Sunday, September 18, 2011

अपोस्ट से कुपोस्टों का सफ़र......

दुःख के साथ कहना पड़ रहा है की कुछ ब्लॉगर्स के पास लिखने को जब कुछ नहीं रह जाता तो वे ब्लॉग पर हो रहे विवादों से मसाला ढूंढकर एक आलेख लिखते हैं और टिप्पणी बटोरते हैं। हिंदी ब्लॉगिंग की गिरते स्तर को परिलक्षित करती है ऐसी मानसिकता। और यही हमारे समारे समाज का गिरता चरित्र भी परिलक्षित करता है।

दूसरों के घर में आग लगी देखकर तमाशा देखने वालों की भीड़ हमेशा ज्यादा होती है। कुछ लोग दूसरों को अपमानित देखकर एक sadistic pleasure पाते हैं। और उसके तहत अपने-अपने ब्लॉग पर और भी ज्यादा अपमानित करने के लिए व्यंगात्मक आलेख लिखकर अपनी भड़ास निकालते हैं। ऐसे आलेखों पर जो लोग शिरकत करते हैं उनकी बुद्धि पर भी खेद उत्पन्न होता है लेकिन खेमेबाजी का इलाज नहीं है। चली रहेगी ये खेमेबाजी अनंत काल तक

किहीं पर विवाद का धुआं उठता देखा नहीं कि, ब्लॉग जगत में अनेकों पोस्टों की भरमार हो जायेगी।

कुछ लोग तटस्थ रहकर प्रवचनकारी आलेख लिखेंगे कि वाद-विवाद नहीं होने चाहिए और प्रवचन के दरबार में तो दस्तक अक्सर ही ज्यादा होती है। ऐसे लोग किसी के मन कि व्यथा समझना ही नहीं चाहते ,बस मसाला देखा और पोस्ट लिख दी।

दुसरे प्रकार के लोग अपनी TRP बढाने के लिए किसी कि छवि धूमिल करने से गुरेज़ नहीं करते। व्यंगात्मक आलेख लिखकर खेमेबाजों कि टिप्पणियां हासिल करते हैं। ऐसे लोगों में नैतिक मूल्यों कि कमी होती है।

तीसरे प्रकार के लोग किसी के व्यथित होकर लेखन छोड़ने के निर्णय को "टंकी-आरोहण" कहकर नौटंकी बताते हैं और अपमानित करने के लिए आलेख लिखते हैं। वहां भी भड़ासियों की जमघट काफी होती है।

चौथे प्रकार में लोग आते हैं जो भडासी आलेख नहीं लिखते हैं , बल्कि ऐसे आलेखों को ढूंढकर , टिप्पणी के माध्यम से अपने मन की भड़ास निकालते हैं।

किसी की व्यथा और अपमान पर "व्यंगात्मक" आलेख लिखकर टिप्पणी कमाना और सस्ती लोकप्रियता हासिल करना अत्यंत घृणित मानसिकता की दोत्तक है। ऐसे कृत्यों का बहिष्कार किया जाना चाहिए, यदि हिंदी ब्लॉगिंग का स्तर ऊंचा रखना है तो।

Zeal

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