हमारे देश में अनेक कलाएं हैं , जो आज समाप्ति की कगार पर हैं क्यूँकि उन्हें महत्त्व नहीं दिया जाता है और उनके विकास की दिशा में कोई प्रयास नहीं होता । इन कलाओं को हेय दृष्टि से देखा जाता है। हमारे शिल्पकार जो आज कपडे , जूट, कपास, चमड़े , लकड़ी , सिल्क आदि से बेहतरीन वस्तुओं का निर्माण करते हैं। उनकी कलाओं को बढ़ावा देने के लिए उन्हें उचित सम्मान मिलना चाहिए।
पढ़ाई और लिखाई से आगे भी कला और ज्ञान का भण्डार है । हमारे समाज में शिक्षक , वकील , चिकित्सक और इंजीनियर्स को भरपूर सम्मान मिलता है उनकी कला के लिए। लेकिन हमारे कुम्हार, जुलाहे , बुनकर, कालीन बनाने वाले, लकड़ी , जूट , ऊन से तैयार होने वाले अद्भुत शिल्प आदि का ज्ञान रखने वालों को वो गौरव नहीं प्राप्त है जो अन्य व्यवसायों को है।
इसका कारण है उनके पास डिग्री का ना होना । आज सम्मान केवल डिग्रीधारियों को ही नसीब होता है। इसलिए इन कलाकारों एवं शिल्पकारों को उनके हुनर के लिए डिग्री मिलनी चाहिए। इनके ज्ञान एवं कला से विस्तार, प्रचार एवं प्रसार के लिखे एक विश्व विद्यालय होना चाहिए , जिसमें बिना किसी औपचारिक डिग्री के कारीगर-शिक्षक होने चाहिए जो अपनी कला को सिखा सकें आने वाली नयी पीढ़ी को। इससे ये शिल्पकार भी गौरव के साथ जी सकेंगे ।
विदेशों में जब चिकित्सक , वैज्ञानिक आदि जाते हैं तो उन्हें सम्मान मिलता है , क्यूँकि इनका सम्मान अपने देश में भी है। लेकिन हमारे शिल्पकारों को देश विदेश में सम्मान मिले इसके लिए इन्हें सबसे पहले अपने देश में पहचान एवं सम्मान मिलना बहुत जरूरी है। इनके लिए शिक्षण संस्थान होने चाहिए तथा इन्हें भी उचित डिग्री हासिल होनी चाहिए। इससे विलुप्त होती पारंपरिक कलाओं को बचाया भी जा सकता है तथा इसमें रुचि बढ़ने के साथ रोजगार के साधनों में भी वृद्धि होगी।
प्रत्येक नागरिक को अधिकार है गौरव के साथ जीने का।
आभार।