Thursday, July 28, 2011

क्या स्त्रियों की आर्थिक स्वतंत्रता बढ़ते तलाक का कारण है ?

कई बार सुनने को मिलता है की स्त्रियों की आर्थिक स्वतंत्रता घरों को तोड़ रही है आखिर कैसे ? यदि पुरुषों की आर्थिक स्वतंत्रता घरों को नहीं तोड़ रही तो स्त्रियों की आर्थिक स्वतंत्रता परिवारों को कैसे तोड़ सकती है भला ?

मैंने तो आज तक यही देखा और सुना है की स्त्री परिवारों को सदैव जोडती है और रिश्तों को बनाए रखने में अहम् भूमिका निभाती है फिर वह परिवारों के टूटने का सबब कैसे हो सकती है ?

  • स्त्रियाँ यदि नौकरी करती हैं तो पति आर्थिक जिम्मेदारियों को भी साझा करती हैं , जिससे पति पर अनावश्यक बोझ नहीं रहता ।
  • नौकरी करने वाली स्त्रियाँ घर से बाहर निकलती हैं , जिससे उनमें आत्म-विश्वास की वृद्धि होती है । वे घर के काम काज के अतिरिक्त अन्य बहुत से कार्यालय सम्बन्धी कार्यों और बारीकियों को समझने लगती हैं , जिससे वे पति की अन्य बाहरी जिम्मेदारियों का भी सहजता से वहां कर लेती हैं ।
  • सुन्दर पत्नी किस पति को नहीं अच्छी लगती । नौकरी करने वाली स्त्रियाँ स्वयं तो maintained और आकर्षक रखती हैं , अन्यथा वे अपनी परवाह कम करती हैं ।
  • बाहर निकलने से उनका exposure बढ़ता है तथा बाहर की दुनिया की समझ बढती है ! इससे उनमें जागरूकता आती है , और आत्म-विश्वास की वृद्धि होती है । जो परिवार में एक स्वस्थ्य वातावरण को उपस्थित करता है।
  • स्त्री पुरुष में समानता आती है और आपसी द्वेष ख़तम होते हैं । कुंठा मिटती है और एक-दुसरे के लिए परस्पर सम्मान बढ़ता है ।
  • वह खुश रहती है ! उसे अपनी शिक्षा और जीवन दोनों सफल लगने लगते हैं । मन की ख़ुशी उसे परवार के ज्यादा करीब लाते हैं । बच्चे एवं पति उस पर गर्व करते हैं ।
  • उसकी भी तरक्की होती है । Promotion मिलता है । उसके कार्यों की सराहना होती है जो उसके self esteem को बढ़ाता है । उसे अपनी सम्पूर्णता का एहसास होता है। पति के साथ वह भी अपनी उपलब्धियों को साझा करती है ! दोनों की आपसी ख़ुशी बढती है ! समाज को भी अधिक योगदानकर्ता मिलते हैं ।
  • पति का अपनी पत्नी की योग्यता पर विश्वास बढ़ता है । पत्नी के लिए ह्रदय में प्यार तो पहले से रहता है , अब सम्मान भी बढ़ जाता है , अन्यथा घर की खेती साग बराबर ही रहती है ।
  • पति अपनी पत्नी को बेहतर understand करता है । उसके वर्क-लोड को कम करने के लिए घरेलु कामों में भी उसकी सहायता करता है । दोनों सच्चे अर्थों में एक दुसरे के जीवन साथी बन जाते हैं ।
  • इसके अतिरिक्त यदि एक गृहणी को उसका पति आर्थिक स्वतंत्रता देता है , तो वह कुंठाग्रस्त नहीं रहती , प्रसन्नचित्त रहती हैपति उसका ध्यान रखता है , इस बात से अभिभूत रहती है और दूरियां घटती हैं

आजकल तो पुरुष स्वयं ही अपने लिए समकक्ष योग्यता और नौकरी करने वाली पत्नी चाहते हैं , जो सही अर्थों में उनके दुःख सुख की भागीदार बने पति गर्व के साथ अपनी पत्नी की उपलब्धियों की चर्चा अपने मित्रों से करता है। ऐसे बहुत से लोगों को जानती हूँ जहाँ पति- पत्नी दोनों आर्थिक रूप से आत्म-निर्भर हैं और परिवार में खुशहाली है। मेरी समझ से परिवारों का टूटना , झूठे दंभ , दहेज़ प्रथा , लालच, अज्ञानता और रूढ़िवादिता के कारण होता है आर्थिक स्वतंत्रता के कारण नहीं।

फिर भी पाठकों से निवेदन है मेरा भ्रम दूर करें !

Zeal

80 comments:

mridula pradhan said...

नौकरी करने वाली स्त्रियाँ घर से बाहर निकलती हैं , जिससे उनमें आत्म-विश्वास की वृद्धि होती है । वे घर के काम काज के अतिरिक्त अन्य बहुत से कार्यालय सम्बन्धी कार्यों और बारीकियों को समझने लगती हैं , जिससे वे पति की अन्य बाहरी जिम्मेदारियों का भी सहजता से वहां कर लेती हैं ।
yah baat puri tarah sach hai.....auron ki kya kahoo main to ye sachchayee apni betiyon men lagatar mahsoos karti hoon.

aarkay said...

"मेरी समझ से परिवारों का टूटना , झूठे दंभ , दहेज़ प्रथा , लालच, अज्ञानता और रूढ़िवादिता के कारण होता है । आर्थिक स्वतंत्रता के कारण नहीं।" आपकी समझ बिलकुल सही है दिव्या जी , किसी भ्रम की कोई गुंजाईश ही नहीं है . सटीक आलेख !

vandana gupta said...

जी नही आर्थिक स्वतंत्रता तलाक का कारण नही बन सकती ।

Apanatva said...

janha tak meree samjh hai kuntha ka aarthi swatantrta se kya lena dena.....
ek aatm nirbhar aarthik drushti se dhanady narree bhee kunthagrast ho saktee hai.......
ye meree samjh hai vaad vivaad me padna mujhe nahee bhata.......yadi vichar aapse nahee milte aap ignore kar saktee hai....

Rajesh Kumari said...

vivaah ka tootna talaak ka kaaran aarthik swatantrta kabhi nahi ho sakti.kahin kahin patni aatmnirbhar ho ya pati se jyaada kamane lage yahi purush me heen bhaavna ya dwesh ko janm deta hai talaak ka beej vanha janm leta hai.

सदा said...

आर्थिक स्‍वतंत्रता को तलाक का कारण नहीं माना जा सकता ...बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

Anonymous said...

"मेरी समझ से परिवारों का टूटना , झूठे दंभ , दहेज़ प्रथा , लालच, अज्ञानता और रूढ़िवादिता के कारण होता है । आर्थिक स्वतंत्रता के कारण नहीं।"

यह बिल्कुल सही कहा आपने .. टूटना इसलिए होता है कि कई बार पत्नी नौकरी कर रही हो तो भी घर में फिर भी "घर का काम तो इसी को करना है " की एक्सपेक्टेशन होती है | मैंने कई महीने पहले एक पोस्ट लिखी थी - महिला मुक्ति ? इसमें मैंने यही कहा था कि स्त्री बाहर काम करे - फिर भी उस पर घर का बोझ बिल्कुल कम ना किया जाए - उसके काम में हाथ ना बताया जाए - तो तकलीफ होती है | हमारी hod madam का उदाहरण दिया था - वे अपने पति से दुगुना कमाती हैं - किन्तु घर में यदि बाई ना आये तो यह विचार तक मन में नहीं उठता कि पति बर्तन धुलवा दें या कुछ और - यह तो एक "पाप" सा माना जाता है कि ऐसा सोचा भी जाए |

तो जब पत्नी थक कर आई है बाहर से , तो फ्रस्टेशन तो होगा ही ना? लड़ाई इसलिए नहीं होती कि पत्नी सुपीरियोरिटी दिखा रही है - लड़ाई इसलिए होती है कि उससे उसकी शक्ति से अधिक करने की एक्सपेक्टेशन रखी जाती है | और फिर कहा जाता है - कि यह तो अपनी नौकरी से इतनी "proud " बन गयी है - इसे तो अपने "घरेलु कर्तव्यों " की फ़िक्र ही नहीं !! आदि

अजित गुप्ता का कोना said...

आर्थिक स्‍वतंत्रता तो कभी भी तलाक का कारण नहीं बनती है। भारत में तो महिलाएं अधिकतर आर्थिक पक्ष से सुदृढ़ ही होती हैं। भारत में परिवारवाद है, परिवारवाद में अधिकतर अर्थ का प्रबंधन महिलाओं के अधिकार में ही होता है। तलाक हमेशा विचारों के विरोधाभास के कारण होता है।

सुज्ञ said...

बिलकुल नही, दिव्या जी, आर्थिक स्वतंत्रता कभी तलाक का कारण नहीं बनती। हाँ, पारिवारिक अर्थ-पोषण से उदासीन रहकर,आर्थिक स्वछंदता (दम्पत्ति में से किसी एक की भी)अवश्य तलाक का कारण बनती है।

अरुण चन्द्र रॉय said...

भारत में तलाक पर कोई अध्यनन हुआ हो तो नहीं पता लेकिन सामान्य अनुभव से मुझे यह लगता है कि तलाक आम तौर पर उच्च माध्यम वर्ग में अधिक हो रहे हैं औ तेज़ी से हो रहे हैं... और इसमें पुरुष और महिलाएं दोनों बराबर की जिम्मेदार हैं... आर्थिक स्वतंत्रता कई बार महिलाओं को रिश्ते से बाहर निकलने का हिम्मत और दंभ दोनों देती हैं... महिलाएं जो आत्मनिर्भर नहीं होती वे रिश्ते से बाहर आने का हौसला नहीं कर पाती हैं...

Anonymous said...

अरुण चन्द्र राय जी - आपने ठीक वैसा ही कहा जैसा कि मैंने अपनी टिप्पणी में कहा था कि यही बेकार, बेबुनियाद " दंभ " के इलज़ामलगाये जाते हैं उस महिला पर जो दोहरा वर्क प्रेशर पहले से झेल रही होती है | इस तरह की आरोपण की विचारधारा कई बिखरावों को जन्म देती है |

तिस पर यह कि - जैसा इस ब्लॉग की पिछली पोस्ट में था - कि भावनात्मक और सामाजिक बंधन तो कमाने वाली और न कमाने वाली स्त्री दोनों पर वही हैं, परन्तु यदि कमाने वाली बहन पर भी **** उसके पति और घरवालों का दबाव होता और वह न कर पाती अपनी माँ के लिए कुछ **** - तो चंचल को तो हम सहानुभूति से देख रहे हैं और सोच रहे हैं कि बेचारी चाह कर भी अपनी माँ के लिए कुछ नहीं कर पा रही , पर उस कमाने वाली बहन को हम हिकारत और नफरत से देखते - कि देखो - कमा रही है - फिर भी माँ के लिए कुछ नहीं कर रही !! और उधर उसे अपने पति के घर में (यदि थोडा बहुत कुछ करती माँ के लिए) - तो सुनना पड़ता कि " देखो - खाती हमारा है - और लुटाती वहां है - बड़ी दम्भी है" आदि आदि | उसका दर्द सिर्फ वह और उसकी निकटतम साथी समझतीं - न समाज, न पुरुष और न तथाकथित महिला मुक्ति वादी | उसे भीतर वही दर्द होता जो चंचल को था - साथ ही बाहर से दोनों ओर की आरोप भरी नज़रें भी टिकी होतीं उस पर ... |

कई "महिला मुक्ति वादियों" ने मुझ पर भी कई बार यह इलज़ाम लगाए हैं कि मैं खुद तो कमा रही हूँ, तो मैं गृहणियों की प्रोब्लेम्स को नज़रंदाज़ करती हूँ - जबकि मैं कह यह रही होती हूँ कि - जी - आप उस स्त्री के साथ तो न्याय की बातें कर रहे हैं जो नहीं कमा रही - पर आप उस स्त्री के दर्दों के प्रति असंवेदनशील हो गए हैं जो बाहर और घर दोनों का दोहरा वर्क लोड झेल रही है | आप महिला मुक्ति की बातें क्या सिर्फ अपना नाम और महानता लोगों पर दर्शाने के लिए कर रहे हैं? जो भी आप सोच रहे हैं या करना चाह रहे हैं - वह सिर्फ अपनी "महानता " को सिद्ध करने के लिए नहीं , बल्कि सभी के बारे में सोच कर करें | महिलाओं को कृपया वर्गों में न बांटें - क्योंकि दर्द बंटता नहीं है, बढ़ जाता है |

Dolly said...

जी नही! आर्थिक स्वतंत्रता तलाक का कारण नही बन सकती?

ज्ञानचंद मर्मज्ञ said...

अहम् का टकराव ,एक दूसरे के प्रति समर्पण-भाव में कमी और एक दूसरे की भावनावों के प्रति उदासीनता , यही तीन कारण हैं जो तलाक को बढ़ावा देते हैं !
स्त्रियों की आर्थिक स्वतंत्रता निश्चित ही संबंधों को मज़बूत करती है !

Maheshwari kaneri said...

तलाक के कई अन्य कारण हो सकते है.. पर आर्थिक स्वतंत्रता तलाक का कारण नही बन सकती है ...

पी.एस .भाकुनी said...

परिवारों का टूटना स्त्री की आर्थिक स्वतंत्रता के कारण नहीं बल्कि स्त्री या पुरुष में से किसी एक का ईगो तो हो ही सकता है,
आभार उपरोक्त पोस्ट हेतु....................

शोभना चौरे said...

बिलकुल भी नहीं ?स्त्रियों की आर्थिक स्वतन्त्रता तलाक का कारण नहीं है |मैंने पिछले चार पांच सालो में अपने आसपास रिश्तेदारी में करीब ६ तलाक के केस देखे है जिनमे एक लडकी नौकरी करती है बकिहै की पांच लडकिया उच्च शिक्षित गृहणी (जो नहीं बन सकी )है जिन्होंने अपनी नासमझी से अपने आपको तलाक की स्थिति में लाकर रख दिया है |

Anonymous said...

आपकी काफी बातों से सहमत हूँ........पर तस्वीर के दो रुख होते हैं.....सिर्फ एक रुख को देखकर कोई फैसला करना ठीक नहीं होता.......हाँ ये ज़रूर कहूँगा सकरात्मक अधिक हैं और नकारात्मक कम|

Unknown said...

stiyon ko doyam darja to diya hi jata hai par taali dono hath se bajti hai . koi ek mudda mahtvpurn nahi hota hai ...purvaagrah v aham hai.

कविता रावत said...

मेरी समझ से परिवारों का टूटना , झूठे दंभ , दहेज़ प्रथा , लालच, अज्ञानता और रूढ़िवादिता के कारण होता है । आर्थिक स्वतंत्रता के कारण नहीं....mujhe bhi yahi kaaran jyada lagta hai..
bahut badiya saarthak prastuti..
aabhar!

प्रवीण पाण्डेय said...

कह नहीं सकते हैं पर अपनी बात कहने का अधिकार तो देती है आर्थिक स्वतन्त्रता।

रेखा said...

मेरे विचार से आर्थिक स्वतंत्रता से तलाक का कोई संबंध तो नहीं होना चाहिए....

ashish said...

महिलाओ की आर्थिक स्वतंत्रता अगर तलाक का कारण बन सकती है तो ये देश का धुर दुर्भाग्य होगा और हमारे सामाजिक ताने बाने के माथे पर एक कलंक .

रश्मि प्रभा... said...

aarthik roop se samarth stree dhaal hi banti hai

JC said...

तालाक का मुख्य कारण वर्तमान में शहरी स्त्रियों की आर्थिक स्वतंत्रता नहीं अपितु कह सकते हैं उनकी उच्चतर पढ़ाई के कारण बड़ी उम्र में विवाह का संपन्न होना है, जब तक उनके अपने स्वतंत्र विचार परिपक्व हो जाते हैं... और यह भी सभी को अनुभव हुआ होगा कि किसी भी मानवी व्यवस्था का सदैव दोष रहित रहना असंभव है,,,

पहले छोटी उम्र में विवाह हो जाने से अधिकतर लड़कियों के अपने स्वतंत्र विचार नहीं बन पाते थे और समाज के चलन को अपना, उस को ससुराल पर पूरी तरह निर्भर रह कर, जीवन व्यतीत करने में सही लगता था,,, क्यूंकि मानव अधिकतर नक़ल ही करता है और पहले समाज की व्यवस्था के अनुसार उन्होंने अपनी माँ, और अन्य स्त्रियों को भी, वैसा ही करते देखा था...

किन्तु पिछले कुछ तीन-चार दशक से देखा जा सकता है कि परिस्थितियाँ ऐसी बनी हैं कि टूटने का क्रम चलू हो गया - पहले तो संयुक्त परिवार ही अधिकतर टूट गए... और समय बीतने के साथ साथ कह सकते हैं कि पश्चिम की नक़ल कर, जैसा आम तौर पर सुनने को आता है लोगों को प्रश्न करते कि जब अमेरिका में ऐसा होता है तो क्यूँ न यहाँ भी? आदि आदि...

अब पृथ्वी नामक ग्रह में रहने के कारण, जो सूचना के दृष्टिकोण से निरंतर छोटा होता जा रहा है, दूसरी यह भी जानकारी बढ़ी है कि हमारा ब्रह्माण्ड निरंतर फूलता ही जा रहा है, और उसके भीतर समाया साकार ब्रह्माण्ड भी आकार में बढ़ रहा है, यहाँ तक कि उनके सदस्यों के बीच की दूरियां भी बढ़ रही हैं... आदि आदि... और प्राचीन ज्ञानी हिन्दू भी कह गए की मानव ब्रह्माण्ड का प्रतिरूप है!...

S.M.Masoom said...

क्या स्त्रियों की आर्थिक स्वतंत्रता बढ़ते तलाक का कारण है
.
Not TRUE
क्या हम सेक्स जनित विसंगतियों पर काबू पा सकते हैं?

डॉ टी एस दराल said...

कई बार सुनने को मिलता है की स्त्रियों की आर्थिक स्वतंत्रता घरों को तोड़ रही है ।
दिव्या जी यह कहाँ सुना आपने ?
ये तो पुराने ज़माने की बातें हैं ।

arvind said...

aarthik swatantrata talak ka kaaran nahi hoti. mere hisaab se sabhi tarah ki swatantrata purush ki tarah ourato ko bhi milani chaahiye..yahi nyaay hai.

जीवन और जगत said...

वास्‍तव में स्त्रियों की आर्थिक स्‍वतंत्रता को तलाक का कारण मानना पुरुषवादी सोच का ही परिणाम है। आज भी कई घरों में जहां महिलाएं नौकरी या अन्‍य माध्‍यमों से आय का अर्जन करती हैं, वहां उनकी आय पर उनका स्‍वयं का नहीं बल्कि उनके पति तथा अन्‍य लोगों का हक होता है। वे अपनी कमाई से भी अपनी मर्जी के मुताबिक खर्च नहीं कर सकतीं। ऐसे में अव्‍वल तो यह मानना ही गलत होगा कि स्‍त्री आर्थिक रूप से पूरी तरह स्‍वतंत्र हो चुकी है।

मदन शर्मा said...

जी नहीं! हमारा अहम् ही तलाक के लिए मुख्य रूप से जिम्मेद्वार है जब तक हम एक दुसरे के भावनाओं का सम्मान करना नहीं सीखेंगे तब तक ऐसा ही होता रहेगा !

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

तलाक के कई कारण है जिनमेसे यह भी एक हो सकता है। कारण- हर जहाज़ का एक ही कप्तान होता है और यदि दो कप्तान रहें तो मतभेद की सम्भावना बढ जाती है॥ दूसरा कारण है संस्कार की कमी और अहम की बढ़त।

मदन शर्मा said...

जहां तक बात है स्त्री की आर्थिक स्वतन्त्रता की ये सिर्फ कहने की बात है | अभी भी ९९ % स्त्रिओं के हाथो में आर्थिक बागडोर नहीं है | मुख्य सत्ता पुरुष के हाथ में ही है | किन्तु अब धीरे धीरे समाज में बदलाव आ रहा है | अब जो नयी युवा पीढ़ी आरही है एक दुसरे के विचारों को समझ रही है !

जयकृष्ण राय तुषार said...

रिश्तों का कोई सर्वमान्य सिद्धांत नहीं है |फिर भी समर्थ व्यक्ति अन्याय और अत्याचार सहन नहीं करता है |यह बहुत कुछ संस्कार और सहनशीलता का भी विषय है |हर तलाक की अपनी अलग पृष्ठभूमि होती है |आपसी समझ हो तो जीवन सुखमय हो सकता है |व्यक्ति वैश्विक और आर्थिक रूप से समृद्ध हो रहा है जितना उतना अकेला भी हो रहा है गलतफहमियां भी कभी -कभी तलाक का कारण बनती हैं |स्त्री का आर्थिक रूप से समृद्ध होना परिवार के लिए अभिशाप नहीं है वरन वह संकट मोचक की भूमिका में होती है |

महेन्‍द्र वर्मा said...

भारतीय समाज में महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता तलाक का कारण कदापि नहीं है।
तलाक के जो कारण आपने बताए हैं उनके अतिरिक्त एक और प्रमुख कारण है- अहम् का टकराव।

S.N SHUKLA said...

आत्मनिर्भरता दंभ तो पैदा ही करती है, और कई बार यही वजह तलाक तक भी पहुंचा देती है , फिर भी अच्छी पोस्ट है.

SAJAN.AAWARA said...

mam talak ka karan jahan tak me samjhta hun wo hai purushon ki sankiran or dusit mansikta.purush ko sak karne ki aadat hoti hai or yahi aadat baad me kisi ke liye talak ka adhar ban jaati hai.
aarthik savtantrta ka isme koi role nahi hai....

agar me kuch galat kah raha hun to karpya or tippani karta isi post par tippani karke mujhe batayen...

jai hind jai bharart

Arun sathi said...

मेरी समझ से परिवारों का टूटना , झूठे दंभ , दहेज़ प्रथा , लालच, अज्ञानता और रूढ़िवादिता के कारण होता है । आर्थिक स्वतंत्रता के कारण नहीं।

आप सही है दिव्या जी, कारण भी आपने ही बता दिया है। सटीक कहा है।आप सही है दिव्या जी, कारण भी आपने ही बता दिया है। सटीक कहा है।

Vaanbhatt said...

आर्थिक स्वतंत्रता...स्त्री को भी ना कहने का अधिकार देती है...जिस समाज का हम अनुकरण करने के प्रयास में हैं...वो किसी को जिंदगी भर ढोने को तैयार नहीं है...जब तक निभे...निभाओ...

Gyan Darpan said...

क्या स्त्रियों की आर्थिक स्वतंत्रता बढ़ते तलाक का कारण है ?
कदापि नहीं|आज तक कहीं नहीं सुना कि स्त्री की आर्थिक स्वतंत्रता तलाक का कारण बही हो|
way4host

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

क्या कहा जाए!
हम तो इस दौर से कभी गुजरे ही नहीं है!

मनोज भारती said...

आर्थिक स्वतंत्रता तलाक का एक कारण हो सकती है? जब पति-पत्नी में किन्हीं कारणों से न बने,तो आर्थिक रूप से आत्म-निर्भर स्त्री अलग होने की सोच सकती है। लेकिन यदि,कोई स्त्री पूर्णत: पति पर निर्भर है,तो वह शायद अलग होने की न सोचे और पति के साथ येन-केन-प्रकारेण रहने को विवश हो। हर कोई सुरक्षा चाहता है। लेकिन बढ़ते तलाक के और बहुत से कारण भी होते हैं। केवल आर्थिक-स्वतंत्रता के कारण ही तलाक होते है,ऐसा कहना अनुचित होगा।
.
"मेरी समझ से परिवारों का टूटना , झूठे दंभ , दहेज़ प्रथा , लालच, अज्ञानता और रूढ़िवादिता के कारण होता है।"
.
तलाक के लिए जिम्मेवार तत्वों में कुछ और कारण भी हैं;यथा - बढ़ता पाश्चात्यीकरण,शहरीकरण,विभिन्न विचारों और संस्कारों का टकराव,पति-पत्नी का जरूरत से अधिक अधिकारभाव, विवाहेत्तर-संबंध,परिवार में बाह्य लोगों का हस्तक्षेप(जिसमें अज्ञानता और रुढ़िवादिता शामिल हैं),पति या पत्नी में से किसी एक का पूर्वाहग्रह से ग्रसित होना,पति या पत्नी के घरवालों का उनकी निजी जिंदगी में दखल देना और सबसे अधिक पति और पत्नी के बीच आपसी समझ का अभाव ।

Unknown said...

तलाक के कारण क्या ? , शोध का विषय है स्त्रियों की आर्थिक स्वतंत्रता और तलाक में कोई सम्बन्ध नहीं. हमारा समाज पौराणिक सोच से उबार चुका है शायद. तलाक का प्रमुख कारण है सामंजस्य का न होना और ये किन्ही भी कारणों से पनप सकता है , ये भी हो सकता है उनमे एक आर्थिक कारण भी हो जाय. आधुनिक सोच में शायद संबंधो की गरिमा का ख्याल बेमानी होने लगा है हमें इस और सोचना चाहिए.. बस

मनोज भारती said...

पुनश्च:पति-पत्नी के बीच समर्पण-भाव का लुप्त हो जाना,आज के युग की त्रासदी है।

मनोज कुमार said...

अहं का टकराव ही मुझे प्रमुख कारण लगता है।

राज भाटिय़ा said...

इस का जबाब तो हमे सही सही उन्ही घरो मे मिल सकता हे जिन घरो मे मिया बीबी सुखी ओर प्यार से रहते हे. उन मे कोई अंह नाम की वस्तू शायद ना हो, बहुत से कारण हो सकते हे...

upendra shukla said...

आपकी बात से में पूरी तरह से सहमत हू !पर् सायद इसका असर बच्चो पर् पड़ता है क्यों की वो बच्चो को टाइम नहीं दे पाती और बच्चे भटक जाते है !पर् आपकी बात पूरी तरह से सही है !क्यों की आजकल ऐसी लड़की हर घर की जरुरत है !बिलकुल सही है आपका लेख इस विषय पर् !
क्यों की कुछ अच्छी बात के साथ कुछ बुरा भी होता है !

दिवस said...

बिलकुल भी नहीं| स्त्रियों की आर्थिक स्वतंत्रता तलाक का कारण हो ही नहीं सकती| प्राचीन भारत में स्त्रियों को आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त थी| किन्तु हिंदी भाषा में तलाक का कोई अर्थ ही नहीं था| तलाक तो उर्दू का शब्द है| अर्थात हिन्दुओं में तलाक जैसी कोई प्रथा ही नहीं थी|
यदि आर्थिक स्वतंत्रता तलाक का कारण होती तो हिन्दू परंपरा में विवाह को अटूट सम्बन्ध नहीं माना जाता|

आर्थिक स्वतंत्रता स्त्री का नैसर्गिक अधिकार है, उसे वह अधिकार मिलना ही चाहिए| स्त्री की आर्थिक स्वतंत्रता किसी भी अवस्था में तलाक का कारण नहीं हो सकती|

रूप said...

naari mukti hetu sarthak prayas lagatar jaari rahe, meri shubhkamnayen !

Bharat Bhushan said...

अपने घर के उदारण से स्वयं ही समझने का प्रयास कर रहा हूँ. मेरे पिता पूरा वेतन माँ को देते थे और उसके बाद माँ से उन्हें जेब खर्च मिलता था. माता जी संबंधियों में विशाल हृदया कहलाती थीं. घर में किसी चीज़ की कमी हमें महसूस नहीं हुई.
मेरी धर्मपत्नी सरकारी सेवा में है. यदि बच्चों को कम समय दे पाने की एक बात को नज़रअंदाज़ कर दिया जाए तो उसके व्यक्तित्व पर इसका अच्छा प्रभाव पड़ा. हमने स्थानांतरण से उत्पन्न कई कठिन परिस्थितियों को आसानी से पार किया. कभी-कभी उसका अहं बड़ा दिखने लगता हैं, जिसका एक तोड़ मैंने सीख लिया है कि तभी-तभी मैं उसके लिए छोटा-मोटा उपहार ले आता हूँ. रही तलाक के बारे में सोचने की बात - नो, नेवर. महिलाओं आर्थिक रूप से सशक्तिकरण ज़रूरी है. कल पानी किस भाव से खरीद कर पीना पड़ेगा, पता नहीं. आने वाले समय में पतियों-पत्नियों को आपसी आर्थिक सहयोग की और भी आवश्यकता होगी.

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ दिव्या जी ....
नारी की आर्थिक स्वतंत्रता तलाक का कारण कत्तई नहीं है ...
हाँ एक बात जरूर है कि यदि कोई महिला गाय की तरह किसी एक खूंटे से दुर्भाग्यवश बंध जाए औरअपने ऊपर होने वाले अत्याचारों को अपनी नियति मान बैठी हो तो आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर होने पर उसका सम्मान जरूर वापस मिल जाता है उसे |

vidhya said...

मेरे विचार से आर्थिक स्वतंत्रता से तलाक का कोई संबंध तो नहीं होना चाहिए....

rashmi ravija said...

सच है..आर्थिक स्वतंत्रता ही वजह नहीं है...पर ये जरूर है कि पति के अत्याचार जहाँ उस पर निर्भर पत्नी चुपचाप जीवन भर सहन करती रहती है...वहीँ आर्थिक रूप से सक्षम पत्नी एक सीमा के बाद सहन नहीं करती और अगर पति अपने व्यवहार में सुधार नहीं लाता तो अलग हो जाती है.

smshindi By Sonu said...

SAHI KAHA AAPNE

Rakesh Kumar said...

सुन्दर और सार्थक पोस्ट है आपकी.

पति पत्नी एक दूसरे को समझे और आपस में तालमेल रखते हुए
साथ निभाएं एक दूसरे का तो 'तलाक' की कल्पना भी नहीं हो सकती.

रोहित बिष्ट said...

घर टूटने की नौबत आपसी समझ की कमी
और अहम् के टकराव से आती है,बाकि सब
बातें आधारहीन हैं।एक प्रश्न मेरा भी है -
क्या स्त्री पुरुष समानता के विचारों के बावजुद
'LADIES FIRST'यानि स्त्री के लिए विशेष
व्यवहार की बात कहना उचित है?

JC said...

नारी में जो गुण प्राचीन ज्ञानी 'हिन्दुओं' ने सांकेतिक भाषा में शक्ति रुपी विष्णु / देवी में वर्णन किये उसके लिए इच्छुक नीचे दिए लिंक को देख सकते है, बिना इसे किसी 'धर्म' से जोड़े... कलियुग के प्रभाव से 'हिन्दू' वर्तमान में नारी की दुर्दशा को 'माया' के कारण होना जाने... त्रेता युग में सीता को भी 'अग्नि परीक्षा' देनी पड़ी, और द्वापर में भी द्रौपदी को स्वार्थी कौरवों द्वारा भरी सभा में 'चीर हरण' के प्रयास में असफल दर्शाया 'कृष्ण' की कृपा से (जो चन्द्रमा के केवल एक ही चेहरे का पृथ्वी से दिखाई पड़ने द्वारा समझा जा सकता है,,, और त्रेता में बनवास के समय लक्षमण का 'सीता माता' के केवल चरण ही देखने द्वारा भी)...

http://www.youtube.com/watch?v=SL0OV4zdiJE

Smart Indian said...

प्रश्न विचारणीय है। अवलोकन के लिये कुछ बिन्दु -
* पति-परमेश्वर वाली संस्कृति में तलाक़ नहीं होता
* चीन में बढती समृद्धि के साथ तलाक़ बढ रहे हैं
* हाल की मन्दी के बाद अमेरिका में तलाक़ की संख्या गिरी है

udaya veer singh said...

It is foolish to say economic freed amity is a cause of divorce or ill health of society . It is a revolution when it comes some troublesome use to arise for some one often. Unequivocally it is required ..../ very,very sensible and adhesive thought for society .... thanks .

प्रतुल वशिष्ठ said...

क्या स्त्रियों की आर्थिक स्वतंत्रता बढ़ते तलाक का कारण है ?
@ नौकरीपेशा स्त्रियों का मनोबल बहुत बढ़ जाता है.......... जबकि घरेलू स्त्रियों का मनोबल कमतर या शून्य होता है.
आइये उनके संवादों से जाँच करते हैं कि सच क्या है :
घरेलू पत्नी — "कहीं तुम मुझे छोड़ तो नहीं दोगे?"
कामकाजी पत्नी — "मैं तुम्हें पसंद नहीं तो मुझे तलाक दे दो."
घरेलू पत्नी — "क्या इस राखी पर मैं अपने मायके हो आऊँ?"
कामकाजी पत्नी — "मैं इस बार ऑफिस से छुट्टी लेकर १५ दिन के लिये मायके जा रही हूँ.... बहुत दिनों से आराम नहीं कर पायी... तुम बाहर खा लेना."
घरेलू पत्नी — "कोलिज टाइम में पढ़ने वाले सचिन का फोन आया था, अपने बच्चे के बर्थ डे पर बुलाया है. क्या चली जाऊँ? "
कामकाजी पत्नी — "मेरे फ्रेंड 'सचिन' का फोन था..बेटे के बर्थ डे में बुलाया है... कल घर (मायके) निकल जाउंगी. वहीं से परसों उसके प्रोग्राम में शामिल हो जाउंगी.... देखो, तुम किसी भी तरह अरेंज कर लेना ... बहुत दिनों से देखा नहीं इलाहाबाद (सचिन) को."
घरेलू पत्नी — "छोटा भाई पूछ रहा था कि क्या वो कुछ महीनों के लिये हमारे यहाँ आ जाये? उसे नौकरी ढूंढनी है."
कामकाजी पत्नी — "परसों मम्मी-पापा आ रहे हैं और छोटा भाई भी.. उन्हें पूरा शहर घुमाना है... कुछ दिनों की ऑफिस से छुट्टी ले लेना... भाई की नौकरी लगने पर वो यहीं रहेगा.... "

.............. वैसे समझदार दम्पति 'तलाक' की नौबत नहीं आने देते ..... वे हर हालात में अपनी सहिष्णुता और धैर्य को बरकरार रखते हैं. फिर भी संवादों में 'तलाक' के जुमले पत्नी की ही ओर से अधिक बुलते देखे जाते हैं.
पति तो पत्नी को तभी तलाक देना पसंद करता है जब 'चरित्र' पर दाग दिखायी देता है. पुख्ता सबूतों पर ही वह इस ओर कदम बढ़ाता है.
"विश्वास का जब घात होता है तब ही संबंध विच्छेद होता है, अन्यथा नहीं."
"अधिक महत्वाकांक्षी स्त्रियाँ आर्थिक रूप से सबल होने के कारण 'स्वतंत्रता' की मनमुताबिक़ परिभाषा करने लग जाएँ तब भी 'तलाक' प्रक्रिया सहज हो जाती है."

अजय कुमार said...

आपसी सामंजस्य,परस्पर सम्मान और भावनात्मक लगाव की कमी के कारण ऐसा हो रहा है ।

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

aaderniya divya ji...bahut dino baad aapke blog pe aana hua..aapke lekh aur uspar prakashit tamam tipaddiyon ko padhne se is bahumulya bishay per chintan ko naye aayam mile..koi bhi swatantrata talak ka karan nahi ho sakti..talak ka sabse bada sabab aham, choti soch, viswash ki kami aur sambhbtaya purntaya biprit dhrubi swabhav bhi hai...jeewan ka banawati pan is ke liye meri samjh mein sabse jimmebar hai..aajkal ladke ladkiyan bahut soch samajhkar..ek dusre ki ruchiyon ke baare mein jaankar..apne bhavi jeewan ke tamam swapn brikshon ke janam bridhi pallavan aur pusphit hone tak ka ek bistrit khaka man mastisk mein nirmit karne ke uprant hi vivah jaise sarvocch samajik sanstha me padarpan karte hain...kintu premika se ham jis tarah premi bankar milte hain agar baise hi hame pati bankar bhi milna ho to talak ki baat hi nahi uthti hai ...vivah se pahle nirdharit samay per pahunchna..ek dusre ki iccha anurup kapde..khane peene ki bastuon per ek jaisi sahmati..tabiyat nasaj hone pe baar baar hal chal lena..ityadi tamam batein..jo aksar shadi ke baad jab purv ke anusaar nahi ho pati hain to swapn tirohit hote hain..dararein padti hain..acchi soc samaj wale in dararon ko patte rahte hain..atyant bhavuk in dararon ko nahi bhar paate..aur phir darar se khai..khai se mahasagar...bas eun hi rishte bikharte jaate hain aur talak ho jaate hain…..chod de sari duniya kisi ke liye ye munasib nahi aadmi ke liye…jab tak premi premika pati patni hi ek dusre ki duniya hain tab tak to thik hai …lekin waqt ke sath duniya badi ho jati hai jimmewariyan badh jaati hai.. tab sabka hona padega..kahin ek jagah thhara nahi ja sakta hai…kal sarita mein prabahit ho rahe hai to kal ke nayamon ki andekhi sambhav nahi hai..

रोहित बिष्ट said...

पता नहीं क्यूँ मेरे प्रश्न का उत्तर अभी तक नहीं मिला,समाधान होगा???

दिवस said...
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दिवस said...

@रोहित बिष्ट
बिलकुल उचित है| इसके कारण बहुत हैं| स्त्री पुरुष में समानता एक संवैधानिक अधिकार है| जबकि 'LADIES FIRST' संवैधानिक न सही किन्तु नैतिक तो है ही| स्त्री पुरुष से शारीरिक रूप से कमज़ोर होती है, किन्तु मानसिक रूप से मज़बूत है| ऐसे में महिलाओं के लिए प्राथमिकता नैतिकता की श्रेणी में आती है| अत: जो पुरुष इसे मानता है वह नैतिक ही कहलाएगा|

JC said...

रोहित बिष्ट जी, मैंने सोचा था मैंने आपकी शंका का समाधान कर दिया था! खैर, हिन्दू मान्यतानुसार यहाँ तक कहा गया है कि केवल कृष्ण ही पुरुष हैं, शेष सभी नारी ही हैं :) यह भी कहा जाता है कि "विष्णु ही शिव हैं और शिव ही विष्णु हैं",,, जहाँ पृथ्वी को सांकेतिक भाषा में शिव दर्शाया जाता रहा है, उन्हें 'गंगाधर', 'चंद्रशेखर' आदि कह... और उनके अंग कि भस्म वातव में पृथ्वी कि धूलि कण हैं, और विशेषकर गंगा-यमुना घाटी में वृक्ष-लताएं उनके जटा-जूट जिसमें 'गंगा, चंद्रमा से अवतरित हो, आरम्भ में फंस गयी थी'...

कहते हैं, "हाथ कंगन को आरसी क्या"? और अब तो 'लेडीज़ फर्स्ट' प्रत्यक्ष रूप में देखा जा सकता है केंद्र में सोनिया और मीरा कुमार के अतिरिक्त पूर्व में बंगाल में ममता, दक्षिण में जयललिता, उत्तर में मायावती, आदि आदि द्वारा भी :)

JC said...

क्षमा प्रार्थी हूँ कि केंद्र में राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल का नाम छूट गया था, और ब्लोगर में दिव्या जी का!

P.N. Subramanian said...

ऐसे कुछ एक उदहारण हो सकते हैं जहाँ स्त्री ने आर्थिक रूप से सक्षम हो जाने के बाद,अन्य कारणों से,अपने पति से सम्बन्ध विच्छेद कर लिया हो. लेकिन स्त्री का आर्थिक रूप से स्वतंत्र होना उसका कारक नहीं हो सकता. आजकल तो एक सुखी परिवार के लिए मियां बीबी दोनों को ही कमाने की जरूरत पड़ गयी है.

amit kumar srivastava said...

कदापि नही..

मात्र एक कारण..

"अपेक्षा" और "उपेक्षा" के बीच अंतर्द्वंद से उपजता है अलगाव का भाव और फ़िर वह रूप ले लेता है "तलाक" का ।

रोहित बिष्ट said...
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रोहित बिष्ट said...
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रोहित बिष्ट said...

सार्थक संवाद से मंच की गरिमा बढती है,समाधान के लिए धन्यवाद JC जी और दिवस जी।

Girish Kumar Billore said...

पुरुष वादी व्यवस्था में पुरुष का नारी को समकक्ष न देख पाना एक वज़ह है...
सही सार्थक चिंतन आभार

ZEAL said...

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शोभा said...

Er. Diwas Dinesh Gaur said...
अर्थात हिन्दुओं में तलाक जैसी कोई प्रथा ही नहीं थी|

सही कहा, हिन्दुओ में एक बार किसी लड़की की किसी व्यक्ति से शादी हो जाती थी तो मरने तक वो उसी की पत्नी रहती थी चाहे पति की कितनी ही पत्निया हो. पर उस लड़की को दूसरी शादी का अधिकार नहीं था.

RP said...

पुरुष प्रधान समाज में, स्त्री का स्वतत्र हो जाना मनमुटाव का एक कारण तो हो ही सकता है..
आर्थिक स्वतंत्रता होने से नारी कुछ विषयों पर तो बराबर हो जाएगी, वहां उस पुरुष का जो ये मान बैठा था कि पुरुष ही पैसा अर्जन और गृह पालन का एक मात्र साधन है, उसे चोट तो पहुंचेगी ही ..
यह दंभ, कि मैं ही करता हूँ, मेरे भरोसे ही पूरा घर चलता है, और बात, बात में अपने कार्यों को घर के दिनचर्या के कामों से भारी बता कर , जो पुरुष अपने मान को बढ़ते थे, उन्हें इस बात का मलाल तो रहेगा ही, कि अब नारी अर्थ के दृष्टि से अबला नहीं रही....उसे अब यह दर भी नहीं है कि, दाब के नहीं रहने पर, अपना निर्बाह कैसे करेगी....नयी पीढ़ी मैं कुछ बदलाव तो आ रहा है, पर पुरुष प्रधान समाज तो आज भी है..
मैं तो यह नहीं मन सकता कि, आर्थिक रूप से स्वतत्र होने के कारण तलाक में बृद्धि नहीं हुयी है...इस स्वतंत्रता को पुरुष समाज इतना शीघ्र आत्मसात कर लेगा ? अगर नहीं तो टकराव होगी ही, और इस कारण कुछ तलाक तो होंगे ही..

मेरी समझ से बढ़ते तलाक का मुख्य कारण बिखरते संयक्त परिवार और बंजारे जैसी जिंदगी हो गयीं हैं....आज लोग अपने गाँव, शहर और समाज से दूर बिना झिझक के चले जा रहे हैं...अब यह आवश्यक नहीं है कि , जहाँ माँ, पिता और परिवार रह रहा हो वहीँ लौट के आया जाये...इससे,सामाजिक निगरानी समाप्त सी हो गयी है....सामाजिक निगरानी में कई लाभ भी थे..और विवाह हो सामाजिक मान्यता है, इससे सभी,बहुत समझौते सामाजिक दर से करते थे...अब दूर कहीं कोई पति, पत्नी रहता है, जहाँ इस निगरानी के कोई आसार ही नहीं हैं...किसी को, कोई मतलब नहीं है...
छोटी , छोटी बातों पर भी सहन शक्ति जबाब दे जाति है, और दो मनुष्य अलग, अलग रहने लगते हैं...

रवि

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