जब मैंने ब्लॉग लिखना शुरू किया था तो मेरे ब्लॉग पर मोडरेशन नहीं था। लेकिन मेरी पहली पोस्ट पर ही अमरेन्द्र त्रिपाठी नामक ब्लोगर ने आकर अभद्र टिप्पणियों की भरमार कर दी । फिर वो अपने समुदाय के श्रीशपाठक , गिरिजेश राव , अनूप शुक्ला , संजीत त्रिपाठी आदि को लाकर लड़ने लगा और मेरे ब्लॉग को कुरुक्षेत्र बना दिया ।
इन लोगों से परेशान होकर मैंने ब्लॉग पर मोडरेशन लगा दिया तो मुझे मेरे हर लेख पर डॉ अमर और अर्थ देसाई ने , मोडरेशन हटाने के लिए परेशान करना शुरू कर दिया। परेशान होकर मैंने दुबारा मोडरेशन हटा दिया।
लेकिन यहीं भारी भूल हो गयी । मोडरेशन हटाने के साथ ही , महफूज़ अली , दीपक मशाल , अमरेन्द्र त्रिपाठी [ रवि नाम से ], अरविन्द मिश्रा [ अजित नाम से ] , ढेरों अश्लील एवं अभद्र टिप्पणियां की । इसके अतिरिक्त लेखिकाओंमें अंशुमाला और पूजा ने ब्लॉग को पुनः महाभारत में बदल दिया। और जलजला आदि बेनामियों की तो कोईगणना ही नहीं है , उनको को छिछोरापन करने का मौक़ा मिल गया। और बेनामी कोई दुसरे गृह से नहीं आते । इसी ब्लॉग-जगत के विकृत मानसिकता वाले लेखक और लेखिका मोडरेशन ना होने का लाभ उठाते हैं। बेनामी बनकर अपमानित करते हैं।
बहुत कुछ इस पर भी निर्भर करता है की आप किसप्रकार के लेख लिखते हैं। यदि आप पूरी उम्र बादलों और जुल्फों पर लिखते रहेंगे तो उनपर इन विवाद पसंद लोगों को विवाद करने का मौक़ा नहीं मिलता। लेकिन यदि आप समाज में तथा अपने आस पास के परिवेश में हो रहे , भ्रष्टाचार, अन्याय और अनियमितताओं पर लिखते हैं तो लोगों में विचारों का मंथन होता है । ऐसे में इमानदार एवं सभ्भ्रांत पाठक तो अपने बहुमूल्य विचार रखते हैं, लेकिन ईर्ष्यालू एवं पूर्वाग्रहों से युक्त पाठक तथा टिप्पणीकार अपनी भड़ास निकालते हैं। लेकिन मोडरेशन होने के कारण ऐसे लोगों की साहित्यिक सडांध को रोकने में एवं लेख को दूषित होने से बचाने में मदद मिलती है।
दूसरी बात -जिन्होंने मोडरेशन लगाया है , वो कोई मूर्ख तो हैं नहीं। कुछ सोच समझ कर ही लगाया होगा। एकबात समझ नहीं आती , जिन्होंने मोडरेशन नहीं लगाया है , उनको इसमें इतनी आपत्ति क्यूँ होती है । उनसे तो कोई कह नहीं रहा की आप भी लगाइए। अरे भाई आप अपने तरीके से खुश रहिये , दूसरों को उनके तरीके से जीने दीजिये।
तीसरी बात - प्रवीण शाह जैसे लोग तो शालीन एवं शिष्ट टिप्पणियां भी डिलीट कर देते हैं, गुटबाजी के चलते। तो फायदा क्या। प्रकाशित , sensible कमेंट्स डिलीट करके ये बिना मोडरेशन वाले क्या जाहिर करना चाहते हैं।
मेरे विचार से मोडरेशन लगाना है अथवा नहीं , ये भुक्तभोगी व्यक्ति ही निर्णय ले सकता है । अपनी सुरक्षा केवल अपने हाथों में ही होती है । अभद्र , अश्लील , भड़ासयुक्त एवं ईर्ष्यायुक्त टिप्पणियों से बचने के लिए एकमात्र उपाय संभव उपाय है मोडरेशन । ये लेखक एवं लेखिका की पसंद नहीं मजबूरी है। कृपया मजबूरी में लिए गए निर्णय का सम्मान कीजिये।
मोडरेशन लगाने के कारण आपको होने वाली असुविधा के लिए खेद सहित ,
दिव्या।
82 comments:
अच्छा हैं.
आप आपने लेख लिखे | आप किसी भी विशय पैर लेख लिखने की शम्ता रखती है | आप ने जो शेत्र चुना है , उस में यह स्वभाविक है | मेरी आप से आग्रह है आप आपने चुने हुए मार्ग पैर अटल रहे और इन लोगो की चिंता न करे |
इस लेख के जरिये ही सही. माडरेशन प्रणाली के पक्ष में आपके विचार जाने । धन्यवाद...
वर्तमान फान्ट न सिर्फ पढने में सुविधाजनक हैं बल्कि दिखने में भी आकर्षक लग रहे हैं ।
माडरेशन लगाने के कारण असुविधा जैसी कोई बात नहीं है, आपके विचार स्वागतेय हैं, लेकिन क्या आप ऐसा नहीं मानतीं कि इतने नामों का उल्लेख कर आप नया मोर्चा खोल रही हैं.
माडरेशन प्रणाली के पक्ष में आपके विचार बिलकुल सही है
राहुल जी ,
आपने एक प्रश्न पूछा है , शीघ्र ही उत्तर दूंगी , थोड़ा धैर्य रखें।
दिव्या जी
आपने बिलकुल सही काम किया है। मॉडरेशन न होने का फायदा ही मानसिकता रूप से विकृत लोग उठाते हैं। वैसे मॉडरेशन होने पर भी ऐसे लोग बाज नहीं आते हैं, लेकिन तब उनकी विकृत मानसिकता वाली टिप्पणी को हमारे पास कचरा पेटी में डालने का साधन होता है। इसमें कोई दो मत नहीं है कि ब्लाग जगत में अति गुटबाजी है। हमने जब से इस गुटबाजी से किनारा किया है, हमें लगातार परेशान करने का सिलसिला जारी है। लेकिन हम न तो डरने वाले हैं और न ही घबराने वाले हैं। आप भी जिस बेबाकी से मैदान में डटी हुई हैं वह तारीफे काबिल है। आप अपना काम करती रहें। विकृत मानसिकता वाले तो कभी बाज आने वाले नहीं हैं।
आपका लोजिक मजबूत है,जब माडरेशन की सुविधा है तो उसका उपयोग करना य ना करना ब्लाग ओनर की स्वेच्छा और अनुभव पर निर्भर करता है। विचारों की फ़ुकटय्या नदी बहाने के इस काम में अपनी सुरक्छा सर्वोपरि होनी ही चाहिये ।
दिव्या जी,
ये आपके तर्क हैं। अच्छे हैं। आपकी भावनाओं का जैसा कि आपने कहा है “ये लेखक एवं लेखिका की पसंद नहीं मजबूरी है। कृपया मजबूरी में लिए गए निर्णय का सम्मान कीजिये।” सम्मान भी करते हैं हम।
दो बातें फिर भी जोड़ना चाहूंगा। एक तो ऐसे लोगों का चेहरा जग जाहिर तो होता ही है। आपके ब्लॉग पर ही कई ऐसे चेहरे से नकाब उतरा तो वहां जाना बंद कर दिया।
दूसरे हम अभद्र टिप्पणियों को डिलिट तो कर सकते हैं ना।
कई बार क्या होता है कि हम टिप्पणी कर जाते हैं, पर उसमें क्या अशुद्धि थी वो तो अप्रूवल के बाद ही पता चलता है। और तब तक दुबारा उस पोस्ट तक जाने की स्थिति में हम होते हैं या नहीं कह नहीं सकता। यदि तुरत पब्लिश होता है तो ग़लत लगने पर हम उसे डिलिट कर सुधारा हुआ रूप फिर से पोस्ट कर देते हैं।
लेखक एवं लेखिका की पसंद नहीं मजबूरी है। ........
मोड़रेसन से सम्बंधित आपके विचारों से पूर्णत सहमत हूँ ,
माडरेशन के लिए आपके विचारो से सहमत हूँ, हालकि मैने माडरेशन नही लगाया है फिर भी कचरा छाँटने के लिए उपयुक्त तरीका है।
आप अपने मार्ग पर चलते रहें।
हाथी जब चलता है तो कुत्ते तो भौकते ही है।
माडरेशन के लिए आपके विचारो से सहमत हूँ, हालकि मैने माडरेशन नही लगाया है फिर भी कचरा छाँटने के लिए उपयुक्त तरीका है।
आप अपने मार्ग पर चलते रहें।
हाथी जब चलता है तो कुत्ते तो भौकते ही है।
मोडिरेशन लगाना न लगाना bloger की मर्जी ...आपने लगा के ठीक किया ......शुरू से ही लगा के रखना था ...हाँ ....पर यह ध्यान रखना 'विग्रह्य संभाषा' न होने पाए.
आसमान पर थूकने से वो अपने ऊपर ही गिरता है । मुझे तो आपके
लेखन में ऐसी कोई बात नजर नहीं आयी । जो कांटे की तरह चुभती
हो । मैं धर्म जैसे विषय पर बेबाकी से लिखता हूँ । पर कोई चूँ भी नहीं
करता ? आपको माडरेशन हटाने पर विवश करने वाले विक्षिप्त और
कुंठित ही हो सकते हैं ।.. ये गेट आपका है । जिसे खुला या बन्द रखना
आपकी इच्छा पर निर्भर करता है ।..फ़िर किसलिये आयरन लेडी की नेम
प्लेट लगा रखी है ? इसलिये कि मामूली लोगों की लफ़्फ़ाजी से डरो ।
माडरेशन प्रणाली के पक्ष में आपके विचार बिलकुल सही है| धन्यवाद|
प्रसिद्धि के साथ मॉडेरेशन आवश्यक हो ही जाता है।
डॉ दिव्या ,
इन्हें सबसे अधिक बुरे से, सबसे कम बुरे के क्रम में अगर लगा कर दिखाएँ तो रोचक रहेगा ! (यह व्यंग्य नहीं है)
अमरेन्द्र त्रिपाठी
अरविन्द मिश्र
ज्ञान दत्त
श्रीशपाठक,
गिरिजेश राव ,
अनूप शुक्ला ,
संजीत त्रिपाठी
महफूज़ अली ,
दीपक मशाल ,
अंशुमाला
पूजा
प्रवीण शाह
डॉ अमर कुमार
मोडरेसन लगाना या ना लगाना पुर्णतः अपने विवेक पर निर्भर है , हमे जैसी जरुरत होती है वैसा करना चाहिए .
WELL, I M NOT MUCH AWARE OF THESE THINGS, BCOZ I M JUST ABT ONE MONTH OLD IN THIS BLOG WORLD....BUT WHATEVER IS HAPPENING IN THE NAME OF BLOGGING IS CERTAINLY NOT GOOD, FOR SOMEONE WHO IS IMPARTIAL, SOMETIMES SOMEONE MAY NOT AGREE WITH THE VIEWS OF WRITER/BLOGGER, BUT THERE IS A WAY TO EXPRESS OUR DISAGREEMENT WITH THAT VIEW OR THAT PARTICULAR ARTICLE..... I THINK THAT THIN LINE OF BLOGGING ETHICS HAS TO MAINTAINED BY EACH N EVERY ONE...... TALKING ABOUT MODERATION, ITS INDIVIDUAL'S CHOICE.
Regards...irfan
मॉडरेशन का विवेकपूर्ण प्रयोग करना ही चाहिए. ऊलजुलूल टिप्पणियों को हटाना भी विषय के साथ न्याय करने के बराबर है.
अभद्र , अश्लील , भड़ासयुक्त एवं ईर्ष्यायुक्त टिप्पणियों से बचने के लिए एकमात्र उपाय संभव उपाय है मोडरेशन । ये लेखक एवं लेखिका की पसंद नहीं मजबूरी है। कृपया मजबूरी में लिए गए निर्णय का सम्मान कीजिये।
सही कहा जी
प्रणाम
दिव्या जी आप moderation लगाए या न लगाए यह आपकी अपनी इच्छा है, आप दूसरों को अपने पर हावी न होने दें, ऐसे लोग दूसरों का लाभ उठाने का कोइ मौका नही चूकते।
सही कह रही हैं कुछ लोगो की वजह से ही लगाना पडता है वरना कौन ब्लोगर चाहता है कि इसे लगाये।
जैसी सुविधा हो वैसा करने में हर्ज कैसा..
आपके ब्लॉग पर अक्सर गंभीर और संजीदा लेख ही पढ़े.आज भी मोडरेशन पर गंभीर चर्चा पढ़ते पढ़ते जब 4th पैराग्राफ तक पहुंचा और लेख का निम्न हिस्सा पढ़ा तो हंसी आ गई.
"यदिआप पूरी उम्र बादलों और जुल्फों पर लिखते रहेंगे तो उनपर इन विवाद पसंद लोगोंको विवाद करने का मौक़ा नहीं मिलता"
कभी कभी ऐसे ही हंसा भी दिया करिये मैडम.
वैसे मोडरेशन पर आपके विचारों से सहमत हूँ.
लिखे हुए पोस्ट पर सही टिप्पणी दी जाए वहाँ तक तो ठीक लगता है |पर अनावश्यक कमेंट्स मन को दुःख पहुंचाते हैं |यदि गलती पता चल जाए तो बुरा भी नहीं लगता सही सुझाव अच्छे लगते हैं |पर हतोत्साहित करने वाले सुझाव देना कहाँ तक उचित है |यदि रचना अच्छी लगे और पढ़ने का मन हो तो पढ़ना चाहिए अन्यथा नहीं |
आशा
मुझे कभी इसकी ज़रूरत नहीं लगी...
दिव्या जी,
मैं तो आपकी बात से सहमत हूँ कि मॉडरेशन ब्लॉगर की च्वाईस है और होनी भी चाहिये....
रही बात अभद्र और अशालीन टिप्पणियों की तो मैं यह मानता हूँ कि यह टिप्पणियाँ कहीं और से नही आती यह तो हमारे सामाजिक ढांचे का सिर्फ हिस्सा भर है, जो समाज हैं उसी का हिस्सा ही ब्लॉगर्स हैं और वही सामने भी आयेगा बहुत कुछ अच्छा और कुछ बुरा। इसे वैसे ही लेना चाहिये जैसे कोई आपकी दीवार पर कुछ लिख दे या ऐसा कोई बिल चिपका दे जो आपको और समाज को भी नागवार हो, तो उसे सिर्फ हटा देने में ही समझदारी होती है।
लेकिन जब मन आहत होता है तो अफ्सोस जरूर होता है।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
नोट : पिछले दिनों से शायद जावा स्क्रिप्ट संबधी किसी त्रुटि की वज़ह से झीलें से खाली ही लौटा कोई टिप्पणी नही कर पाया। कवितायन पर आने का शुक्रिया।
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@- सतीश सक्सेना --
अभी तक आयी टिपण्णी में सिर्फ आपकी टिपण्णी ऐसी है जो मोडरेशन लायक है । और कोई लेख होता आपकी टिपण्णी मोडरेट करके सड़ने के लिए छोड़ देती । लेकिन इस लेख पर आपकी टिपण्णी प्रकाशित करके ये सिद्ध किया जाएगा की अनावश्यक एवं निरर्थक टिप्पणियों के लिए ही मोडरेशन लगाया जाता है।
पाठकों से निवेदन है कृपया सतीश जी की टिपण्णी प्रकाशित होने का इंतज़ार करें।
आभार।
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मेरे ब्लॉग पर आने वाले नए ब्लोगर एवं पाठकों का स्वागत है एवं आभार।
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vyaktigat akchep-purn post.....
bujhi rakh me hawa phoonk-kar chingari nikalne ki
kavayad.......
is tarah ki poorvagrah se nikalne ki jaroorat.....
modration ke liye aap swatantra.....kisi se poochne ki kya jaroorat?.....abohawa ko dekhte
sarvtha uchit.....
aisi ek-adh post se biridh rakhte hue bhi apka ye niyamit pathak bharknewala nahi.....
aur ant me ek gujarish ....aisi 'unporoductive'
baton se door rahne ki iltza....
pranam.
(कृपया पहले से पड़ी बड़ी टिप्पणी को हटाकर इस टिप्पणी को डालने का कष्ट करें। इसमें कुछ करेक्शन भी हैं। धन्यवाद।)
आपका कहना सही है। मॉडरेशन एकदम उचित कदम है। लेकिन मेरी राय में ब्लॉग जगत में कई तरह के लोग हैं जिनमें से दो तरह के लोग अनोखे हैं, एक विकृत मानसिकता वाले और दूसरे मूढ़ मगज़। हमारी नज़र में ज़्यादा खतरनाक मूढ़ मगज़ लोग हैं जो रोज सुबह उठकर अपने ब्रेश करने से लेकर वाशिंग मशीन में धुलने वाले कपड़ों तक का हिसाब अपनी पोस्ट में देते हैं और उस पर तारीफ में आने वाली टिप्पणियों को तो छापते हैं लेकिन जो आलोचनात्मक टिप्पणी दे उसको कचरे की पेटी में डाल देते हैं। और फिर हल्ला मचाते हैं कि हमने ऐसा कर दिया, हमने वैसा कर दिया। दूसरे लोगों को पता ही चल नहीं पाता है कि न्यूटन के जिस नियम के तहत प्रतिक्रिया हुई दरअसल उसकी क्रिया क्या थी। ऐसे लोग आलोचनात्मक टिप्पणी तो नहीं छापते हैं लेकिन उस पर विवाद खड़ा करके पोस्ट लिखकर टिप्पणियां खूब बटोरते हैं।
आपने बढ़िया बहस चलाई है।
ब्लॉग जगत में शायद 5-7 फीसदी लोग ही ऐसे होंगे जो विकृत मानसिकता वाली या मूढ़ मगज़ वाली टिप्पणियां करते हैं। लेकिन ये भी बात सही है कि तालाब को गंदा करने के लिये तो एक ही मछली काफी होती है।
@ पोस्टकार्ड -
जैसा की आपने निवेदन किया था , आपकी पूर्व में की गयी टिपण्णी हटाकर नयी वाली प्रकाशित कर दी है। कुछ देर हुई जिसके लिए खेद है।
मोडरेशन के बारे में आपके विचारों से पूर्णतः सहमत हूँ..आभार
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@ संजय झा -
आपको ये सब व्यर्थ लग रहा है क्यूंकि आप लेख तो लिखते नहीं है । एक लेखक जो-जो झेलता है वो खालिस टिप्पणीकार नहीं अनुभव कर सकते।
" Only the wearer knows where the shoe pinches "
Had I been in your place , I definitely would have preached the way you did.
Thanks for your valuable views.
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खरी-खरी कहकर, सीधे नामों के साथ इतना कहना सचमुच एक साहसिक कदम है....एक लेखिका व लोगों की अभद्र बातों की भुक्तभोगी होने का दर्द आपके आलेख में समाहित है.....किसी भी क्षेत्र में सुविधाएं होती ही इसलिये हैं कि उनका उपयोग करने वाला सही और अपनी मर्जी से उपयोग कर सके.....मॉडरेशन भी तो एक सुविधा ही है.....
दिव्या जी, माडरेशन तो लगाना या ना लगना यह तो आप की मर्जी हे, आप का ब्लाग हे, किसी को क्यो ऎतराज होता हे? समझ मे नही आता, यह तो वोही बात हुयी कि चोर घर वालो की शिकायत करे कि यह घर का मालिक घर पर ताला क्यो लगाता हे, अरे बाबा हमारा घर हे हमारा ब्लाग हे हम यहां ताला लगाये या माडरेशन आप को क्या दिक्क्त हे.आप अपने विचार रखे, अगर साफ़ सुधरे होंगे तो जरुर प्रकाशित होंगे, अगर मां बहन की गालियो से लबरेज होंगे तो कोन छापेगा.वेसे भी मैने कई ब्लाग पर माडरेशन देखा हे मुझे कोई दिक्क्त नही होती
Main blog jagat main abhi utra hoon , aapka lekh is rah ke khtron ko btata hai . jankari achchhi lgi, halanki main modretion ke bare main jyada nahin janta . shayd mere blogs main yeh suvidha hai. sabke pas ye honi bhi chahia taki iershalu logon se bacha ja ske . aapke nirbhik aur spasht vicharon ke lie aap bdhai ki pater hain
abhadra tippani karke vyakti apni hi abhdrata dikhata hai ... hamen bas apni kalam per vishwaas karna hai
ma'm माडरेशन प्रणाली ka ek nuksaan bhi hai ki, swach aalochna ko bhi kabhi-kabhi publish nahi kiya jata.
यह हिंदी ब्लोगिंग का दुर्भाग्य है कि यहाँ मोडरेशन की ज़रुरत महसूस हो रही है ।
साथ ही इस बात का संकेत भी कि हिंदी ब्लोगिंग को परिपक्व और सार्थक रूप में आने में अभी समय लगेगा ।
मॉडरेशन का उपयोग करना या न करना ब्लॉग लेखक का अधिकार है।
इस संबंध में आपके द्वारा व्यक्त किए गए विचारों से मैं सहमत हूं।
यह निर्णय स्वविवेक का है.
माडरेशन प्रणाली के पक्ष में आपके विचार बिलकुल सही है !
ब्लोग जगत एक सोचे-समझे षड्यंत्र के अंतर्गत महिलाओं को बदनाम किया जाता है. रचना जी को निशाना बनाया गया. बहन दिव्या को निशाना बनाया गया. प्रश्न यह है की ऐसा क्यों किया जा रहा है. तुच्छ मानसिकता वाले पुरुषो को क्यों कुछ नहीं कहा जाता?
एक मुस्लिम ब्लोगर खुद को पता नही क्या समझता है ? - हिन्दू महिला ब्लोगरों के ब्लोगों पर उछलता रहता है-विशेष बात यह ही की मुस्लिम महिला ब्लोगरों से "प्रेम" नहीं जताता. उस {नामर्द}की सारी मर्दानगी हिन्दू महिला ब्लोगरों के लिए है. (लगता है मुस्लमान लड़कियां उसकी औकात जानती हैं ) चालाकी यह की कुछ महिलाओं को माँ बना रखा है. सब पर लाइन मारता है अपनी माँ की आयु की ब्लोगरों को भी नहीं छोड़ता. उनको i love u कहता है
अब यह प्यार कैसा होगा- बताने की जरूरत नहीं. क्या वह अपनी माँ के साथ भी अवैध संबंध बना सकता है ?
आज रविन्द्र प्रभात जी के ब्लॉग विश्लेषण में पढ़ा की अमरेन्द्र त्रिपाठी ने पूरे वर्ष में केवल १४ पोस्ट लिखा, यानी महीने में औसत १ पोस्ट और टिपण्णी में बातें ऐसे करता है जैसे कोई बहुत बड़ा तोप हो, यह हिंदी ब्लॉगजगत के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है जो ऐसे -वैसों को सर पर चढ़ाए हुए है, इसके हाँ में हाँ मिलाता रहता है सतीश सक्सेना. दूसरों को बेनामी कहते शर्म नहीं आती है इन्हें, संस्कार की बात करते हैं और खुद असंस्कारिक टिप्पणियाँ करते रहते हैं !
ये पूरी तरह से लेखक की मर्जी पर होता है। जिसे लगाना है लगाए, जिसे टिप्पणी की जरुरत नहीं वो बंद कर दे। डिलिट करने की सुविधा भी है ही....वैसे भी अपने ब्लॉग पर क्या प्रकाशित करना है ये अपना व्यक्तिगत अधिकार है....अनावश्यक टिप्पणियां या एक ही टिप्पणी के दो बार से ज्यादा प्रकाशित होने पर एक का डिलिट कर देना भी उचित ही है.....
कभी-कभी लोगों को समझने में भी गलतफहमी हो जाती है तो कभी लिखनेवाले की मंशा पर संदेह होने लगता है या उसकी भाषा से कुछ गलत संदेश निकलने का अंदेशा रहता है। हम रूबरू नहीं होते तो कहनेवाले के हावभाव भी नहीं भांप सकते। माडरेशन तो लेखक की अपनी सुविधा और इच्छा की बात है॥
आदरणीय दिव्या जी
माडरेशन के बारे में आपके विचारो से सहमत हूँ ..आपका शुक्रिया इस सार्थक पोस्ट के लिए
मॉडरेशन लगाने में केवल एक नुकसान यह होता है कि भद्दी एवं अर्थहीन टिप्पणियों से केवल बलॉगर ही टिप्पणीकार की मानसिकता से अवगत होता है और चूंकि टिप्पणी बाकी किसी को पढ़ने को मिलती नही,तो उस टिप्पणीकार की मानसिकता से अन्य लोग भिज्ञ नही हो पाते और गंदी मानसिकता का व्यक्ति पनपता रहता है।
Divya Ji, Thanks to Google that they have provided this facility..or else a few people could have maligned all the bloggers.
मोड़रेसन से सम्बंधित आपके विचारों से पूर्णत सहमत हूँ...!!!
Moderation should be done in moderation.
Critical comments should not be censored.
Only uncivilized and abusive comments should be censored.
आप हर विषय पर लिखती हैं।
मैं चाहता हूँ कि एक बार, बस सिर्फ़ एक बार, आप बाद्लों पर या ज़ुल्फ़ों पर एक लेख लिख डालिए।
इसे मेरी विनम्र फ़र्माईश समझिए
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
बिल्कुल सही कहा आपने जान बुझ कर शायद ही कोई मॉडरेशन पसंद करता है..पर आज कल ऐसी-ऐसी टिप्पणियाँ आ जाती है जिसे नियंत्रित करने के लिए ऐसा करना पड़ता है...और निश्चित रूप से इस बात को सभी लोग समझते है|
मैं नया ब्लॉगर हूँ. आपके लेख ने मेरा काफी मार्गदर्शन किया है. आपका शुक्रिया. आप लिखती रहें, आप बहुत अच्छा लिखती हैं और आपकी शैली भी परभावशाली है.उम्मीद रखिये आपके पाठक भी बहुत अच्छे हैं .दुशाशन तो हर क्षेत्र मैं पाए जाते हैं.
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Rahul Singh said...
माडरेशन लगाने के कारण असुविधा जैसी कोई बात नहीं है, आपके विचार स्वागतेय हैं, लेकिन क्या आप ऐसा नहीं मानतीं कि इतने नामों का उल्लेख कर आप नया मोर्चा खोल रही हैं.
January 15, 2011 8:21 AM
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@- राहुल सिंह जी -
इस विषय पर पारदर्शिता से लिखने के लिए नामों का उल्लेख होना बहुत जरूरी था। नहीं तो विषय अपने आप में अपूर्ण ही रहता और गोलमाल जैसा लगता। सच को लिखने में मेरी कलम बाधित नहीं है। और जो पाठक मेरे साथ मेरे प्रथम ब्लॉग से हैं, वो इन सभी प्रकरणों एवं उल्लिखित नामों के प्रत्यक्षदर्शी हैं।
रही बात मोर्चा खोलने की तो सम्पूर्ण जीवन एक संघर्ष ही है। जो गलत है और प्रत्यक्ष है , उन तथ्यों को छुपाकर हम बहुत से लोगों के साथ अन्याय करते हैं। और यदि आपको लगता है ऊपर उल्लिलिखित विद्वान् लेखक एवं लेखिकाएं मेरे कुछ बुरा करेंगी तो आपकी जानकारी के लिए बता दूँ, की इन लोगों के ब्लॉग पर मेरे खिलाफ कई लेख पहले से लगे हैं, । बदनाम करने से ज्यादा ये लोग क्या कर सकते हैं भला ।
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सतीश सक्सेना said...
डॉ दिव्या ,
इन्हें सबसे अधिक बुरे से, सबसे कम बुरे के क्रम में अगर लगा कर दिखाएँ तो रोचक रहेगा ! (यह व्यंग्य नहीं है)
अमरेन्द्र त्रिपाठी
अरविन्द मिश्र
ज्ञान दत्त
श्रीशपाठक,
गिरिजेश राव ,
अनूप शुक्ला ,
संजीत त्रिपाठी
महफूज़ अली ,
दीपक मशाल ,
अंशुमाला
पूजा
प्रवीण शाह
डॉ अमर कुमार
January 15, 2011 10:35 AM
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@--सतीश सक्सेना जी ,
१- कृपया विषय पर टिपण्णी लिखा करें तो महती कृपा होगी।
२-आपकी टिपण्णी बहुत बचकानी लगी । जो क्रम आप बनाने को कह रहे हैं , वो हर व्यक्ति अपने व्यक्तिगत अनुभव के अनुसार भिन्न-भिन्न ही बनाएगा। और ऊपर उल्लिखित नाम तो आपके बड़े-छोटे भाई और लंगोटिया मित्रों के हैं। फिर मेरा बनाया क्रम तो आपको उचित लगेगा ही नहीं ।
इस तरह की निरर्थक टिपण्णी मोडरेट कर देती हूँ, यहाँ केवल पाठकों की जानकारी लिए आपकी टिपण्णी प्रकाशित की है।
.
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@ सोमेश सक्सेना -
आपकी टिपण्णी निम्न कारणों से प्रकाशित नहीं की गयी -
१- आपने विषय पर एक शब्द भी नहीं लिखा । विषय है मोडरेशन ।
२-आपने व्यक्तिगत टिपण्णी लिखी है जो बहुत अनुचित है।
३- आपकी टिपण्णी में इतनी कडवाहट थी की मेरे बर्दाश्त करने की क्षमता के बाहर थी।
" इतना मीठा भी न बनो की कोई निगल ले , और इतना कड़वा भी न बनो की कोई थूक दे "
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और हाँ आपने मेरी हिम्मत की दाद दी है , जिसके लिए आपका आभार।
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@--आप हर विषय पर लिखती हैं।
मैं चाहता हूँ कि एक बार, बस सिर्फ़ एक बार, आप बाद्लों पर या ज़ुल्फ़ों पर एक लेख लिख डालिए।
इसे मेरी विनम्र फ़र्माईश समझिए....
----
विश्वनाथ जी -
आपने जुल्फों पर कविता लिखने का निवेदन किया है । आपकी फरमाइश पूरी नहीं कर सकती। ऐसे विषयों पर कलम के धनी बड़े-बड़े लेखक या कवि ही न्याय कर सकते हैं।
मैं एक मामूली सी लेखिका हूँ जो समाज में हो रहे अन्याय और अपराध से विचलित होती है और उसी पर अपने विचारों को रखती हूँ।
मुझे तो भाषा का भी अच्छा ज्ञान नहीं है । जैसे-तैसे बस सागर में बूँद की तरह प्रयास करती हूँ की सामाजिक विषयों पर अपने विचारों को रख सकूँ। दो-चार लोग जो मुझे पढ़ते हैं , उनसे चार अन्य लोगों तक बात पहुँचती है। बस इतनी ही सार्थकता है मेरे लेखों की ।
आभार ।
.
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राजेश उत्साही said...
लीजिए अंशु जी ब्लाग जगत में भी कुछ नई गालियां इजाद हो गई हैं। अगर आपको किसी महिला ब्लागर को गाली देनी हो तो कह सकती हैं........कहीं की। (कृपया खाली स्थान में अपनी पसंद की मेरा मतलब है नापसंद की ब्लागर का नाम भरलें।) और किसी पुरुष को गाली देनी हो तो भी यही फार्मूला अपनाया जा सकता है।
*
आप फिर से चर्चा में हैं कहीं।
Sat Jan 15, 05:41:00 PM
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उपरोक्त टिपण्णी उत्त्साह में भरे राजेश उत्साही जी की है जो लोगों को शिष्टता से गाली देने के तरीके समझा रहे हैं।
और अंतिम पंक्ति में अंशुमाला जी को सूचित कर रहे हैं की मेरे लेख में उनकी चर्चा है। गुटबाजी और ईर्ष्या का इससे बेहतर नमूना कहाँ मिलेगा ?
पाठकों से निवेदन है राजेश उत्साही जी को सूचित कर दें की दुखी न हों, उनकी भी चर्चा है यहाँ पर । वैसे इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी , वे स्वयं ही दिन भर में २० चक्कर लगाते हैं मेरे लेखों पर और अपना BBC-news कर फर्ज शिद्दत से निभाते हैं
और यहाँ गोल-मोल नहीं , नाम लिखकर स्पष्ट चर्चा की जाती है।
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ब्लोगर मित्रों और पाठकों ने यहाँ अपने बहुमूल्य विचार रखे , जिससे मुझे बहुत कुछ नया सीखने को मिला । यहाँ पर आये बेहतरीन सुझावों से अपने लेखन को बेहतर करने में मदद मिलेगी।
एक बार पुनः आप सभी का आभार।
.
इस विषय पर आपका निर्णय सराहनीय है और अवांछित के लिए इससे बेहतर कोई और दूसरा रास्ता नहीं. साफ़-साफ़ लिखने के लिए भी एक स्पष्ट सोच और निर्भीकता की आवश्यकता होती है जिसका आपने खूबसूरत इजहार किया है.
मोडरेशन तो रहना ही चाहिए, कुछ भी तो नहीं छापा जा सकता
प्रिय,
भारतीय ब्लॉग अग्रीगेटरों की दुर्दशा को देखते हुए, हमने एक ब्लॉग अग्रीगेटर बनाया है| आप अपना ब्लॉग सम्मिलित कर के इसके विकास में योगदान दें - धन्यवाद|
अपना ब्लॉग, हिन्दी ब्लॉग अग्रीगेटर
अपना खाता बनाएँ
अपना ब्लॉग सम्मिलित करने के लिए यहाँ क्लिक करें
आपकी आज (16-01-2011) की नई पोस्ट का लिंक नहीं मिल पा रहा है.
.
भूषण जी ,
किलर झपाटा नामक ब्लोगर ने एक पोस्ट लगाई थी -
" zeal को पसंद है दाढ़ी "
उस साहित्यिक लेख पर अनूप शुक्ल जी की टिपण्णी है -
"
अनूप शुक्ल ने कहा…
दाढ़ी कहाँ की? फेस वाली या फिर नीचे वाली. ?
१५ जनवरी २०११ ९:५७ अपराह्न
----------
इसे पढ़कर बहुत दुःख हुआ और वो लेख लिखा था , लेकिन मेरे शुभचिंतकों ने मुझे आगाह किया की ये सब किन असामाजिक तत्वों की हरकत है। और मैंने उस पोस्ट को हटा दिया है ।
उस पोस्ट में सिर्फ उपरोक्त टिपण्णी ही प्रकाशित थी।
क्यूँ अपनी ऊर्जा व्यय की जाए इन नकारात्मक लेखों और टिप्पणियों पर , यही सोचकर खुद को दूर कर लिया इन दुःख देने वाले लोगों से ।
.
आपके विचारों से पुरी तरह सहमत। कितने लोग तो आते ही इसिलिए है ब्लाग पर।
दिव्याजी
अगर अभद्र टिप्पणी आती है तो माडरेशन लगाना ही उचित ही है चाहे मजबूरी ही क्यों न हो |
बाकि रश्मिजी जी से पूरी तरह सहमत |
लिखो लखो और लिखो |शुभकामनाये |
दिव्याजी आपके रहस्यमय सपनों
पर मैंने सत्यकीखोज @ आत्मग्यान पर
लेख प्रकाशित किया है । समय मिलने पर
देख लें । धन्यवाद ।
अपनी ऊर्जा का सही प्रयोग करना ही विवेक कहलाता है. आप अपने रचनात्मक कार्य में सक्रिय रहें. दुखी होने या मन पर चोट खाने की आवश्यकता नहीं.
ब्लॉग आपका है, आपके मोडरेशन लगाने को लेकर किसी को भी दिक्कत नहीं होनी चाहिये. ब्लॉग जगत में बहुत कम ब्लॉग सामाजिक विषयों पर बात करते हैं. आपका ब्लॉग उनमें से एक है. जो टिप्पणी उचित नहीं उसको पोस्ट के साथ नहीं होना चाहिये.
मनोज
दिव्या ,
आपकी बात बिलकुल सही है कि ब्लॉग पर आप टिप्पणियों के लिए मोडरेशन लगना चाहें या नहीं यह ब्लोग्स्वामी की इच्छा पर निर्भर है ..जैसी परिस्थिति होती है वो इस सुविधा का प्रयोग करता है ....
सही कहती हैं आप। ब्लाग पर कुछ बहुत लोग गुटबाजी और स्तरहीन (घटिया) टिप्पणियों में ही मगन हैं तो कुछ को स्वयं के मूर्धन्य विद्वान होने का ही गुमान है। वे दंभ के साथ आपको सलाह दे जाते हैं या फिर बिना अधिक जाने समझे आपका मूल्यांकन करते फिरते हैं। अपेक्षित प्रत्युत्तर न मिलने पर आपसे रूठ भी जाते हैं और इधर उधर अनर्गल प्रचार करते हैं। इनमें काफी लोग तो अपनी टिप्पणियों से स्वयं ही मुँह छिपाते हैं और छद्म नामों से टिप्पणियाँ किया करते हैं। क्या गजब का साहस है ? खैर, जिसकी जैसी सोच और संस्कार हैं वैसा ही करेगा। हम उन पर ध्यान देकर अपनी ऊर्जा और शक्ति न ही गँवाएं तो बेहतर होगा। हालाकि वे यही चाहते हैं। माडरेशन ब्लागर का विशेषाधिकार है। वह जिसे चाहे, जो चाहे उसे अपने ब्लाग पर स्थान दे। तथापि ऐसी वैसी टिप्पणियाँ टिप्पणीकार के चरित्र और उसके बौद्धिक स्तर को समझने वालों के समक्ष उजागर भी करती हैं।
आभार,
Good post. It is your blog and you have the right to decide what is published on it. All the best!
दिव्या जी देखिये इस गैर जरुरी विषय पर आपने कितनी ऊर्जा ख़राब कर दी. ...इतने में आज के कितने ही ज्वलंत मुद्दों पर आपके आलेख आ जाते... आपको नापसंद करने वाले इस से अधिक खुश होंगे... ...आप गंभीर लेखन करती हैं, करती रहें... पाठको को अपनी राय ज़ाहिर करने दे... खुल के करने दे...बिना मोडरेसन के... और आप्त्त्तजनक टिप्पणी को डिलीट कर दे .. यह एक पारदर्शी तरीका होगा... और जो आपतिजनक टिप्पणी करते हैं उनकी छवि ख़राब होगी.. मोडरेसन लगा रहने के करन कौन ख़राब है कौर अच्छा यह केवल आपको पता होगा.. आम पाठक जो गुटबाजी से कोसो दूर है उसे भी इनका चेहरा दिखेने दे ... मुझे लगता है कि मोडरेसन के द्वारा आप खुद को अधिक तंग करने का मौका देंगी... और मैं पिछले एक वर्ष से हिंदी ब्लॉग्गिंग में हूँ.. लेकिन मुझे नहीं पता कि गुटबाजी क्या है... सादर...
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आदरणीय अरुण जी ,
मोडरेशन न होने पर लोग बेनामी बनकर अभद्र लिखते हैं। अपने नाम से नहीं लिखते। इसलिए सच का पता नहीं चल पाता।
लेकिन शीघ्र ही मेरे लेख अपने पुराने अंदाज़ में वापस आयेंगे।
आभार।
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मै भी आपके विचार से सहमत हु
बात तो आपने बिलकुल सही कही है..
मोडरेशन खासकर महिला ब्लॉगर के लिए ज़रूरी हो जाता है क्योंकि समाज में आज भी वैसे लोगों की तादाद ज्यादा है जो महिलाओं का खुलकर बोलने का समर्थन नहीं करते हैं और अभद्र टिप्पणियाँ डालकर खुश होते हैं..
मेरे ब्लॉग पर भी मोडरेशन है क्योंकि कुछ लोग अपनी बुरी आदतों से बाज़ नहीं आते हैं..
सभी को यही हिदायत देना चाहिए..
आभार
Sahmat hun aapki bat se ... moderation lagaana apni apni narji hai ...
जनाब जाकिर अली साहब की पोस्ट "ज्योतिषियों के नीचे से खिसकी जमीन : ढ़ाई हजा़र साल से बेवकूफ बन रही जनता?" पर निम्न टिप्पणी की थी जिसे उन्होने हटा दिया है. हालांकि टिप्पणी रखने ना रखने का अधिकार ब्लाग स्वामी का है. परंतु मेरी टिप्पणी में सिर्फ़ उनके द्वारा फ़ैलाई जा रही भ्रामक और एक तरफ़ा मनघडंत बातों का सीधा जवाब दिया गया था. जिसे वो बर्दाश्त नही कर पाये क्योंकि उनके पास कोई जवाब नही है. अत: मजबूर होकर मुझे उक्त पोस्ट पर की गई टिप्पणी को आप समस्त सुधि और न्यायिक ब्लागर्स के ब्लाग पर अंकित करने को मजबूर किया है. जिससे आप सभी इस बात से वाकिफ़ हों कि जनाब जाकिर साहब जानबूझकर ज्योतिष शाश्त्र को बदनाम करने पर तुले हैं. आपसे विनम्र निवेदन है कि आप लोग इन्हें बताये कि अनर्गल प्रलाप ना करें और अगर उनका पक्ष सही है तो उस पर बहस करें ना कि इस तरह टिप्पणी हटाये.
@ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ ने कहा "और जहां तक ज्योतिष पढ़ने की बात है, मैं उनकी बातें पढ़ लेता हूँ,"
जनाब, आप निहायत ही बचकानी बात करते हैं. हम आपको विद्वान समझता रहा हूं पर आप कुतर्क का सहारा ले रहे हैं. आप जैसे लोगों ने ही ज्योतिष को बदनाम करके सस्ती लोकप्रियता बटोरने का काम किया है. आप समझते हैं कि सिर्फ़ किसी की लिखी बात पढकर ही आप विद्वान ज्योतिष को समझ जाते हैं?
जनाब, ज्योतिष इतनी सस्ती या गई गुजरी विधा नही है कि आप जैसे लोगों को एक बार पढकर ही समझ आजाये. यह वेद की आत्मा है. मेहरवानी करके सस्ती लोकप्रियता के लिये ऐसी पोस्टे लगा कर जगह जगह लिंक छोडते मत फ़िरा किजिये.
आप जिस दिन ज्योतिष का क ख ग भी समझ जायेंगे ना, तब प्रणाम करते फ़िरेंगे ज्योतिष को.
आप अपने आपको विज्ञानी होने का भरम मत पालिये, विज्ञान भी इतना सस्ता नही है कि आप जैसे दस पांच सिरफ़िरे इकठ्ठे होकर साईंस बिलाग के नाम से बिलाग बनाकर अपने आपको वैज्ञानिक कहलवाने लग जायें?
वैज्ञानिक बनने मे सारा जीवन शोध करने मे निकल जाता है. आप लोग कहीं से अखबारों का लिखा छापकर अपने आपको वैज्ञानिक कहलवाने का भरम पाले हुये हो. जरा कोई बात लिखने से पहले तौल लिया किजिये और अपने अब तक के किये पर शर्म पालिये.
हम समझता हूं कि आप भविष्य में इस बात का ध्यान रखेंगे.
सदभावना पूर्वक
-राधे राधे सटक बिहारी
जनाब जाकिर अली साहब की पोस्ट "ज्योतिषियों के नीचे से खिसकी जमीन : ढ़ाई हजा़र साल से बेवकूफ बन रही जनता?" पर निम्न टिप्पणी की थी जिसे उन्होने हटा दिया है. हालांकि टिप्पणी रखने ना रखने का अधिकार ब्लाग स्वामी का है. परंतु मेरी टिप्पणी में सिर्फ़ उनके द्वारा फ़ैलाई जा रही भ्रामक और एक तरफ़ा मनघडंत बातों का सीधा जवाब दिया गया था. जिसे वो बर्दाश्त नही कर पाये क्योंकि उनके पास कोई जवाब नही है. अत: मजबूर होकर मुझे उक्त पोस्ट पर की गई टिप्पणी को आप समस्त सुधि और न्यायिक ब्लागर्स के ब्लाग पर अंकित करने को मजबूर किया है. जिससे आप सभी इस बात से वाकिफ़ हों कि जनाब जाकिर साहब जानबूझकर ज्योतिष शाश्त्र को बदनाम करने पर तुले हैं. आपसे विनम्र निवेदन है कि आप लोग इन्हें बताये कि अनर्गल प्रलाप ना करें और अगर उनका पक्ष सही है तो उस पर बहस करें ना कि इस तरह टिप्पणी हटाये.
@ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ ने कहा "और जहां तक ज्योतिष पढ़ने की बात है, मैं उनकी बातें पढ़ लेता हूँ,"
जनाब, आप निहायत ही बचकानी बात करते हैं. हम आपको विद्वान समझता रहा हूं पर आप कुतर्क का सहारा ले रहे हैं. आप जैसे लोगों ने ही ज्योतिष को बदनाम करके सस्ती लोकप्रियता बटोरने का काम किया है. आप समझते हैं कि सिर्फ़ किसी की लिखी बात पढकर ही आप विद्वान ज्योतिष को समझ जाते हैं?
जनाब, ज्योतिष इतनी सस्ती या गई गुजरी विधा नही है कि आप जैसे लोगों को एक बार पढकर ही समझ आजाये. यह वेद की आत्मा है. मेहरवानी करके सस्ती लोकप्रियता के लिये ऐसी पोस्टे लगा कर जगह जगह लिंक छोडते मत फ़िरा किजिये.
आप जिस दिन ज्योतिष का क ख ग भी समझ जायेंगे ना, तब प्रणाम करते फ़िरेंगे ज्योतिष को.
आप अपने आपको विज्ञानी होने का भरम मत पालिये, विज्ञान भी इतना सस्ता नही है कि आप जैसे दस पांच सिरफ़िरे इकठ्ठे होकर साईंस बिलाग के नाम से बिलाग बनाकर अपने आपको वैज्ञानिक कहलवाने लग जायें?
वैज्ञानिक बनने मे सारा जीवन शोध करने मे निकल जाता है. आप लोग कहीं से अखबारों का लिखा छापकर अपने आपको वैज्ञानिक कहलवाने का भरम पाले हुये हो. जरा कोई बात लिखने से पहले तौल लिया किजिये और अपने अब तक के किये पर शर्म पालिये.
हम समझता हूं कि आप भविष्य में इस बात का ध्यान रखेंगे.
सदभावना पूर्वक
-राधे राधे सटक बिहारी
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