देश की राजधानी दिल्ली की एक रिहायशी पांच मंजिला इमारत गिर गयी , ४० परिवार के तकरीबन ६५ लोग स्वर्ग का टिकट कटा चुके हैं , बाकि के १०० से ज्यादा जिंदगी के लिए भगवान् से दुआएं मांग रहे हैं।
इमारत की डिजाईन मानकों के आधार पर सही नहीं थी । सिविल इंजीनियर्स को भी , सीमेंट -मोरंग- गारा का सही अनुपात नहीं पता था । बिल्डिंग गिर गयी । जो मरा सो मरा , उनकी जेब से क्या गया ।
इमारत के मालिक को सब पता था, खतरा जानते हुए भी उसने सब कुछ ऐसे ही चलने दिया। लालच की कोई इन्तहा नहीं है ।
कभी दिल्ली में इमारतें ढेहती हैं, कभी ब्रिज तो कभी स्टेडियम की छत । आखिर दिल्ली में ये सब इतना ज्यादा क्यूँ ? क्या वहाँ के लोग भारी ज्यादा हैं , जिनके वजन से इमारतें ढह जाती हैं , या फिर वहाँ भ्रष्टाचार इतना ज्यादा है की सीमेंट की जगह , रेत के टीले बनते हैं।
वैसे सुरक्षा की दृष्टि से 'शीला बहन' को 'माया बहन ' के निवास पर रहना चाहिए । राम जाने कब मुख्यमंत्री का भवन ढह जाए । वैसे भी अपनी माया बहन " पत्थरों " की जबरदस्त पारखी हैं।
इनके आतंक से इंस्टेंट मौत पाइये और एक के साथ अनेंक अपने साथ ले जाइए ।
कुर्सी पे बैठे परवरदिगारों , कब तक रोते -बिलखते देखते रहोगे अपनी आम , निसहाय जनता को ?