Sunday, June 5, 2011

आज की कविता सिर्फ तुम्हें समर्पित है...

मौसमों की मार किस पर नहीं पड़ती है
सर्दी में सर्दी और गर्मी में लू किसे नहीं लगती है
लेखन की दुनिया में लोग बेशुमार देखे।
अपनी-अपनी आदतों से बेज़ार देखे।
कुछ की गर्मी उनकी बातों में छलकती है,
कुछ की नरमी उनके शब्दों में ढलती है।
कुछ के दंश विषैले होकर डस लेते हैं
कुछ ठन्डे नश्तर रक्त भी जमा देते हैं।
कुछ नफरत का अम्बार लगा जाते हैं
कुछ अपने प्यार की बौछार करा जाते हैं।
लेकिन तुम सबसे अलग क्यूँ हो ?
भीड़ जिस तरफ चलती है ,
तुम उससे जुदा मेरे ही साथ चलते हो
अपनी एक पंक्ति में मुझे
तूफानों से लड़ने का साहस दे जाते हो
गर मौसमों की मार में इतनी ताकत है , तो
दुआओं का असर भी कुछ कम नहीं होता।
तुमको शक्ति मिले इतनी की तुम साथ चल सको
इन बिदकती लहरों पर , पतवार बन सको
कोई तो है ऐसा जिसने थामा हुआ है मुझे ,
उसे मालूम है मुझे हवाओं के विपरीत चलने की आदत जो है।

39 comments:

देवेन्द्र पाण्डेय said...

वाह!
जो सच की राह पर चलते हैं अस्तित्व उनकी हमेशा मदद करता है।

रश्मि प्रभा... said...

jo chalte hain hawaaon ke viprit uske saath wah hai, to bahut hai

amit kumar srivastava said...

दुआओं का एहले करम कम ना समझिए,

बहुत दे दिया जिसने दिल से दुआ दी ।

सच में आपके साथ सभी दोस्तों की दुआ है ।

Unknown said...

बेहतरीन शब्दों से पिरोई हुयी एक सुन्दर कविता, सुन्दर अभिव्यक्तियों के साथ, दिव्या जी आपके संवेदनशील मन को इन्द्रधनुषी रंगों से संजोती आपकी इस विधा का भी जवाब नहीं , बधाई और शुभकामनाये

निवेदिता श्रीवास्तव said...

आज दिव्या को पढ़ना और भी अच्छा लगा .....शुभकामनायें !

SANDEEP PANWAR said...

सुंदर भाव लिये हुए,

DR. ANWER JAMAL said...

शायरी पढ़ी तो दो शेर याद आ गए

खुला तो रखा था हमने भी घर का दरवाज़ा
हमारे घर से तो कतरा के हर ख़ुशी गुज़री

शबे फ़िराक़ हरीफ़े विसाल बन न सकी
तेरे ख़याल से महकी हर एक घड़ी गुज़री


....
शबे फ़िराक़-जुदाई की रात, हरीफ़े विसाल-मिलन की दुश्मन

ѕнαιя ∂я. ѕαηנαу ∂αηι said...

बेहतरीन अभिव्यक्ति,
गर मौसमों की मार में इतनी ताक़त है,तो,
दुआओं का असर भी कुछ कम नहीं होता।

ashish said...

दुआओं का असर भी कुछ कम नहीं होता।

सही कहा आपने .दुआओं में हर बुराई से लड़ने की ताकत होती है , बढ़ते रहिये आगे आगे .

अरुण चन्द्र रॉय said...

सुन्दर कविता

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

यही, यही जज्बा है जो ज़ील में लड़ने का और जीतने का हौसला देता है...

डॉ टी एस दराल said...

ब्लोगर्स के विभिन्न रूपों का विस्तृत वर्णन ।
चलिए एक तो है जो साथ दे रहा है ।
शुभकामनायें ।

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

बारिश , ठंडी , घाम हो ,या सुख , दुःख , संत्रास
कदम-कदम पर कवच बना ,मेरा आत्म-विश्वास .

prerna argal said...

तूफानों से लड़ने का साहस दे जाते हो
गर मौसमों की मार में इतनी ताकत है , तो
दुआओं का असर भी कुछ कम नहीं होता।.saarthak rachanaa.badhaai.

नीलांश said...

गर मौसमों की मार में इतनी ताकत है , तो
दुआओं का असर भी कुछ कम नहीं होता।
तुमको शक्ति मिले इतनी की तुम साथ चल सको
इन बिदकती लहरों पर , पतवार बन सको
कोई तो है ऐसा जिसने थामा हुआ है मुझे ,
उसे मालूम है मुझे हवाओं के विपरीत चलने की आदत जो है

bahut sunder divya ji.....

bas yuhin anvarat likhte jaayiye ....


कागज़ है पूजा की थाली
और
तिलक स्याह से करते हैं ,
भोग भाव के बना बना
हम
मन के मंदिर में
अर्पण करते हैं ,
प्रसाद कविता की होगी
हर कवि है इश्वर इस
मंदिर में ,
कलम से शंख ध्वनि कर
आह्वान उन्ही का
करते हैं ,

Apanatva said...

:)

Irfanuddin said...

VERY TRUE......

भीड़ से जुदा चलना is always appreciated if its for some purpose......

Well penned.

JC said...

दिव्या जी, मानव जीवन के 'सत्य' यानि 'सत्व' की और आस्था की सुन्दर अभिव्यक्ति !

महेन्‍द्र वर्मा said...

गर मौसमों की मार में इतनी ताकत है, तो
दुआओं का असर भी कुछ कम नहीं होता।

कभी-कभी कविता की दो पंक्तियां 1000 शब्दों के लेख से कहीं ज्यादा प्रभावशाली हो जाती हैं।
ये पंक्तियां भी उसी तरह की हैं।

Bharat Bhushan said...

हम उसे सँभालते हैं वो हमें सँभालता हैं और हम विपरीत हवाओं के बीच चलते रहते हैं.
अपनी आंतरिक शक्ति को समर्पित यह रचना बहुत अच्छी लगी.

mridula pradhan said...

कोई तो है ऐसा जिसने थामा हुआ है मुझे ,
उसे मालूम है मुझे हवाओं के विपरीत चलने की आदत जो है।wah.jitni bhi taareef karoon kam hai......

Mridula Ujjwal said...

very impactful writing

Jyoti Mishra said...

lovely !!!
such people are real backbone of our lives.

Vaanbhatt said...

लहरों के विपरीत चलना...नियति निश्चित करती है...बस कोई साथ दे तो संबल बना रहता है...

अशोक सलूजा said...

आज फिर किसी ने दिल दुखाया है ,
आज फिर मुझे 'वो' याद आया है |

आशीर्वाद!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

कोई तो है ऐसा जिसने थामा हुआ है मुझे ,
उसे मालूम है मुझे हवाओं के विपरीत चलने की आदत जो है।


हवाओं के साथ बहे तो क्या बहे .बात तो जब है की हवाओं का रुख मोड़ दे ... अच्छी प्रस्तुति

प्रवीण पाण्डेय said...

हवा के विपरीत चलने में ही हवा का सर्वाधिक आनन्द मिलेगा आपको।

रविकर said...

(भोग-विलासी = ब्लॉगों की) कृपया न पढ़ें

भोग - विलासी दुनिया में जो जीव विचरते हैं
सुख-दुःख, ईर्ष्या-द्वेष, तमाशा जीते-मरते हैं |

सुअर-लोमड़ी-कौआ- पीपल, तुलसी-बरगद-बिल्व
अपने गुण-कर्मों पर अक्सर व्यर्थ अकड़ते हैं |


तूती* सुर-सरिता जो साधे, आधी आबादी
मैना के सुर में सुर देकर "हो-हो" करते हैं |


हक़ उनका है जग-सागर में, फेंके चाफन्दा*
जीव-निरीह फंसे जो आकर, आहें भरते हैं |


भावों का बाजार खुला, हम सौदा कर बैठे
इस जल्पक* अज्ञानी के तो बोल तरसते हैं ||


जल्पक = बकवादी
तूती =छोटी जाति का तोता
चाफन्दा = मछली पकड़ने का विशेष जाल
मैना----- सिखाने पर मनुष्य की बोली बोल सकती है

Khare A said...

sahi bat kahi hai aapne!

aarkay said...

" मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर
लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया "

इरादे नेक हों - जो कि हैं ही - साथ चलने वालों की क्या कमी है दिव्या जी.
बढ़िया विचार, उत्तम अभिव्यक्ति और बेहतरीन शब्दविन्यास !
बधाई !

Udan Tashtari said...

वाह जी, यह भी खूब रही.

udaya veer singh said...

Brilliant expression ,an interaction itself .
intangible asset of life . thanks

Markand Dave said...

आदरणीय सुश्रीदिव्याजी,

"मुझे हवाओं के विपरीत चलने की आदत जो है।"

हवाओं के विपरीत चलने की आदतवाले लोगों में इतनी शक्ति होती है कि, उनके मन मुताबिक, हवा को भी अपना रूख़ मोड़ना पड़ता है..!!

बहुत खूब, आपको बधाई है ।

मार्कण्ड दवे।
http://mktvfilms.blogspot.com

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

बहुत खूब

सदा said...

दिव्‍या जी,

आपकी यह रचना बहुत ही अच्‍छी है ... खेद है कल मैं इसे पढ़ नहीं सकी .. बहुत-बहुत शुभकामनाएं ।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

बहुत सुन्दर ...

आपका साहस ही है जो सदैव आपके साथ रहता है ...

रंजना said...

भावपूर्ण सुन्दर भावोद्गार...

बहुत सुन्दर रचना...

Kailash Sharma said...

कोई तो है ऐसा जिसने थामा हुआ है मुझे ,
उसे मालूम है मुझे हवाओं के विपरीत चलने की आदत जो है।

हवा के विपरीत चलने वाला ही अपने साहस से हवा का रुख मोडने की क्षमता रखता है..बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...

Vivek Jain said...

सुन्दर रचना
बधाई हो आपको - विवेक जैन vivj2000.blogspot.com