बादल में यूँ छुप-छुप के , जुल्फों की परी आई ।
भीगे हुए लबों पर , है मुस्कान थरथराई।
तुम दूर क्यूँ बैठे हो , तुम कुछ तो पिया बोलो
तुम लब को कहो बोलें , और राज दिल के खोलें।
बादल में यूँ ........
काली लटों से अपनी , तुम कह दो दूर रहना ,
मैं छू लूँ तेरे नैना, मुश्किल है अब ये सहना।
काली घनेरी नागिन , ये जुल्फें हैं सौदाई ,
कहो दूर रहे तुमसे , यूँ बीच में न आये ।
मैं चाहूँ तुम्हें इतना , उड़-उड़ के ये सताएं।
बादल में यूँ.........
चलो जाओ बलम झूठे , यूँ मुझको न भरमाओ ,
है लब पे तेरे मुरली , अब और ना तरसाओ ।
दोषी नहीं हैं जुल्फें , तुम खुद ही दूर रहते
बातें, बनाते हो तुम , और देते हो तन्हाई।
ना बोलूंगी अब तुमसे , है मैंने कसम खाई।
बादल में यूँ ......
जा जा रे हसीं जुल्फों , तुम इतना ना इतराओ
लेकर घनेरे गेसू , तुम इतना ना लहराओ
तुम बाँधो इन जुल्फों को , सौतन को अब हटाओ।
तुम पास मेरे आओ , तुम मुझ में समा जाओ ।
बादल में यूँ छुप-छुप के , जुल्फों की परी आयी.....
दिव्या।
68 comments:
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आप हर विषय पर लिखती हैं।मैं चाहता हूँ कि एक बार, बस सिर्फ़ एक बार, आप बाद्लों पर या ज़ुल्फ़ों पर एक लेख लिख डालिए।
इसे मेरी विनम्र फ़र्माईश समझिए
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
January 15, 2011 11:03 PM
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मेरे एक सम्मानित पाठक , आदरणीय विश्वनाथ जी की फरमाइश पर कविता लिखने का एक छोटा सा प्रयास।
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बहुत ही सरस और सुन्दर काव्यमय अभिव्यक्ति के लिये बधाई।
yh bhi khub rahi !
nisandeh !ek safaltm pryas .
shubhkaamnayen......
काली लटों से अपनी , तुम कह दो दूर रहना ,
मैं छू लूँ तेरे नैना, मुश्किल है अब ये सहना।
बहुत बढ़िया कविता है जुल्फों पर ..आपका शुक्रिया
yh bhi khub rahi !
nisandeh !ek safaltm pryas .
shubhkaamnayen......
वाह
कविता भी आप बढ़िया करती हैं... बहुत रोमांटिक अंदाज़...
इधर उत्तर भारत में मौसम तेजी से बदल रहा है, मकर संक्राति की धूप के बाद ठंड़ी हवाओं ने फिर आफत कर दी है।
आपके ब्लोग का मौसम मकर संक्राति की धूप सा सकून दे गया!
आदरणीय दिव्या जी
नमस्कार !
अच्छी लगी आपकी शिल्पकारी....
बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
काफी सुन्दर शब्दों का प्रयोग किया है आपने अपनी कविताओ में सुन्दर अति सुन्दर
बादल और जुल्फ, प्रबल काव्य संभावना वाले शब्द हैं, विश्वनाथ जी की फरमाइश पर आपकी कविता यह साबित कर रही है.
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आप शायर तो नहीं
मगर, ऐ दिव्याजी,
जब से मन लगाया
मेरी फ़रमाइश पूरी करने की
आपको शायरी आ गई!
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Bravo Iron Lady!
मेरी फ़रमाईश पूरी करने के लिए शुक्रिया!
यूँ कभी कभी, दुनिया वालों से दूर, जलने वालों से दूर होकर, उनकी अभद्र टिप्पणियों को भूलकर प्रकृति पर, इंसान पर, भावनाओं पर कुछ लिखिए।
मन को शांति मिलेगी
आपकी कविता अच्छी लगी
इसे save कर लिया हूँ और बार बार पढेंगे
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
आपकी लेखनी का नया रूप देखा है आज. बधाई स्वीकारें.
बहुत ही सुन्दर कविता लिखी है……………बेहद खूबसूरत भाव संजोये हैं। चलो अच्छा हुआ इस बहाने हमे आपकी कविता तो पढने को मिली।
सुंदर कविता है.शशक्त लेखन है आपके पास.शुभ कामनाएं
विहारी सतसई का सशक्त प्रभाव जन पड़ता है
tum bahut hi behtar likhti ho
बहुत ही सरस ,सरल एवं भावपूर्ण गीत ...
बहुत सुन्दर..........
सौतन जुल्फें, पहली बार आपको कविता लिखते देखा, अच्छी लगी आपकी ये रचना.....
जुल्फे सौतन होने लगी....
सुन्दर बिम्ब एवं शब्द्सज्जा
बधाई
आपके इस विधा के बारे में जानकर मै बहुत खुश हु
आपने बहुत ही सुन्दर रचना की है
आप कविता में भी पारंगत है
धन्यबाद
http://anubhutiras.blogspot.com/
वाह ...बहुत ही खूबसूरती से हर पंक्ति को सुन्दर शब्द दिये हैं बधाई हो इस कविता के लिये ...।
अरे वाह , नया अंदाज़.
पढ़ते पढ़ते एक शेर बन गया दिव्या जी:-
पड़ गईं जुल्फों के पेंचो-ख़म में तुमको क्या कहें.
डॉक्टर दिव्या कहें या शाइरा दिव्या कहें.
सुन्दर कविता
uttam rachna...
अच्छा किया कुछ अलग लिखा ।
अच्छा प्रयास है ।
जारी रखिये ।
हूँ..... हूँ. वाह! यह लिख कर आपको आराम आया होगा और हम पाठकों को भी. मन-मंथन से हट कर मनमोहन को याद करना बहुत अच्छा होता है. इस कविता में वो बात है.
दिव्या जी आपके लेख ही नहीं बल्कि आपकी कविताओं में भी एक गहराई सी होती हे जब भी मैं आपकी कविताओं को पढता हु ना जाने क्यूँ मेरी उदासी एक मुस्कान में बदल जाता है . आप की हर कविताओं में एक कल्पना है एक त्रप है जो हमेशा मेरे दिल को छु के गुजर जाता है . आप अपनी भावनाओं को प्राकृतिक विह्रापन की भाव मैं प्रकट करती हैं .आप जब अपनी ख़ामोशी को अपने इन लफ्जों से बयां करती है तो ना जाने आपके एक-एक शब्दों मैं ग़मों की बारिस होती हैं . मुझे आपसे अनुरोध है आप अपनी कल्पनाओं और भावनाओं को यूँ ही प्रकट करती रहें और अपनी इन्ही कविताओं से हमारे होटों पे मुस्कान लाती रहे
एक नये तेवर में..अच्छा लगा...
बहुत सुन्दर..........
sunder prem geet
दिव्या जी..एक बेहद..बेहद ....बेहद ही उम्दा रचना के लिए आप को
ढेरों हार्दिक बधाई। बार-2 पढ़ने लायक़ कविता है ये.....
"चलो जाओ बालम झूठे , यूँ मुझको न भरमाओ ,
है लब पे तेरे मुरली , अब और ना तरसाओ ।
दोषी नहीं हैं जुल्फें , तुम खुद ही दूर रहते
बातें, बनाते हो तुम , और देते हो तन्हाई।"
वाह ,,,क्या बात है
भारी विषयों से इतर ऐसा प्रेम गीत पढना अत्यंत सुखद है
रचनात्मकता आपके भीतर खूब है
आभार
बहुत ही सुंदर कविता.... चलिए इसी बहाने एक अच्छी सी कविता पढने को मिल गयी. .
जालिम जुल्फों ने हमे निकम्मा कर दिया, वर्ना हम भी कविता लिखते, राम राम
Good
आज आपका बिलकुल बदला रूप सामने आया है। आप काव्य लेखन में भी पारंगत हैं।
आभार,
Aapka prayas vandaniya hai.
Kavita sundar bhaon ko samete hue prabhawi ban kar mukharit hui hai.
Saadhuwad.
-Gyanchand Marmagya.
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फरमाइशी कविता बहुत ही सुन्दर थी।
आपकी जुल्फों की गीत ने गजब ढाई है
मेरे भी उनकी जुल्फों की याद दिलाई है
कितनी सुन्दर... जुल्फों की परी आई है
खेद है की व्यस्तता के कारण आपकी रचनाएं समय पर नहीं पढ़ सका...
वाह जी वाह! काफी गंभीरता से भाव भरे हैं कविता में.
साधुवाद.
ये भी अंदाज ? शानदार अभिव्यक्ति ,बधाई
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना आज मंगलवार 18 -01 -2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/2011/01/402.html
यह ज़ुल्फ़ और बादल भी बहुत खूब लिखा है
दिव्य्7अ तुमने तो कविता मे भी कमाल कर दिया। ज़ुल्फों पर इतनी सुन्द्क़र कविता रच दी कि कुसुमेश जी ने पढते ही एक शेर रच दिया। बधाई।
बहुत ही सुन्दर प्रयास है, इसी तरह लिखती रहें हमारी सुभकामनाएँ आपके साथ है!
मेरे शेर पर आपकी नज़र गई.धन्यवाद निर्मला जी.
दिव्या जी इज़ाज़त नहीं देंगी वरना मैं तो उन पर पूरी ग़ज़ल लिख कर अपनी एक पोस्ट बना देता.
वैसे भी दिव्या जी बहुत चर्चित और प्रसिद्द ब्लोगर हो चुकी हैं और उन पर आजकल लोग पोस्ट लिख ही रहे हैं.
मुझे उनसे इस मामले में इज़ाज़त मांगने में बहुत डर लगता है.
बहुत संदर! अब तो हमें आपको कवयित्री दिव्या कहने में कोई संशय नहीं है। और उस पर यदि कुंवर जी का आशीर्वाद मिल गया एक शे’र के रूप में तो समझिए सोने में सुगंध वाली बात है।
चलो जाओ बलम झूठे , यूँ मुझको न भरमाओ ,
है लब पे तेरे मुरली , अब और ना तरसाओ ...
बहुत खूब ... इस फन में भी आपको महारत है ... लाजवाब रचना ..
आपने सिद्ध कर दिया कि एक अच्छा लेखक प्रत्येक विधा mode में रचना कर सकता है। आपके द्वारा रचित यह गीत, चिंतन उर्जा का सकारात्मक लेखन में रूपांतरण का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। आपकी लेखनी का यह रूप स्वागतेय है।
वन्दे मातरम,
आपके द्वारा लिखित लेख हमेशा सार्थक और प्रभावी होता है और आज आपकी कविता भी उतनी ही बेहतरीन है, वाकई आज हमेशा की तरह इस ब्लॉग में आकर मजा आ गया |
मुझ अकिंचन की ओर से बधाई एवं शुभकामनायें स्वीकार करें..
गौरव शर्मा "भारतीय"
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कुसुमेश जी ,
आपका लिखा शेर पढ़ा , मुस्कराहट आ गयी।
आपकी उत्कृष्ट गजलों का तो पूरा ब्लॉगजगत गवाह है। और निर्मला जी तो बेहतरीन गज़लकार हैं, उनकी नज़र से आपकी शायरी भला कैसे छुप सकती थी।
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मेरे इस छोटे से प्रयास को सराहने एवं प्रोत्साहन देने के लिए यहाँ आये सभी सम्मानित ब्लोगर मित्रों एवं पाठकों का आभार।
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Sunder.
bahut achcha likhi hain.aage bhi likhte rahiyega.
Beautiful poem, hope we'll get more of your poetry :-)
"सौतन जुल्फों" से आपका नया आयाम देखने को मुझे मिला.
इस कविता पर खुसरो की पंक्तिया लिखना चाहूंगा.
"गोरी सोवे सेज पर मुख पे दारे केस, चल खुसरो घर आपनो रैन भई चाहूं देस"
इसमें कोई गलती हो तो जरूर ठीक करिए....
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Rajesh ji ,
You beautifully quoted the lovely lines .
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प्रेममयी कोमल भावों और शब्दों से सजी प्रस्तुति
आपने हर पंक्ती को खूबसूरती से तराशाने की कोशिश की है.आभार!
सुन्दर और प्रभावशाली कविता. विश्वनाथ जी ने इतने सुन्दर भावो को आपसे निक्लाव्कर हम पाठको पर कृपा की है . उत्तम कविता .
बेहद ख़ूबसूरत रचना है.... वाह वाह मजा आ गया पढ़कर
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