मन चंगा तो कठौती में गंगा । यदि मन में प्रेम है , विश्वास है , संवेदनाएं हैं तो इश्वर भी हर किसी में दिखता है। अन्यथा रोज हरि नाम जपने से भी कुछ नहीं होने वाला ।
इसी तरह माँ के लिए हर दिन होता है , पिता के लिए हर दिन होता है , प्रेम के लिए भी हर दिन और हर क्षण होता है , फिर एक दिन के लिए Mother's day , father's day , valentine's day मनाने का क्या औचित्य ? माता-पिता से प्रेम भी मात्र एक दिन के लिए , बाकि दिन व्यस्त ? और valentine's day ?...३६३ दिनों के गुलाब का हिसाब कौन रखेगा ? बस १४ फरवरी का गुलाब अमर हो गया? बाकि जो रात-दिन धड़का उसका क्या ? अरे valentine तो मुमताज़ थीं शाहजहाँ की , जिसकी याद में बना ताजमहल सूरज की रौशनी में दमकता है और रात की चांदनी में जगमगाता है हर दिन ।
अब इन सबसे बढ़कर आया है 'महिला दिवस' । महिलाओं को मूर्ख बनाने के लिए इस दिवस की भी रचना कर दी गयी । कौन से सुर्ख -पर निकल आते हैं इस दिन ? कौन सी ताजपोशी कर दी जाती है किसी महिला की इस दिन ? अरे विवाह में तो सोने चांदी से तौलकर विदा कर ही देते हैं , की खुश रहेगी सारी जिंदगी इसी में , शिकायत भी नहीं करेगी । अब एक महिला दिवस बनाकर कौन सा तमगा मिलने वाला है किसी महिला को । समानता का ज़माना है , जब पुरुष दिवस नहीं है तो ये महिला-दिवस का पाखण्ड क्यूँ ?
आज ब्लॉग भ्रमण के दौरान एक पुरुष की टिपण्णी पढ़ी जिसमें महिलाओं का सम्मान करने की बात कही गयी थी। और पुरुषों से स्वयं को बदलने की अपील की गयी थी । हँसी आ गयी पढ़कर की ये जनाब तो मौका पाते ही महिला ब्लॉगर्स का अपमान करते हैं और यहाँ शराफत का मुखौटा लगाये प्रवचन मुद्रा में हैं। अरे भाई इस दोहरे चरित्र की क्या जरूरत है ।
हम सभी स्त्री और पुरुष होने के पहले , इंसान हैं और हम सभी में मानवीय गुण और अवगुण दोनों हैं । झूठा दिखावा करने से कोई लाभ नहीं है । मन में इज्ज़त नहीं है तो महिला दिवस के नाम पर जबरदस्ती इज्ज़त न करो भाई , न ही घडियाली सहानुभूति दिखाओ। जो पुरुष अपनी माँ की इज्ज़त करना जानते हैं , वो अपनी पत्नी को भी पूरा सम्मान देते हैं । और जो पुरुष , अपने घर की स्त्री को सम्मान देना जानते हैं वो पराई स्त्री का भी सम्मान करते हैं ।
इसलिए महिला-दिवस के नाम पर महिलाओं को सम्मान देना मात्र एक पाखण्ड है । कृपया अपनी ऊर्जा न बर्बाद करें इस प्रकार के अनावश्यक दिवसों में । आठ मार्च की जगह वर्ष के ३६४ दिनों में से किसी भी दिन यदि ज़रुरत के वक़्त आप किसी महिला के काम आ सकें और उसके लिए मन में आदर और स्नेह का भाव रख सकें तो वही सच्चे अर्थों में एक स्त्री को सम्मान देना हुआ , अन्यथा सब दिखावा है।
कन्या-भ्रूण हत्या , दहेज का चलन , बढ़ते बलात्कार की घटनाएं बता रही हैं , महिला-दिवस के पाखण्ड को।
आभार ।
इसी तरह माँ के लिए हर दिन होता है , पिता के लिए हर दिन होता है , प्रेम के लिए भी हर दिन और हर क्षण होता है , फिर एक दिन के लिए Mother's day , father's day , valentine's day मनाने का क्या औचित्य ? माता-पिता से प्रेम भी मात्र एक दिन के लिए , बाकि दिन व्यस्त ? और valentine's day ?...३६३ दिनों के गुलाब का हिसाब कौन रखेगा ? बस १४ फरवरी का गुलाब अमर हो गया? बाकि जो रात-दिन धड़का उसका क्या ? अरे valentine तो मुमताज़ थीं शाहजहाँ की , जिसकी याद में बना ताजमहल सूरज की रौशनी में दमकता है और रात की चांदनी में जगमगाता है हर दिन ।
अब इन सबसे बढ़कर आया है 'महिला दिवस' । महिलाओं को मूर्ख बनाने के लिए इस दिवस की भी रचना कर दी गयी । कौन से सुर्ख -पर निकल आते हैं इस दिन ? कौन सी ताजपोशी कर दी जाती है किसी महिला की इस दिन ? अरे विवाह में तो सोने चांदी से तौलकर विदा कर ही देते हैं , की खुश रहेगी सारी जिंदगी इसी में , शिकायत भी नहीं करेगी । अब एक महिला दिवस बनाकर कौन सा तमगा मिलने वाला है किसी महिला को । समानता का ज़माना है , जब पुरुष दिवस नहीं है तो ये महिला-दिवस का पाखण्ड क्यूँ ?
आज ब्लॉग भ्रमण के दौरान एक पुरुष की टिपण्णी पढ़ी जिसमें महिलाओं का सम्मान करने की बात कही गयी थी। और पुरुषों से स्वयं को बदलने की अपील की गयी थी । हँसी आ गयी पढ़कर की ये जनाब तो मौका पाते ही महिला ब्लॉगर्स का अपमान करते हैं और यहाँ शराफत का मुखौटा लगाये प्रवचन मुद्रा में हैं। अरे भाई इस दोहरे चरित्र की क्या जरूरत है ।
हम सभी स्त्री और पुरुष होने के पहले , इंसान हैं और हम सभी में मानवीय गुण और अवगुण दोनों हैं । झूठा दिखावा करने से कोई लाभ नहीं है । मन में इज्ज़त नहीं है तो महिला दिवस के नाम पर जबरदस्ती इज्ज़त न करो भाई , न ही घडियाली सहानुभूति दिखाओ। जो पुरुष अपनी माँ की इज्ज़त करना जानते हैं , वो अपनी पत्नी को भी पूरा सम्मान देते हैं । और जो पुरुष , अपने घर की स्त्री को सम्मान देना जानते हैं वो पराई स्त्री का भी सम्मान करते हैं ।
इसलिए महिला-दिवस के नाम पर महिलाओं को सम्मान देना मात्र एक पाखण्ड है । कृपया अपनी ऊर्जा न बर्बाद करें इस प्रकार के अनावश्यक दिवसों में । आठ मार्च की जगह वर्ष के ३६४ दिनों में से किसी भी दिन यदि ज़रुरत के वक़्त आप किसी महिला के काम आ सकें और उसके लिए मन में आदर और स्नेह का भाव रख सकें तो वही सच्चे अर्थों में एक स्त्री को सम्मान देना हुआ , अन्यथा सब दिखावा है।
कन्या-भ्रूण हत्या , दहेज का चलन , बढ़ते बलात्कार की घटनाएं बता रही हैं , महिला-दिवस के पाखण्ड को।
आभार ।