आई ए एस की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद चंचल ने सात वर्ष तक नौकरी की , फिर कुछ परिस्थितियां ऐसी बनीं की नौकरी करना संभव नहीं हो सका ! चंचल ने अपनी अन्य जिम्मेदारियों के साथ लेखन में ही मन की शान्ति ढूंढ ली थी . लेखन के माध्यम से वह समस्त चराचर जगत से जुड़ गयी थी ! नाते रिश्ते , प्यार , जीवन मूल्य , संवेदनाएं और भावनाएं क्या होती हैं ये उसने लेखन के जुड़ने के बाद ही जाना था! लोगों को करीब से जानने और समझने लगी थी ! लेखन ही मानों उसका संसार हो गया था ! खुश थी वो ! समस्त सृष्टि भी उसके साथ उसकी खुशियों में शामिल थी ! उसे अपने जीवन का लक्ष्य मिल चुका था !
लेकिन मित्र विराग को ये अच्छा नहीं लगता था. वो उसकी खुशियों में शामिल नहीं हो पाता था ! उसे चंचल का लेखन फूटी आँखों नहीं सुहाता था ! हमेशा उससे यही कहता रहता था की उसका लेखन व्यर्थ है , वह अपनी शिक्षा और योग्यता का दुरुपयोग कर रही है ! वह चंचल से नौकरी करने के लिए कहता था ! वो कहता था की यदि चंचल पैसे कमाएगी तो उसे सबसे ज्यादा ख़ुशी होगी !
चंचल जानती थी की जो उसकी ख़ुशी में आज नहीं शामिल है वो उसको मिलने वाली कल किसी दूसरी उपलब्धि पर भला कैसे खुश हो सकता है ! लेकिन समय बलवान होता है ! विराग के बार बार कहने पर उसने नौकरी कर ली ! सफलता की अनेक ऊँचाइयाँ चढ़ती चली गयी ! धन के मार्ग पर एक बार आने के बाद कोई वापस मुड कर नहीं देखता ! चंचल बहुत आगे निकल चुकी थी ! वो पहले भी खुश थी ! और आज भी ! लेकिन विराग अब अकेला था ! चंचल को ढूंढता था उसके लिखे हुए पन्नों में !
57 comments:
यही है जीवन की रीत्…………किसी भी पासे ये मन चैन नही पाता…………जो हो उससे संतुष्ट नही होता…………बहुत सुन्दर कहानी।
यही है जीवन की रीत्…………किसी भी पासे ये मन चैन नही पाता…………जो हो उससे संतुष्ट नही होता…………बहुत सुन्दर कहानी।
बहुत-बहुत अच्छा लिखा है आपने ...आभार ।
बहुत अच्छा लिखा आपने दिव्याजी .जिसमे प्रतिभा है कुछ करने की लगन है और मेहनत करना जानता है वो हमेशा आगे बढ़ता है और खुश रहता है/यही जीवन की रीत है /अच्छी और ज्ञान्वेर्धक कहानी /बधाई आपको/
आपने तो मन की बात कह दी, नि:शब्द |
bahut gahraai hai in baaton me mragtrashna me bhatak kar veh apna pyaar kho baitha.ek prerna dayak lekh.ek pyaar yeh bhi hai mere blog par aaiye.
चंचल और विराग की कहानी अच्छी लगी , जीवन में कुछ घटनाएँ ऐसी भी घटित होती हैं जिनका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है ,
हो सकता है चंचल को भी नहीं पता न हो की उसकी उड़ान उसे कहाँ तक लेकर जायेगी ? यह तो महज एक इत्तेफाक ही हुआ की विराग गलत साबित हुआ और अलग-थलग पड़ गया .....अन्यथा...............
आभार उपरोक्त कहानी हेतु.
@ जो उसकी ख़ुशी में आज नहीं शामिल है वो उसको मिलने वाली कल किसी दूसरी उपलब्धि पर भला कैसे खुश हो सकता है
यही जीवन की सच्चाई है
आभार
यदि कुछ करने की तमन्ना हो और प्रतिभा साथ हो तो इंसान क्या नहीं कर सकता है ... आभार
जो खुश है - वह दोनों स्थितियों में खुश है - और जो नहीं है - वह दोनों में नहीं | यह हमारे रवैये पर निर्भर करता है | मुझे लगता है कि नौकरी करने या ना करने से "शिक्षा और योग्यता का दुरुपयोग" या "सदुपयोग" नहीं होता - वह होता है अपने भीतर के रवैये से | स्त्री यदि अपने घर को अच्छी तरह सम्हाल रही है - तो यह बाहरी "नौकरी करना" कोई आवश्यक नहीं है | हाँ - एक बार करने लगे तो छोड़ देना मुश्किल होता है , खास कर मध्यम वर्गीय परिवारों में, क्योंकि फिर उस तरह के एक्स्पेंसेस भी बन जाते हैं - |
निरंतर आगे बढ़ते रहना ही जिंदगी है ..........प्रेरक कहानी
Bahut kuch kahti hai apki ye rachna.
Jai hind jai bharat
डॉ.दिव्या श्रीवास्तव जी, जो आज आपकी ख़ुशी में नहीं शामिल है,वो आपको मिलने वाली कल किसी दूसरी उपलब्धि पर भला कैसे खुश हो सकता है? यही जीवन की सच्चाई है. भौतिक वस्तुओं के मोह में आकर या दूसरों का महल देखकर अपनी झोपडी में आग लगाना अच्छी बात नहीं है.संतोष धन से बड़ा कोई धन नहीं है. बहुत सुंदर विचारणीय पोस्ट और अब तक आई टिप्पणियों से सहमत भी.
सभी पाठक देखें और विचार व्यक्त करें.
जरुर देखे."प्रिंट व इलेक्ट्रोनिक्स मीडिया को आईना दिखाती एक पोस्ट"
यथार्थ के धरातल पर लिखी गयी एक बेहतरीन कहानी...
अकारण ही या इर्ष्यावश कुंठा पाल लेने वालों की विराग सी ही नियति होती है !
बढ़िया आलेख !
दिव्या जी
बहुत अच्छा लिखा आपने.... अच्छी कहानी
आपका लेख अच्छा लगा.शिल्पा मेहता जी की टिपण्णी भी बहुत अच्छी लगी.'विराग ' जैसे लोग सदा असंतुष्ट ही रहते है.शायद, उसे सन्मार्ग मिल जाये 'चंचल' के लिखे पन्नों को पढकर.
अच्छी कहानी दिव्या जी ...
प्रतिभा जहाँ भी होगी अपना प्रकाश बिखेरेगी |
जब चंचल ने विराग की बात ही मान ली फिर तो उसे भी खुश होना चाहिए था किन्तु नहीं... वह तो शायद चंचल को अस्थिर और असफल ही देखना चाहता था ....अपने स्वभाव बस |
bahut achhi kahaanee....maanveey samvedanaa ko vehar dhang se pragat kiya hai....
beautiful story based on harsh reality of life .
ऐसे ही होता है...संतुष्टि सदा सुखी.अच्छी कहानी.
अनावश्यक तृष्णाओं और महत्वाकांशाओ को रेखांकित करती कथा।
क्या यह वही आपकी कहानी की पात्र चंचल है जिसे कभी मिहिर परेशान करता था और अब यह विराग?
अच्छी है कहानी.....
जीवन के अध्याय कहती यह लघुकथा।
दिव्या जी
बहुत अच्छा लिखा आपने....सुन्दर..
सत्यता से ओत-प्रोत .सुन्दर अभिव्यक्ति विचारों की .बधाई दिव्या जी.
हकीकत से जुड़ा अन्त है. ऐसा होते देखा है.
achhi lagi kahani .....
'चंचल' पहले भी स्वतंत्रमना थी और आज़ भी है... बस अंतर इतना आया है कि 'स्वतंत्रता की चहचहाट' पहले कुछ अधिक सुना करते थे ... अब उसके नौकरी करते हुए आते-जाते रोजमर्रा के अनुभव सुनाने में सुना करते हैं.
पक्षी दिनभर अपनी जीविका के लिये श्रम करता दिखता है... सुबह-शाम चहचहाता ही है..उसके बिना ये किये प्रकृति सुनसान नहीं लगने लगेगी.
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और
असल में 'विराग' अकेला न पहले था और न अब है.... अब 'चंचल' के लिखे हुए पन्नों में वह उसे पाता है, उसके साथ रहता है.
चिड़िया का चहकना ... व्यर्थ बेशक कहा जाये.. लेकिन उसकी भोर की चहचहाहट से मन प्रसन्नता होता है.. और शाम की चहचहाहट से दिनभर के अर्जित मन के तनाव लुप्त होते हैं.
चिड़िया का चहकना ... व्यर्थ बेशक कहा जाये.. लेकिन उसकी भोर की चहचहाहट से मन प्रसन्न होता है.. और शाम की चहचहाहट से दिनभर के अर्जित मन के तनाव लुप्त होते हैं.
एक श्रेष्ठ लघुकथा !
अकथनीय मनोभावों को आपकी लेखनी ने कितनी सहजता से रेखांकित कर दिया है।
समापन वाक्य में विराग की व्यथा साकार हो उठी है-
लेकिन विराग अब अकेला था ! चंचल को ढूंढता था उसके लिखे हुए पन्नों में !
दिल में एक टीस उत्पन्न करने वाली पंक्तियां!
इस कहानी पर मेरे सारे गीत न्यौछावर !
बहुत शिक्षाप्रद लघुकथा प्रकाशित की है आपने!
nice post spl...these line are very impressive लेकिन विराग अब अकेला था ! चंचल को ढूंढता था उसके लिखे हुए पन्नों में !
@ प्रतुल वशिष्ठ जी, 'चिड़िया के चहचहाने' से एक लहर उठी कि 'आधुनिक वैज्ञानिकों' ने भी अब जान लिया है, जैसे हमारे पूर्वजों ने अनादि काल से जान लिया होगा क्यूंकि वो अत्यंत प्रगतिशील खगोलशास्त्री भी थे, कि शनि ग्रह से प्रसारित होती ध्वनि मिश्रण है तीन ध्वनियों का - घंटियों, ढोल, और पक्षियों की चहचहाट का - 'हम हिन्दू' मंदिरों में अनादि काल से ढोल-नगाड़े आदि बजते देखते आये हैं, और घंटी भी सभी को बजाते... किन्तु उस का अर्थ नहीं जानते, जिस कारण आधुनिक वैज्ञानिक हमें मूर्ख और अंध विश्वासी कहते हैं :)
शनि ग्रह एक अत्यन्त सुन्दर रिंग (छल्लेदार) प्लैनेट है, सुदर्शन-चक्र-धारी विष्णु का प्रतिरूप? दूसरी ओर जुपिटर यानि बृहस्पति (देवताओं के गुरु, जिनकी देख-रेख में क्षीर-सागर मंथन संपन्न हुआ - विष से अमृत तक) भी छल्लेदार ग्रह है (कृष्ण का प्रतिरूप?) किन्तु तुलना में मैला :)
दूसरी ओर इन्ही वैज्ञानिकों ने सूर्य से प्रसारित होती ध्वनि को तार-वाद्य-यन्त्र हार्प समान, पाया है... इस से शायद हमें भी पता चले क्यूँ माता सरस्वती ('ब्रह्मा की अर्धांगिनी') को 'वीणा वादिनी' कहा गया और उन्हें सूर्य-किरण समान सफ़ेद साडी पहने क्यूँ दर्शाया गया चित्र आदि में जिसे 'हम' पूजते चले आये हैं ज्ञान की देवी मान :)
वैराग का अर्थ अपने सीमित जीवन काल में 'माया' से पार पाना और ज्ञान को परम ज्ञान बनाना है जो केवल चंचल मन को साधना अथवा तपस्या द्वारा वश में करने से ही संभव जाना गया सिद्ध पुरूषों, योगियों ने :)
Very good story. Some people are always happy and find their way. Some are always looking to change others but unhappy...
दिव्या जी हम जहा है जैसे है संतुस्ट नहीं है. कहते है न अगर आप संतुस्ट हो गए तो जीवन रुक गया और जीवन को रुकने नहीं देना है. यहाँ अर्थों का जोड़ है तोड़ है, मरोड़ है क्योकि सब कुछ अपनी सुविधा के लिए तोडना मरोड़ना जो है अब इन सब में संबंधों का इन्द्रधनुष भले टूट जाये बिखर जाये .. यही है जीवन जीते जाईये .
कहानी बहुत अच्छी लगी .आभार
चंचल यूं ही छला जाता है।
बेहतरीन लेखन ,इस कथा के अंदर एक उपन्यासकार की आत्मा विराजित लग रही है।
बहुत अच्छी लगी कहानी....
चंचल "सफलता की अनेक ऊँचाइयाँ चढ़ती चली गयी ! धन के मार्ग पर एक बार आने के बाद कोई वापस मुड कर नहीं देखता ! चंचल बहुत आगे निकल चुकी थी ! वो पहले भी खुश थी ! और आज भी ! लेकिन विराग अब अकेला था ! चंचल को ढूंढता था उसके लिखे हुए पन्नों में !"
जो व्यक्ति अपनी खुशियाँ दूसरों में ढ़ूँढ़ता है,उससे खुशियाँ दूर होती जाती है...चंचल जिसने आईएएस जैसी परीक्षा पास की और सात साल नौकरी करने के बाद घर की जिम्मेवारी संभालने के लिए नौकरी छोड़ कर,सारी जिम्मेवारियाँ निभाते हुए भी,लेखन के लिए समय निकाला और उसमें अपनी खुशी भी ढ़ूँढ़ी...लेकिन विराग की खुशियों के लिए उसने फिर से नौकरी को चुना...और फिर धन ही उसके लिए सब कुछ हो गया,लेकिन धन को प्राप्त करने के लिए उसने जिन ऊँचाइयों को छुआ,उन्हीं ऊँचाइयों ने उसे विराग से अलग कर दिया...लेकिन चंचल अब भी खुश है,क्योंकि उसने जो पाना चाहा,उसमें पूरी तन्मयता से लगी। लेकिन विराग,जो कभी चंचल को धन कमाने की सलाह देता था,उसे नहीं मालूम था कि धन कमाने में चंचल उससे कितनी दूर निकल जाएगी...जिंदगी ऐसे विरोधाभासों से पटी पड़ी है। जो हमारे पास होता है हम उसकी कीमत नहीं पहचानते और जो हमसे दूर होता है उसे पाने की चाह में हम अपने पास की चीज से भी हाथ धौ बैठते हैं...
एक अर्थपूर्ण कहानी ।
bahut hi accha
aap toh bade dino baad aayi
मनोज भारती जी की बातों से पूरी तरह सहमत |
बात तो सही है आपकी| इस कहानी के माध्यम से ऐसे विषय पर विचार किया जाना चाहिए|
बहुत कुछ सोचा जा सकता है इस कहानी के द्वारा|
पता नहीं विराग किस व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए चंचल से ऐसा चाहता था और अब ऐसा होने पर वह चंचल से ही दूर है| क्या यह उसकी कोई महत्वकांक्षा थी या कोई और इच्छा?
भाई सुज्ञ जी का प्रश्न मैं भी दोहराना चाहूँगा| क्या ये वही चंचल है?
साथ-साथ चलते मुसाफिर कई स्तरों पर अकेले होते हैं. कहानी निराशा पैदा करते बिंब के साथ समाप्त होती है......
'केकेजी', यानि कभी ख़ुशी कभी गम सिक्के के दो चेहरे समान 'द्वैतवाद' के कारण जनित मानसिक अवस्थाएं हैं जो बहिर्मुखी व्यक्ति 'प्रभु की माया' के कारण अनुभव करता प्रतीत होता है... किन्तु स्थितप्रज्ञ और अंतर्मुखी व्यक्ति विचलित नहीं होते - परम सत्य, निराकार नादबिन्दू को ही केवल सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में उपस्थित जान...जो कलियुग में अवश्य बहुत कठिन प्रतीत होता है, जैसे तथाकथित विषपान में सक्षम 'अमृत शिव' भी सती की मृत्यु पर उनके शरीर को अपने कंधे में रख तांडव नृत्य कर पृथ्वी को ही तोड़ डालने पर उतारू हो गए थे :)
वह तो सुदर्शन-चक्र धारी चतुर्भुज विष्णु के मृत शरीर को काट दुःख का कारण ही हटा देने से वैरागी अर्धनारीश्वर शिव जी शांत हो गए और पृथ्वी टूटने से बच गयी, किन्तु उनके प्रतिबिम्ब 'हम' काल-चक्र में फंस गए और मुक्ति का मार्ग ढूंढ रहे हैं :)
VARY GOOD STORY........
PRANAM.
कहानी आपकी है तो सुन्दर तो होगी ही. आपके लिखने का अंदाज ही जो निराला है.....
हाँ यह भ्रम जरूर है कि कहीं यह आपकी आपबीती तो नहीं है...... शुभकामनाएं !
सत्य के करीब कहानी....
अच्छी कहानी....
you never know what you ask for .. sometimes what we think is good is not so good ..
Virag found it the hard way ..
all the best to chanchal.. well done to the girl
beautiful story ...
Bikram's
khush rehne ke liye paisa nahi balki aapsi samajh chahiye ,ye baaten viraag nahi jaan saka tha
बहुत अच्छी कथा | दूसरे शब्दों में इसे कहते है कुल्हाड़ी पर पैर मारना :)
अपनी हंसी दुसरे को दे हंसा देना और दुसरे की खुशी खुद में समाहित कर खुश हो लेना ही जिंदगी की कला है
उम्दा
चंचल तो चंचल ही होगी. सुन्दर लेखन.
कहानी नारी के अतिरिक्त आत्म -विश्वास को प्रस्तुत करती है .यह स्पस्ट नहीं करती आई ए एस की परीक्षा करके क्या आई ए एस का पद-प्रशिक्षण भी ग्रहण किया नायिका ने .लिविंग टुगेदर भी कहीं इसमें लेटेन्ट बना रहा है .
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