Wednesday, March 7, 2012

अपनी धरोहर "आयुर्वेद" का सम्मान कीजिये.

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कट्टर भारतीय
हम भारतीयों ने विश्व की सबसे बेहतरीन चिकित्सा व्यवस्था"आयुर्वेदिक चिकित्सा व्यवस्था" विश्व को दी और भारतीयों ने ही सर्जरी की विद्या विश्व को सिखाई.आज विश्व भर में ये कहा जाता है किदुनिया को सर्ज़री की विद्या इंग्लैंड ने सिखाई. लेकिन इंग्लैंड की "रोयल सोसायटी ऑफ सर्जन" अपने इतिहास में ये लिखती है कि हमनें सर्जेरी भारत से ही सीखी है.
लन्दन में "फैलो ऑफ रॉयल सोसाइटी" की स्थापना करने वाला अंग्रेज हॉलकॉट 1795 में भारत में मद्रास में आकर सर्जरी सीख करगया. उसकी डायरी के पन्ने इस बात के गवाह हैं. वो बार-बार ये कहता रहा कि मैंने ये विद्या भारत से सीखी है और फिर मैने इसे पूरे यूरोप को सिखाया है. लेकिन अंग्रेजों ने उसकी शुरू की बात कोतो दबा दिया और बाद के वाक्य ' मैने सर्जरी विद्या को पूरे यूरोप को सिखाया है ' का खूब प्रचार किया.
सर्जरी हमारी विद्या है और इसका सबसे पुख्ता प्रमाण हमारे पास मौजूद है "सुश्रुत संहिता" नाम केग्रन्थ के रूप में. सुश्रुत संहिता हज़ारों वर्ष पुराना ग्रन्थ है और सर्जरी पर ही आधारितहै. इसे अगर आप पढेंगे तो जान जायेंगे कि सर्जरी यानि कि शल्य चिकित्सा के लिए जिन यंत्रों और उपकरणों कि ज़रूरत होती है ऐसे 125 यंत्र और उपकरण महर्षि सुश्रुत के समय में आविष्कृत हो चुके थे. आज की आधुनिक सर्जरी में बहुत सारे उपकरण वही हैं जो महर्षि सुश्रुत जी ने बताये थे.
प्लास्टिक सर्जरी भारत की देन
भारत में प्लास्टिक सर्जरी के प्रमाणों को जानने के लिए इतिहास की एक रोचक घटना आपको बताना चाहताहूँ. 18 वीं शताब्दी में दक्षिण भारत में हैदर अली नाम का एक महान राजा हुआ करता था, टीपू सुल्तान इन्हीं के पुत्र थे. 1780 से 1784 के बीच में अंग्रेजों ने हैदर अली पर कई हमले किये और हर बार हैदर अली से हारकर गए. इनमें से एक हमले का ज़िक्र एक अंग्रेज़ की डायरी में दर्ज है, उसे बताता हूँ.
1780 में एक अंग्रेज़ अधिकारी कर्नल कूट ने हैदर अली से युद्ध किया. कर्नल कूट हार गया फिर उसके साथ जो हुआ वो सब वो अपनी डायरी में बता रहा है," मैं हार गया और हैदर अली के सैनिक मुझे पकड़कर उसके पास ले गए. वो सिंहासन पर था और में उसके कदमों(चरणों) में. वो चाहता तो मेरी गर्दन काट सकता था, लेकिन उसनें मेरी नाक काट ली . फिर मुझे छोड दिया गया. मेरी कटी नाक मेरे हाथ में दे दी गयी और एक घोड़े पर मुझे बैठा दिया गया और कहा गयाकि जाओ, भाग जाओ.(नाक काटना भारत में सबसे बड़ी बेईज्ज़ती मन जाता है.) मैं भाग गया और भागते-भागते बेलगाम नाम के एक स्थान पर पहुंचा.वहाँ मेरी कटी नाक देखकर एक वैध मेरे पास आया. मैंने उसके पूंछने पर सारी बात बता दी. वो वैध बोला कि अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारी ये कटी हुई नाक जोड़ सकता हूँ. मेरेलिए ये आश्चर्य की बात थी कि कटा हुआ अंग आखिर कैसे जुड़ सकता है? वो मुझे अपने घर ले गया और वहाँ मेरा ऑपरेशन किया." इस ऑपरेशन का तीस( 30 ) पन्नों में उसने अपनी डायरी में विस्तृत वर्णन किया है.आगे वो लिखता है,
" ऑपरेशन के बाद मेरी नाक जुड़ गयी . उसने मुझे एक लेप दिया और कहा कि इसे सुबह-शाम नाक पर लगाते रहना. 16-17 दिन में नाक पूरी तरह से ठीक हो गयी."
फिर वो लन्दन चला गया. तीन( 3 ) महीने बाद वो ब्रिटिश संसद में जाकर भाषण दे रहा है और सबसे पहला सवाल वहाँ उपस्थित लोगों से वो करता है कि, "क्या आपको लगता है कि मेरी नाक कटी है?" सब लोग मना करतेहैं, कहते है कि तुम्हारी नाक कटी हुई बिल्कुल नहीं लगती. तब कर्नल कूट अपना पूरा किस्सा उन लोगों कोबताता है. इसके बाद अंग्रेजों का एक दल उस वैध से मिलने बेलगाम जाता है. बेलगाम में वो वैध उनको मिलता है और वो उससे अंग जोड़ने की विद्या के बारे में पूंछते हैं कि, तुमने ये विद्या कैसे सीखी? तोवैध ने कहा कि आपको तो यहाँ हर गांव में मुझ जैसा वैध मिल जाएगा. उन्होंने पूंछा, तुम्हें ये विद्या किसने सिखाई? तो वैध ने कहा कि हमारे गुरुकुलों में ये विषय पढ़ाया और सिखाया जाता है. तब अंग्रेज़ गुरुकुल में गए और वहाँ दाखिला लिया. वहाँ ये विषय सीखा और यहाँ से सीखकर इंग्लैंड गए.
भारत में अंग्रेजों नेप्लास्टिक सर्जरी सीखी
जिन-जिन अंग्रेजों ने भारत में प्लास्टिक सर्जरी सीखी उनकी डायरियां आज भी इस बात का प्रमाण हैं. एक ऐसा ही प्रसिद्ध अंग्रेज़ था थॉमस क्रूसो वो 1792 में अपनी डायरी में लिखता है कि, " गुरुकुल में मुझे जिस विशेष आदमी ने प्लास्टिक सर्जरी सिखाई वो जाति का नाई था. चर्मकार जाति के बहुत से सर्जन थे. शायद चमड़ी सिलना उन्हें ज्यादा अच्छा आता है." यानि कि 1792 तक हर कोई बिना भेद-भाव के गुरुकुलों में शिक्षा पा रहा था और दे रहा था.ये गुरुकुल पुणे में था जहां इस अंग्रेज़ ने प्लास्टिक सर्जरी सीखी. आगे वो लिखता है कि, " मुझे अच्छे से सिखाने के बाद उस शिक्षक ने मुझसेऑपरेशन भी करवाया. मैंने अपने शिक्षक के साथ मिलकर एक घायल मराठा सैनिक का ऑपरेशन किया. उसकेहाथ युद्ध में कट गए थे. हमारा ऑपरेशन सफल रहा. उसके हाथ जुड़ गए ."थॉमस क्रूसो सीखकर इंग्लैंड चला गया. वो लिखता है," इतना अदभुत ज्ञान मैंने किसी से सीखा और इसे सिखाने के लिए किसी ने मुझसे एक पैसा तक नहीं लिया . ये बहुत ही आश्चर्य की बात है." उसका ये कथन इस बात की फिर से पुष्टि करता है कि भारत में शिक्षा हमेशा मुफ्त रही है और उसका यहाँ पढ़ना ये साबित करता है कि भारत में बिना भेद-भाव के सभी को शिक्षा मिला करती थी .
इंग्लैंड जाकर थॉमस क्रूसो ने एक स्कूल खोला और वहाँ सर्जरी सिखाना शुरू कर दिया। दुर्भाग्य है कि प्लास्टिक सर्जरी के विश्व ग्रंथों में उस स्कूल का तो वर्णनहै लेकिन उस गुरुकुल का, उस शिक्षक का, भारत का वर्णन नहीं है.

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Note--यह पोस्ट 'कट्टर भारतीय' नमक ब्लॉगर द्वारा लिखी गयी है।

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'sushruta' is the father of surgery and 'Dhanvantari' is the father of medicine.


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