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Sunday, September 26, 2010

महिलाओं की तसवीरें , टेलीफोन नंबर -----और अदरख की चाय.

कुछ शुभ-चिंतकों ने ये प्रश्न खड़े किये जिससे प्रेरित होकर ये पोस्ट लिख रही हूँ...

सन २००५ से इन्टरनेट का उपयोग करना शुरू किया। कभी तस्वीर नहीं लगायी प्रोफाइल में। शायद डरती थी । तो अब क्यूँ लगायी , मित्रों ने पुछा -क्या दुनिया अब बदल गयी है ? न भाई , कुछ नहीं बदला । सिर्फ मैं बदल गयी हूँ। अपने मन के बे-बुनियादी भय को भगा दिया है।

बहुत लोगों ने भय दिखाया तरह-तरह का। लेकिन जब दिव्य-ज्ञान हुआ तो समझा क्या रखा डरने में। छोटी सी तो जिंदगी है , निर्भय होकर जियो। लोगों के आक्षेप लगते रहे की फर्जी आई-डी है , न कोई प्रोफाइल, न फोटो, मत करो यकीन इस का।

शुक्र है इश्वर का , आज कल अग्नि-परीक्षा का चलन नहीं है, नहीं तो खामखाह , वो भी देनी पड़ती। खैर दिल ने हिम्मत दिखाई और दिमाग ने सहमति दे दी , और आज मुझे फर्जी होने के संगीन आरोप से बरी करवा दिया।
अरे भाई जब बाकी लोग निर्भय हैं तो मुझे एक तस्वीर लगाने से क्या डरना ?

अब बात करते हैं टेलीफोन नंबर की। जिसको देखो वही ये समझाइश देता मिलेगा महिला हो, अपना टेलीफोन नंबर मत देना किसी को । अरे भाई आप पुरुष हैं, तो आप सुरक्षित हैं ? और आप अपनी बुद्धि से अछे-बुरे की पहचान करके अपना नंबर दे सकते हैं ? आप जरूरत पड़ने पर शीघ्रतम उपाय [दूर-संचार ] से मित्रों की सलाह ले सकते हैं , लेकिन एक महिला के लिए ये गुनाह क्यूँ समझा जाता है की वो अपने किसी शुभ चिन्तक पर यकीन करके , जरूरत के वक़्त बात कर सके।

जो महिलाएं नौकरी कर रही हैं, वो अपना नंबर , अपने साथ काम करने वालों को दे सकती हैं, और जो महिलाएं चिकित्सा जैसे पेशे में हैं, उनका नंबर तो मरीज के पर्चे पर बिन मांगे बंटता है। फिर जो महिलाएं घर में रहती हैं, घर- परिवार के दायित्वों से ही जुडी हैं , क्या उन्हें अपना टेलीफोन नंबर सहोदर भाई, बहिन, माँ, पिता , पति तथा नजदीकी रिश्तेदारों तक ही सीमित रखना चाहिए ?

क्या महिलाओं को इंसान परखने की शक्ति नहीं होती ? क्या वो मुर्ख हैं जो बिना व्यक्ति को ठीक से समझे , किसी पर भी विश्वास कर लेती हैं? क्यूँ महिलाओं को स्वतंत्र नहीं है अपना भला बुरा सोचने-समझने की ? या फिर महिलाएं एक दायरे से स्वयं ही बाहर नहीं आना चाहतीं ?

क्या सिर्फ महिलाओं के ही टेलीफ़ोन नंबर का मिसयूज़ हो सकता है ? पुरुषों को कोई खतरा नहीं ?

चलो माना कभी-कभी किसी को अच्छा समझकर उसपर यकीन कर लेते हैं। बाद में पछताना भी पड़ता है । लेकिन भाई , इसके लिए भी उपाय हैं। बदमाशों का नंबर सेव कर लीजिये, यदि कोई परेशान करे तो मत उठाइये। एक दिन थक-हार कर आपको परेशान करना बंद ही कर देगा।

और यदि कोई सिरफिरा आपका पीछा करते-करते आपके घर पहुँच जाये तो उसको अदरख की चाय पिलाइए । सारी जिंदगी के लिए सुधर जाएगा और यही कहेगा ---

" फलाँ के घर का नमक खाया है......ooooooopsssssss ......उनके घर की चाय पी है। अब और त्रस्त नहीं करूँगा "