Monday, December 27, 2010

कृपया अन्यथा मत लीजिएगा ...Please don't take it otherwise !

अजी कैसे लें ?

पहले भिगो-भिगो के मारते हैं फिर चाहते हैं जोर का झटका धीरे से लगेकभी जेहमत उठायी अपने शब्दों को रिक्टर-पैमाने पर नापने की ? जनाब पूरा मोहल्ला हिल जाए इतना खतरनाक है आपका वक्तव्य

अरे भाई , सामने वाले की बर्दाश्त करने की क्षमता का परिक्षण करने के बाद ही अपने शब्द-बाण चलाया करेंआपने ने अपना दुलारा समझकर ढेर सारा प्रवचन लिख दिया , और हिदायत भी दे दी -"कृपया अन्यथा मत लीजियेगा " । लेकिन मानव-ह्रदय ! उसका क्या ? उसने भी कुछ सोचा समझा और आपको अपना लाडला समझ दो चार प्रवचन दे डाले बदले में । दुलार के बदले दुलारआखिर बुराई क्या है ?

लेकिन अब आपने अन्यथा ले लिया ? बुरा लग गया ? ये तो होना ही थावही मानव ह्रदय ! बुरा लगने वाली बात बुरी लगेगी हीइसीलिए कहा गया है --

" Think twice before you speak "


पहले नापिए-तौलिये अपने शब्दों की महिमा कोयदि आपको लगता है की दुसरे को बुरा लग सकता है , तो मत लिखिएडिलीट कर दीजिये अपने दुलार भरे वक्तव्य कोबिना मांगे राय कभी मत दीजिये किसी को --

" Advices are given by fools and taken by idiots "


अक्सर होता क्या है , लोग दरियादिली के साथ दूसरों को पाठ तो पढ़ा देते हैं , लेकिन खुद को आने वाली प्रतिक्रियाओं के लिए तैयार नहीं कर पाते हैं

" Each and every action has an equal and opposite reaction "

इसलिए पहले खुद को भी जांच परख लें की आप कितने छुई-मुई हैंयदि प्रतिक्रियाओं को झेलने की क्षमता हो तो सोच-समझ कर ही ऊँगली उठाएंवरना आप भी -- " पर उपदेश कुशल बहुतेरे " की श्रेणी में रख दिए जायेंगे

और परिणाम क्या होगा ? आप दोनों के बीच की दूरियां बढ़ जायेंगीएक इधर मुह फुलाकर , दूसरा उधर गुस्सा होकर चला जाएगा

क्या हासिल हुआ ? कुछ भी नहींएक अच्छा रिश्ता था , वो भी उपदेशों की भेंट चढ़ गया

इसलिए यदि आप चाहते हैं की कोई आपकी बात अन्यथा ले , तो ऐसा कुछ भी मत लिखिए जिसे अन्यथा लिए जाने की संभावना होया फिर अगले की प्रतिक्रया के लिए स्वयं तो तैयार रखें

" Always practice what you preach "


ज़रा ठहरियेआती हूँ अभी ....

After the commercial break ......

.

67 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

निकले हुये शब्द तीर से भी गहरे भाव करते हैं।

vandana gupta said...

यही सच्चाई है ……………बहुत सुन्दर लेख्।

रश्मि प्रभा... said...

buri baat se ... zor ka jhtka zoron se hi lagta hai

AS said...

The Moving Finger writes; and, having writ,
Moves on: nor all your Piety nor Wit
Shall lure it back to cancel half a Line,
Nor all your Tears wash out a Word of it.

सोमेश सक्सेना said...

लगता है किसी ने बहुत गहरा घाव दिया है आपने शब्दों से :-)
वैसे बात सही है आपकी। टिप्पणी और पोस्ट की भाषा का संतुलित होना बहुत जरूरी है।

अजित गुप्ता का कोना said...

पढ़ लिया जी।

Kailash Sharma said...

कुछ लोग बोलने के बाद सोचते हैं और फिर पछताते हैं.शब्दों के तीर हथियार की चोट से ज्यादा घाव देते हैं..बहुत सही सलाह..सुन्दर पोस्ट.

JAGDISH BALI said...

बहुत खूब खींचाई की है उपदेश देने वालों की ! वास्तव में आप का कहना सही है ! नापतोल कर ही बोलना चाहिए और लिखना तो तोलतोल के चाहिए !

ZEAL said...

.

न भई न सोमेश जी ,

अपनी तो - " न काहू से दोस्ती , न काहू से बैर " इसलिए पाषाण-हृदया दिव्या को कुछ असर नहीं होता।

वैसे आज तक मैंने, सपनों में भी किसी का दिल नहीं दुखाया है। इसलिए कोई मेरा भी नहीं दुखाता।

Blushes !

.

मनोज भारती said...

सुंदर सद-वचनों से सजी आपकी यह पोस्ट पसंद आई ।

A.G.Krishnan said...

You are correct.

Jai Shri Krishna

ZEAL said...

.

मनोज जी ,

कहाँ थे आप इतने दिनों से ?

कभी हम आपको तो कभी अपने ब्लॉग की दरो दीवार को देखते हैं।

पुनः स्वागत है !

.

arvind said...

wow...very nice presentation....

गिरधारी खंकरियाल said...

द्विअर्थक शब्दों और वाक्यों से परहेज रखना उचित है ताकि " अन्यथा न ले " का प्रयोग नहीं करना पड़े

सदा said...

बहुत ही सुन्‍दरता से व्‍यक्‍त किया है आपने विचारों को ...इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये बधाई स्‍वीकार करें ..।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सत्य वचन ....

लेकिन यदि कोई बात गलत हो और उसकी ओर कोई ध्यान न दिलाए तो टिप्पणियों का क्या लाभ ? कोई सुधार की गुंजायश नहीं होगी ...बहुत बार अनजाने में या टाइपिंग की वजह से गलतियाँ रह जाती हैं ... और स्वयं का ध्यान उस पर नहीं जा पाता है ...क्यों कि हम अपने दिमाग में सही ले कर पढ़ रहे होते हैं ....यदि ऐसे में यदि कोई गलतियों को सुधारने के लिए कहता है तो वैसे भी अन्यथा नहीं लेना चाहिए ...
पर यह भी बात सही है कि हर इंसान की सोच अलग होती है , कब कोई अन्यथा ले ले क्या भरोसा ....इस बात का ध्यान रखेंगे ...और यदि आदत वश कुछ लिख ही दिया तो यह नहीं लिखेंगे कि अन्यथा न लें . :) :) :) ....

Dr. Braj Kishor said...

वैसे मेरा अनुभव है कि ' अन्यथा मत लीजियेगा '
के पहले या बाद में अन्यथा लगने बात ही की जाती है.
मुझे भी अपने जीवन में इसका सामना करना परता है

पी.एस .भाकुनी said...

"अन्यथा न ले"अर्थात एक अनुरोध भी छिपा होता है इस शब्द में,उस अनुरोध की भी हमें कद्र करनी होगी,
जहां तक टिप्पणियों और पोस्ट की बात है सो दिव्या जी आपसे पूर्णत: सहमत हूँ ,किसी भी पोस्ट या फिर टिपण्णी में लेखक की मानसिकता अथवा उसका व्यक्तिव अवश्य झलकता है , आम जिन्दगी में आपका कहना सही है की बिना मांगे सलाह ना दें या कोई प्रतिकिर्या ना करें लेकिन ब्लॉग जगत में ऐसा नहीं है ,क्योंकि ब्लोगर हवा में है हर कोई उसकी पोस्ट को पढता है और अपनी मानसिकता और अपने व्यक्तित्व के हिसाब से टिपिया जाता है ,ऐसे लोगों पर कोई रोक-टोक आपकी ओर से नहीं है, सब कुछ ब्लोगर के उम्मीदों के अनुरूप हो ,क्या संभव है ?
बहरहाल मुझे लगता है शायद मैं भी अपनी बात को प्रभावी तरीके से नहीं रख पा रहा हूँ, कृपया "अन्यथा ना लें "
आभार...................................

डॉ टी एस दराल said...

quotable quotes . nice .

कडुवासच said...

... jay hind !!!

Aruna Kapoor said...

ऐसे लोग होते है दिव्या जी!...झट्का देना उनकी आदत में शुमार होता है!...लेकिन हमारी आदत अगर उन जैसी नहीं है ...तो क्या हम उनके जैसे बन सकतें है?..वैसे बात आपने पते की कही है, धन्यवाद!

सुज्ञ said...

" पर उपदेश कुशल बहुतेरे "

हमेशा यही होता है, न तो लोगों में सहन शक्ति है न अपने विचारों के विपरित कुछ भी सुनना पसंद करते है।

सारे विवादों की जड यही तो है………… मात्र अपना 'ईगो'

URDU SHAAYRI said...

nice post.

मेरी नयी पोस्ट पर आपका इस्क़बाल है -
तंग लिबास मेरे माशूक़ का

ये कपड़े तंग सिलवाना तुझे ज़ेबा नहीं देता
किसी के दिल को तड़पाना तुझे ज़ेबा नहीं देता

गले में डाल दे बांहें मिला दे सांस से सांसें
लबे मंज़िल से लौटाना तुझे ज़ेबा नहीं देता

Sushil Bakliwal said...

क्यों दो बोलना और क्यों चार सुनना.

Rahul Singh said...

कुछ लोगों में अन्‍यथा लेने की 'प्रतिभा' और कभी परिस्थिति होती है, जो सामान्‍य कही गई बातों को अन्‍यथा ले लिया जाता है, सावधानी रख कर इसे कुछ नियंत्रित अवश्‍य किया जा सकता है, किंतु पूरी तरह रोका जा सकना संभव नहीं होता. वैसे संदर्भ न होने से यह बात मुझे अजीब, अकारण होकर अनावश्‍यक भी लग रही है, कि ऐसा कहा क्‍यों जा रहा है.(कृपया अन्‍यथा न लें)

महेन्‍द्र वर्मा said...

भाषा बड़ी नाजुक चीज़ है, चाहे वह लिखी हुई हो या बोली गई हो।
इसका उपयोग सोच समझ कर ही करना चाहिए।

कबीर के अनुसार -

बोली तो अनमोल है, जो कोई बोले जान,
हिये तराजू जौल के, तब मुख बाहर आन।

............

आपकी लेखन शैली की ख़ासियत यह है कि उस में एकरसता नहीं है, विविधता है..
हर आलेख एक नए अंदाज़ में, नई शैली में होता है...

ZEAL said...

.

राहुल सिंह जी ,

कृपया सन्दर्भ मत ढूंढिए। यहाँ किसी विवाद के तहत नहीं लिखी गयी है पोस्ट। यह अपने आप में एक स्वतंत्र पोस्ट है । कभी तो मेरे लेख हलके मूड में पढ़ा कीजिये । और कभी तो कसम खाने के लिए प्रसन्न हुआ कीजिये मेरे भी ब्लॉग पर आकर , या यहाँ निराशा ही हाथ लगती है आपको ?

कहीं आपका उद्देश्य विवाद कराना तो नहीं ?

[ कृपया अन्यथा न लें। ]

Winks @ Rahul Singh ji

.

ZEAL said...

.

महेंद्र वर्मा जी ,

प्रशंसा करना एक कला है । जो निर्मल ह्रदय वालों के पास ही होती है । और आपका निश्छल ह्रदय इस बात का जीता जागता सबूत है।

प्रशंसा के मीठे बोलों के लिए आपका आभार।

.

फ़िरदौस ख़ान said...

सार्थक पोस्ट...

देवेन्द्र पाण्डेय said...

..वाह! कहने का अंदाज अच्छा लगा।

उपेन्द्र नाथ said...

दिव्या जी, बहुत ही अच्छी और विचारणीय पोस्ट........... हमें तो पहले से ही ये बातें गांठ बांध ली है.

Unknown said...

zeal ji lagata hai ki aaj kal kuch dharmik reading chal rahi hai.
Pravachan shandaar hai .

Kunwar Kusumesh said...

कहीं संजीदा कहीं व्यंगपूर्ण अभिव्यक्ति के साथ पठनीय पोस्ट

निशांत मिश्र - Nishant Mishra said...

सभी को खुश रखना, अपना बनाए रखना, साथ निभाये रखना बहुत मुश्किल हो चला है.
चाहे-अनचाहे - लोग रूठते हैं, दूर चले जाते हैं, दुश्मनी निभाते हैं.
ऐसे में क्या कीजै!?
अन्यथा न लीजै.

rajesh singh kshatri said...

Bahut Khubsurat Abhivyakti.

अजय कुमार झा said...

कमाल की बात उससे भी कमाल के अंदाज़ में कही आपने ..किसी को समझ आ जाती है किसी को नहीं और कोई समझना ही नहीं चाहता

राज भाटिय़ा said...

सहमत हे जी आप की बात से, वेसे मै तो यही सोचने लग गया कि कही मेरी ही किसी बात से आप को झटका तो नही लग गया..... अगर कोई ऎसी बात हो तो माफ़ी चाहूंगा, मै किसी का दिल कभी नही दुखाता.
एक नजर इधर भी...http://blogparivaar.blogspot.com/

SM said...

like the post
Think twice before you speak

मनोज कुमार said...

सही कहा। बहुत सी प्रेरक बातें हैं।

Rohit Singh said...

दिव्या जी। आप बिना कहते रहिए। हम अच्छा लगेगा। और हम कभी अन्यथा नहीं लेंगे। आप एडवाइस भी दिया कीजिए..मगर ये समझ कर नहीं कि आप फूल(अंग्रेजी वाला) हैं। क्योंकि इतना तो हम जानते हैं कि आप संवेदनशील है। हां कभी-कभी नाराज हो जाती है ये अलग बात है। पर नाराजगी दोस्तो की तो हमेशा सही होती है। जो कुछ ही देर में पिघल भी जाती है। तो आप कहते रहिए हम सुनते ही रहेंगे,,,और हां कई बार अमल में भी लाएंगे।

ZEAL said...

.

@ बोले तो बिंदास -

बहुत नाराज़ हूँ आपसे । आप मेरे दस लेखों पर आप नदारद हो जाते हैं और जब आपके ब्लॉग पर कोई नई पोस्ट लगती है तभी आते हैं आप यहाँ । बिंदास बता दूँ- अबकी पिघलने वाली नहीं हूँ।

ज़रा नियमित हो जाइए वरना ब्लॉग-कोर्ट में आपकी पेशी होगी। सजा के लिए तैयार रहिये।

Smiles !

.

ZEAL said...

.

भाटिया जी ,

आप कभी किसी का दिल दुखा ही नहीं सकते । आप एक प्रेमी-ह्रदय वाले व्यक्तित्व के धनी हैं। आप तो मेरे ब्लॉग पर आकर मेरा मान बढ़ा देते हैं। आपकी सदैव आभारी रहूंगी।

.

ZEAL said...

.

दुःख तो तब होता है जब कुछ वरिष्ट ब्लोगर , मेरी पोस्ट पब्लिश होने के साथ उसे तत्परता से पढ़ लेते हैं, लेकिन दो शब्द लिखने में उनका अहंकार आड़े आ जाता है। उन्हें लगता है कहीं उनके कमेन्ट से मैं कुछ ज्यादा तरक्की न कर लूँ , या कुछ ख्याति न प्राप्त कर लूँ, या फिर कहीं उनके कमेन्ट करने से मैं भी सचिन की तरह शतक न बना लूँ कमेंट्स का । कुछ लोग तो लम्बे-लम्बे पत्र लिखकर समय समय पर स्नेह जताते हैं , लेकिन कभी पोस्ट पर नहीं आते आते। शायद अपने से छोटों के लेख पर जाना उन्हें अपना अपमान लगता है।

खैर हमें क्या । किसी की मानसिकता तो नहीं बदल सकती ना। जो आते हैं। स्नेह देते हैं, उन्ही से मेरा भी स्नेह है।

आपका कमेन्ट एक लेखक और लेखिका को हमेशा प्रोत्साहित करता है। कमेन्ट लिखने में कंजूसी नहीं करनी चाहिए और बिना किसी पूर्वाग्रह के मुक्त ह्रदय से आशीर्वाद स्वरुप अपनी टिपण्णी अवश्य करनी चाहिए।

.

दिनेश शर्मा said...

वाह !क्या खूब लिखा है।

Bharat Bhushan said...

बोलने की कला के विस्तृत गुर अगर आपने बताए होते तो मुझे कहने का मौका मिल जाता- 'पर उपदेश कुशल बहुतेरे' ;)) आपने वैसा भी नहीं किया.

वाणी गीत said...

अन्यथा नहीं लेना ...इसका प्रयोग सिर्फ तभी करना चाहिए जब आपको या आपकी बात को गलत समझ लेने का अंदेशा हो ...
वर्ना तो अन्यथा नहीं लेना ...अपने ठेंगे से ...स्पष्ट शब्दों में अपना आक्रोश जताया है तो सामने वाले को अन्यथा लेने के लिए ही तो ..ऐसे में उन्हें ले लेने देना चाहिए अन्यथा !

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι said...

यथार्थ का ,आईना दिखाने के लिये आपका आभार।

ashish said...

सटीक अभिव्यक्ति , आजकल कुछ भी कहने से पहले १०० बार सोचना चहिये . आपमें दिमाग पढने की अद्भुत शक्ति है . आभार.

G Vishwanath said...

कुछ दिनों के लिए ब्लॉग जगत से दूर रहा हूँ।
कुछ पारिवारिक मजबूरियों के कारण।
साथ साथ दफ़्तर में भी व्यस्त रहा हूँ।
इस खामोशी को "अन्यथा न लें"!!

शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ

Anonymous said...

"बोलो यदि पहले तोलो" आप ने इस पोस्ट के माध्यम से बड़ा ही सार्थक सन्देश देने की कोशिश की है|
शुभकामनाएं,
मानस खत्री

सञ्जय झा said...

na..na..na.....hamne kabhi aapki baton ko anyatha
nahi liya....hum mante hain aap kabhi kuch britha
nahi kahte....

pranam.

वीरेंद्र सिंह said...

" Think twice before you speak "

" Advices are given by fools and taken by idiots "

" Each and every action has an equal and opposite reaction "

" Always practice what you preach "


Are ye post to badi achhi rahi....


In baton se main bhi sahmat hun.

Arvind Jangid said...

ये तो विचारणीय है, लेकिन यदि पहले से सोच लिया जाता तो शायद आप इतनी काम की जानकारी देते ही नहीं ?

साधुवाद.

ethereal_infinia said...

Dearest ZEAL:

ehsaas ki shammaa ko, is taraah jalaa rakhnaa
apni bhi khabar rakhnaa, unkaa bhi pataa rakhnaa


Semper Fidelis
Arth Desai

Roshi said...

accha ,bevak likha hai

Roshi said...

accha likti hain

Roshi said...

hi

Roshi said...

hi

नीलांश said...

main paalan karunga :)

खबरों की दुनियाँ said...

काश कोई समझ पाता , लोगों की तकलीफ़ें कम हो जातीं । सही कहा है आपने ।

M VERMA said...

शब्द और कथन बहुत गहरे प्रभाव छोड़ते हैं. शब्द ही तो हैं जो नि:शब्द कर जाते हैं.
सुन्दर आलेख

धीरेन्द्र सिंह said...

व्यंग्य के वर्क में आक्रमकता की झलक लिए अहसास ने मन को गुदगुदाया। आखिर आदत ही तो है कुछ अलग दिखने की,कुछ विशेष कह जाने की अब भला फिसल जाएं तो गैरों की बला से। प्रभावशाली शैली।

एस एम् मासूम said...

बुरा लगने वाली बात बुरी लगेगी ही.
.

Do doubt

Er. सत्यम शिवम said...

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाए...

*काव्य- कल्पना*:- दर्पण से परिचय

*गद्य-सर्जना*:-जीवन की परिभाषा…..( आत्मदर्शन)

shikha varshney said...

सच कहा है कमान से निकला तीर और जबान से निकले शब्द वापस नहीं आते .सोच समझ कर ही बोलना चाहिए.अच्छी पोस्ट.

अनामिका की सदायें ...... said...

sachhayi likh to di...lekin fir bhi log kahan sudharte hain.

Anonymous said...

Hey I know this is off topic but I was wondering if you knew of any widgets I
could add to my blog that automatically tweet my newest twitter updates.
I've been looking for a plug-in like this for quite some time and was hoping maybe you would have some
experience with something like this. Please
let me know if you run into anything. I truly enjoy reading your blog and I look forward to your new updates.


Visit my web site :: family law lawyers toronto (google.ca)