 'kisi' 'hindu' ke dard par aawaaz uthane walee ichchhashakti. Ek shahar ke
Mandiron par hamle ke baad doosre shahron ke mandiron mein us baat par 'shok sabha' bhee na hogee.

Hum log vichitra to hain, sahishnuta ke naam par
apna ghar chhod dene ko bhee taiyyar hain
aur
agar Kashmir mein atankwadiyon ne 'Hinduon' ko maar maar kar bhagaa diya to saamuhik aawaaz uthane ke liye kasht karne ko taiyyar nahin hain

saar kya
samdhaan kya
pataa nahin
par aap jaise kuchh log 'chintak kee mashaal' jagrat rakhte huye samasya kee aur prakharta se
dhyaan dilate rahenge to shayad prajatantra kee naav mein jo 'chhidra' hai, use bharne kee taraf dhyaan jaayega

main nirash nahi
na aap see
na Bharat se

सुधीर राघव said...

zeal जी,
भगत सिंह के बारे में ऐसा नहीं कह सकतीं, उन्होंने खुद लिखा है कि क्रांति बम और बंदूक की संस्कृति नहीं, क्रांति से अभिप्राय है कि अन्याय पर आधारित व्यवस्था में परिवर्तन आना चाहिए।

सुधीर राघव said...

जहां तक समस्याओं (कश्मीर समस्या भी) का सवाल है तो वह सिर्फ खून खौलने से नहीं सुलझतीं, उसके लिए रणनीति बनानी होगी, खासकर जनंतंत्र के मामले में आमराय।

महेन्‍द्र वर्मा said...

चिंतन के लिए बाध्य करने वाली अच्छी प्रस्तुति। देश के बंटवारे के पीछे आम नागरिकों की कोई भूमिका नहीं थी। इस तरह की चालें चलने वाले केवल राजनीतिक लोग ही होते हैं। मुग़लों का काल हो, अंग्रेजों का काल हो या वर्तमान भारतीय राजनीतिकों का काल हो - सबने एक ही नीति अपनाई-‘फूट डालो और राज करो।‘ ये लोग तो इस हद तक नीचे उतरते हैं कि अपनी ही पार्टी में फूट डालते हैं और राज करते हैं। आज के नेता जिस थाली में खा रहे हैं उसी में छेद कर दूसरी पार्टी से लेन-देन कर सत्ता हथियाने का खेल आज भी खेल रहे हैं। कोसने लायक राजनीतिक लोग हैं,चाहे वो किसी भी मजहब के हों, आम जनता नहीं। आम जनता को किसी भी काल में दोषी मानना मुझे उचित प्रतीत नहीं होता।...विचारोत्तेजक प्रस्तुति के लिए बधाई।

Unknown said...

दिव्या जी,
मुझे औरों की तरह "पोलिटिकली करेक्ट" होना नहीं आता, इसलिये खुले दिल से इस पोस्ट के लिये बधाई देता हूं… :)

अमूमन ऐसे विषय पर महिलाएं पोस्ट (और वह भी ऐसी धारदार) लिखने से कतराती हैं। रही गुस्से में लिखने की बात, तो मैं उसका भी समर्थन करता हूं…।

ब्लॉगिंग का मकसद सिर्फ़ हीही-ठीठी-फ़ीफ़ी नहीं होना चाहिये… यदि ब्लॉगर का लेख पढ़कर पाठक की किसी भी नस में रक्त संचार नहीं होता, तो लानत है ऐसी ब्लॉगिंग पर…

ZEAL said...

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सुधीर जी,

मेरी पोस्ट कायर हिन्दुओं की सोयी हुई आत्मा जगाने के लिए है। यहाँ बम और बन्दूक की बात तो की नहीं गयी है । जिन्हें कुछ नहीं करना होता वो रणनिति बनाने की बातें करते हैं।

" Actions speak louder than words."

आप रणनिति बनाइये तब तक हम मोर्चा संभाले हैं।

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ZEAL said...

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मेरा कोई हिन्दू भाई या फिर कोई भारतीय मुसलमान मुझसे निराश होकर मुझे ही गोली मार दे, इससे पहले मैं ये बता दूँ की कुछ हिन्दुओं के दिलों में देश-प्रेम और हिंदुत्व अभी जिन्दा है ।

खून में उबाल आना सिर्फ पुरुषों की जागीर नहीं है।

हमारे यहाँ एक रिवाज सा हो गया है राजनीतिज्ञों को गाली दे दो और कट लो पतली गली से , क्यूंकि ऐसा करने उनका कोई नुकसान नहीं होता । लेकिन ब्लोग्गरों से रिश्तेदारी निभाने में लोग अपनी इमानदारी खो बैठते हैं और अपनी आत्मा की आवाज़ अनसुनी कर देते हैं।

मेरे लिए पाठकों की प्रशंसा से बड़ी अपनी आत्मा की आवाज़ है ।

मुझे संतोष है की मरते समय मुझे ये अफ़सोस नहीं रहेगा की मैं भी वोट-बैंक बनाने वाले राजनीतिज्ञों में से एक हूँ।

आम जनता सबसे ताकतवर होती है। और मैं अपनी उसी ताकत का इस्तेमाल कर रही हूँ। कुर्सी पर बैठने के बाद तो सब मौकापरस्त हो ही जाते हैं और थाली के बैगन की तरह इधर-उधर लुढ़कते रहते हैं।

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ZEAL said...

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विश्वनाथ जी,

आपकी इमानदार टिपण्णी प्रशंसनीय है।

प्रशंसा की चिंता आप मत कीजिये। यदि प्रशंसा और टिप्पणियों की भूख होती मुझे तो मेरी पोस्ट का टाइटल होता --

" हिन्दू मुस्लिम भाई-भाई '

इस तरह की पोस्ट के लिए बहुतेरे ब्लोगर हैं हिंदी ब्लॉग-जगत में।

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Manish said...

दिव्या जी..
आप ने शहीदों में अशफाक उल्ला खान का नाम नहीं लिखा.. ऐसे और भी कई नाम है ... जिनके पीछे खान या मोहमद लिखा है
पर वो नाम किसी को याद नहीं होंगे...
33 करोड़ जनसँख्या थी 1947 में भारत की
साढ़े सात करोड़ मुसलमान भी थे
कुछ मुसलमान भी तो आजादी की लड़ाई में शहीद हुए होंगे, अपने देश के लिए... वो पकिस्तान के लिए नहीं मरे उनका देश भारत था..
मैं मुसलमानो का कोई हिमायती नहीं हूँ.. ना उनसे कोई हमदर्दी है.. पर आज भी उन्हें "मेहमान" ही कहा जा रहा है.. और शायद माना भी जा रहा है.. 450 सालों के बाद भी वो भारत में मेहमान ही है ...इस देश की तरक्की में उनका कोई हिस्सा नहीं है !!! और उनका मुल्क पकिस्तान ही है चाहे वो अपनी ज़मीन (भारत) से प्यार ही क्यूँ ना करते हो...
वाह जी वाह..ये सोच क्यूँ है ??
शायद इसलिए क्यूँ की मुहमद अली जिन्नाह (भारत का गद्द्दार ) एक सुन्नी मुसलमान था..
पहली बात...
मुल्क को बाटने के लिए किसी एक को दोष देना आसन है ... पर सच ये है.. जब तक दो लोग अलग नहीं होना चाहते
उन्हें कोई तीसरा अलग नहीं कर सकता... हिन्दू मुसलमान कभी साथ रहना ही नहीं चाहते..हमें तो अंग्रेजो का बहाना मिल गया..और हम अलग हो गए.. जिन्हें अपने मुल्क पकिस्तान जाना था वो वह स्वेच्छा से चले गए और जिन्हें भारत (पकिस्तान से)आना था वो आ गए..
कुछ सौ- दो सौ लोग की पार्टी रही होगी मुस्लिम लीग उससे आप देश भर के मुसलमानों का अंदाजा ना करे
सभी मुसलमानों को ये छुट थी की वो पकिस्तान या भारत में से किसी एक को चुन ले
ये याद रखियेगा की हिन्दुओ को ऐसा कोई चुनाव नहीं करना था
ये जानते हुए भी की पकिस्तान एक इस्लामी देश होगा बहुसंख्यक मुसलमानों ने भारत को चुना
जाहिर है धर्म ही सब कुछ तय नहीं करता है आपकी जमीन से आपकी भावनाए भी जुडती है
पर फिर भी इसे हमपर थोपा नहीं गया था... इसे हमने ही चुना था..
दूसरी बात
ग्यारहवी शती में सोमनाथ या राम कोट के मंदिर जिन्होंने गिराए वो मुसलमान थे
अगर कोई हिन्दू राजा उस समय अपनी फौज के साथ मक्का पहुच जाता तो क्या गारंटी है की वो काबा ना गिराता ??
वो तो वक्त ही ऐसे कट्टर लोगो का था..
मैं आपको यकीं दिलाता हूँ सन 1689 के बाद कोई मंदिर नहीं तोड़ी गई है
हाँ बाबरी मस्जिद जरुर तोड़ी जा चुकी है ... जो हिन्दुओ का काम माना जाता है
बाबरी मस्जिद पर किसी का खून नहीं खौला.. बल्कि वक्फ बोर्ड के मेंबर हाशिम अंसारी जो एक दावाकार थे बाबरी मस्जिद
के.. उन्होंने खुद कहा की कोर्ट का फैसला जायज़ है और मेरी मानो तो हमें ये फैसला मान लेना चाहिए
और फैसले पर कोई विवाद नहीं हुआ.. अगर जगह राम जी की है तो वो हिन्दुओ को ही मिलेगी
न्याय पालिका पर भरोसा रखिये.. अपील करना उनका वीशेसाधिकार है..वो उन्हें करने दीजिये

रहा कश्मीर का सवाल तो जरा आप वहा जाके देखिये वो माहौल इंसानों के रहने के लायक नहीं बचा है
सुबह कोई घर से निकले तो शाम को लौटेगा या नहीं पाता नहीं होता
हर तीसरे दिन कर्फेयु लग जाता है ... रोज कही ना कही मातम होता ही है
लोग सैनिको के भेष में घरो में घुसकर लूट लेते है
आतंकवादी अलग परेशान करते ही है
टायर भी फट जाए तो आर्मी पेट्रोलिंग और मार्च पास्ट होने लगता है वहा
इस माहौल में वो लोग ना भारत में रहना चाहते है ना पकिस्तान में...
एक बच्चा पुलिस फायरिंग में मारा जाता है लोग जब थाना घेरने जाते है
तो पुलिस कर्फेयु के आदेश दे देती है दंगा होता है पत्थर चलते है
पुलिस कहती है आतंक को रोकने के लिए ये सब किया है
लोग इन सब से मुक्ति चाहते है
वो बस जीना चाहते है रोटी कपड़ा और मकान चाहते है
वो भी नहीं है उनके पास
तो झंडे जलाते है तो क्या आश्चर्य की बात है

और मुसलमानों का कोई परचम नहीं लहरा रहा है.. सारी दुनिया में उन्हें एक लड़ाका- जाति मानकर संदेह की नज़र से
देखा जा रहा है जिससे उनके खिलाफ एक माहौल सा बन गया है
इससे आम मुसलमान भी वाकिफ है और उसे नहीं पाता की इससे कैसे बचे
इसी डर और अपने खिलाफ बन रहे माहौल ने उन्हें हिंसा करने पर और उकसाया है
इस धर्म को इसके मानने वालो ने ही लूटा है
इस्लाम में एक बुराई है की आप जैसा चाहे वैसा इसका अर्थ कर सकते है
इस लिए सही इस्लाम तो कभी लोगो तक पंहुचा नहीं मौलवियों ने अपनी दूकान चलाने के लिए
इसका जैसा चाहा वैसा इस्तेमाल किया

काग्रेस पर आपके विचारों से मैं सहमत हूँ .... असल में बांटो और राज़ करो कांग्रेसी मंत्र है
और वो यही करती है.. ये मानसिकता रखने वाली ये पार्टी देश के लिए एक अभिशाप है

और आखिर में कहूँगा की आज का हिन्दू कोई गाय नहीं है जिसे कोई कही भी बाँध देगा
अब वो भी त्रिशूलधारी है और अपने धर्म की रक्षा के लिए अग्रसर है अब वो कही से बेचारा नहीं है
haम कभी एक नहीं हो सकते हाँ इसके लिए बड़ी बड़ी बातें जरूर कर सकते है

Amit Chandra said...

main aapke kuch bato se sahmat nahi hu. ye baat such hai ki congres ne hi desh ki lutiya dubo di. pakistan masla, kashmir masla, china masla sabhi inki hi den hai.rajniti me parivar bad ko badaba congress ne hi subse pahle diya. muslim kaum ko bahkana bahut hi aasan hai. uska subse bada karan yah hai ki ye log apne tak hi simit rahte hai. in logo me sakshrata ki kami hai. jiske karan maulavi aur ulema jaise log iska fayada uthate hai aur apna ullu sidha karte hai.

प्रकाश गोविंद said...
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डा० अमर कुमार said...
This comment has been removed by the author.
S.M.Masoom said...

राम के भक्त कहाँ, बन्दा-ए- रहमान कहाँ
तू भी हिंदू है कहाँ, मैं भी मुसलमान कहाँ

तेरे हाथों में भी त्रिशूल है गीता की जगह
मेरे हाथों में भी तलवार है कुरआन कहाँ

तू मुझे दोष दे, मैं तुझ पे लगाऊँ इल्जाम
ऐसे आलम में भला अम्न का इम्कान कहाँ

ZEAL said...

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@-एस एम् मासूम-

अमन की तलाश करना बेकार है। जब मुसलमान समझने को तैयार ही नहीं तो हिन्दुओं से अमन की अपेक्षा मत रखिये।

माना की ज्यादातर हिन्दू कायर हैं और आप लोगों के तलवे चाटना पसंद करते हैं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं सारे के सारे ही गुलाम हैं।

हम मरना पसंद करेंगे लेकिन आप लोगों की गुलामी से इनकार है।

अगर अमर ही तलाशना है किसी के ब्लॉग पर , तो बहुतेरे ब्लॉग पड़े हैं यहाँ। लेकिन यकीन मानिये मेरे ब्लॉग पर आपकी रूह को शांति कभी मयस्सर नहीं होगी।

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ZEAL said...

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मासूम साहब,

अब इतना भी मासूम मत बनिए। गए जमाने गांधी के जो कहते थे - एक गाल पे कोई चांटा मारे तो दूसरा आगे कर दो। अजी जनाब अब एक पर कोई मारेगा तो दोनों पर खायेगा ।

आभार।

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पी.एस .भाकुनी said...

ये कांग्रेसी मानसिकता जो हिंदुत्व को ख़तम करेगी और देश को तीसरी बार गुलाम करेगी , बहुत तेजी से , एक संक्रामक रोग की तरह बढ़ रही है ........

पूर्णत: सहमत हूँ आपसे ,

दिगम्बर नासवा said...

इस धमाकेदार पोस्ट के लिए बधाई ... आग उगलते शब्द अगर एक इंसान में भी आत्मसमान जगा सकें तो समझिए आपका लिखना तो सार्थक है ... काश इतनी सी बात समझ सकते ...

S.M.Masoom said...

ZEAL@ नफरत की दीवारें उठाने मैं कुछ हासिल नहीं. ना कोई मुसलमान किसी हिन्दू को मारता है और ना कोई हिन्दू मुसलमान को. मारते हैं दिलों मैं नफरत पैदा करने वाले, और मरते हैं बेगुनाह चाहे वोह किसी भी धर्म का हो?
तू मुझे दोष दे, मैं तुझ पे लगाऊँ इल्जाम
ऐसे आलम में भला अम्न का इम्कान कहाँ

यह रास्ता सही नहीं है. इंसानियत के रास्ते पे रहो. स्वम इंसानियत के दुश्मन मत खा जाएंगे. यह मरा विचार है, आप का विचार अगर अलग हो, तो भी मुझे उसपे कोई बहस नहीं.

priya said...

Vishwanath ji I request you to please read my comments. Middle path is for wordly wise persons.True. But 'extremes' only, give rise to a 'middle'.

I agree with Divya ji and with Kaafir at the same time. Divya ji is echoing the sanctum sanctorum of each and every Hindu's heart. The only difference is that she has a courage to write all this openly. Keeping the freedom of our country in focus, such views are highly true. Politicians and foolish portion of the public (which is a larger percentage) not inkeeping with such views are certainly going to lose the sovereignity of the country.

Kindly note:
SECULARISM certainly has its meaning BUT those areas are:
i) education
ii) examination and evaluation of answer books
iii) selection committees for appointments
iv) medical attention
v) helping hand
vi) expression of love
vii) all subtle human qualities

While talking about even a small piece of one's land secularism or saintliness has no meaning.

If you 'live' and 'let live' then secularism has meaning.

If you start 'grabbing' then secularism becomes redundant.

No one will give his property to his real brother even. It happens in perhaps each household. PHIR DESH KI TO BAAT HI ALAG HAI.

Muslims torment most of the non-muslims even the most tolerant ones like me, when they associate themselves with anything 'Babri' meaning Babar's who was an invader. If any Indian associates himself with an invader like babar, taimur, ghaznavi, gori, east india company etc.etc. my heart weeps. Moghuls and English are in the same category. BUT I WISH THAT INDIANS (they might be muslims) DO NOT IDENTIFY/ ASSOCIATE THEMSELVES WITH INVADERS.

Hindus love their muslim friends and every indian evenly but if they (Indians who are practising Islam) asociate themselves with outsiders/ invaders it would be thoroughly tormenting.

Regarding cowardice of Hindus, I dont agree. Hinduism is a way of life. Live and let live. Do not interfere. Do whatever you feel comfortable in. Perform the rituals or not. worship the idols or not. Eat , talk and wear what you want but even then you are a Hindu ( a term coined by muslim invaders). Hindu is basically no religion. IT is SANAATAN DHARMA. And so it will never die. It never belives in 'prachaar' nor in expansion missions.

However one should be enlightened one and not indulge in petty matters BUT
WHEN IT COMES ABOUT THE MOTHERLAND NEVER GIVE AN INCH TO ANY OUTSIDER I.E. A NON-INDIAN.

WE SHOULD STOP QUARRELING AND UPLIFT OURSELVES AND MAKE OUR COUNTRY AND THEN THE WORLD A BETTER PLACE TO LIVE IN.

We have certainly moved in that direction. Recall the 15th and 16th century when anything against relegion was not tolerated in Europe and people were burnt e.g. john huss, john wycliffe etc.

with an intensive appeal to work for the maintenance and security of our birthright

warm regards
priya

ZEAL said...

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प्रिया जी,

धर्म और देश के बारे मैं आपके विचार स्तुत्य हैं। एक बार पुनः कहना पड़ रहा है आपकी टिप्पणियां आपके ज्ञान और वृहत सोच की परिचायक हैं। आपकी टिप्पणियों में अध्यात्म और वैज्ञानिकता का अद्भुत संगम देखने मिलता है।

आपका मेरी पोस्ट पर आना मेरा मान बढ़ा देता है।

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shakuntala sharma said...

अब हमने आजादी पा ली
किन्तु बताओ कहॉ है गरिमा ।
पराधीन है आज आदमी
कहॉ है हिन्दुस्तान की महिमा ।
तुम गोरों से कहॉ अलग हो
दुर्योधन दुस्शासन सम हो ।
खा लेते हो खीर तुम्हीं तुम
जनरल डायर से क्या कम हो ?

Unknown said...

hamare desh m sabse badi kami yah h ki ye samay ko pahchan te nahi khas kar k hindu. jab inko yah pata h ki mulim kabhi bhi hamare nahi ho sakte lekin fir bhi voto k lalch m ye sab kuchh bhool jate h.ab man lijiye narendra modi n kah diya ki m hindatv wadi neta hoo. to kongres n iss p poora babal hi khada kar diya.ab sochiye usne kya galat kah diya.

KALIYUG PAR VIJAY said...

Hume sirf apne jivan par dhyaan dena chahiye ..jo karm karne aaye ho sirf wo kare .. Apne jivan ke uddeshya dharm arth kaam moksh ..
Gyaaniyo ko pata h kya samay chal rha h or kya ho rha h or kya hoga ..
Hoyi Soyi jo Ram Rachi rakha ..
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sirf baat karne se kuch nahi hota or blog dalne se ..