Tuesday, March 15, 2011
पुरुष फ्लर्ट होते हैं -- बुरा न मानो होली है .
अब इसमें नाराज़ होने जैसी क्या बात है। एक अहम् विषय है , सोचा इस पर भी विमर्श हो ही जाए। और फिर होली से बेहतर कौन सा मौसम होगा इस विषय-विशेष की चर्चा के लिए ? भूल-चूक सब लेनी-देनी , बुरा न मानो होली है।
कल राधिका आई रोती-रोती , कहने लगी - " ये पुरुष भी न , सब फ्लर्ट होते हैं। प्यार का अर्थ समझते नहीं , बस भोली-भाली लड़कियों को मीठी-मीठी बातों से झांसा देते रहते हैं "। कहकर पुनः रोने लगी ।
अब मेरे जैसी पाषाण-हृदया सहेली है उसकी । मुझे उसी पर गुस्सा आ रहा था । मैंने कहा- "जरूर तुमने जरूरत से ज्यादा , ढील दे रखी होगी , तभी तो उसने ऊँगली पकड़कर पहुंचा पकड़ लिया , क्या जरूरत थी तुम्हें उसके झांसे में आने की ?"........ मेरा इतना कहना की वो मुझ पर ही बिगड़ पड़ी , कहने लगी - " दिव्या , तुम बहुत कठोर हो , समझने की कोशिश तक नहीं कर रही हो , ऐसे प्रवचन दे रही हो जैसे किसी ने कभी तुम्हारे साथ फ्लर्ट ही न किया हो "
अब मैं क्या कहती , मुझसे तो आजतक कोई 'मनचला' टकराया ही नहीं , या फिर मेरी शकल का कसूर होगा की मुझे देखते ही उनकी 'आशिक मिजाजी' कपूर हो जाती होगी। फिर २२ वर्ष की बाली उमर में एक समर्पित पत्नी बनने के बाद 'फ्लर्ट' करने के सारे मार्ग अवरुद्ध हो गए ।
खैर जो भी हो , एक दो हादसे बयान कर रही हूँ , फिर आप ही तय करियेगा की स्त्रियाँ फ्लर्ट होती हैं अथवा पुरुष?
एक बार BHU के मेडिकल और इन्जिनीरिंग के छात्र-छात्राएं , बनारस से ६४ किलोमीटर दूर 'मिर्जापुर' में 'विन्द्हम फॉल्स' पिकनिक के लिए गए। तकरीबन ६० लोगों के इस समूह में चर्चा शुरू हो गयी । विषय था 'प्रेम में सच्चाई का प्रतिशत' । सभी लड़के ये आक्षेप लगा रहे थे की "लड़कियां प्रेम करना ही नहीं जानती , कब दिल तोड़कर चल देती हैं , पता ही नहीं चलता".... और लड़कियों का ये कहना था की "पुरुष तो दिल को खिलौना समझते हैं , जज्बातों से खेलते हैं "
थोडा अंतर्मुखी और नीरस प्रकृति की होने के कारण मैं संवाद में शामिल नहीं थी , लेकिन मित्रों ने जबरदस्ती खींच लिया और पूछा , दिव्या तुम्हारी क्या राय है इस विषय पर ? .....घनघोर युद्ध छिड़ा हुआ था Girls versus Boys ।सोचा क्या जवाब दूं । मैंने कहा - कोई वैज्ञानिक प्रमाण तो है नहीं , इसलिए अपनी मित्र मंडली के पुरुष वर्ग से एक प्रश्न पूछूंगी और उनके उत्तर के आधार पर ही अपनी राय बनाउंगी । मैंने जब उनसे पूछा की -" देखो तुम लोग मेरे मित्र हो , बताओ तुम लोग मुझसे ज्यादा प्यार करते हो या मैं ? तीनों ने एक सुर में जवाब दिया - " दिव्या तुम ज्यादा करती हो " .....मेरी सहेलियों ने शोर मचाया - " देखा दिव्या, ये दुष्टात्मा सिर्फ झांसे देते हैं , प्यार तो हम लडकियां ही करती हैं । अब ये सिद्ध भी हो गया"
फिर शादी हुयी तो मुझे मस्ती सूझी , एक दिन पति से पूछा - " बताइए आप मुझे ज्यादा प्यार करते हैं , या फिर मैं आपको ?"....तुरंत बोले - " तुम मुझे प्यार ही कहाँ करती हो , मैं अकेले ही करता हूँ । One way है one way love !!.........इनकी सुनिए !...इतनी शिद्दत से घर-परिवार का ध्यान रखती हूँ और पति महोदय हैं की शिकायत कर रहे हैं । पत्नियों के प्यार की कोई कद्र ही नहीं ... वाह री किस्मत !
वैसे मेरे विचार से राधिका सही ही कह रही है ...पुरुष के प्रेम में सच्चाई का प्रतिशत कुछ कम ही होता है ...थोड़ी सी बनावट ...थोड़ी सी मिलावट ....बोले तो --फ्लर्ट होते हैं !!!
' अरेय्य्य्यय्यय्य्य ......बुरा न मानो होली है ...
होली आई रे कन्हाई , रंग बरसे , सुना दे ज़रा बांसुरी ....
वैसे इस विषय पर ब्लॉगर मित्रों की क्या राय और अनुभव हैं ? .....कृपया सच ही बोलियेगा , सच के सिवा कुछ मत बोलियेगा ।
आभार ।
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83 comments:
a little more 'flirt' to hote hi hain......bhaichare me bata raha hoon......but
bhabhi ko kabhi mat kah dena nahi to grih-yudh
chhir jawega......
pranam.
सुबह से लगा हुआ हूँ “प्रेम मापक यंत्र“ को ढूंढने मे (गूगल पर) जब मिल जायेगा तो माप कर बता दूंगा कि कौन ज्यादा प्रेम करता है।
हा हा हा... होली का मौसम और सच????? ऐसे मौसम में सच का सामना थोडा मुश्किल है... :-)
चल झूठी ;)
बुरा ना मानो होली है
आज रात को इसी विषय पर पोस्ट लिखूंगा...उसमें आपको जवाब मिल जाएगा कि पुरुष इस मामले में कितने कोमल हृदयी और महिलाएं कितनी कठोर होती हैं...
जय हिंद...
प्यार को अब भारतीय नज़रिए से नहीं, पाश्चात्य नज़रिए से परिभाषित किया जा रहा है.इसलिए इस विषय पर विचार भी भिन्न होना स्वाभाविक है.
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हा हा हा योगेन्द्र जी ... आपके दिए गए लिंक " चल झूठी" पर पहुंची तो सचमुच आनंद आ गया ....किरण खेर जी कि बात में दम है।
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प्रेम किया नहीं जाता, प्रेममय हुआ जा सकता है।
प्रेममय व्यक्तित्व से प्रेम सहज ही बरसता है वह पात्र निरपेक्ष होता है। बगीचे के उस गुलाब की तरह जिस से सुगन्ध बरस रही होती है, वह यह नहीं देखती कि आसपास कौन है। कोई भी हो उसे क्या?
जिस प्रेम की बात यहां चल रही है उसमें Biology, physiology, psychology से लेकर sociology और aueconomy तक बहुत से फेक्टर होते हैं, इसी कारण यह एक कठिन मामला हो जाता है, उसे तो कोई मनोवैज्ञानिक ही सुलझाये।
@zeal : आपके ब्लॉग को "अपना ब्लॉग" में सम्मिलित तो कर लिया गया है पर आपका ई-मेल एड्रेस सही नहीं है, please info@apnablog.co.in पर अपना सही ई-मेल एड्रेस भेज दें जिससे इस समस्या का समाधान किया जा सके
मै य्तो तुम से सहमत हूँ। मगर सच है या झूठ आज राज़ ही रहने दो। शुभकामनायें।
प्यार होता क्या है ???????/ हमें तो जिम्मेदारियां ही ज्यादा लगती हैं :):)
अब इस नए फोटो में तो दिव्या के चहरे से गुस्सा इतना टपक रहा है की पूछो मत ....कोई बेचारा क्या बोल पायेगा ....शामत आयी है क्या ? पहले वाला ही फोटो ठीक था भाई ......! कुछ तो मासूमियत थी उसमें ........नयी दिव्या को तो देख कर कोई भी यह भूल जाएगा कि होली है या दिवाली ......बेचारे पुरुष !!! ..वैसे पूछ रही हैं तो डरते-डरते बता दूं कि मैं सहगल जी की बात से सहमत हूँ.
विश्वास तो आँख मूंद की किया जाता है... बाकी तो परदे के पीछे क्या हो रहा है .. ये देखा जाए तो शायद प्यार की श्रेणी मे ना आये ...
ज्यादातर लड़कियां प्रेम को गंभीरता से लेती हैं .. जबकि लड़के ऐसे नहीं होते ज्यादातर .
aadmi bahut komal hota hai .....
sab kuch bardast kar sakata hai -----lakin----
aurat ke do aasu bardast nahi kar pata hai----
aur puri ki puri aurat jaat -----iska faida samay samya par upyog karti hai------
jai baba banaras....
ओ हो .... मैं तो समझा था लड़कियाँ ज़्यादा फ्लर्ट करती हैं आज कल
नया दौर जो है ....
बुरा न मानो होली है ...
आजकल तो दोनो ही फ़्लर्ट होते हैं …………जिसका दांव चल जाये वो ही मात दे जाता है……………हा हा हा……………होली का सुरूर तो दोनो पर ही बराबर चढता है ……………आ देखें ज़रा किसमे कितना है दम्……………इसी तर्ज पर रंग बरसते हैं।
प्रेम की अभिवेक्ति सबकी अलग -अलग
हो सकती है नेचर के हिसाब से,
और फिर घर की जिम्मेवारिया
प्रेम का ही तो हिस्सा है !
होली के संदर्भ में अच्छी
चटपटी लगी आपकी पोस्ट !
परिस्थितियां निर्णय करती है इस बात का की कौन क्या बनता है??
होली की शुभकामनायें आप सब को
अब छोड़िए ना ! बेचारे को कुछ दिन तो फ्लर्ट करने दो,
बहरहाल ........
एक व्यक्ति अपने मित्रों और सहकर्मियों पर अक्सर दबदबा बनाये रखने की कोशिस करता , उसकी इन हरकतों को देख एक दिन एक मित्र ने पूछ लिया -
यार तुम ऑफिस में तो शेर बनकर सबको डराते रहते हो ,क्या घर में भी तुम शेर बनकर रहते हो ?
व्यक्ति बोला - यार ! तुम्हारी बात बिलकुल सही है , रहता तो मैं घर में भी शेर ही हूँ किन्तु क्या करूँ वहां पर दुर्गा सवार हो जाती है,
बेचारी राधिका को कौन समझाएगा की " प्यार से भी जरुरी कई काम हैं ,प्यार सब कुछ नहीं जिन्दगी के लिए.....
आपको एक सलाह की - राधिका की चिकनी-चुपड़ी बातों में मत आइयेगा और इसके घडियाली आंसुओं को देख खुद को दुखी मत कीजियेगा ,इसका तो काम ही यही है , आपकी संगत मे रह कर निगोड़ी कुछ तो सीखने की कोशिस करती ......
आपको सह परिवार होली के रंग मुबारक और ढेरों बधाइयाँ ........शुभ होली .
सुन्दर होलियानी कलम बयानी , फ्लर्ट की महिमा और कहानी
नर और मादा दोउ करत है , राधिका शरणम् अहम् गच्छामि .
होली की ढेर सारे शुभकामनाये .
सुन्दर होलियानी कलम बयानी , फ्लर्ट की महिमा और कहानी
नर और मादा दोउ करत है , राधिका शरणम् अहम् गच्छामि .
होली की ढेर सारी शुभकामनाये .
इतना सुन्दर चेहरा ...... खैर , बात खिंचाई की है , सो मस्त है ... होली की मस्ती है
आज की तारीख में दोनों बराबर !
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आशीष जी ,
आपकी कलम पर कुछ ख़ास लोगों का प्रभाव दिख रहा है । नर-मादा कि जगह , स्त्री-पुरुष लिखें तो अशोभनीय नहीं लगेगा । -- आभार।
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होली के रंगों में रंगने से पहले यह रंग-बिरंगी प्रस्तुति ..
बहुत ही सुन्दर ...शुभकामनाएं ।
bahut satik baat rakhi hai aapane Divyaji!....holi ki dhero shubh-kaamnaaen!
accepting, hote hain...lekin ladkiyaa b kam nhi hoti.......aur ye ishq ki chemistry.......shubhan allah....
दिव्या जी , हमें बिलकुल भी बुरा नहीं लगा , सच सुनने की आदत जो पड़ गयी है !
न हाथ में गुलाल है न पास में गाल है अच्छा मान कर भी क्या कर लेंगे!
....बुरा न मानो होली है।
नाम बनारस का लिया और फिर बुरा ना मनो होली भी तो भाई पुरुष खेलने वाली और सहेजने वाली स्त्री का अंतर जानता है...भाई होली है. वैसे तस्वीर तो बहुत सुंदर है क्या बचपन की है....होली है....
सच्चा प्यार तो प्यार है , नारी हो या नर !
ना संभले तो छलक जाय,पानी का गागर !
होली की अग्रिम बधाई !
हा हा ! होली पर कौन सच बोलता है ?
मौनं श्रेयस्करम्।
कभी कभी यूँ भी हमने अपने जी को बहलाया है
जिन बातों को ख़ुद नहीं समझे औरों को समझाया है
बुरा न मानो होली है।
इसलिए तो और बुरा न मानो कि ये मेरी पंक्तिया नहीं है, निदा फ़ाज़ली की है। भला--बुरा जो भी मानना हो, उन्हें ही ...।
yes,i admit ,men are flirts.flirting if done in a sportive manner, is always a good memoir and it promotes confidence level of both the sexes. it should never ever result in exploitation of some one .there is a very thin line between flirt and befooling. so flirt flirt and flirt but handle with care...
प्यार तो पुरूष और महिला दोनों करते हैं और Flurt भी दोनों की करते हैं।
हां बदनाम ज्यादातर पुरूष ही होते हैं।
ये तो निशचय पूर्वक नहीं कहा जा सकता की कौन अधिक फ्लर्ट है.
किन्तु व्यवहार में देखा जाये तो हम पुरुष ही अधिक फ्लर्ट नजर
आते हैं. जब की वास्तव में ऐसा है नहीं! जब व्यक्ति ग्रुप में
होता है तभी उसे फ्लर्टनेस का विचार सूझता है.
ये आपसी व्यवहार तथा सामाजिक परिवेश पे निर्भर है.
खैर! ये होली पूर्व ही क्या रंग में भंग की तान छेड़ दी आपने!!
न कुछ खिलाना, न पिलाना, दिमाग को फिर नए सवालों में उलझा देना.
होली तो प्रेम सद्भावना मैत्री तथा मौज मस्ती का त्यौहार है.
किसी कवि ने क्या खूब कहा है --होली में बाबा देवर लागे होली में!
बुरा न मानो होली है ...
वाह क्या विषय चुना है होली में ..
बस इतना ही कहूँगा..
बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी....
... और
बात निकली तो हरेक बात पे रोना आया..
लेकिन ये हा..हा का त्यौहार है सो होली की सभी को शुभकामनायें आपके माध्यम से ...
दिव्या जी ,
'देवर खेलें रंग भंग के रंग चढ़े
भौजी भरें उड़ान देखो होली में |
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चेहरा हुआ है लाल पड़े हैं खटिया पर
बाबा हू सठियान देखो होली में |
*******************************
जिसने पाया दाँव उसी ने रंग दिया
क्या रम्मो, क्या राम देखो होली में |
********************************
होली की बहुत-बहुत रंगभरी हार्दिक शुभकामनायें ग्रहण करें |
दिव्या जी जैसे आपके साथ किसी ने फ्लर्ट नई किया. मैंने भी किसी से साथ फ्लर्ट नहीं किया.... किसी लड़की ने भी मुझे फ्लर्ट के लायक नहीं समझा.. सो अपना अनुभव तो शून्य है... बाकी होली की शुभकामना...
सच-सच तो ताल ठोंक कर आपने होली के बहाने कह ही दिया, अब और कोई क्या कहे.
दिव्या जी,
आपकी अन्वेषी प्रवृत्ति अच्छी लगती है। समय-समय पर अच्छा प्रश्न उठाती रहती हैं। अपनी राय क्या दूँ,मेरे पास ऐसा कोई डाटा नहीं है। पाठकों के साथ इतना काफी है- बुरा न मानो होली है। आभार।
well, Flirting is to make the other person feel good about them self.... so it does not matter which gender is doing as long as it feels good to other gender.....
No doubt FLIRTING is something associated with men.... but time has changed a lot and now even LAdies are not much behind in Flirting....
"HAPPY HOLI LADIES N GENTLE MEN"
आजकल तो दोनो ही फ़्लर्ट होते हैं
बुरा न मानो होली है।
थोडा अंतर्मुखी और नीरस प्रकृति की होने के कारण मैं संवाद में शामिल नहीं थी ...KUCH HAAL HAMARA HEE BAYAN KAR GAYE AAP :))
CAME FR D FIRST TIME INTERESTING BLOG N POSTS .
VO KAHTE HAIN NA ....MEN R FROM MARS WOMEN R FROM VENUS....SO HAMARE PREEM KA TO ZAWAAB HEE NAHEE ....:))
HOLI KEE BAHUT SHUBHKAMNAYEN !
अजीव बात है । जब आपकी सीरीयस पोस्ट होती थी । तब मैं स्वभाव अनुसार मजाकिया कमेंट करता था । पर आज जैसे दुखती रग पर हाथ रखा हो..दोनों ही पक्ष मतलबी..दोनों ही स्वार्थी..और दोनों ही अभिन्न प्रेमी हो सकते हैं । प्रेम दोनों तरफ़ से बराबरी की चाह रखता है ।
बहुत ही सुंदर सूफियाना और होलियाना पोस्ट के लिए आपको बधाई |मुझे बड़ी खुशी हुई कि आप भी काशी हिंदू विश्व विद्यालय की स्टूडेंट रही हैं |
वैसे पुष्प आपने सही चुना । कांटे और पुष्प दोनों ।
दिव्या जी , अच्छा किया जो सुबह वाला फोटो हटा दिया ।
वर्ना फस्ट क्लास फस्ट पुरुष भी फ्लर्ट हो जाते । :)
पुरुष के प्रेम में सच्चाई का प्रतिशत कुछ कम ही होता है ...थोड़ी सी बनावट ...थोड़ी सी मिलावट ...अज़ी यह तो गलतफहमी है । सारा का सारा पुरुष ही -----! ! !
बुरा न मानो होली है ।
अभी अभी शोभा डे के ब्लाग से होकर आ रहा हूं जिसमें विव रिचर्ड की तारीफ है जब कि मैं नीना गुप्ता को उनकी निर्भीकता के लिए पूरे नम्बर देता हूं॥
होली के पवन पर्व की आपको अग्रिम शुभकामनाएं.
Bilkul sahi...jara ise bhi padhiye..
http://rajubindas.blogspot.com/2011/03/blog-post.html
राधिका सही कह रही है।
लड़कियां कैल्कुलेटिव होती हैं और लड़के इमोशनल.
दिल फ़ेंक.... मैने कभी भी दिल नही फ़ेंका, अजी एक ही दिल हे अगर उसे फ़ेंक दिया या किसी को दे दिया तो जिन्दा केसे रहूंगा, हां किडनी, गुर्दे आंख कान देने को तेयार हे, वेसे यह प्यार पता नही किसे कहते हे लोग, मै तो सभी से प्यार करता हुं, मेरा हेरी भी हम सब से बहुत प्यार करता था,मुझे प्यार का मतलब ही नही पता तो क्या जबाब दुं,
बहुत अच्छी प्रस्तुति !! धन्यवाद
...
***
Nice post.
बुरा न मानो होली है.
राय और दिल तो हम भी रखते हैं परन्तु कह नहीं सकते , हमें डर है किसी बूढ़ी लुगाई का .
दिल विल प्यार वार मै क्या जानू रे ?
जानू तो जानू बीएस तुझे अपना मानू रे
अईया ......
होली है ....
ये तो बहुत गंभीर मसला है ,हास्य का नहीं.अब देखिये ना आप कितना प्यार करती हैं पतिदेव को ,लेकिन वो कहते हैं बहुत कम,क्योंकि ये दिल का मामला है और दिल मांगे 'मोर मोर'.अब आप परेशान है और कह रही हैं "वाह री किस्मत"
It varies from person to person...
अब हमेशा ही साधू बन बैठे रहना भी तो नही ही हो सकता न :)
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राकेश जी ,
किसी ने भी ध्यान नहीं दिया , दो प्रकरणों का जिक्र किया गया था । एक में पुरुष मित्रों का वक्तव्य था और दुसरे में जीवनसाथी का। आशिकी और प्रेम में यही अंतर है । पुरुष मित्रों का जवाब था तुम ज्यादा प्यार करती हो , अर्थात उन्हें पता था ज्यादातर लडकियां प्रेम को गंभीरता से लेती हैं , कल को गले पड़ गयीं तो मज़ा किरकिरा हो जाएगा । लेकिन प्रेम तो पति ही करता है जिसे हर पल यही लगता है कि मुझे प्यार कम मिल रहा है , मुझे और मिले । मुझे लगता है प्रेम और समर्पण कि यही परिभाषा है ।
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आपकी 'प्रेम और समर्पण' की परिभाषा उत्क्रष्ट है.शायद यही समर्पण और प्रेम का मधुर सम्बन्ध पति-पत्नी के मध्य दिनों का,महीनो का या वर्षों का न होकर युग युग का सम्बन्ध माना गया है.इसमें बेचारी 'flirting' क्या करेगी.मधुर मधुर चिकोटियां तो दाम्पत्य जीवन को रसमय बनाती रहती हैं.
आदरणीय डॉ.दिव्याजी,
नमस्कार
में जो बोलूगा सच ही बोलूगा, सच के सिवा कुछ नहीं बोलूगा!
राधिका जी ने बहुत सही कहा है ऐसा आज होता है लेकिन हर पुरुष एक जैसा नहीं होता है और आपका लेख मौजूदा दौर की सच्चाई को उजागर करता है!
आपने बहुत अच्छी पोस्ट दी है!
Happy Holi to all friends
हॉ, पुरूष फ्लर्ट होते हैं जिसका एक प्रमुख कारण यह है कि महिलाओं की तुलना में पुरूष बहिर्मुखी होते हैं। आर्थिक आजादी प्राप्त अधिकांश महिलाओं को मैंने उन्मुक्त होकर फ्लर्ट करते हुए पाया है और पूछने पर कहती हैं टाइम पास हो रहा है। पार्टी, पिकनिक अथवा किसी सामाजिक समारोह में मैंने महिलाओं को फ्लर्ट करने में पीछे नहीं पाया है। पुरूष और नारी के फ्लर्ट में सिर्फ इतना ही अंतर होता है कि पुरूष चाहे कितना भी कौशल हासिल करले किन्तु महिलाओं की तरह नज़ाकत और सफाई बातों में नहीं ला पाता है। फ्लर्ट करने के लिए जिस संयम और धैर्य की आवश्यकता होती है उसकी पुरूषों में प्राय: कमी पाई जाती है। बस, इतनी सी ही बात पर पुरूष फ्लर्ट हो जाता है जबकि महिलाएं प्यार और समर्पण की वह अथाह समंदर बनी होती हैं जिसका पता लगा पाना बहुत मुश्किल होता है। बेचारा, अधीर, अति उत्साही पुरूष ही कटघरे में खड़ा होता है। अंत में यह तो एक संवाद का रंगमय चित्रांकन है इसलिए मेरा बात कहीं अनगढ़ लगी हो तो बुरा मत मानिएगा यह फागुन की हवाओं का असर हो सकता है। होलीईईईईईईई हैएएएएए।
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धीरेन्द्र जी ,
बुरा मानने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता । आपकी सार्थक टिपण्णी से ज्ञानवर्धन ही हुआ है , पुरुषों के गुणों से पुरुष नहीं अवगत करायेंगे तो हम स्त्रियों को पुरुष कि महिमा का पता कैसे चल सकेगा ? आपने स्त्रियों कि नजाकत और वाक्-चातुर्य को सराहा , इसके लिए समस्त स्त्री समुदाय कि तरफ आपका आभार ।
मुझे संवाद हमेशा से पसंद है। हाजिरी देने वाली टिप्पणियों में कोई दम नहीं होता । विमर्श इसीलिए आमंत्रित होते हैं कुछ नए पहलुओं पर प्रकाश पड़े ।
आपने अपने विचारों से अवगत कराया , एक बार फिर इस सार्थक टिपण्णी के लिए आभार।
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अगर आप वाकई प्रेम की बात कर रही हैं , तो क्या स्त्री पुरुष का फर्क उसमें भी रह जाएगा ?
हम जैसे शर्मिलों के शब्दकोष से यह " फ़्लर्ट " शब्द गायब है..अनुभव प्राप्त करने की कभी हिम्मत नहीं हुई .............. इसलिए मौनब्रत.
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@-नीरज बसलियाल ,
इस लेख पर चर्चा प्रेम कि नहीं बल्कि 'flirt' कि है ।
प्रेम में स्त्री और पुरुष का भेद नहीं होता । प्रेम पर एक बार एक पोस्ट लिखी थी , कुछ इस प्रकार से -
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एक अनाम रिश्ता -- प्यार का --
' आई लव यू '
ये वाक्य बहुत बार, बहुत लोगों को दोहराते सुना था , लेकिन कभी यकीन नहीं हुआ उनके शब्दों पर। क्या प्यार जैसा कुछ होता भी है ? क्या लोग प्यार के मायने समझते भी हैं ? क्या प्यार करने के पहले सोचते भी हैं , की निभा पायेंगे या नहीं ? क्या प्यार तपस्या नहीं ? क्या प्यार बलिदान नहीं ? क्या एक आदर्श प्रेम संभव है ?
क्या , आई लव यू कहने के पहले , कोई इनसे जुड़े दायित्वों के बारे में सोचता है?
प्यार की बहुत सी परिभाषाएं सुनीं और पढ़ी हैं । जाने क्यूँ कोई भी परिभाषा मन को उपयुक्त नहीं लगी। बहुत सोचा, मनन किया, की प्यार आखिर है क्या ? बस इतना ही समझी --
-प्यार एक एहसास है।
-इस रिश्ते का कोई नाम नहीं होता। अनाम है ये रिश्ता।
-इस रिश्ते को नाम देने के साथ ही ये एहसास समाप्त हो जाता है , और एक नया रिश्ता जीने की कवायद शुरू हो जाती है।
- प्यार में अंतर्मन अपने प्रिय के स्मरण मात्र से कभी मुस्कुरा उठता है तो कभी आँखों में आंसू छलक उठते हैं।
- प्यार में पीड़ा [वेदना ] तीव्रतम होती है , इस वेदना का सुख भी स्वर्गिक होता है।
- प्रेम तो सात्विक होता है, जो अपने प्रिय से कोई अपेक्षा नहीं रखता।
- ये प्रेम न तो वात्सल्य है, न करुण, न ही श्रृंगार। ये तो वीर रस से युक्त है जो अपने प्रिय की खातिर सब कुछ आहुत , करने को तत्पर होता है।
-सात्विक प्रेम निश्छल और निर्भय होता है।
- मुझे लगता है कि प्रेम कभी न ख़त्म होने वाला सिलसिला है।
- प्रेम सदैव एक तरफ़ा ही होता है , जो चुप-चाप खामोश होकर अपने प्रिय को फलता-फूलता देखता है, और उसी कि मुस्कुराहटों में खुद को सफल हुआ मानता है।
कुछ पंक्तियाँ अपने प्रिय के नाम --
प्रेम कलि जो खिली थी उर में, उसकी उमर कुछ मॉस की थी।
प्रेम कि अग्नि पावन है, वो वजह नहीं उपहास की थी ॥
इस जगत में सब कुछ नश्वर है, ख़त्म तो एक दिन होना है ।
मीठी यादों का झरना जिसमें , वो मेरे उर का कोना है॥
तुम रचे वहां , तुम बसे वहां , तू सदा रहोगे पूज्य वहां।
मथुरा में रहो, गोकुल में रहो, उर में मेरे है धाम तेरा॥
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यदि इच्छा हो तो निम्न लेख पर पाठकों के विचार जान सकते हैं --
http://zealzen.blogspot.com/2010/09/blog-post_4367.html
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before i start off anything zeal ,,allow me to tell u something ''i love u zeal ji ..,lol..
well talking abt flirting ..according to me its innoccuous and quite a pleasant experience to both the parties provided we know where to draw a line ..and also depending on the reaction of the other party ...
going by the doctrine of affinity towards the opposite sex ,,its quite but a natural force of attraction ,,in some cases fatal ,,lol ...blame it on the chemistry.....no hard feeling ,,aapka holi mera diwali nahin ...
well zeal my first post was just to express my true love to u ,,hehehe
here comes my candid answer ,,,its men obviously ...men who are undauntless in war like the young lochinvar ,,,,chivalrous to the core fellas ..and who have the audacity to call a spade a spade ,,,women just shy away ,,heeheh..cheers ..bura mat maano holi is just round the corner ....god bless
दिव्या जी,
यह तो आपने एक युद्दा वाली पोस्ट छेड़ दी :)
पुरुष फ्लर्ट होते हैं मन पर इसके पीछे कारण यह है कि लड़कियों को भी अपनी तारीफ़ सुनना या फ्लर्ट करने पर शर्माने में आनंद आता है..
मतलब ये कि यह आदान-प्रदान वाली स्थिति है..
पुरुष फ्लर्ट लड़कियों की ख़ुशी के लिए ही होते हैं..
मुझे लगता है कि अब गेंद फिर से आपके पाले में है..
जवाब भी आप ही का :)
आभार
यह भूल गया था :)
चलती दुनिया पर आपके विचार का इंतज़ार
Good article and lovely comments.
I want to use it. please provide ur email Id.
जहां जिसका दांव चले... वोही फ्लर्ट बने...
आज दुनिया बदल गयी है...बचे हैं कम भले...
aajkal sab nehle pe dehla hai bhaai........
मेरा नेट ख़राब था.
आज आया तो मालूम हुआ कि
होली में सच का विस्फोट हो चुका है .
पर सारे सच तो वैष्णवी प्रकार के हैं.
पाठक भी तो बड़े ही सतर्क हैं.
सच कह रहे हैं ब्रज किशोर जी , ९० % पाठक तो असलियत बताये बगैर दायें-बायें से निकल गए। वैसे आपने भी कोई स्पष्ट बयानी नहीं की । सब वैष्णवी ही रहने दिया। इस पार या उस पार ...जवाब देते जाइये...Smiles ...
ab to mujhe bhi lag raha hai ki sachmuch me hote hain...:):)
holi hai ...:):)
प्यारी दिव्या,
आज आपको पढ़ रही हूँ तो बस आपके लिए यही शब्द आया मेरे दिल में सब से पहले - ' प्यारी' .
और पढ़ूंगी....पढ़ते ही जाउंगी तो कोई बड़ी बात नहीं कि मेरी नज़्म भी 'विकास ' जैसे होने लगें. :-) इसे होली का मजाक न समझें. हाँ, एक ज़रूरी बात, कैसे लिख सकती हैं आप खुद के लिए ऐसा मरा हुआ शब्द 'नीरस' जब भीतर का सौन्दर्य इस कदर छलक रहा हो आपके लिखे हुए में और उस पर भी तुर्रा यह कि ब्लॉग का नाम zeal और paradise है. मेरे ख़याल से अभी लोग आपका sense of humor पकड़ नहीं पाए हैं ! :-)
Looking forward to learn something from u.
Regards
Baabusha
Hey , Thanks Babusha...So sweet of you !
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