अब फ़रिश्ते नहीं आते ..
 
लोग
 कहते हैं की बेवजह के पचड़े में कौन पड़े इसलिए वे किसी की मदद को आगे नहीं 
आते , देखकर भी अनदेखा कर देते हैं ! चाहे किसी के यहाँ चोरी हो गयी हो , 
किसी के साथ सड़क दुर्घटना हो गयी हो अथवा जैसे अभी 16 दिसंबर को दामिनी 
बलात्कार की घटना में सड़क पर दोनों निर्वस्त्र पड़े रहे और अस्पताल में भी 
दो घंटे तक किसी ने मदद नहीं की, या फिर बस में उस युवती को चांटा मारा और 
छेडछाड की उस कंडक्टर ने लेकिन सहयात्री केवल तमाशा देखते रहे।
 
 
क्या इतनी असंवेदनशीलता उचित है? खुद को कोई दिक्कत न हो इसके लिए दूसरों 
को मरने के लिए छोड़ देंगे क्या?  निज स्वार्थ बड़ा है या कर्त्तव्य ? 
इंसानियत की पहचान क्या है?
 
 मेरे विचार से यथासंभव और यथाशक्ति 
पीड़ित की मदद तत्काल करनी चाहिए , बिना अपना कोई नुकसान सोचे। आज हम उसके 
काम आयेंगे , कल कोई हमारे काम आ जाएगा हमारी तकलीफ में ... फ़रिश्ता बनकर 
....
 
 Zeal
 
 
 
 
          
      
 
  
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
15 comments:
सार्थक लेख !!
सही कहा आपने, आपसे सहमत......
behtreen post....
लोग पीड़ित के स्थान पर स्वयं को रखना प्रारम्भ कर दें तो सहायता के भाव उठ भी जायें..
इंसानियत की परिभाषा क्या है ?
आज के सन्दर्भ में मानव मस्तिष्क को झकझोरता .. सुन्दर लेख !
स्वानुभूति करने लगें तो ही कुछ हो सकता है.
फ़रिश्ते यहीं इसी धरती पर हैं और हैवान मिल ही जाते हैं अभी भी 65 प्रतिशत लोग फ़रिश्ते है तभी तो आप चिंतन कर रहीं हैं ..
प्रभावशाली ,
जारी रहें।
शुभकामना !!!
आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
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इतना ही सोचने लगे कोई ,तो क्या बात है !
bahut sahi kahaa..
yahi jaroori he.....bikalp v,,,,
main apni kahun to yah karta hun
अपने लिए तो सब जीते है...
आओ कभी औरों के लिए भी कुछ किया जाये.
कुछ अपने अन्दर हुंकार भरी जाये...
कुछ आन्दोलन किया जाये..
सरल भाषा में संस्कार आव्वाहन . शुभकामनाएं
bahut saarthak lekh .badhaai aapko
बिलकुल करनी चाहिए ... संवेदनशील समाज का होना जरूरी है ...
असंवेदनशीलता ही इस देश के पतन का कारण बनी है। लोगों को याद रखना होगा कि आज जो दुर्घटना उनकी आँखों के सामने किसी के साथ हो रही है, कल उनके साथ भी हो सकती है। क्योंकि ये भीड़तन्त्र का परिणाम है कि किसी हादसे में मरने वालों की संख्या ही गिनी जाती है। हमारी और कोई पहचान नहीं है। हम केवल भीड़ हैं और हमने यह उपाधि खुद ने ही खुद को दी है।
आज हमारे मोहल्ले में कोई असामाजिक तत्व किसी महिला के साथ बदतमीजी करे और हम शांत रहें, तो उस दरिन्दे के कल का निशाना हमारी अपनी माँ अथवा बहन हो सकती है।
हमने दरिन्दों के हौंसले खुद बुलंद किये और खुद के हौंसलों को खुद ही पस्त किया।
आवाज़ उठाइये...
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